अवतार - द वे ऑफ वॉटर
अगर अवतार सिरीज़ की पहली फिल्म आपने देखी है तो दुनिया की कोई ताकत आपको अवतार - द वे ऑफ वॉटर देखने से रोक नहीं सकती। मेरी तरह आपने भी महीनों से मन बनाया होगा की ये फिल्म कब आए और कब आप थियेटर पहुंचें। हॉलीवुड में इसी प्रकार से फिल्में व किरदार बनाएं जाते हैं जिन्हें दशकों तक प्रेक्षकों के सामने लाया जा सके और उनके आगे पीछे नई नई कहानियां बनाई जाएं। आप मार्वल सिरीज़ देख लो, डायनासोर सिरीज़ देखो, मिशन इंपोसिबल देखलो और उनकी सूची में अवतार जोड़ लो।
नई वाली अवतार पुरानी अवतार से कहानी के मैदान में मार खा गई है। यहां बड़ी नवीनता केवल पानी और पानी के नए जानवर हैं । पर यहां जो सबसे अच्छी बात है वो है विजुअल इफेक्ट। जो है ही नहीं उसे कल्पना कहते हैं और अवतार कल्पनाओं के संसार के मुखिया हैं। किस प्रकार से इन दृश्यों को बनाया जाता है और इससे भी अधिक क्या कल्पना की होगी जब एक प्राणी जो उड़ता है और तैरता भी है और वह नायक को सवारी भी कराता है। कैसे कर लेते हैं ये लोग जब एक कहानी दिखाते हुए वीडियो गेम से भी जटिल एनिमेशन को आपके सामने सच्चाई की तरह रखा जाता है।
कहानी बहुत ही सरल है। जेक सुली के पीछे फिर उसी के पुराने दोस्त दुश्मन धरती से आकर पेंडोरा गृह पर दूंढते हैं । सुली अपने परिवार की सुरक्षा के लिए अपना कबीला छोड़कर समुद्र तट पर एक अन्य कबीले पर जा बस्ता है। पर उसके दुश्मन इंसान उसे वहां भी खोज लेते हैं और उसे पकड़ने का जाल बिछाते हैं। पर क्या सुली पकड़ा जाएगा या फिर चकमा दे जाएगा ? ये समुद्र तट पर कौन से कबीले हैं? कौनसे जानवर हैं? उनकी क्या कहानी है? सुली के कितने बच्चे हैं? उनकी क्या कहानी है? सब आपको फिल्म में पता चल ही जाएगा।
फिल्म में प्रथम एक घंटा आपको बोरिंग लग सकता है अगर आपको पारिवारिक संबंधों और परिवार को जीवित रखने के लिए माता पिता के संघर्ष को सुनना और देखना पसंद नहीं। पर उन दृश्यों को अच्छे संवाद व प्रस्तुति से अधिक रोमांचक बनाया जा सकता था। पर निर्देशक और संवाद लेखन दोनो ने बहुत ही सुस्ती दिखाई है। डबिंग में अगर कोई जानी पहचानी आवाज़ ली जाती तो संवाद और अच्छा सुनाई दिया जा सकता था। पर हजारों करोड़ खर्चने के बाद शायद हिंदी सिनेमा की अच्छी आवाज़ के लिए प्रोड्यूसर के पास बहुत पैसे बचे नहीं होंगे। हिंदी डबिंग के लिए में हमेशा लायन किंग फिल्म का प्रशंसक रहा हूं। हर किरदार में जानी पहचानी आवाज़। इसरानी, श्रेयस तलपड़े, आशीष विद्यार्थी जैसे कलाकारों ने अपनी आवाज़ लायन किंग में दी थी।
फिल्म केवल एनिमेशन व ऑडियो विजुअल से नहीं बनती। यहां अवतार के माध्यम से बहुत सारे मेसेज कन्वे करने का प्रयत्न किया गया है। जैसे की फैमिली वैल्यू। साथ हैं तो खुश हैं और जिंदा हैं। प्राणियों और वन्य जीवन की रक्षा हमारा प्रथम कर्तव्य है। दोस्तों और पड़ोसियों से अच्छे संबंध आपको विकट परिस्थितियों में बहुत काम आते हैं। और अंत में हमने जाना के सबसे कमजोर कड़ी कब मजबूत बन जाती है उसका अंदाजा लगाना संभव नहीं। इसलिए सबको साथ लेकर चलने में ही चतुराई है।
अवतार का मज़बूत हिस्सा वह अंत में होने वाली जंग है जिसे सुंदर तरीके से फिल्माया गया है। पर वहां भी वो बॉलीवुड मसाला जैसी हरकतें की जा रहीं है। एक डायलॉग है खून के बदले खून, जिसे हम ७० के दशक से अमरीश पुरी और सदाशिव अमराव पुरकर जैसे विलन के मुंह से सुनते आए हैं। दृश्य बहुत ही उम्दा हैं, एक ऐसी दुनिया जिसकी कल्पना है और एक ऐसे दोस्त जो जानवर हैं पर बड़े वफादार हैं। निर्देशक जेम्स केमरून टाइटेनिक और एलियन जैसी दिग्गज फिल्में दे चुके हैं। अवतार का पहला वर्जन भी अविश्वसनीय और अति अद्भुत रहा। पर क्या केमरून का जादू फिर चल पाएगा? इस बार संभावना कम है पर केमरून के पुराने प्रशंसक इस फिल्म की बुराई सुनकर भी देखने जरूर जाएंगे।
- महेंद्र शर्मा