Roti in Hindi Short Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | रोटी

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रोटी

नीलम कुलश्रेष्ठ

[ दुनिया के एक संवेदनशील व्यक्ति की तरह ये बात अब तक मुझे कचोटती रहती है कि क्यों नहीं एक एक मानस को रोटी मिल पाती ? लगभग बीस वर्ष की अपनी आयु में मैंने प्रथम लघुकथा' रोटी' लिखी थी और मैं सैंतालीस वर्ष बाद भी रोटी के आस पास घूमती 'मिशन मंगल 'लिख रहीं हूँ। मई सन २०१७ के 'नया ज्ञानोदय 'के अंक में शमशेर जी की कविता 'ये शाम'है '[मज़दूरों पर गोलियां ]पढ़कर हतप्रभ हूँ। बिलकुल वही दृश्य है जो मैंने सन १९६९-१९७० के बीच कल्पना की थी। इसी कविता के सन्दर्भ में लिखी कुछ पंक्तियाँ दे रही हूँ -

"रोटियों के बदले मानव -शोषक ग्वालियर की सामंती रियासती सरकार ने १२ जनवरी १९४४ को मज़दूरों के जुलूस पर गोलियां चलाईं थीं."

ज़ाहिर है व अत्यंत तकलीफ़ की बात है कि आज तक ये समस्या बनी रही है --रोटी समाज के आखिरी आदमी के पास पहुँच नहीं पाई है इसलिए पत्रिका के सम्पादक मंडल को इतने वर्षों बाद शमशेर जी की इस कविता को प्रकाशित करने की आवश्यकता महसूस हुई। कब हमारी पूंजीवादी व्यवस्था इस विषय में गंभीर हो सोचेगी ? ]

लोगों की भीड़ बहुत क्रुद्ध है। वे राजा के महल के फाटक पर खड़े ज़ोर ज़ोर से चीख रहे हैं। राजा के विरुद्ध नारे लगा रहे हैं। दरअसल वे उस गोल छोटी सी चीज़ को शहर की एक एक गली में ढूँढ़ते हुए थके हारे राजा के फ़ाटक तक पहुंचे हैं, और वह यहाँ भी गायब थी। यह अभी की बात थोड़े ही है। वह न जाने कितने बरसों से गायब थी। राजा से पूछो तो वे उन्हें उसे खोजने का आश्वासन देते आ रहे थे कि उन्होंने चारों दिशाओं में अपने गुप्तचर उसे खोजने भेज दिए हैं।

अचानक बड़ा सा फाटक अपनी राजसी शान से धीरे धीरे खुलता है। लोग ख़ुश हो उठे हैं कि अब उनकी सुनवाई होगी, फिर जल्दी ही उनकी कुलबुलाई आंतें शांत होंगी। उनकी मुस्कान होठों पर अधफिसलती रह गई क्योंकि उन पर चारों तरफ़ से गोली की बौछार होने लगी। बंदूकों की धाँय धाँय से लोग बौखला गए, बुरी तरह तितर बितर होने लगे। चीख पुकार से वातावरण वीभत्स हो उठा है। कुछ देर में ही सड़क पर लाशें बनते जा रहे मानव शरीर कराहने लगते हैं सिर्फ उस छोटी सी गोल चीज़ के लिए। जो बचे हैं, वे बन्दूक के भय से आस पास की गलियों में तेज़ी से भागने लगते हैं।

राजमहल के सामने शांति होते ही लहूलुहान कराहते लोगों की आवाज़ें राजमहल में अंदर न जाएँ इसलिए वह फाटक बंद कर दिया जाता है।

महाराज मंत्रणा कक्ष में अपनी मूंछों पर ताव देते हुए पूछते हैं ,"मंत्री जी ! हमारे कुर्ते की जेब में हाथ डालकर देखिये कि वह गोल सी चीज़ सुरक्षित तो है ?"

मंत्री उनके कुर्ते की जेब में हाथ डालकर उस गोल चीज़ को स्पर्श करता है। स्पर्श मात्र से ही वह रोमांचित हो उठता है,"जी महाराज ! सब ठीक ठाक है। "

सिर झुकाकर कहते हुए वह महाराज की नज़र बचाकर उस गोल चीज़ में से थोड़ी तोड़कर अपने कुर्ते की जेब में खिसका लेता है।

नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail—kneeli@rediffmail.com