में और सत्यजीत सुदर्शन बाबू के घर पहुंचे
वहां पहले से ही करुणा और
परिवार उपस्थित था
और सामने वाली कुर्सी पर इंस्पेक्टर साहब भी बैठे थे।
करुणा दिखने में सीधी सादी औरत लग रही थी
उसके साथ उसके पति और दोनों बच्चे भी थे।
हमें आता देख इंस्पेक्टर साहब हमारे पास आने लगे ।
उन्हें आता देख सत्यजीत कहने लगा
इंस्पेक्टर आ रहा है।
तैयार है जाओ।
क्यों भला कोई युद्ध लड़ना है क्या।
सत्यजीत – युद्ध ही है अरूप ।
इंस्पेक्टर , अरे आइए सत्यजीत बाबू
आपका ही इंतजार था।
आखिरकार आप आ ही गए हरिनाथ के घर से कैसा अनुभव रहा इंस्पेक्टर ने व्यंग्य करते हुए कहा
कुछ मालूम पड़ा?
बहुत कुछ और कुछ भी नहीं सत्यजीत बोला।
बड़ी टेढ़ी खीर है हरिनाथ।
मेरा तो शक उसपर ही था।
आपको वैसे कोई । इंस्पेक्टर बोला
सत्यजीत , नहीं सबूत तो कुछ नहीं मिला और वैसे भी बेटा अपने पिता को क्यों मारेगा।
इंस्पेक्टर , आप नहीं जानते बाबू बड़ा ही सनकी है गुस्सा तो नाक पर रहता है।
अरे हमारे तो मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया उसने
फिर मैंने जब दरवाज़ा तोड़ने की धमकी दी
तब कहीं जाकर खोला।
हाँ गुस्सैल तो बहुत है पर हमारे सवाल जवाब तो उनकी धर्मपत्नी से हो गई थे।
चलिए अब इनके हाल भी पूछ लिए जाए
मैं बोला
सत्यजीत करुणा के परिवार से पूछताछ के लिए बढ़ते है
करुणा का पूरा परिवार उस बड़े से कमरे में। मौजूद था।
शोकग्रस्त करुणा की आंखें अभी भी नम थी भला अपने पिता की मौत पर किसे दुःख नहीं होगा।
वो भी इस तरीके की मौत।
नमस्कार जी
में सत्यजीत हूं।
मेरा परिचय इंस्पेक्टर साहब ने पहले ही करवा दिया होगा।
आप इजाजत दे तो
बस आपसे कुछ साधारण से प्रश्न करना चाहूंगा
जरूर साहब आप जो पूछना चाहे पूछ सकते है करुणा के पति विजय बाबू ने बड़े आदर के साथ कहा
देखिए क्षति तो हुई पर अब हमारा कर्तव्य बनता है की हमें जल्द से जल्द हत्यारे को सजा दिलानी चाहिए।
सत्यजीत करुणा को सांत्वना देते हुए कहा
करुणा जी आप अपने पिता जी से अंतिम बार कब मिली थी?
मैं उसी सवेरे यहां आई और थी
जिस दिन ये सब……. कहते कहते करूणा फूट फूट कर रोने लगी।
माफ कीजिएगा करुणा जी कारण जान सकता हूं
सत्यजीत कुछ झिझकते हुए बोला।
क्षमा करें सत्यजीत बाबू मुझे नहीं लगता
बेटी को पिता से मिलने के लिए कोई विशेष कारण की आवश्यकता होगी।
माफ कीजिए करुणा जी मेरा आपको दुखी करने का कोई इरादा नहीं था
कोई बात नहीं सत्यजीत बाबू आप अपना काम कर रहे है
आप लोगों के काम में ये दुख रोना धोना कुछ मायने नहीं रखता।
पर जिस बेटी ने अपने पिता को खोया हो उसे तो दुःख होगा ही।
करुणा एक बनावटी आवाज में हमें सुनाते हुए बोली।
मैं उसी दिन पिताजी से मिली थी जिस दिन ये हादसा हुआ था।
दोपहर को यहां पहुंची थी पिताजी और वकील काका
दोनों शतरंज खेल रहे थे।
बस उसी समय मिलना हुआ पिताजी से।
रामहरि ने दोपहर का खाना परोसा और मैं खाना खाकर निकल गई थी
अच्छा तो इस सब के दौरान आपके पिताजी ने कुछ आप से कहा हो या आपको कुछ अजीब लगा हो
नहीं सब कुछ बिलकुल सामान्य था। पिताजी भी वैसे ही थे।
ठीक है
आप तो सुदर्शन बाबू को अच्छे से जानती रहीं होंगी
तो क्या उनका कोई बैरी दुश्मन मेरा मतलब आपकों किसी पर शक है
मुझे किसी पर भी संदेह नहीं
संदेह करने से क्या होगा क्रोध से तमतमाए स्वर में करुणा बोली।
अरे तो गुस्साए क्यों रही हो उन्होंने केवल प्रश्न ही तो पूछा है ना
क्षमा चाहता हूं सत्यजीत बाबू।
मैं सुदर्शन बाबू का दामाद हूं विजय रॉय
ससुर जी बहुत समय से नहीं मिला था।
क्या जानता था अब कभी मिलना नही हो पायेगा
पास के सरकारी स्कूल में अध्यापक था
था ? विजय बाबू
देखिए सत्यजीत बाबू मैं झूठ नहीं बोलता
अभी कुछ दिन पहले मुझे विद्यालय से निरस्त कर दिया।
निरस्त करण का कोई कारण विजय बाबू।
हां कारण है बाबू जहां वृद्धावस्था में संतान अपने माता पिता को सहारा देता है वही मेरे इस महान सपूत ने हमारे घर का इकलौता सहारे को छीन लिया।
स्कूल के अध्यापकों के साथ अभद्रता कर आया ये ..
बैठी हुई करुणा तेजी से खड़ी हुई और बीच में ही टोकते हुए करुणा बोली
अभद्रता से क्या मतलब
वो तुम्हारे मास्टर भी तो दूध के धुले नहीं
और
बेवजह अपने बेटे का ढिंढोरा पीट के तुम्हें कोई सत्यवादी हरिश्चंद्र का खिताब नहीं मिल जायेगा।
अरे तो क्या सच भी ना बोलूं।
शिक्षक महोदय बेटे की गलती की सजा पिता को देना तो गलत है।
आप तो वहां बहुत समय से सेवा दे रहे हैं ।
आप चिंता न करे
आप को जल्दी ही बहाल कर दिया जायेगा।
अब सत्यजीत कुछ थमा और कोने में पड़ी हुई उस कुर्सी की ओर बढ़ा जिस पर देवाशीष बैठा सिगरेट फूंक रहा था।
सच में ये भी एक भी एक अजीब ही प्राणी है
पैर के ऊपर पैर टिकाकर इतने इत्मीनान से बैठा था मानो कोई लॉर्ड साहब हो।
मैं इंस्पेक्टर और सत्यजीत तीनों इसके पास गए
पर उसकी स्थिति में तनिक भी बदलाव ना आया ।
तभी सत्यजीत ने भी पास से एक कुर्सी खिसकाई और वो भी इत्मीनान से उस पर बैठ गया
देवाशीष ने सिगरेट को नीचे गिराकर पैर से रौंद डाला और अपने कुर्ते की जेब से सुपारी मुंह में ठूंस कर कहने लगा
सुना है हत्या की गुत्थी सुलझाने आए हैं अन्वेषक बाबू।
कहीं ऐसा न हों
गुत्थी सुलझाने सुलझाते खुद ही न उलझ जाए।
ए लड़के हद में रहो इंस्पेक्टर साहब गुस्से से चिल्लाए।
हद में
अरे जाओ जाओ मुंह में दांत नहीं पेट में आंत नही बड़े आए मुझसे सवाल करने वाले
तुम जानते नहीं मुझे तुम जैसे चौकीदार तो देवाशीष के आगे पीछे घूमते हैं
साला कब से यहां बैठा कर रखा है और ये दो चमचों को मुंह के आगे खड़ा कर दिया है।
फिर क्या इंस्पेक्टर ने आव देखा ना ताव झपट कर उसकी गिरेवान को दोनों हाथों से जकड़ लिया
माहौल गरमा गर्मी छा गई शुक्र हैं विजय बाबू ने इंस्पेक्टर से माफी मांगी।
और अपने बेटे को शपथ देकर तरीके से बात करने की नाकामयाब विनती की।
इतने गंभीर माहौल में भी सत्यजीत ने फुसफुसाहट से मेरे कान में कहा
लगता है हिटलर का खानदान है।
सब के सब सनकी
मैं कुछ चौका और सत्यजीत की देखने लगा
वो बिल्कुल शांत था एक अबोध बालक की भांति अभी भी एक मुस्कान थी पापरहित, क्रोध्रहित ।
खैर काफी जतन के बाद देवाशीष शांत बैठा।
और सत्यजीत कुछ कहता उससे पहले देवाशीष खुद कहने लगा।
देखो मेरा नानाजी से दूर दूर तक कोई मिलना जुलना नहीं था।
और पुश्तैनी दुकान के बारे में क्या खयाल था। देवाशीष बाबू
दुकान के बारे क्या खयाल होगा मुझे उस दो टके की सुनार की दुकान में कोई दिलचस्पी नहीं है।
इतना कहकर वो खड़ा हुआ और ऐंठता हुआ घर से बाहर चला गया।
सत्यजित बैठे बैठे उसे देखता मुस्कुराता रहा
कैसा व्यक्ति है ये बाप की नौकरी छीन ली गई हैं और पुत्र को रईसी झाड़ने से फुरसत नहीं।
मैं बोला।
कुछ तो होगा ही अरूप।
हम बैठे ही हुए थे की इंस्पेक्टर साहब
ने इशारा करते हुए हमें बुलाया
घर के बाहर बगीचे में गए तो पुलिस के आदमी एक आदमी को घेरे कड़ी पूछताछ कर रहे थे।
सत्यजीत बाबू रामहरि जी आए गांव से अपना बयान देने पूछ लीजिए
सफेद धोती कुर्ता और गमछा डाले
मोटा सा आदमी रोते रोते सत्यजीत के पास आकर बोला मालिक हमने नहीं मारा है किसी को हमें बचा लो। मालिक
सुनो रामहरि ये सत्यजीत बाबू है ये जो पूछते है इन्हे सच सच बताते जाओ।
क्या बताए हम दरोगा बाबू हम तो ठहरे गरीब आदमी शाम को ही मालिक से विदा लेकर
गांव चले गए थे बीमार बिटिया को देखने
पर पता होता ये हो जायेगा । मालिक को छोड़ कर कभी न जाते
हम तो अनाथ हो गए दरोगा बाबू।
संभालो खुद को हरिराम अगर तुमने कोई गुनाह नहीं किया तो चिंता मत करो। सत्यजीत बोला
कुछ भी बता सकते हो बता दो बस
क्या बताए मालिक हम तो बरसो से यहीं काम करते आ रहे है।
हमारे मालिक तो साक्षात भगवान थे।
दान धर्म में उन जैसा कोई नहीं था ।
एक अनाथ लड़की को अपनी बेटी के समान पाला पढ़ाया लिखवाया।
सुना था
जवानी के दिनों में बड़े गुस्सैल थे मालिक
पर जैसा जैसा व्यापार छूटा वृद्धावस्था छाई धीरे धीरे नर्म मोम हो गए।
जितनी छुट्टियां चाहिए होती मालिक बिना किसी बहस के फटाक से दे देते।
उस दिन भी मालिक काफी परेशान थे। पर हमारी परेशानी सुनकर उन्होंने हमें गांव जाने की इजाजत दे दी।
परेशान क्यों थे।
अच्छे से तो नहीं पता पर सवेरे दीदी आई करुणा दीदी
काफी परेशान लग रही थी। एक तो बेटा ऐसा
ऊपर से दामाद जी की भी नौकरी गई।
आई होगी कुछ मदद मांगने पर मालिक तो ठहरे निर्मोही
मोह ही खत्म हो गया था
केवल दो चीजों में ही मन था उनका इंद्राणी बेटी और शतरंज में।
सोच रहे थे एक अच्छा सा वर देख कर बिटिया का ब्याह करवा दे
रामहरि जी अभी आपने कहा की सुदर्शन बाबू का मोह खतम हो गया था अपने बच्चो से क्यों
साहब हमारे हरिनाथ बाबू को तो आप जानते ही होंगे पिता से कभी बनी ही नहीं।
और करुणा दीदी भी कभी कभी आती थी वो भी किसी न किसी कारण से आती थी
केवल एक बड़ी बहू ठहरी जो बेचारी हर हफ्ते मालिक से मिलने आती थी।
बेचारे मालिक अकेले रहते तो किसी से क्या मोह रखते
ठीक है हरिराम अभी तुम कहीं जाना मत जरूरत पड़ने पर तुम्हे फिर बुलाया जाएगा।
ठीक है सरकार
दिन भी ढल चुका है सत्यजीत बाबू आपकी पूछताछ भी हो ही गई है बाकी सब कुछ हमारे आदमी देख रहे हैं।
कुछ जरूरी मिलेगा तो आपको जरूर बता दिया जायेगा।
जी जरूर
में और सत्यजीत अब घर से बाहर निकल चुके थे।
तभी सत्यजीत बोला अरूप तुम्हारे अनुसार तो करुणा बड़ी सीधी सादी महिला थीं।
अरे बेचारे शिक्षक महोदय तो आगे पीछे घूम रहे थे
अरे साक्षात काली है काली।
होगी क्यों नहीं अरे भई हरिनाथ की बहन है। वो तो देख के मुझे लगा सीधी औरत है।
अरूप सूरत से निरीक्षण मत किया करो अभी तो जीवन में तुम्हे बहुत चुनाव करने है।
सूरत से भोली और अंदर से महा काली
कहते कहते सत्यजीत हंसने लगा
नहीं मुझे कोई चुनाव नहीं करने तुम्हे शौक है तो तुम करो मैं उग्र स्वर में बोला
अरे अरे तो गर्म क्यों हो रहे हो नहीं करना तो ना सही।
छोड़ो ये सब ये बताओ तुम्हे किस पर शक है।
मैने अपनी उंगली अपने माथे पर टिका ली
और गंभीर स्वर के साथ बोला
और कौन विचित्र प्राणी ही है
तुम्हारा मतलब देवाशीष
हां हां वही देखा नही कितना क्रोध है उसके अंदर
वो तो इंस्पेक्टर साहब थे इस लिए हम बच गए
नही तो …..
हो सकता है अरूप कुछ भी हो सकता है।
पर अभी तो वक्त बहुत हो गया है तुम एक काम करो
मोहन भोजनालय से कुछ खाना पैक करवा लाओ।
में बहुत थक गया हूं घर निकलता हूं
शाम के सात बज गए थे उस सुनसान घर से बाहर निकलने के बाद मैने कुछ गहरी सांसे ली और भोजनालय की ओर चला गया।
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