विश्वास (भाग --14)
टीना का एक दो शब्दो में जवाब देने से भुवन को लगा कि शायद टीना को उससे बात करना पसंद नही है, मन में शक रखना उसे आता ही नही था तो उसने सीधा ही पूछ लिया, "टीना मुझसे बात करना पसंद नही है तो आप बता सकती हो मुुझे, हम बात नहीं करेंगे"! "नहीं ऐसा नही है, मैं लिख कर जवाब देती हुँ तो सोचती हूँ कि कम लिखूँ, नहीं तो आप मेरा जवाब लिखने तक बोर हो जाओगे", टीना की बात सुन कर मुस्कराए बिना वो नहीं रह पाया ।
"आप इतना मत सोचो, मुझे बोरियत नहीं होती। आप आराम से लिखो मुझे तुम से बात करना अच्छा लगता है तभी तो आया हूँ"। भुवन की बातें सुन कर टीना के मन में अनजान इंसान से बात करने की जो हिचकिचाहट थी वो अब कम हो रही थी। भुवन भी समझ रहा था कि टीना को खुलने में टाइम लगेगा।
रात का खाना भुवन का रसोइया दे गया था।
उस दिन भुवन और टीना ने काफी बातें की। "टीना मेरी दोस्त बनोगी"? भुवन ने पूछा तो टीना ने मुस्करा कर "हाँ" कहा। भुवन उसको बताता रहा कि कैसे उसकी हिस्ट्री के लेक्चर में बच्चे कभी सोते हैं तो कभी बहाने बना निकल जाते हैं। "क्या तुम भी ऐसे करती थी"? उसने इशारे से कहा "हाँ कभी कभी",
"अच्छा!! मैंने भी बहुत किया बंक अपने कॉलेज टाइम में ", भुवन के ऐसे कहने से टीना हँस दी।
इस बार टीना की हँसी अलग थी। हमेशा सिर्फ होंठो पर जबरदस्ती चिपकी सी नजर आती हँसी की जगह आज दिल और आँखो से हँसती हुई हँसी चेहरे पर देख कर भुवन और दादी भी एक दूसरे को देख मुस्करा दिए। "अच्छा टीना कल मिलते हैं, गुडनाईट कह भुवन बाहर आ गया तो दादी भी उसके पीछे आ गयी। "बेटा थैंक्यू तुम ने मेरी गुडिया को दर्द में भी हँसा दिया"। "दादी जी आप थैंक्यू नही बस आशीर्वाद देते हुई अच्छी लगती हो"।
मेरा आशीर्वाद तो हमेशा रहेगा तुम्हारे साथ, भुवन तो चला गया दादी खुद से ही बात करते हुए अंदर आ गयी। टीना को मुस्कराते हुए देख उमा जी को भी तसल्ली हुई। उस दिन दादी पोती अच्छी नींद सोई।
नींद अच्छी आने से टीना को सुबह भी अच्छी लग रही थी। वैसे तो शनिवार और रविवार को भुवन की छुट्टी होती थी तो वो शुक्रवार शाम को ही वोल्वो से अपने घर चला जाता था। इस बार सर और सरला चाची को परेशानी न हो सोच रुक गया।
दो दिन ज्यादातर वक्त उसने हॉस्पिटल में ही बिताया। सरला जी को भी उमा जी का साथ मिल गया और भुवन को जानने का वक्त मिला। भुवन को इतना तो समझ आ गया था कि टीना एक होशियार और समझदार लड़की है। बस थोड़ा हिम्मत हारी बैठी है।
इन दोनों दिन भुवन ही उसको थैरेपी के लिए ले गया। भुवन ने उसे एक मिनट भी कुछ सोचने के लिए अकेले नहीं छोड़ा। भुवन ने उसे अपने बचपन की, गाँव में रहने वाले लोगो की समस्याओं की, अपने दादा के संघर्ष की बातें बतायी और कई महान लोगों की जीवनी भी बताई, जिंहोने अपनी कमी को अपनी ताकत बना कर अपनी पहचान बनाई।
टीना चुपचाप उसको सुनती रहती फिर सवाल भी पूछती रहती। भुवन ने बताया कि वो एक सामाजिक संस्था से जुड़ा हुआ है, जो गरीब बच्चों और बेसहारा औरतों की मदद करती है। डिस्चार्ज होने की एक रात पहले उमा जी ने भुवन और सरला जी को अपने घर का पता दिया और आने का वादा लिया।
"टीना जब तुम्हारा मन हो मुझे मैसेज या फोन कर देना हम बात करेंगे", कह कर भुवन ने अपना नं दादी और टीना को सेव करने के लिए कहा। टीना ने उसी टाइम उसको फोन मिला कर मिस्ड कॉल दी। उसको इशारे से बताया कि मेरा नं भी सेव कर लो।
क्रमश: