राजधानी दिल्ली, सुबह का समय है। सूरज धीरे धीरे अपनी किरणें फैला रहा है। नीले आसमान में चारों तरफ नारंगी रंग फैल चुका है ऐसे लग रहा है मानो किसी चित्रकार ने अपने बनाए चित्र के एक बड़े से भाग को नारंगी रंग से सुसज्जित कर दिया हो। जमीन पर लोग अपने काम के लिए अपना घर छोड़कर बाहर निकल रहे हैं तो वहीं आसमान में पक्षी अपने घोंसलों को छोड़कर भोजन की तलाश में निकल रहे हैं। आसमान में प्रकीर्णित होती सूरज की किरणें कहीं दूर पर्वत की चोटी पर एक सुंदर से इंद्र धनुष का निर्माण कर रही हैं। दिन में आग की लपटों के साथ किसी क्रोधित अवस्था में जलता सूरज इस समय एक दम शान्त, ठहरा हुआ एक बड़ी सी लाल गेंद की तरह दिख रहा है। हो सकता सूरज के इस मनमोहक रूप को देखकर कोई छोटा बच्चा अपनी मां से इस गेंद को पाने के लिए हट कर बैठे।
इसी मनमोहक सुबह में आदित्य अंगड़ाई लेकर सो रहा है, वह कोई सुंदर स्वप्न देख रहा है। पटरी से रेल के गुजरने की आवाज आ रही है, और आदित्य अपने सपने में और खोता चला जा रहा है। धीरे धीरे रेल की आवाज तेज होती जा रही है और अचानक से आदित्य की आंख खुल जाती है।
आदित्य के सामने प्रिंस खड़ा होता है जिसके हाथ में कटोरा और चम्मच होती है।
"बस देख लिए जितने सपने देखने थे, अब होश में आने का समय हो गया है।" प्रिंस कहता है।
"तुझे दूसरों की खुशी अच्छी नहीं लगती क्या?"
"नहीं बिल्कुल भी नहीं।"
"यार कितना मस्त सपना देख रहा था।"
"ठीक है, सपना हो गया हो तो अब कुछ और काम कर ले।"
"काम ही तो होने वाला था भाई, सब कुछ हो चुका था, टॉस जीतकर बैटिंग भी ले ली थी, और बैट लेकर पिच पर भी पहुंच चुका था। बस स्ट्राइक ही लेने वाला था कि तूने सारा खेल खत्म कर दिया।"
"सपने में ही करते रहना सब कुछ, क्योंकि हकीकत में तो कुछ होने वाला है नहीं"
"रहने दो, अरे तुम क्या जानो मोहब्बत क्या होती है?" कभी करते तो पता होता ना।
"तू मेरे जख्मों पर नमक मत छिड़क।"
इतना सुनकर प्रिंस एकदम से शांत हो जाता है और कुछ नहीं बोलता है। और फिर बिना कुछ कहे वहां से दूसरे रूम में चला जाता है। ये सब देखकर आदित्य को बुरा लगता है और वो सोचता है कि कहीं उसने कुछ गलत तो नहीं बोल दिया। और आदित्य भी प्रिंस के पीछे चला जाता है।
आदित्य उसके पीछे जाता है तो देखता है कि प्रिंस रूम में खिड़की के पास खड़ा है और खिड़की से बाहर साफ आसमान को देख रहा है। प्रिंस को आदित्य के आने का आभास हो जाता है और प्रिंस आदित्य को देखे बिना ही उससे बोलता है।
"यार तूने पुराने जख्म बाहर ला दिए।"
"Sorry यार मैं अगर कुछ गलत बोल गया हूं तो"
"अरे भाड़ में गया तेरा सॉरी, तेरे सॉरी का मैं क्या आचार डालूंगा।" प्रिंस हंसते हुए कहता है।
प्रिंस को हंसते हुए देख आदित्य भी हंसने लग जाता है।
"वैसे बात गलत नहीं थी, अब मेरे हाथ की रेखाओं में मोहब्बत की रेखा नहीं है तो अब क्या ही कर सकते हैं।"
"तू खुद ट्राई नहीं करना चाहता है। तू खुद नहीं चाहता कि मेरी भी कोई भाभी हो"
"रहने दो, ऊपर वाला जो है ना वो मेरी वाली को बनाना ही भूल गया।" और आसमान में ऊपर देखकर कहता है, "हे भगवान एक खूबसूरत सी कन्या मेरी झोली में भी डाल दो ताकि ये लोगों का रोज का ताना मारना बंद हो सके।"
"हां, मैं पहले भी ये सब सुन चुका हूं। लेकिन भगवान नहीं सुनने वाला हैं।" आदित्य हंसकर बोलता है।
"सुनेगा बेटा बहुत जल्दी सुनेगा।"
"ठीक है, जब सुन ले तो मुझे भी बता देना, मैं फ्रेश होने जा रहा हूं।"
इतना कहकर आदित्य वहां से निकलकर बाथरूम में चला जाता है। प्रिंस रूम में फैले सामान को एक साथ रखने में लग जाता है।
प्रिंस जैसे ही सामान रखकर फ्री होता है कि तभी डोरबेल बजती है। प्रिंस रूम से बाहर जाता है और गेट खोलता है।
गेट के बाहर अरुण खड़ा हुआ था। अरुण, प्रिंस और आदित्य तीनों साथ में एक ही कम्पनी में जॉब करते हैं और तीनों बहुत अच्छे दोस्त भी हैं। और साथ में एक ही फ्लैट में रहते हैं।
"बाहर ही रहूं कि अंदर भी आऊं?" अरुण कहता है।
"इतने सवेरे सवेरे किससे बगीचे में घूमने गया था तू साले?"
"पता नहीं यार आज आंख जल्दी खुल गई थी। तो मैंने सोचा क्यों न बाहर जाकर ताज़ी हवा खा ली जाए।" अरुण दरवाजे से अंदर जाते हुए बोलता है।
प्रिंस दरवाजा बंद करके अंदर चला जाता है। प्रिंस और अरुण बैठ जाते हैं और दोनों मिलकर आपस में बात करने लगते हैं कि तभी आदित्य बाहर आता है। आदित्य को देखकर अरुण कहता है।
"अरे देखिए तो कौन बाहर आ गया है।" भैयाजी थोड़ा और सो लेते कहीं कम तो नहीं रह गया।
"तू ऐसे क्यों बात कर रहा है। कुछ गड़बड़ कर दी क्या मैंने?"
"आज कौन सा दिन है?" अरुण पूछता है।
"आज तो रविवार है।" कि तभी आदित्य को याद आता है कि आज कर दिन ये तीनों वीकेंड मनाने बाहर जाने वाले थे। लेकिन साथ में आदित्य ये भी भूल जाता है कि आज के दिन ही इन तीनों को मिले पूरे दो साल हो चुके हैं।
"अरे यार मैं भूल गया था।" आदित्य अपना सिर पकड़कर कहता है।
"तुझे सिर्फ इतना ही याद आया।" प्रिंस कहता है।
"हां, और कुछ याद करना था क्या?" आदित्य सोचते हुए कहता है।
"अबे तू छोड़ इसको, तू चल रहा है या नहीं।" अरुण प्रिंस से कहता है। "मैं बाहर इंतजार कर रहा हूं।" और इतना कहकर अरुण बाहर चला जाता है और उसके पीछे प्रिंस भी उठ जाता है और जाते हुए आदित्य को अंगूठा दिखाकर चिढ़ाता है और दरवाजे से बाहर निकल जाता है।
"अरे रुको यार मैं भी चल रहा हूं।" आदित्य तौलिए से अपने शरीर को पोंछते हुए कहता है। और गिरते पड़ते जल्दी जल्दी तैयार होकर आदित्य बाहर निकल जाता है। जल्दी जल्दी में आदित्य बाहर निकलता तो निकल जाता है लेकिन बाहर जाते समय फ्लैट का दरवाजा बंद करना ही भूल जाता है और सीढ़ियों से नीचे उतरकर कॉलोनी के कैंपस में पहुंच जाता है कि तभी उसे याद आता है कि उसने दरवाजा तो बंद ही नहीं किया।
"Ohh shit shit!!!"
और इतना कहकर आदित्य फिर से वापिस बिल्डिंग में जाता है और सीढियां चढ़कर फ्लैट का दरवाजा बंद करके उसको लॉक करता है। और फिर से वापिस सीढियां उतरकर कॉलोनी के कैंपस में आता है। उसकी सारी एनर्जी खत्म हो जाती है। कॉलोनी के गेट पर प्रिंस और अरुण कार में बैठकर आदित्य का ये सब नाटक देख रहे होते हैं और दोनों आदित्य की ये हालत देखकर खूब जोर से हंसते हैं।
आदित्य धीरे धीरे करके कार तक पहुंच जाता है। प्रिंस कार का गेट खोलता है और आदित्य को अंदर बिठाता है।
"क्या हुआ भाई, होश ठिकाने हैं कि नहीं?" अरुण मजे लेते हुए बोलता है।
"दिमाग गर्म मत कर, आराम से कार का AC चला।" आदित्य हांफते हुए कहता है।
और फिर अरुण कार को स्टार्ट करता है और तीनों मस्ती करते हुए वहां से चले जाते हैं।
अरुण, आदित्य और प्रिंस तीनों कार में बैठकर काफी दूर निकल चुके हैं। तीनों बहुत ज्यादा खुश हैं। अरुण कार को चला रहा है, आदित्य और प्रिंस पीछे की सीट पर बैठकर सुहाने मौसम का मजा ले रहे हैं। आदित्य खिड़की से बाहर निकलता है। वो ठंडी और मृदुल हवा उसके मुंह को छूकर निकल रही है। प्रिंस अपने सिर को खिड़की से बाहर निकालता है, तो हवा उसके बालों को अपने बहाव के साथ उड़ाने लगती है। इन खुशनुमा पलों में हर कोई अपने सारे दुखों को भूल जाता है और हर कोई बस इन्हीं पलों में जीना चाहता है, इन्हीं में बस खोया रहना चाहता है।
यही हाल कुछ प्रिंस का भी है वह सब कुछ भूल चुका है काम की सारी थकान, चिंता, नौकरी का दवाब, HR और मैनेजर की बातें और वो सारी पिछली भूली बिसरी यादें जो उसको हमेशा परेशान करती रहती हैं। सब कुछ भूलकर वह अब बस इस पल में खो चुका है। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान है, ऐसा लग रहा है जैसे हवा की ठंडी लहरों ने मां के आंचल का रूप ले लिया हो और दुनिया के तमाम तकलीफों और मुश्किलों से उसके चेहरे को ढक दिया हो। जिससे उसके चेहरे की मुस्कान और संतोषमय नजर आ रही है। इस पल का आनंद लेते हुए प्रिंस अपने सिर को खिड़की से सटा लेता है और अपनी आंखे बंद करके सो जाता है।
कुछ समय पश्चात् प्रिंस को कार में हल्का सा झटका महसूस होता है जिससे उसकी नींद टूट जाती है। जागने के बाद उसे पता चलता है कि अरुण ने कार को एक चाय की दुकान पर रोक दिया है और दोनों इसे जगा रहे है।
"यार कितना सो सकता है भाई तू।" आदित्य कहता है।
"ओय चल आजा पहले थोड़ी गरमा गर्म चाय हो जाए उसके बाद चलते हैं फिर।" अरुण प्रिंस को बाहर आने के लिए इशारा करते हुए कहता है।
प्रिंस चारों तरफ देखता है और उसको पता चलता है कि ये तो रमेश जी की दुकान है जहां ये तीनों अक्सर आया करते हैं। प्रिंस अंगड़ाई लेते हुए चाय की दुकान में जाता है जहां अरुण और आदित्य पहले ही अपना कुल्हड़ लेकर चाय की चुस्की लेने लगे हैं।
"रमेश जी मेरा कुल्हड़ किधर है।" प्रिंस हंसते हुए कहता है।
रमेश जी प्रिंस को कुल्हड़ में चाय छानकर देते हैं और कहते हैं।
"इस बार तो बहुत दिनों बाद आए भैया।"
"अरे अब आपसे क्या छुपाना? रमेश जी काम में इतना व्यस्त चल रहे हैं कि पानी पीने तक का समय नहीं मिल रहा है।"
"लेकिन फिर भी हमने समय निकाल ही लिया।" आदित्य कहता है।
"सबका यही हाल है भैया जी, बस इसी काम के चक्कर में बहुत दिनों से घर भी नहीं जा पाए हैं। बिटिया रानी की शादी भी पक्की हो गई है। अब जब शादी होगी तो उसमें खर्चा तो होगा ही। तो बस उसी के लिए दिन रात बस मेहनत करते जा रहे हैं।"
"करते रहो रमेश जी, बिना मेहनत आज कल वैसे भी किसी को कुछ नहीं मिलता है।" अरुण बोलता है।
"वैसे अगर आप लोगों को समय मिल जाए तो आ जाइयेगा शादी में। अगले महीने की 12 तारीख को है।"
रमेश जी की बात पर प्रिंस मुस्कुराता है और कहता है, "रमेश जी समय का ही तो सारा खेल है। समय…. किसी को नहीं बख्शता है। हम कोशिश करेंगे समय निकालने की और अगर समय मिल गया तो आपकी बेटी की शादी में जरूर आएंगे।"
और यही सब बातें करते हुए तीनों अपनी चाय खत्म कर देते हैं। अरुण रमेश जी को चाय के रूपये देता है और वहां से जाने लगता है कि तभी रमेश जी उसको रोक कर बाकी बचे रुपए ले जाने को कहते हैं।
"अरे भैया जी सिर्फ 60 रूपये हुए बाकी 40 तो वापिस लेते जाइए।"
"रखे रहिए रमेश जी कोई दिक्कत नहीं है।" अरुण कहता है।
"अरे नहीं ऐसे थोड़ी किसी का पैसा रख सकता हूं। मेहनत से कमाना जानता हूं और मेहनत करके पैसे कमाता हूं। और ये बाकी बचे रुपए आपकी मेहनत है और मैं किसी और की मेहनत अपने पास कैसे रख सकता हूं।"
अरुण मुस्कुराते हुए कहता है, "शगुन समझ के रख लीजिए, और वैसे भी आज कल लोग सिर्फ अपने काम जितना ही मतलब रखते हैं और आपने तो अपनी बेटी की शादी में आने का न्योता तक दे दिया।"
"आज के समय में कोई किसी को नहीं पूछता है, पर आपने इतना कहा वो हमारे लिए बहुत था।" प्रिंस कहता है।
"मिलते हैं फिर किसी और दिन कभी परेशान हुए तो आपके हाथों की बनी चाय पीने फिर से आ जाएंगे।" इतना कहकर आदित्य कार की तरफ चल देता है और उसके पीछे पीछे अरुण और प्रिंस भी चले जाते हैं। रमेश जी रुपए को अपनी जेब में रख लेते हैं। उनकी आंखों में हल्के हल्के पानी की बूंदे झिलमिला आई थी।
प्रिंस, आदित्य आकार अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं, अरुण कार को स्टार्ट करता है और फिर से तीनों एक लॉन्ग ड्राइव के लिए निकल जाते हैं।
काफी दूर निकल जाने के बाद तीनों एक ऊंची पहाड़ी पर पहुंच जाते हैं। उस पहाड़ी के नीचे एक बहुत ही गहरी खाई है जिसमें काफी घना जंगल है जो देखने में बहुत ही डरावना लगता है लेकिन उतना ही सुंदर और मनमोहक लगता है उस पहाड़ी से थोड़ी दूर पर दिखता पूरा शहर। जो अपने आप में कई शानदार यादें समेटे हुए है। पहाड़ी से दिखता शहर का नजारा किसी को भी अपना कायल बना सकता है।
"काफी मस्त जगह है वैसे देखा जाए तो" आदित्य अंगड़ाई लेते हुए बोला।
"हां जगह तो काफी बढ़िया है, लेकिन तुझे नहीं लगता कि यहां रात में ज्यादा मजा आयेगा।" प्रिंस बोलता है।
"मैंने सोच रखा है, एक रात तो यहां गुजारनी है।" अरुण बोलता है।
"फिर सही है, रात में जो मजा है ना भाई वो दोगुना हो जाएगा। इस पहाड़ी से दूर दिखता पूरा शहर लाइट की रोशनी में नहाया होगा। अभी से सोचकर मन खुश हो गया। और हां अपना पूरा कैंप लेकर आएंगे, और लकड़ियां इकट्ठा करके यहां पर एक अलाव लगा लेंगे। और फिर तीनों भाई मिलके पार्टी करेंगे। इधर स्प्राइट होगी और इस तरफ चाय और साथ में कुछ स्नैक्स।" प्रिंस हाथों का इशारा करके बताता है।
"ओ भाई रुक जा, पहले टाइम तो मिलने दे तब कुछ प्लान बनायेंगे" आदित्य कहता है।
"अगले रविवार को आ जाएंगे यार और फिर तीनों मिलके मजे करेंगे।" प्रिंस हंसते हुए कहता है।
"बाकी सब ठीक है पर प्लान में कुछ चेंज है।" अरुण प्रिंस से कहता है।
"क्या चेंज है?"
"तीन नहीं बल्कि चार लोग हैं।"
"क्या!! अब ये चौथा कौन है?"
"दो हम यानी मैं और आदित्य"
"और बाकी बचे ये तीसरे और चौथे कौन हैं?"
"तीसरे और चौथे नहीं बल्कि तीसरी और चौथी।"
"हां एक ही बात है…. एक मिनिट! क्या मतलब?" प्रिंस आश्चर्य होकर पूछता है।
"हम दो और हमारी दो, बोले तो प्रेमिकाएं।" अरुण कहता है।
"और मैं, मेरा क्या?"
"GF लाओ और पार्टी के मजे लो।" इतना कहकर आदित्य और अरुण दोनों प्रिंस की तरफ देखकर हंसने लगते हैं।
"ठीक है बेटा उड़ा लो गरीब का मजाक, लेकिन देख लेना एक दिन ऐसी लड़की पटाऊंगा ना कि दुनिया देखती रह जायेगी।" प्रिंस चैलेंज के भाव के साथ कहता है।
"ठीक है तो फिर पक्का हो गया कि अगले सन्डे मैं और अरुण ही आने वाले हैं।" आदित्य चिढ़ाते हुए प्रिंस से कहता है।
"वैसे अगर तू चाहे तो आ सकता है हमारे साथ।" अरुण कहता है।
"और ये एहसान किसलिए?" प्रिंस कहता है।
"अब तू यार है अपना तुझे अकेला कैसे छोड़ सकते हैं। और रही बात GF की तो वो तेरी इस जन्म में नहीं बनने वाली।"
और इतना कहकर आदित्य और अरुण जोर जोर से हंसने लगते हैं।
"कहते हैं जिनकी GF नहीं होती उनको खूबसूरत बीबी मिलती है।" प्रिंस इतराते हुए कहता है।
"किसको झूठ बोल रहा है।" आदित्य कहता है।
"यार तुम लोगों से बात करना ही बेकार है।"
इतना कहकर प्रिंस चला जाता है और कार का गेट खोलकर अंदर बैठ जाता है। अरुण और आदित्य भी कार के पास आते हैं।
"अरे यार तू बुरा मान गया। हम तो सिर्फ तेरी टांग खींच रहे थे।" अरुण कहता है।
प्रिंस दूसरी तरफ मुंह फेर लेता है।
"बाहर आजा भाई, अब कुछ नहीं बोलेंगे।" आदित्य कहता है।
"अब तू कब से मजाक को दिल पर लेने लगा।" अरुण कहता है, लेकिन प्रिंस कोई जवाब नहीं देता है।
"तुझे क्या लगता है कि मैं किसी लड़की की वजह से अपने भाई जैसे दोस्त को दरकिनार कर दूंगा। ये सब तो सिर्फ मस्ती मजाक के लिए है और ये तू खुद जानता है। तेरे लिए किसी को भी छोड़ सकता हूं पर किसी के लिए तुझे नहीं। और तेरी वजह से ही मेरी और शिवानी की लड़ाई हो रही है वो बोल रही है कि ये तुम्हारा दोस्त मेरी सौतन बन गया है।"
"क्या बात कर रहा है! सच में ऐसा बोला क्या?" प्रिंस एकदम से हंसकर बोलता है।
"ये देख लो इसको, बस ड्रामे करवा लो इनसे।"
"भाई ड्रामा नहीं है, वैसे शिवानी ने क्या बोला तुझे?"
"वो क्यों बताऊं मैं?"
"मत बता मैं खुद पूछ लूंगा उससे। प्रिंस कहता है और कार से उतर जाता है। और उतरने के बाद फिर से अरुण से कहता है।
"अरुण तू मेरा सबसे जिगरी यार है।"
"मस्का मत लगा काम बोल।"
"बनवा दे यार कोई GF."
इतना सुनकर अरुण थोड़ा गंभीर हो जाता है और फिर कुछ देर सोचने के बाद प्रिंस से कहता है।
"देख यार अगर सिर्फ फन के लिए GF बनाना है तो वो तो आजकल हर कोई लिए घूम रहा है। लेकिन क्या तुझे सिर्फ फन के लिए कोई लड़की चाहिए। वो कोई खिलौना नहीं है यार। तुझे क्या लगता है मैं क्या फन के लिए GF बनाया हूं। नहीं भाई उसको बीबी बनाने का सपना देखा है। और मैं इस काबिल हो चुका हूं।"
"ठीक है मैं समझ गया ज्ञानी बाबा।" प्रिंस कहता है।
"और सुन ले थोड़ा।"
"हां सुन रहा हूं, तू बस बोलता जा।"
"तेरे अंदर अभी भी बचपना भरा हुआ है, इसी वजह से तेरे अंदर लव फीलिंग्स नहीं है, और जिस दिन तुझे सच में किसी से प्यार होगा ना इस दिन तेरी भी GF बन जायेगी। क्योंकि फिर तेरा लक्ष्य सिर्फ एक ही होगा। आई बात समझ में"
"कहने का मतलब ये है कि जब तक किसी एक पर दिल नहीं टिकता तब तक मेरा कुछ नहीं हो सकता।"
"बिल्कुल सही पकड़े हो मुन्ना।" अरुण कहता है।
"और तूने क्या बोला मेरे अंदर लव फीलिंग्स भी नहीं है?"
"हां तो उसमें कुछ गलत थोड़ी बोला, सच में नहीं है।"
"सुन मेरी बात, मैं प्रोफेसर रह चुका हूं इश्क का, तूने अभी एडमिशन लिया है बेटा अभी पढ़ाई कर।"
और इतना कहकर प्रिंस अंगड़ाई लेते हुए चला जाता है। अरुण और आदित्य कार में से कोल्डड्रिंक की बोतल, स्नैक्स और बैठने के लिए कुर्सी निकालते हैं और प्रिंस की तरफ जाते हैं। आदित्य कुर्सी रखता है और तीनों कुर्सी पर बैठ जाते हैं। इसके बाद अरुण सबको कोल्ड्रिंक और स्नैक्स देता है और तीनों दोस्त आपस में कोल्ड्रिंक से भरे गिलास को आपस में टकराकर अपने दो साल की फ्रेंडशिप को सेलिब्रेट करते हैं।
वो तीनों पूरी तरह से एक दूसरे की बातों में खो चुके हैं। तीनों साथ में बिताए अच्छे और बुरे पल याद कर रहे हैं और कुछ बेवकूफी भरे कामों के लिए खुद का मजाक उड़ा रहे हैं। कि तभी अरुण का फोन आता है, अरुण फोन उठाता है और फोन पर बात करने लगता है कि अचानक से उसके चेहरे से हंसी उड़ जाती है और वह एकदम पत्थर की तरह बैठा रह जाता है...….
क्रमशः
To Be Continued…….