Bahut karib h manzil - 12 - Last Part in Hindi Moral Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | बहुत करीब मंजिल - भाग 12 - अंतिम भाग

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

बहुत करीब मंजिल - भाग 12 - अंतिम भाग

नन्नू का इस तरह दादी के कमरे में जाकर तारा को बुलाना माँ-पिताजी और चंदा की धकड़ने बढ़ा रहा था। वो एक-दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहे थे कि क्या जवाब दें नन्नू को, कहाँ है इसकी तारा जीजी?
चंदा की कलेजा धक-धक कर रहा था तभी।
पिताजी ने आँखों ही आँखों में तारा की माँ और चंदा को आश्वस्त किया कि - "मै जाता हूँ तारा को ढूंढ़ने" और चंदा ने कहा - "मैं उसकी सहेलियों के यहाँ पता करती हूँ।"
उधर दादी के कमरे में नन्नू ने झुंझलाते हुए कहा- ‘‘जीजी सुनती नहीं है क्या ? ऐसे क्यों बैठी है ? एक तो मेरी जगह सो गई और अब मेरा काम भी नहीं करती।दादी आप बोलो ना इसे...!’’
ये सुनते ही तीनों एक झटके से दादी के कमरे की ओर मुड़े वो लोग कुछ बोलें इससे पहले कमरे से बाहर आते हुए दादी ने कहा- ‘‘तारा बेटा आजा बाहर कितनी देर हो गई। कितना परेशान हो रहा है ये लगा दे ना इसके निकर के सिलाई वरना ये तेरा पीछा नहीं छोड़ेगा।’’
दादी की बात सुनकर पिताजी-माँ और चंदा ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा, तभी कमरे से तारा निकलकर आई और दौड़कर पापा के गले लग गई और धीरे से बोली-
"सॉरी पापा..! मुझसे बहुत बड़ी गलती होने बच गई। मैं गलत थी जो किसी अजनबी के बहकावे में आकर बाहर अपने सपनों की तलाश कर रही थी। सच तो यह है कि आप लोगों से ही मेरे सपने हैं और आप सभी के साथ से मैं उन्हें पूरा कर सकती हूँ। आप सब हैं तो बहुत करीब है मेरी मंजिल मैं कहाँ उसे ढूँढने आप लोगों से दूर जा रही थी। आपके संस्कार और प्यार ने घर से बाहर निकलने से पहले ही मेरे गलत कदम रोक दिए, सॉरी माँ-पापा, सॉरी जीजी ।’’ कहती हुई तारा को चंदा ने गले से लगा लिया।
माँ-पापा और चंदा की आँखों से बहती आँसुओं की अविरल गंगा-जमुना की धार बीच माँ ने तारा का माथा चूमकर उसे गले लगा लिया । इधर दादी ने दोनों आँखें बंद करके बेटे को आश्वस्त किया कि हमारे प्यार और संस्कारों ने इसे नहीं लांघने दी घर की दहलीज। उसने रात को दादी को सब कुछ बता दिया इसीलिए वो मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी कि भगवान समय रहते मेरी पोती को भ्रम के जाल से निकाल दिया ।
"चंदा जीजी पता है आपको तारा जीजी बहुत डरपोक है रात को बिल्ली से डर गई और रोने लगी। तो दादी ने इसे चुप करवाकर अपने पास सुलाया। तारा जीजी अब से तू दादी के पास सोया कर मैं ऊपर तेरे कमरे में सो जाया करूँगा। अब बता मेरा निकर सिल रही है या नहीं….!" कहते हुए नन्नू ने निकर को तारा की तरफ फेंक दिया जिसे चंदा ने कैच करते हुए कहा - " आज मैं सिल कर दूंगी तेरा निकर…."
ये सुनकर नन्नू को विश्वास नहीं हुआ और चंदा से निकर छीनकर भाग गया -" ना भई जीजी तुम्हारे प्रैक्टिकल के लिए मेरे पसंदीदा निकर का बलिदान नहीं दूँगा..!"
अब नन्नू आगे चंदा पीछे, ये देखकर सब हँस पड़े।
समाप्त
सुनीता बिश्नोलिया