Bahut karib h manzil - 11 in Hindi Moral Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | बहुत करीब मंजिल - भाग 11

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बहुत करीब मंजिल - भाग 11

आदरणीय पिताजी,
प्रणाम!,
आप सभी से बहुत प्यार करती हूँ, पर उतना ही प्यार अपने सपनों से भी करती हूँ । शायद यहाँ रहकर मैं कभी अपने सपने पूरे नहीं कर पाऊँगी। मेरा सपना है कि मैं बहुत बड़ी ड्रेस डिजाइनर बनूँ। पर जीजी के सपनों के आगे आपको किसी के सपने दिखाई ही नहीं देते। क्या आपने कभी मेरे सपनों के बारे में पूछा ? याद कीजिए आपने कभी मुझसे नहीं पूछा कि आगे जाकर मैं क्या करना चाहती हूँ। जब से समझने लगी हूँ तब से आपको एक ही सपना देखते-देखा है कि आपकी लाडली चंदा जीजी डॉक्टर बन जाए। जीजी के सपने को आप अपना सपना मानकर पूरा करने में जुटे रहते हैं रात - दिन इसलिए आपको मेरे और नन्नू के बारे में सोचने की फुर्सत ही नहीं। इसीलिए आज मैं जा रही हूँ खुद अपने सपनों की तलाश में। मेरी चिंता मत करना मैं अकेली नहीं हूँ।
आपकी बेटी
तारा
पत्र को पढ़ते ही पिताजी निढाल हो कर बैठ गए । चंदा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें संभाला। अगर वो नहीं संभालती तो शायद पिताजी सीढ़ियों से गिर जाते।इस पर चंदा की चीख निकल गई पर पिताजी ने उसे चुप रहने को कहा। पिताजी, चंदा और उसकी माँ के मन में कोहराम सा मच गया था।तीनों धीरे-धीरे बात करने लगे वो नहीं चाहते थे कि अभी कुछ भी दादी या नन्नू को पता चले। इसलिए अभी तक ये बात माँ-पिताजी और चंदा के बीच ही थी। माँ की हालत खराब हो गई थी। उनका दिल धक-धक कर रहा था। मन में बुरे-बुरे ख्याल आ जा रहे थे। चंदा खुद को दोष दे रही थी और माता-पिता खुद को ।





इसी उथल-पुथल में माँ आज नाश्ता भी नहीं बनाया ऐसा कैसे हुआ? क्योंकि बाकी दिन तो माँ इस समय तक दादी-पोते का नाश्ता बना चुकी होती है। उसे देखकर माँ, पिताजी और चंदा दीदी ने अपने चेहरे पर उदासी के भावों को छिपाने की कोशिश की और अपनी खुसर-फुसर बंद कर दी ।
तभी... स्नानघर से नन्नू नहाकर निकल आया। घर में सबके मुँह लटके हुए और सबको इतना चुप देखकर वो फिल्मी अन्दाज में बोला- ‘‘यहाँ इतना सन्नाटा क्यों है भाई.....? ’’
रोज़ उसके इस अंदाज पर पर हँसने वाले मम्मी-पापा आज जरा भी नहीं हँसे। और ना ही चंदा जीजी ने गाल खींचकर कपड़े पहन आने का आदेश दिया ये देखकर वो भी शांत हो गया।
रोज की तरह आज भी वो बाथरूम से बनियान पहने तौलिया लपेटकर बाहर आया। जैसा कि उसकी आदत है वो कोई कपड़े उठा लाता और पसंद न आने पर बहनों को आवाज देता रहता था ।
आज भी वो निकर पहन ही रहा था कि - ‘‘ अरे!..... ये निकर तो फटी हुई है। जीजी दूसरी निकर दो ना। "
" चुपचाप दादी के पास जा और उनसे ले ले दूसरी निकर ।" कहती हुई चंदा परेशान पापा को उनके कमरे की ओर ले जाने लगी।
" क्यों पहन लूँ दूसरी, मैं तो यही पहनूँगा ।’’ कहते हुए उसने-
‘‘तारा जीजी, ओ! तारा जीजी" कहकर आवाज लगाई ।
दो तीन आवाज लगाने पर भी जब तारा नहीं आई तो वो दादी के कमरे में जाकर जोर से बोला -‘‘तारा जीजी आपको सुनाई नहीं देता है मेरी निकर फट गई है, इसकी सिलाई कर दो ना।’’
क्रमश:
सुनीता बिश्नोलिया