Ishq a Bismil - 53 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 53

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इश्क़ ए बिस्मिल - 53

अरीज... अज़ीन.... अरे! कहाँ हो आप दोनों।“ ज़मान खान उनके कमरे की तरफ़ आते ही उन्हें ज़ोर ज़ोर से पुकारने लगे। अरीज जो बेडशीट लगा रही थी यकायक उसके हाथ थम गए थे और अज़ीन अरीज की कीपैड वाली मोबाइल पर गेम खेलने में मसरूफ़ थी वह भी चौकन्ना हो गई।
ज़मान खान हाथों में मिठाई का डब्बा लिए हुए कमरे में आ गए थे। “चलो मेरी शाहज़दियों जल्दी जल्दी अपना मूंह मीठा करो।“ वह कहने के साथ साथ अरीज और अज़ीन का मूंह भी मीठा करवा रहे थे।
“क्या हुआ बाबा?.... मिठाई किस खुशी में?” अरीज ने बध्यानी में उनसे पूछा।
“ये क्या? आप भूल गईं?... अज़ीन का एडमिशन हो गया है। मेरी शाहज़ादी अब स्कूल जायेगी।“ ये कहते हुए उन्होंने एक बार फिर से अरीज के मूंह में मिठाई डाल दी थी। अरीज मूंह से मिठाई के टुकड़े गिरने से अपने हाथ से रोकती हुई कह रही थी।
“अरे हाँ!... मुझे तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहा।“
ज़मान खान और अरीज दोनों बोहत खुश थे मगर अज़ीन के चेहरे पर उदासी के बादल छा गए थे। अरीज ने जा कर उसे गले से लगा लिया और साथ में उसकी पेशानी भी चूम ली।
“अल्लाह तुम्हें कामयाब बनाए... तुम्हें हमेशा खुशबाश रखे।“ वह उसे अपने साथ लगाए दुआएँ दे रही थी।
“आपी मुझे वो स्कूल नहीं जाना है।“ अज़ीन ने बोहत धीमे से कहा था।
अरीज ने उसे खुद से अलग कर के उसका चेहरा देखा था।
“ऐसा नहीं बोलते... कुछ नहीं होगा... मैं हूँ ना तुम्हारे साथ.... और बाबा भी है... तो फिर डरने की क्या बात है।“ अरीज ने उसे समझा कर फिर से उसे गले लगा लेती है। ज़मान खान अरीज की बात सुन कर उन दोनों के पास आये थे।
“अपने दिल से सारे डर खौफ़ निकाल दो मेरा बच्चा। जब तक मैं ज़िंदा हूँ.. किसी भी चीज़ की फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। बस एक बार तुम्हें बाबा कहने की देर है फिर अल्लाह की रज़ा के बाद तुम्हारा कोई बाल भी बाका नहीं कर सकता।“ ज़मान खान ने अज़ीन को गले से लगा लिया था।
“चलो जल्दी से तैयार हो जाओ आप दोनों।... हमें मार्केट जाना है और ढेर सारी शॉपिंग भी करनी है।“ ज़मान खान की बात पर अज़ीन खुश हो गई थी और अरीज थोड़ा झिझक रही थी मगर उसने इंकार करना सही नहीं समझा और तैयार होने के लिए चली गई।
अज़ीन को क्लास थ्री में एडमिशन मिला था। उसके क्लास की new session को शुरू हुए पंद्रह दिन हो गए थे। अज़ीन के सर पे लगी चोट के कारन उसे एडमिशन लेने में देर हो गई थी, इसलिए अब ज़मान खान सब कुछ जल्दी जल्दी कर रहे थे।
ज़मान खान ने सबसे पहले अज़ीन की शॉपिंग करना शुरू की। उसके books, school uniforms, stationaries, उसके रोज़ मर्रा में पहनने के लिए ढेर सारे कपड़े, कहीं आने जाने के लिए अलग से कपड़े, shoes, और भी उसके ज़रूरत की बोहत सारी चीज़े। अभी सिर्फ़ अज़ीन की शॉपिंग हुई थी और उन तीनों के हाथ शॉपिंग बैग्स से भर गए थे।।
“मैं एक काम करता हूँ ये सारे समान गाड़ी में रख कर आता हूँ... ताके बाकी की शॉपिंग हम आराम से कर सकें।“ ज़मान खान ने अरीज से कहा था।
“बाबा और शॉपिंग की ज़रूरत नहीं है... अल्हमदुलिल्लाह... बोहत सारी शॉपिंग हो चुकी है।“ अरीज ने थक कर कहा था... वह already बोहत शर्मिंदा हो रही थी अज़ीन की इतनी सारी शॉपिंग कर के... वह अब और कुछ नहीं चाहती थी।
“कैसे ज़रूरत नहीं है.... अभी शॉपिंग हुई कहाँ है?... आप शायद थक गई है....आप एक काम कीजिए... टॉप फ्लोर पर फ़ूड कोर्ट है... वहाँ जाकर आराम से बैठिए... मैं और अज़ीन पार्किंग से वहाँ आपके पास आते है।...” वह इतना कह कर रुके नहीं थे। अरीज के हाथ से शॉपिंग बैग्स लेकर अज़ीन के साथ चलते बने थे।
अरीज उनसे हार कर एस्केलेटर्स को छोड़ कर लिफ़्ट की तरफ़ बढ़ी थी। तभी लिफ़्ट की तरफ़ जाते हुए उसका शिफोन का वाइट दुपट्टे की कोरी एक लेडी के हाथ में पहनने हुए कड़े से फँस गया था। वह चलते चलते रुकी थी और उसके साथ वह लेडी भी। अरीज को बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था की उसका दुपट्टा इतनी बुरी तरह से फँस चुका है जभी उसने अपना दुपट्टा को खींचा था। दुपट्टा तो कड़े के क़ैद से आज़ाद हो गया था मगर इस खीचा तानी मे उसके दुपट्टे की कोरी फट गई थी। यह देख अरीज का नाज़ुक दिल टूट कर रह गया था। उसका नया दुपट्टा मुफ़्त मे हलाक (मर) हो गया था।
वह अफ़सोस करती लिफ़्ट के पास पहुंची थी। लिफ़्ट अभी basement में था। वह लिफ़्ट का button प्रेस कर के उसके सेकंड फ्लोर पर आने का इंतज़ार कर रही थी, मगर लिफ़्ट जैसे basement में अटका पड़ा था, उसके साथ दो लोग और भी थे जो लिफ़्ट का इंतज़ार कर रहे थे। वह बोर हो रही थी। उसे अपने दुपट्टे का सबसे ज़्यादा अफ़सोस हो रहा था वह उन्हें फ़िर से देखने लग गई थी।
शुक्र है लिफ़्ट उपर आई थी उसका दरवाज़ा खुलते ही दो लोगों के साथ वह भी लिफ़्ट में सवार हो गई थी ये देखे बिना (क्योंकि वह नज़रें झुका कर दुपट्टे को देख रही थी) के लिफ़्ट के अंदर पहले से ही उमैर और सनम मौजूद थे। लिफ़्ट का दरवाज़ा खुलते ही उमैर ने उसे देख लिया था और जैसे थम सा गया था। उसे अरीज के यहाँ होने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। उमैर और सनम सबसे पीछे खड़े था और अज़ीन सब से आगे दरवाज़े की तरफ़ मूंह किये हुए खड़ी थी।
सनम अरीज को ही देख रही थी...उसके बाद उसने उमैर को देखा था ये देखने के लिए क्या वह भी अरीज को देख रहा है की नही, मगर उमैर ने अपने जेब से मोबाइल निकाल कर उसमे busy होने का ढोंग करने लगा था। कुछ ही सेकंड मे लिफ़्ट टॉप फ्लोर पर पहुंच गई थी। अरीज लिफ़्ट से सबसे पहले निकली थी उसके बाद वो दोनों लोग लेकिन उमैर अभी भी थमा हुआ था। लिफ़्ट का दरवाज़ा automatically बंद हो चुका था। सनम ने उसे सवालिया नज़रों से देखा।
“क्या हुआ?... चलो... “ उमैर को देख सनम हैरान थी। मगर उमैर कुछ देर उसे देखते हुए सोचने के बाद लिफ़्ट के सेकेंड फ्लोर का button प्रेस किया था। और सनम से कहा था
“पहले शॉपिंग कर लेते है उसके बाद कुछ खायेंगे।“ सनम एक बार फिर से उसकी बातों से हैरान हुई थी। अब उसके लिए ये कोई नई बात नहीं रही थी। उमैर का रवैय्या जब से बदला था तब से शॉक, हैरानी... ये सब सनम के लिए आम सी बात हो गई थी।
ज़िंदगी में कभी कभी ये चीज़ कितनी अजीब लगती है... जिस से हम भागते है वही चीज़ बार बार हमारे सामने आ जाती है। उमैर भागना चाहता था हर उस सचाई से जो अरीज से जुड़ी थी मगर अफ़सोस अरीज से जुड़ी चीज़ें तो नहीं मगर खुद अरीज उसके सामने आ गई थी।
आखिर क्यों देख रही थी सनम अरीज को?
क्या उमैर ने सनम को सारी सच्चाई बता दी थी?
क्या होगा आगे?
जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल