Agnija - 86 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 86

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अग्निजा - 86

प्रकरण-86

भावना बड़ी देर से चुपचाप बैठी थी। शांति बहन, जयश्री और यशोदा को भी आश्चर्य हो रहा था कि ये लड़की इतनी देर से चुप कैसे बैठी है? यशोदा ने पूछा तो भावना ने ठीक से उत्तर नहीं दिया। वह उत्तर भी क्या देती बेचारी ? उसे रह-रह कर प्रसन्न का घर, वहां पर हुआ वार्तालाप और रास्ते भर एक भी शब्द न बोलने वाली केतकी की याद आ रही थी। केतकी ने घर में घुसते साथ भावना की तरफ देख कर बोली, “मुझे अकेले रहना है सुबह तक। मुझे बिलकुल परेशान मत करना। कोई नाटक मत करना। प्लीज. ओके?” भावना के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही वह अपने कमरे में चली गयी। भीतर से कुंडी लगाने की आवाज भी आयी।

क्या किया जाये?किससे कहा जाए? और कैसे किया जाए? इन विचारों में खोयी हुई भावना सोफे पर बैठी थी। सामने टीवी चल रहा था और उस पर उसका पसंदीदा कार्यक्रम भी चल रहा था। लेकिन उसमें उसका ध्यान ही नहीं था।  कई घंटे वह उसी तरह बैठी रही।

अचानक दरवाजा खुला और केतकी बाहर निकली। “ऐ लड़की अंदर आओ। दो गिलास पानी और कुछ खाने के लिए हो तो लेकर आना।” भावना ने छलांग मार कर उठी। मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो इस तरह खुश हो कर वह रसोई घर में गयी और मुरब्बा और खाखरे ले आयी। फिर दौड़ कर रसोई घर में गई और सुबह का बचा हुआ चावल और सब्जी लेकर आयी। तीसरी फेरी में पानी लेकर कमरे में आयी। केतकी दरवाजे पर खड़ी हो कर चुपचाप उसकी सारी भागदौड़ देख रही थी। पानी ले कर आने पर उसने कमरा अंदर से बंद कर लिया। वह कुर्सी पर बैठ गयी। दूसरी कुर्सी पर भावना को बैठने का आदेशात्मक इशारा किया। जब वह बैठ गयी तो केतकी चिल्लायी, “इतनी बड़ी घोड़ी हो गयी लेकिन बुद्धि एक पैसे की नहीं आई अब तक? बुद्धि नहीं वो तो ठीक लेकिन प्रेम, ममता ? चलो ठीक प्रेम भी नहीं, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान और औपचारिकता भी कुछ होती है कि नहीं?”

“लेकिन केतकी बहन तुमने तो...”

“क्या तू तू कर रही है? अरे मैंने कहा कि मुझे तंग मत करना, मुझसे बात मत करना, तो तुम तुरंत मान लोगी? बिना बोले चुपचाप रहोगी?गुस्सा कम होने के बाद अपनी बहन को भूख लगेगी, इसका विचार तुम्हारे मन में नहीं आया?”

भावना उठ कर खड़ी हो गयी, उसने केतकी की आंखों में आंखें डाल कर कहा, “मुझे मालूम है कि मेरी दीदी को भूल नहीं लगी है। वो तो दो-चार दिन भी बिना खाये-पीये रह सकती है। पर उसे इस बात का डर लग रहा था कि अपनी पागल छोटी बहन कहीं रात भर उसके बिना भूखी न बैठी रहे इस लिए उसने भूख लगने का नाटक कर के मुझे अंदर बुला लिया है।”

“बस, अब ज्यादा बकबक मत करो। क्या ले कर आई हो देखने दो। डिब्बा खोलो।”

डिब्बा खोल कर दोनों बहनें खाखरा और अचार पर टूट पड़ीं। कौर चबाते-चबते केतकी बोली, “एक बात बहुत बुरी हुई है...लेकिन अब कुछ हो नहीं सकता।”

भावना को डर लगा कि अब और क्या नया घट गया? उसने अपनी आंखों से प्रश्नवाचक इशारा किया।

केतकी ने भावना का हाथ पकड़ा। “मेरी ये गुड़िया बहुत जल्दी बड़ी हो गयी। बड़ों की तरह बात करने लगी। एकदम गंभीर हो गयी। और यह सब कुछ मेरे कारण हुआ है इस बात का का मुझे हमेशा दुःख होता रहेगा। ”

 

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सुबह केतकी की नींद खुली। पांच मिनट आंखें बंद कर के वह बिस्तर पर ही बैठी रही। लंबी सांस भरी। रात को देर तक विचार कर रही थी। इसके बाद वह जिस एक निर्णय पर पहुंची, उससे उसे बहुत हल्का महसूस हो रहा था। उसने मोबाइल उठाया और एक लंबा-चौड़ा मैसेज टाइप किया, “गुड मॉर्निंग, मेरे लिए बाल नहीं, मेरा जीवन महत्वपूर्ण है। स्टेरॉयड्स नहीं, आप जैसे लोग मेरी शक्ति हैं। मैं आपको धन्यवाद नहीं दूंगी, आपका आभार नहीं मानूंगी, मैं टूटकर गिरूंगी नहीं। मैं लड़ूंगी, प्लीज मेरे साथ हमेशा यूं ही बने रहिए। ” फिर उसने यह मैसेज कीर्ति चंदाराणा, उपाध्याय मैडम, प्रसन्न शर्मा और भावना को भेजा। उसका मन थोड़ा हल्का हुआ।

केतकी ने न केवल दवा की पुड़िया लेना बंद किया, बल्कि उन्हें कचरे के डिब्बे में फेंक भी दिया। दवा बंद करते साथ धीरे-धीरे उसका आहार कम होने लगा। स्टेरॉयड के कारण लगने वाली अनावश्यक भूख अब खत्म हो गयी थी। अब उसे 85 किलो हो चुका वजन भी कम करना था। उसे पहले जैसा 45-50 किलो वजन पर वापस आना था। एकदम फिट होना था। उसने खूब विचार किया लेकिन उसे कोई उपाय सूझ नहीं रहा था। स्टेरॉयड की कृपा से आए हुए बाल उसके विरह में टिके रहने वाले नहीं थे। लेकिन ये तो केवल शुरुआत ही थी। आगे न जाने क्या क्या दिन देखने थे, किन-किन संकटों का सामना करना था-उसे इसकी कल्पना कहां थी?

केतकी अब घर में बिना स्कार्फ बांधे ही रहती थी। यशोदा को बुरा लगता था। शांति बहन भगवान से प्रार्थना करती रहती थीं कि यह लड़की जल्दी से जल्दी अपनी ससुराल चली जाए तो अच्छा। नहीं तो हमेशा के लिए यहीं रह जाएगी। जयश्री मन ही मन खुश थी। अब उसके पास केतकी से कुछ अधिक था। बहुत सुंदर भले ही न हों, पर उसके पास बाल थे। और वे उसके साथ हमेशा रहने वाले थे। जयश्री अब अपने बालों की अधिक देखभाल करने लगी थी। जानबूझ कर बाल खुले रखती थी। यशोदा से कभी-कभार बात करने वाली जयश्री अब उससे अपने बालों में तेल लगवाती थी।

एक दिन जीतू सुबह-सुबह टपक पड़ा। केतकी अंदर थी। जीतू के आने की खबर उसे मिल गयी थी, फिर भी वह स्कार्फ बिना बांधे ही बाहर निकली। उसके एकदम छोटे बॉयकट बाल देख कर जीतू को झटका लगा। “अब ये कौन सी नयी फैशन कर ली?”

केतकी ने शांति से जवाब दिया, “फैशन नहीं, बालों में गंजेपन की शिकायत हो गई है, इसी के कारण मेरे बाल गिर रहे हैं।”

जीतू हंसा, “साला मेरा नसीब भी कमाल का है। कभी तुम सिर पर कपड़ा बांध कर बंदर की तरह दिखती हो, कभी कम बालों के साथ न जाने कैसी दिखती हो। कभी एकदम दुबली तो कभी भैंस की तरह फूल जाती हो। लेकिन भगवान मेरी तरफ देख रहा है। उसने मेरी चिंता ही कम कर डाली। ”

केतकी को उसकी बात समझ में नहीं आयी, यह देख कर जीतू हंसते हुए बोला, “अरे, तुम जैसी दिखने लगी हो उससे अब तुम्हारी तरफ कौन देखेगा? तुम अब गॉगल चढ़ा कर घूमो या फिर बिना बाहों का ब्लाउज पहन कर घूमो या....हां, पर अब बाल खुले रखने का तो कोई प्रश्न ही नहीं... ” इतना कह कर जीतू जोर-जोर से हंसने लगा। “अब एक बात हमेशा याद रखना, इस दुनिया में एक ही आदमी है जो तुमको संभाल कर रखेगा। और वह आदमी यानी मैं... ये जीतू...समझीं? इस लिए अब कोई नाटक, नखरे मत करना। मैं जैसा कहूं वैसा करना, जितना चाहूं उतना बोलना...वैसा ही करना...यदि वैसा नहीं किया तो ...मैं कुछ भी करूं तो मुझे कोई कुछ नहीं कहेगा...घर वाले तुमको ही दोष देंगे, समझ गयी मेरी डिंपल कापड़िया...?”

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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