————————-११ मोतियों की माला——————— एक जंगल में एक सिद्धि प्राप्त ऋषि रहते थे.आस -पास के लोग उनसे मिलने जाया करते थे.ऋषि की कुटिया के पास एक कुआँ था.कुँए की एक ख़ासियत थी जो भी कोई पानी पीने जाता बाल्टी के साथ एक मोती भी ज़रूर आता.अक्सर आस-पास के लोग इस कारण से उनसे मिलने जाते थे.एक क़स्बे में एक ज्ञानीजन रहते थे,उनको भी पता चला की जंगल में एक पहुँचे हुए ऋषि रहते हैं,और उनकी कुटिया के पास एक कुआँ और पानी के साथ-साथ एक मोती भी निकलता हैं और उस पर कुछ लिखा होता हैं.मन में जिज्ञासा हुई की मैं भी मिलकर आऊँ उन संत से,घर से बिना बताएँ चल दिए संत से मिलने,संत से मिले चरण स्पर्श किये,बातें हुई संत की बातों से प्रभावित हुए,संत से आज्ञा लेकर पानी पीने के लिए कुँए की तरफ़ चल दिए,बाल्टी में पानी के साथ मोती को देखकर जिज्ञासा शांत हुई. विश्वास भी हो गया लोग सही कह रहे थे.पानी पीने के बाद जैसे ही मोती को हाथ में लिया उस पर लिखा था “अहंकारी” ज्ञानीजन मन ही मन सोचने लगा इसको कैसे पता.संत से आज्ञा लेकर चल दिए वापिस घर की तरफ़ ये सोचते-सोचते की उसको कैसे पता चला … ख़ैर … अब अहंकार ख़त्म करके फिर मिलने जरुर जाऊँगा.समय गुजरता रहा फिर एक दिन चल दिए संत से मिलने, कुएँ से जैसे ही बाल्टी से पानी पीना शुरू किया एक और मोती मिला लिखा था,”क्रोध” फिर सोच में पड़ गया. इसको कैसे पता मैं बहुत ज़्यादा क्रोध करता हूँ.ऐसे ही हर बार होता रहा “मद”,“लोभ”,”आलस्य”,”छल”,”हठ”,”ईर्ष्या”…..आदि के मोती घर ले जाते रहे.ज्ञानीजन को अपने आप पर बड़ा ही रोष हुआ इतने दोष लेकर जी रहा हूँ …. नहीं,नहीं मुझे इन दोषों को दूर करना हैं … क़रीब एक साल बाद फिर ज्ञानीजन संत की कुटिया पहुँच गए. संत के पैर छूकर वही संत के पास बैठ गये.संत से बहुत देर बातें की,संत बोले जाओं कुएँ के पास… ज्ञानीजन संत से बोले नहीं अब मुझे नहीं जाना कुएँ के पास …. अब मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं हैं.संत जानते थे मुझे इसको क्या देना हैं.संत अपनी कुटिया में गए और एक माला ज्ञानीजन के गले में डाल दी जिसमें ११ मोती थे और जिन पर हर मोती पर अलग- अलग लिखा था “मुझे ज्ञान हो गया अब मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नही”.सच बताऊँ मैं तो कुएँ पास इस लिए गया था मुझे भी सोने के मोती मिल जाएँगे और मेरी जिज्ञासा क्या सच में ही कुएँ से मोती निकलते हैं ,लेकिन मुझे क्या पता था मोती के साथ-साथ गुण व अवगुण भी पता चलते हैं.चलो जिज्ञासा के साथ-साथ मुझे मेरे अवगुणों का भी पता चल गया और मैंने इन अवगुणों को अभ्यास से दूर कर लिया.
पीयूष गोयल के कथन
- भगवान श्रीकृष्ण,अर्जुन के ही सारथी नही थे वे तो पूरे विश्व के सारथी हैं, फिर डर किसका।
- वर्तमान की आवश्यकता भविष्य की निधि हैं।
- किसी भी कार्य के पर्याय बन जाओ प्रसिद्धि अवश्य मिल जाएगी।
- जीवन में लक्ष्य ज़रूर निर्धारित करो लक्ष्य मिलने पर आकर बड़ा कर दो।
- प्रलोभन व्यक्ति को विचलित करता है।