Ekaki in Hindi Classic Stories by Annapurna Bajpai books and stories PDF | एकाकी

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एकाकी

एकाकी

कौशल्या जी को गुजरे अभी दस दिन भी न हुए थे कि उनके तीनों बच्चों मे उनकी चीजों को लेकर झगड़ा आरंभ हो गया। जैसा कि अधिकतर घरों मे होता है कि घर के स्वामी या स्वामिनी का महाप्रयाण हुआ नहीं कि संपत्ति का झगडा शुरू। सो यहाँ भी कुछ नया न हो रहा था।
बड़ी बहू सबकी चाय लेकर आई और तमकते हुए बोली ," सारा जीवन मैंने सेवा की है और आज जब कुछ मिलने की बारी आई तो मंगते पहले इकट्ठा हो गए, पिता जी मै कुछ नहीं जानती आप मुझे अम्मा के मोटे वाले कंगन और पुरानी वाली तोड़ियाँ दे दो, आखिर मेरे भी एक बेटी है कुछ अम्मा की तरफ से आशीर्वाद ही हो जाएगा वैसे मुझे कुछ नहीं चाहिए । अम्मा के पास था ही क्या जो हम लोगों को मिलेगा। "
मँझली ने कहा ,”नहीं बाबू जी अम्मा हमे सबसे ज्यादा प्यार करती थी और उन्होने कहा था कि मोटे कंगन वे हमको ही देंगी, आप तो वे कंगन हमको ही देना ।”
छोटी बहू नई थी उस समय कुछ न बोली जमना दास जी ने सोचा,”चलो छोटी ठीक है उसने कुछ नहीं मांगा।“ लेकिन रात को दूध लेकर छोटी आई और धीरे से बोली ,” बाबू जी आप तो जानते ही है कि अम्मा ने हमको मुंह दिखाई मे एक जोड़ी पतली वाली पायल ही दी है और तो मुझे कुछ नहीं दिया मेरे पास केवल वही जेवर है जो मेरी माँ ने दिये है । बाबू जी आप मुझे अम्मा के जेवरो मे से कुछ दे देते तो मेरे पास उनकी निशानी रह जाती।” और छोटी बहू चली गई।
रात मे अकेले लेटे लेटे जमना दास जी सोचने लगे –“क्या यही प्यार और संस्कार दिये है हमने अपने बच्चों को ? जो आज दस दिन ही हुये कोशी को गए और बहुए जेवरों की मांग कर बैठीं , क्या पता कल बेटे भी कुछ मांग बैठे ।“
इसी तरह सोचते हुये वे उठे और धीरे धीरे चलते हुये कौशल्या जी की अलमारी की पल्ले खोल कर खड़े हो गए और उनकी हर चीज को हौले से स्पर्श करने लगे । उनकी साड़ियाँ वैसे ही तह की हुई सजी रखी थी जैसे वो रख गई थीं वैसे ही जेवरों के डिब्बे रखे थे उनके नाम से ली गई जमीन के कागज भी सहेज कर रखे हुए थे , इससे पहले वे ही तो सब धरा उठाया करतीं थीं , कभी जरूरत ही न पड़ी कि वे देखते कि कौशल्या जी कौन सी चीज कहाँ रखती हैं और कितने पैसे कहाँ खर्च करतीं है , किस तरह घर चलाया जाता है उनसे बेहतर कोई न जानता था
बड़ी सुघडता से सभी कामों को निपटा डालतीं थीं , कभी जमना दास जी को पता ही न चला । आज उनके जाने के बाद जीवन मे पहली बार अलमारी खोली और उनकी सभी चीजों को छूते और यादों मे खो जाते । जमना दास जी को उनकी हर वस्तु मे उनके होने का अहसास हो रहा था ।“ ये तोड़ियाँ माँ ने कौशल्या को मुह दिखाई मे दी थीं ,ये कंगन माँ ने बड़े बेटे के आगमन पर कोशी को तोहफा दिया था , ये नवरत्न हार स्वयम उन्होने कोशी को फसल अच्छी होने पर दिया था । ये चूड़ियाँ मँझले के जनम पर , और मोटी वाली जंजीर छोटे के जनम पर दी थीं, ये मोतियों का सेट बड़े चाव से बड़े के ब्याह पर खरीदा था । और भी तमाम जेवर जो धीरे धीरे कर जमा किए थे उनमे से कुछ तो कौशल्या जी ने स्वयम ही बहुओं को दे डाले थे। अब रहे सहे जो जेवर थे वो भी उनको ही मिलने थे, कौन बेटी है जो उसको देना पड़े , मिलेगा तो तो इन लोगों को ही , लेकिन इन सबका मन छोटा हुआ जाता है। जमना दास जी ने सोचा काश ! कोशी तुम अपने जीवन मे ही इन सबको दे जाती तो आज इन लोगो का ये रूप न देखना पड़ता। और उन्होने मन ही मन निर्णय ले लिया कि जब कोशी की तेरहवों हो जाएगी वे सारा समान और जमीन बराबर बराबर सबमे बाँट देंगे । और उनके विषय मे सोचते सोचते कब सुबह हो गई पता ही न चला । सुबह तड़के जाकर उनकी झपकी लगी थी कि थोड़ी ही देर मे खटपट शुरू हो गई और बाहर से किसी ने आवाज लगाई “बाबू चलो उठो सबेरा हुई गवा ।” जमना दास जी उठ कर बाहर आए । नित्य कामों को निपटाने के बाद जमना दास जी बरामदे मे आकर बैठ गए और अगले दिन की तैयारियों मे लग गए ताकि तेरहवीं का कार्यक्रम ठीक से निपट जाए और कोई व्यवधान न आए । पीछे से सारी चीजों का बटवारा वो खुद ही कर देंगे । शाम ढलने से पहले ही बहू बेटे इकट्ठा हुए और बोले ,” बाबू जी हमे आपसे कुछ बात करनी है ।“ “हाँ बोलो क्या कहना चाहते हो” जमना दास जी बोले । सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे मानो कह रहे हों तुम कहो । अंत मे काफी झिझक के बाद छोटे ने बाबू जी से कहा ,”बाबू जी हम सब चाहते हैं कि आप अभी वसीयत भी बना दें वरना कल का क्या भरोसा आप भी माँ की तरह ....... ।“ ज़ोर से चीख पड़े जमना दास ,” छोटे …………. “ । इसके आगे कुछ न कह पाये वे गला भर आया आँसू छिपाते हुये बोले ,” नामुरादों माँ की चिता की आग तो ठंडी हो जाने देते ।“ इसके आगे वे कुछ न कह पाये उठ कर अपने कमरे की ओर चल दिये ।
एकदम एकाकी , कोई भी आज उनके साथ न था । किसी को भी उनके एकाकीपन से सरोकार न था बस था तो उनकी और माँ की संपत्ति का ।

कहानीकार
अन्नपूर्णा बाजपेयी आर्या
कानपुर

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