childhood in Hindi Biography by Miss Chhoti books and stories PDF | बचपन

Featured Books
Categories
Share

बचपन

बचपन हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत, प्यारा, और मासूम हिस्सा होता है। और अक्सर बचपन को याद करके खुश हो जाते है। धूल मिट्टी में खेलना, शरारतें करना सबकुछ कितना अच्छा लगता न। जब हम बच्चे थे तो बड़े होने की जल्दी थी, और आज जब हम बड़े हो गए हैं,तो सोचते हैं फिर से वही बचपन के दिन आ जाए। पर जीवन की हकीकत तो यह है कि जो समय एक बार चला जाता है वो दोबारा लौटकर वापस नहीं आता, वो बस हमारी यादों में ही रह जाता है|

मेरे बचपन की कुछ बेहतरीन यादें.......
हमारा मिट्टी की इंटो से बना घर था। एक ही रूम था जिसमे हम सात लोग रहते थे। हम पांच भाई_बहन और हमारे मम्मी-पापा, हमारे घर पर टीवी नही था। रोज रात को दादी माँ के घर पुरा परिवार साथ मे रामायण देखते, वो भी ब्लैक एंड व्हाइट टीवी पर। बहोत मजा आता।

1 std. का मेरा पहला दिन, पूरे गाँव मे घुमी थी, पापा का मुझे और मेरे भाई को पास मे बिठाकर पढाना आज भी याद करती हु। मेरे पापा-मम्मी ज्यादा पढ़े लिखे नही है। पापा ने 7वीं तक पढ़ाई की है और मम्मी तो कभी स्कूल गई नही। फिर भी उनको जितना आता वो सिखाते।

मुझे ढिंगली बहोत पसंद थी। मेरी बहन और हम कपडे की ढिंगली बनाकर उससे खेलते। पेड़ के पत्तो की रोटी बनाना और सब्जी बनाना, मिट्टी के खिलौने बनाना, अपने भाई और दोस्तो के साथ क्रिकेट, गीली दांडी, नागोल, जैसे खेल खेलना, कागज की नाव को पानी मे चलाने का मजा ही कुछ और था। बचपन मे यही सब हमारी दुनिया हुआ करती थी।

भाई - बहनो मे बचपन से पापा की फेवरिट हम ही रहे है। इसबात का झगड़ा बहोत हुआ है। पापा मेरी हर बात मानते, मुझे कोई परेशान करे तो पापा उसको बहोत डाटते, मुझे आज भी मेरी प्राथमिक स्कुल का दिन याद है। मेरे पापा ने बोला था "कोई भी परेशान करे या झगड़ा करे मुझे कह देना। फिर वो है और तेरे पापा"

हमारा बचपन बहोत अच्छा और खूबसूरत था। मेरे नखरे भी बहोत रहे है। फिर चाहे घर के काम के लिए हो या खाने मे, हर चीज मे कुछ न कुछ नखरे रहे है। खाने मे कोई चीज पसंद नही होती तब मेरे लिए अलग खाना बनता, घर मे कोई खाने की चीज लाते और हम घर से बहार होते तब मेरे पापा मेरे लिए अलग से मेरे भाई - बहनो से चुपाके रख देते।

बचपन के दिनों की बात ही अलग है। उन दिनों के लिए जितना लिखे उतना कम ही है।

वो बचपन के दिन थे जो बीत गए ....
ना रोने की वजह थी ना हसने के बहाने थे
कागज की नाव और खुशियों का फसाना था।
ना कुछ खोने का डर था ना कुछ पाने की चाहत
बारिश के गढ्ढे और खेल वही पुराने थे।
ना पास होने का tenstion था न नापास होने का डर
आंगलवाड़ी के दिन थे और चार अंक आ जाने की खुशी थी।
ना दोस्ती मे छल कपट था ना लड़के लड़कियों के चक्कर
मिट्टी के महल थे और कट्टी बट्टी के तराने थे।
वो सच्ची नादानीया वो भोली सी शेतानिया
साँप सीडी और खो खो के झगड़े की मोज थी।
वक्त के साथ बीत गए....
वो बचपन के दिन थे वो बचपन के दिन थे।