Ek Ruh ki Aatmkatha - 18 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 18

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एक रूह की आत्मकथा - 18

लीला ने रेहाना के दरवाजे पर दस्तक दी तो देर तक दरवाजा नहीं खुला।लीला ने सोचा कि लगता है कि वह सो गई है । दरवाजे के पास लगी कॉलवेल भी खराब थी।क्या करे लौट जाए?नहीं ,इतनी दूर आई है तो मिलकर ही जाएगी।
उसने फिर जोर से दरवाजा खटखटाया।अबकी उसे रेहाना के पैरों की आहट सुनाई दी।अस्तव्यस्त कपड़ों में रेहाना ने दरवाजा खोला तो लीला को देखकर चौक गई।
--'तुम!अचानक!बिना किसी सूचना के!कैसे!'
-"अब सब कुछ बाहर ही पूछ लोगी कि भीतर भी आने दोगी।"
कहती हुई लीला भीतर आ गई।रेहाना उसके और वह उसके घर बेतकल्लुफ़ी से आती -जाती रही हैं।उन दोनों के बीच औपचारिकता की कोई जगह नहीं रही है।
'रुको तो....।'कहती हुई रेहाना उसके पीछे लपकी और बेडरूम के दरवाजे पर ही उसे दबोच लिया।दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था।बेड पर कोई लेटा हुआ था।वह उसका चेहरा देख पाती,इसके पहले ही रेहाना ने उसका मुँह अपनी तरफ घुमा लिया और धीरे से उसके कान में कहा--'मेरा लवर है।वहाँ मत जाओ।चलकर ड्राइंगरूम में बैठो।अभी इसे भेजकर आती हूँ।'
लीला को जैसे सन्न मार गया।यहाँ भी वही सब कुछ.....।क्या सारी दुनिया में यही सब चल रहा है।यही प्रेम के नाम पर खेल!रेहाना का यह अब कौन -सा प्रेमी आ गया?अभी कुछ दिन पहले ही तो वह तौबा कर रही थी।
उसने कहा था--'बहुत बेकार है यह सब!यह प्रेम के नाम पर छल!जिसको देखो वही 'आई लव यू' यूँ कह रहा है जैसे 'लव' नहीं दाल -चावल हो ।लड़कियों के इयरिंग से लेकर सैंडिल तक पर 'लव' लिखा है ।ऊपर से अपनी देह को गुदवाकर 'लव' के प्रतीक लिखवा रही हैं।लड़के अलग 'लव- लव' कर रहे हैं।इतना हल्का,सस्ता और बाजारू बना दिया है इस शब्द को कि इससे घिन आने लगी है।'लव' नहीं फास्ट फूड हो गया।खरीदा,खाया और डब्बा फेंक दिया।अब पहले जैसा रोमांस नहीं बस रोमांच है।पहली मुलाकात से ही चूमा -चाटी शुरू।फिल्में भी यही परोस रही हैं।आज की फिल्मों में हीरो -हीरोइन पहले बिस्तर पर जाते हैं ,उसके बाद रोमांस करते हैं ।'
"तुम भी तो यही करती हो।"लीला ने भी उसे ताना मार दिया था।
'हाँ यार,पर मेरी बात और है।मुझे आदत लग गई है।जिसने आदत लगाई ...वह साला तो भाग गया।उसने मुझे इस्तेमाल किया।अब मैं दूसरों का इस्तेमाल करती हूँ।मैंने भी सिद्धांत बना लिया है।फंसाओ,खाओ और थ्रो.....।'रेहाना किसी को दूर फेंकने का इशारा कर खिलखिलाई थी।
"तुम्हें कोई अपराध -बोध नहीं होता?"लीला हैरान थी।
'होता था पहले ...अब नहीं होता।क्यों हो?क्या मर्दों को होता है।घर में पत्नी बाहर दूसरी औरतें !सब मन माने की बात है।जैसे मांस खाना किसी के लिए पाप है तो किसी के लिए बस स्वाद!'
"मेरे लिए तो कल्पना में भी ये सब पाप है।" लीला ने घृणा से कहा।
रेहाना ने तपाक से कहा -'क्या फायदा!इसके बाद भी तो तुम्हारा पति दूसरी औरतों में भटकता है।उसकी फ़ितरत मेरे जैसी है।
लीला को रेहाना की यह बात बुरी लगी थी पर सच तो यही था।
वह सोच रही थी कि ' क्या आदतों और स्वभाव की तरह हर इंसान में नैतिकता का स्तर भी अलग -अलग होता है?क्या नैतिकता संस्कारगत है?समर और रेहाना दोनों अच्छे इंसान है।उनमें बहुत सारी खूबियां हैं।पर देह स्तर पर उनके कइयों से सम्बन्ध हैं तो क्या उन्हें चरित्रहीन कहा जाए?क्या चरित्र का मापदंड सिर्फ शरीर है?
माना कि समाज में विवाह से बाहर देह -सम्बन्ध.. अमान्य हैं...त्याज्य है फिर भी ऐसे सम्बन्ध हमेशा से रहे हैं।हाँ ,पहले ज्यादातर छिप -छिपाकर होते थे और अब खुलेआम होने लगे हैं।अब तो इसके समर्थन में कानून भी बन गए हैं।
--"बोर तो नहीं हुई।"रेहाना ने खिलखिलाते हुए ड्राइंगरूम में कदम रखा।
'पहले नहाकर आ...।'लीला ने आंखें तरेरी।
"अरे यार ,सब कुछ सेफ़ तरीके से होता है।कुछ लगा थोड़े है।"रेहाना ने शरारत से आँख दबाई।
'छि:!बेशर्म लड़की!'
"छोड़ यार,बोल चाय पीएगी या कॉफी या फिर ....।"
'कॉफी....और कुछ पीना छोड़ रही हूँ।'
"तब मुझे कम्पनी कौन देगा?"
"तुम्हारे चाहने वाले देंगे न!"
'तू मुझे नहीं चाहती क्या?'
रेहाना ने लीला के गाल पर किस कर लिया।
लीला ने उसे खुद से अलगकर कहा-"इश्कियाना छोड़ो जाकर कॉफी ले आओ।कुछ बात करने आई हूँ।"
'जो हुक्म मेरे आका..!'कहती हुई रेहाना रसोईघर की तरफ चली गई।
थोड़ी ही देर में रेहाना छिछोरी प्रेमिका से एक विचारशील महिला में बदल गई थी।लीला ने उससे आज की पूरी घटना सुनाई ।वह पुनीत से मिलने गई थी,यह सुनकर रेहाना ने उससे कहा-अकेले क्यों गई?मुझे भी साथ ले लिया होता।मेरे सामने उसकी हिम्मत नहीं होती,तुम्हें छूने की..।
-मुझे क्या पता था कि...।
"देखो,तुम मर्दों की इस दुनिया से परिचित नहीं हो,मैं हूँ ऐसे मर्दों को हैंडिल भी करना जानती हूँ।तुम संस्कारों से सीधी- सादी ,साधारण -सी महिला हो।तुममें गहरी नैतिकता है।तुम भले ही विचारों से मॉर्डन हो पर जिस हाई -फाई सोसाइटी में आ -जा रही हो, वहाँ मॉर्डन होने का अर्थ ही कुछ और है।"
'क्या मतलब ,मैं समझी नहीं।'लीला ने उत्सुकता से अपनी पलकें ऊपर उठा दी।
"यहाँ मॉर्डन वह लड़की है जो शराब से लेकर बिस्तर तक साथ देने में संकोच नहीं करती। नैतिकता,पवित्रता,पाप,अनैतिक,गलत उसके लिए कुछ नहीं होता।वर्जिनिटी,कौमार्य,एकनिष्ठता उसके लिए पुरानी सदी की बातें हैं।आजकल लड़कियां अपना काम निकालने के लिए किसी भी हद तक चली जाती है।पेज थ्री की पार्टियों में यही सब -कुछ तो डील होता है?
-'मैंने पेज थ्री फ़िल्म देखी थी। फ़िल्म की
कहानी फ़िल्मी दुनिया की असलियत को बताती है। फिल्म में बताया गया है कि कैसे फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश पाने के लिये कलाकारों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है?'
"फ़िल्म दुनिया ही नहीं हर क्षेत्र में यही सब कुछ है।कामयाबी आसानी से नहीं मिलती।दरअसल सफलता के दो रास्ते होते हैं एक होता है लम्बा रास्ता दूसरा छोटा रास्ता।लंबे रास्ते पर सच्चाई,ईमानदारी और अपनी प्रतिभा पर भरोसा करते हुए चलना पड़ता है,तब जाकर सफलता मिलती है।शॉर्टकट में अपना बहुत -कुछ खोकर,ढेर सारे समझौते करके आगे बढ़ना पड़ता है,पर इसमें रातो-रात धन दौलत,यश -शोहरत सब झोली में आ गिरते हैं।कई बार लंबे रास्ते पर चलने वाले जब मंजिल पर पहुंचते हैं, तो इतनी देर हो चुकी होती है कि मंजिल पर पहुँचने का आनंद नहीं उठा पाते।इसलिए आजकल युवाओं में शॉर्टकट का ही क्रेज है।वह अपनी अस्मिता,अस्तित्व,खुद्दारी,सम्मान गंवाकर भी सफल होना चाहते हैं।'
"क्या उन्हें इतना कुछ खोने का ग़म नहीं होता?"
लीला ने एक जिज्ञासु की तरह रेहाना से प्रश्न किया।
-सफ़लता एक नशे की तरह होती है।जब उससे नाम,पैसा और शोहरत सब मिल जाते हैं तो इंसान को कुछ भी याद नहीं रहता।हाँ,एक सच यह भी है कि एक निश्चित समय के बाद नशा उतरता है तो भयंकर पछतावा होता है।शार्टकट से पाई सफलता स्थायी नहीं होती।
रेहाना ने एक दार्शनिक की तरह लीला को समझाया।

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