Ek Ruh ki Aatmkatha - 17 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 17

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एक रूह की आत्मकथा - 17

लीला पुनीत के स्टूडियो पर पहुँची तो स्टूडियों की भव्यता देखकर चौक पड़ी।वह कोई आम स्टूडियो नहीं था।उसका प्रवेश- द्वार ही कला का अद्भुत नमूना था।द्वार पर द्वारपाल की वेशभूषा में एक आदमी खड़ा था।लीला ने झिझकते हुए पुनीत से मिलने की इच्छा जाहिर की, तो उसने उसे एक बार गौर से देखा और एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर कराकर भीतर जाने को कहा।प्रवेश -द्वार के बाद एक बड़ा -सा कक्ष था।शायद वह प्रतीक्षा -कक्ष था क्योंकि वहां सोफों पर कुछ नवयुवतियाँ अपनी बारी की प्रतीक्षा में थीं।नवयुवतियों ने लीला को देखा तो बड़ी नज़ाकत से मुस्कुराईं।प्रत्युत्तर में लीला भी मुस्कुरा दी।वह सोच रही थी कि जरूर ये नवयुवतियाँ मॉडल होंगी।बार्बी गुड़िया -सा फीगर सामान्य स्त्रियों का कहाँ होता है?पेट पर चर्बी का नामोनिशान नहीं और वक्ष जरूरत से ज्यादा बड़े।रंग -बिरंगे बाल,भौंहें,पलकें सब आटोफिशियल लग रहे हैं।पेंसिल हिल की सैंडिलें,घुटने से ऊपर की ड्रेसेज,जिसमें पीठ पर नाम -मात्र की पट्टी,वक्ष की आधी गोलाइयों का प्रदर्शन कराने वाला गला।
कितनी कृत्रिम सुंदरता है ये!आजकल अपनी आजादी कहकर लड़कियां इस तरह के देह -उघाडू ड्रेसेज पहनने लगी हैं कि सामान्य स्त्रियों को भी शर्म आने लगे।कभी -कभी वह सोचती है कि लड़कियाँ इस तरह के फैशन अपनी आजादी और खुशी के लिए करती हैं कि अपनी देह का प्रदर्शन कर मर्दों को लुभाती है।सुंदरता और आजादी तो शालीन कपड़ों से भी प्रकट हो सकती है।उसने देखा है कि ऐसी लड़कियां,पढ़ाई -लिखाई में कम ही मन लगाती हैं।अच्छी तरह अंग्रेजी बोलने नहीं आती ,पर बोलेंगी अंग्रेजी में ही।ज्यादातर विचार -शून्य ही होती हैं और जरा से झटके में बिखर जाती हैं या फिर गलत समझौते कर लेती हैं।इनमें खुद्दारी की जगह घमंड भरा होता है ।बदतमीजी तो जैसे उनके स्वभाव का हिस्सा हो।लड़कों की तरह गन्दी गालियां देने में भी आगे हैं ।एक नहीं कई -कई ब्वॉयफ्रेंड बनाती हैं,पर महज़ इंज्वायमेंट और फन के लिए।गंभीरता से इनका कोई वास्ता ही नहीं होता।ऐसी ही लड़कियां कभी बिना शादी के शारीरिक सम्बन्ध बना लेती हैं तो कभी किसी लड़के के साथ लिव इन में रहने लगती हैं और जब वह लड़का इन्हें छोड़कर भाग जाता है तो फस्ट्रेशन में आत्मघात तक कर बैठती हैं ।बिना सोचे -समझे काम करना इनकी आदत में शुमार होता है।
दरअसल विचारशीलता का इनमें अभाव होता है और नैतिक शिक्षा इन्हें मिली नहीं होती।घटिया फिल्मों और सस्ते विज्ञापनों में दिखाए जा रहे विदेशी फैशन का अनुकरण करना ही इनकी जिंदगी होती है।
लीला अपने ही विचारों में खोई हुई थी कि उसका नम्बर आ गया।उसने आँख उठाकर देखा तो वे सभी लड़कियाँ जा चुकी थीं।अब सिर्फ वही बची थी।शायद पुनीत ने जल्दी -जल्दी लड़कियों का निपटारा कर दिया था।
एक आदमी उसे लेकर उस कक्ष के दरवाजे तक पहुंचा,जिसके भीतर पुनीत काम करता था। चारों तरफ एक अजीब -सी शांति थी।भीतर कुछ भी हो जाए,बाहर वाले को पता नहीं चल सकता था।
उसने दरवाजे को पुश किया तो दरवाजा खुला गया।आलीशान स्टूडियो था।चारों तरफ बेहतरीन पेंटिंगें लगी हुई। पुनीत मुस्कुराता हुआ सामने आ गया और उसे लेकर स्टूडियों से सटे हुए एक दूसरे कमरे की ओर बढ़ गया।यह उसका व्यक्तिगत कमरा था।स्टूडियों में काम करते हुए जब वह थक जाता होगा तो इस कमरे में आराम करता होगा।
कमरे में एक तरफ सोफा दूसरी तरफ एक बेड था।एक शीशे की आलमारी में एक से बढ़कर एक कीमती शराब की बोतलें थीं।दीवार पर एक बहुत ही बड़ी टीवी थी।कमरा कुछ इस तरह सजा हुआ था और उसमें कुछ ऐसी खुशबू थी कि लीला को कुछ उत्तेजना महसूस हुई।
-"आओ,बैठो बहुत दोनों बाद मेरी याद आई।"
उसे सोफे पर बैठने को कहकर वह भी उसके करीब ही बैठ गया था।
-"बोलो,क्या पीओगी?"
-'कुछ नहीं,दिन में नहीं पीती।'
-"मेरे पास पहली बार आई हो,ऐसे तो नहीं जाने दूंगा।"
पुनीत उठकर गया और दो ग्लास के साथ एक बोतल बोदका ले आया।साथ ही तले हुए काजू की एक प्लेट भी।
'क्यूँ परेशान हो रहे हो,मैं नहीं पीऊँगी।' लीला अब कुछ घबराहट महसूस कर रही थी।
"कैसे नहीं पीओगी?पीना ही पड़ेगा। कोई पहली बार साथ थोड़े ही पी रहे हैं।वार में कई बार साथ पी है।।"
'वहाँ की बात और है पुनीत।वहाँ रेहाना मेरे साथ होती है।वहाँ इस तरह का एकांत नहीं होता।'
"तभी तो वहाँ साथ पीने का मजा भी नहीं आता।यहाँ पीकर देखो जन्नत नज़र आएगी।"पुनीत ने उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा।शराब की बदबू से लीला का जी मिचला गया।पुनीत ने पहले से ही काफी पी रखी थी।
लीला ने अपना हाथ छुड़ाया और उठ खड़ी हुई।
'नहीं पुनीत,मैं अब चलूँगी।इधर से गुजर रही थी तो सोचा तुम्हारा स्टूडियों देखती चलूं।'
"एक बार गले तो लग लो यार!मैं तुम्हें बहुत लाइक करता हूँ।मैं तुम्हारी ऐसी आलीशान न्यूड पेंटिंग बनाऊँगा।"
पुनीत ने एक तरफ लगी पेंटिंग को दिखाया।एक औरत की न्यूड पेंटिंग थी।शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था मगर उसके बैठने का अंदाज ऐसा था कि उसकी योनि नहीं दिख रही थी।
लीला को उस न्यूड को देखकर ही शर्म आ रही थी।
....तो पुनीत उसे ऐसी ही औरत समझता है।वह तो उसमें समर का विकल्प ढूंढ रही थी।उसमें एक मित्र ...एक प्रेमी की तलाश कर रही थी,पर वह तो उसे मात्र अपनी अय्याशी का हिस्सेदार बनाना चाहता है।शराब पिलाने के बाद वह उसे बिस्तर ऑफर कर सकता है। उसे यहाँ से निकलना चाहिए।यह खतरनाक जगह है।यहाँ रेप भी हो जाए तो बाहर आवाज नहीं जाएगी।
'पुनीत,मेरी बेटी हॉस्टल से घर आने वाली है।आज मैं नहीं रुक सकूंगी।फिर कभी आऊंगी तो इत्मीनान से बैठूँगी।'
उसने मानो पुनीत से मिन्नत की।गुस्सा दिखाने या विरोध करने के लिए यह उपयुक्त जगह नहीं थी।वह खतरे में पड़ सकती थी।पुनीत उसे एक खूंखार शिकारी की तरह नजर आ रहा था ,जो किसी भी समय उसे चीर-फाड़ सकता था।
"क्या यार,सारा मूड खराब करके रख दिया।टाइम लेकर आना था न!तुम्हारे चक्कर में कई फुलझड़ियों को वापस भेज दिया।अच्छा ठीक है जाओ।"
कहते हुए वह वहीं सोफे पर पसर गया।
लीली तेजी से वहाँ से निकली।उस स्टूडियो परिसर से निकलते ही उसकी जान में जान आई।उसके मुँह से निकला -'हे भगवान,आज तुमने मुझे बचा लिया।आज मैं पतित होने से बच गई।समर से बदला लेने ,उसे सबक देने के लिए मैं एक दूसरे पुरुष का सहारा लेना चाहती थी,पर वह सहारा एक औरत को नरक की आग में झोंक सकता है।'
आज वह समझ गई थी कि दूसरे पुरूष के लिए दूसरी स्त्री सिर्फ एक देह होती है ...सिर्फ एक जिस्म होती है,जिसका वह बस एक -दो बार उपभोग करना चाहता है ।उसके दुःख -सुख,समस्याओं- परेशानियों,स्थिति -परिस्थिति से उसे कोई सरोकार नहीं होता।भले ही वह उसका अच्छा और सच्चा मित्र होने का दिखावा करे पर होता एक कामुक पुरूष ही है।वैसे भी जो पुरुष अपनी प्रेमिका या पत्नी से इतर भी रिश्ते बनाता हो ,उस पर एतबार करना औरत की सबसे बड़ी बेवकूफी होती है।
लीला जितना सोच रही थी उसकी व्याकुलता उतनी ही बढ़ती जा रही थी।अपना भड़ास निकालने के लिए उसे एक दोस्त की जरूरत थी,इसलिए उसने रेहाना के घर की तरफ अपनी गाड़ी का रूख कर दिया।