इश्क पर जोर नहीं
भाग-1
मीरा
सुबह सुबह का समय है। दिल्ली के जमुना के दरिया के पास तीन लोग अपने अपने हाथ में लाल कपड़े से ढका कलश लिए खड़े हैं। ठंडी हवाएं चल रही है। उन हवाओं से दरिया का पानी छलक रहा है।
उसी शाम दूसरी जगह:
हल्की हल्की शाम है। मौसम में लाली है। एक बगीचे के अंदर बेंच पर बैठा सुशांत अपनी डायरी में कुछ लिख रहा है। तभी वहाँ शीतल नाम की एक लड़की सुशांत को देखते हुए उसके पास आई। सुशांत शीतल को देख कर थोड़ा घबरा गया और उससे नजरें चुराने लगा।
शीतल ने सुशांत को आवाज दी और उसके पास आकार बैठ गई। शीतल ने सुशांत से उसका हाल-चाल पूछा। लेकिन सुशांत कुछ भी बताने की परिस्थिति में नहीं था। वो रोई आँखों से शीतल को सिर्फ देख ही रहा था।
शीतल ने सुशांत को शांत किया। सुशांत थोड़ा शांत हुआ। सुशांत ने शीतल से बात ही शुरू की थी की तभी मीरा गाना गुनगुनाते हुए आ गई।
“चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों।”
मीरा सुशांत और शीतल को देख कर मुस्कुराई। शीतल ने मीरा से तुरंत पूछा:
“आप हमें देख कर मुस्कुराई क्यूँ?”
मीरा ने हस्ते हुए जवाब दिया:
“नहीं नहीं ! वो बस यूँही।”
“आप लोग क्या बातें कर रहे थे?”
“मैंने आप दोनों को परेशान तो नहीं किया?”
शीतल कुछ बोलती की उससे पहले ही शोर्य नाम का लड़का शीतल को आवाज लगाते हुए आ गया। शोर्य शीतल से पूछने लगा:
“कहाँ रह गई थीं शीतल?
“पता है मैं कबसे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था?”
शोर्य की नजर मीरा पर पड़ी। शोर्य मीरा को पहले से जानता था। मीरा शोर्य को देख उससे नजरें चुराने लगी। लेकिन शोर्य मीरा को पहचान गया था। शोर्य ने तुरंत मीरा से पूछा:
“मीरा जी आप भी यहीं हैं?”
“सूरज जी भी आए है यहाँ आपके साथ?”
मीरा ने शोर्य की बात का कोई जवाब नहीं दिया। तभी शीतल की नजर मीरा के हाथ पर पड़ी। मीरा के हाथ पर हल्के हल्के निशान थे। शीतल ने मीरा से पूछा की उसके हाथ पर ये निशान कैसे हैं। मीरा शोर्य से बात करते में झिझक रही थी। तभी शीतल ने मीरा से कहा:
“बता दीजिए मीरा जी।”
“यहाँ कोई नहीं जो हमारी बातें सुनेगा।”
“यहाँ अगर कोई है तो - बेसुद हवाएं और हम चार लोग।”
मीरा सबको एक तक देखें लगी। देखते देखते मीरा की आँखें नम हो गई। मीरा की ज़बान से पहला शब्द निकला:
“सूरज।”
मीरा ने बात शुरू की-
कुछ दिन पहले:
सूरज पुलिस यूनिफॉर्म पहने घर के दरवाजे के बाहर खड़ा बहुत देर से दरवाजा की बेल बजा रहा था। दरवाजा ना खुलने पर उसने मीरा को आवाज लगाई:
“मीरा… मीरा…”
कोई जवाब ना मिलने पर सूरज ने दरवाजे में हाथ मारा तो दरवाजा आसानी से खुल गया। सूरज घर के अंदर आके मीरा को आवाज़ें देने लगा:
“मीरा... मीरा... कहाँ मर गई।”
“इसे कभी भी आवाज दो, एक आवाज में कभी नहीं सुनती।”
“मीरा…”
सूरज मीरा को आवाज लगाते लगाते सोफ़ा पर बेठ गया। तभी मीरा बाहर से आई। मीरा सूरज को देख कर बोली:
“अरे… आ गए आप?”
सूरज ने गुस्से से मीरा की तरफ देखा और उसपर चिल्लाते हुए बोला:
“मैं तो आ गया, लेकिन तू कहां गुलछर्रे उड़ाती फिर रही है?”
मीरा सहम गई और बोलने लगी:
“वो मैं पड़ोस वाली मिसेज गोमेज़ के यहाँ गई थी। उनके बड़े बेटे को बच्चा हुआ है। बस उन्हे मुबारकबाद देने गई थी।”
सूरज ने चिड़चिड़े स्वभाव से मीरा से कहा:
“हाँ ! अपना चूल्हा संभलता नहीं तुझसे और दूसरों की हँडिया झाँकने का बहुत शोख है तुझे।”
मीरा ने बात संभालते हुए प्यार से कहा:
“अरे मैं भी कहाँ की बात लेकर बैठ गई।”
“आप आराम से बैठो। मैं आपके लिए पानी लेकर आती हूँ।”
सूरज ने मीरा को गुस्से में देखा और बोला:
“अपनी बकवास बंद कर और मेरी दारू की बोतल लेकर आ।”
मीरा ने डरते डरते सूरज से कहा:
“आज बाबा की बरसी है। कम से कम आज तो रहने दो।”
सूरज ने इतना सुनते ही मीरा को जोरदार थप्पड़ मारा और उसपर चिल्लाते हुए बोला:
“अब मुझे हर चीज में तेरी पर्मिशन लेनी पड़ेगी?”
मीरा की आँखें भर आईं और उसने सूरज को सहमी आवाज में जवाब दिया:
“सूरज… मैं तो सिर्फ आपको बता रही थी।”
सूरज गुस्से में बोला:
“मुझे सब पता है। तेरे बताने की जरूरत नहीं है। चुपचाप जाकर मेरी बोतल लेके आ। नहीं तो तेरी अर्थी यहीं सजा दूंगा।”
मीरा सहम गई और चुपचाप शराब की बोतल लेने चली गई। मीरा बोतल और ग्लास लेकर वापस आई। सूरज ने उसे ग्लास में शराब डालने के लिए बोला। मीरा ना चाहते हुए भी सूरज के डर से ग्लास में शराब डालने लगी। इसी बीच मीरा से थोड़ी सी शराब गिर गई। शराब के गिरते ही सूरज गुस्से में खड़ा हुआ और मीरा को इसी बात के लिए मारने लगा। मीरा चुपचाप मार खाती रही। जब सूरज ने मारना बंद किया तो मीरा रोते हुए अपने कमरे में चली गई।
मीरा ने अपने कमरे में आकर अपनी अलमारी खोली और उसमें से एक फाइल निकाल कर देखने लगी। मीरा बहुत कुछ बयान करना चाहती थी। लेकिन हालात के चलते वो बेबस और लाचार थी। सूरज के डर से या उसके प्यार में। मीरा फाइल देख रही थी की तभी सूरज ने बाहर से मीरा को आवाज लगाई। मीरा ने जल्दी जल्दी फाइल वापस अलमारी में रखी और दौड़ कर बाहर सूरज के पास आ गई। सूरज ने मीरा से उखड़े स्वभाव में पूछा:
“रिपोर्ट आ गयी?”
मीरा रिपोर्ट का नाम सुनते ही सहम गई और उसने डरते हुए सूरज को जवाब दिया:
“शायद कल तक आजाएगी।”
सूरज गुस्से में खड़ा हुआ और मीरा का मुह मसोस कर बोला:
“अगर नहीं आई तो खुद जाकर लेके आ।”
“लेकिन कल-के-कल मुझे रिपोर्ट चाहिये।”
मीरा की आँखों से आँसू टपकने लगे। सूरज नशे में धुत वही सोफ़ा पर लेट गया। मीरा सूरज के पास आई और मुस्कुरा कर बोली:
“अभी भी खुद बच्चे ही बने हुए हैं। हमेशा अपने जूते उतारे बिना ही सो जाते हैं।”
सूरज नशे की हालत में बड़बड़ाने लगा:
“ओ पागल औरत क्या बड़-बड़ कर रही है? जो भी बड़बड़ाना है अंदर जाके बड़बड़ा।”
मीरा वहाँ से मुसकुराती हुई अपने कमरे में चली गई।
अगले दिन:
आज सूरज और मीरा की शादी की सालगिरह है। मीरा ने सूरज के लिए बहुत सारी तैयारी करके रखी हैं। उसने घर को बहुत अच्छे से सजाया है। खुद ने भी सफ़ेद रंग का सूट पहना है। उस सूट में मीरा बेहद खूबसूरत लग रही है। उसे देख कर ऐसा लग रहा है, जैसे दुनिया की सारी खूबसूरती उसी में समा गई है। सारा दिन मेहनत करके मीरा ने सूरज के लिए उसका मनपसंद खाना बनाया है। साथ ही साथ उसने अपने ही हाथों से केक भी बनाया है। क्यूँकी मीरा को आज भी याद है की सूरज को उसी के हाथ का केक खाना पसंद है।
मीरा सब तैयरियाँ करके बस सूरज के आने का इंतज़ार ही कर रही थी। इतने में दरवाजे की बेल बाजी। मीरा खुश होते हुए दौड़ कर दरवाजा खोलने गई। मीरा ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने सूरज ही था। मीरा ने खुशी खुशी सूरज को गले लगाया और उसे शादी की सालगिरह के लिए विश करने लगी। सूरज ने बिना कुछ बोले ही मीरा को पीछे की तरफ धक्का दिया और सीधे ही रिपोर्ट के बारे में पूछने लगा।
मीरा सहमी हुई खामोश खड़ी थी। सूरज सीधा अपने कमरे में गया और अलमारी खंगालने लगा। उसने पूरी अलमारी उथल पुथल कर दी। ये सब देख के मीरा की आँखें भर आईं। सूरज ने मीरा से चिड़चिड़े स्वभाम में कहा:
“ये नोटंकियों की तरह रो कर मत दिखा मुझे।”
“ये बता रिपोर्ट कहाँ है?”
मीरा का दिल भर आया और वो रो पड़ी। मीरा रोते हुए सूरज से बोली:
“क्या हो गया है आपको सूरज?”
“पहले कितने खुश रहते थे तुम?”
“लेकिन पिछले 2 साल से देख रही हूं की आप का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया है।”
“कभी भी अच्छे से बात नहीं करते।”
“हमेशा गुस्से में ही रहते हो।”
सूरज मीरा की बातें सुनकर और आग बबूला हो गया। सूरज गुस्से में मीरा पर बरस पड़ा:
“फालतू बातें बंद कर।”
“कबसे देख रहा हूं बकवास कीये जा रही है।”
“बहुत दिनों से तुझे खुराक नहीं दी ना। इसीलिए तेरी इतनी हिम्मत हो रही है।”
“सिर्फ इतना बता.. रिपोर्ट आई या नहीं?”
मीरा ने अलमारी के छोटे लॉकर से रिपोर्ट निकाली और सूरज को देने लगी। सूरज फाइल को पीछे झटक कर बोला:
“मुझे मत दे। सिर्फ इतना बता.. इस रिपोर्ट में क्या लिखा है?”
“तू माँ बन सकती है..या नहीं?”
मीरा सूरज की बातें सुन कर टूट गई। उसकी पलकों से आँसू टपकने लगे। सूरज ने मीरा को घूर कर देखा और बेहद गुस्से में बोला:
“मुझे यकीन था।”
“तू माँ बन ही नहीं सकती।”
“तू बांझ है। बांझ थी। और बांझ ही रहेगी।”
इतना सब सुनने के बाद मीरा की चुप्पी टूटी और मीरा ने अपने आत्मसम्मान के लिए बेबाक बोलना शुरू किया:
“सूरज मैं माँ बन सकती हूँ।”
“लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक कमी मुझमे नहीं कमी आप में है।”
“सूरज क्या हुआ अगर हमें बच्चा नहीं हो सकता तो। नहीं चाहिए मुझे बच्चा।”
“बहुत खुश हूँ मैं आपके साथ। आप भी खुश रहिये।”
“अपने माँ-बाप से बगावत करके मैंने आपको चुना था और आपने मुझे”
“वो पहली नजर का प्यार। आपने मेरी आत्मा झँझोड़ दी थी, मुझसे प्यार का इजहार करके।
“और जब आपने मुझसे शादी के लिए….”
इतना सुनते ही सूरज का गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुँच गया। सूरज मीरा की पूरी बात सुने ही बोला:
“मेरी बदकिस्मती थी की तुझ पनोती से शादी की।”
“तू मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा ग्रहण है।”
तभी मीरा ने सूरज का चेहरा अपने हाथों में ले लिया और बहुत ही प्यार से सूरज को मनाने लगी। मीरा सूरज को समझाते हुए बोली:
“मैं नहीं सूरज ये रिपोर्ट ऐसा बोल रहीं हैं।”
“अबतक जीतने भी डॉक्टर को हमने दिखाया है सबने यही बात बताई है।”
“लेकिन में नहीं मानती इन रेपोर्ट्स को। मैं भगवान में यकीन रखती हूँ। वो सबकुछ ठीक कर देगा।”
“बस आप दुखी मत होइए। मैं आपको तकलीफ में नहीं देखना चाहती।”
“मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ सूरज।”
“नहीं चाहिए मुझे कोई बच्चा। मुझे बस आप चाहिए।”
“मुझे मेरा पुराना सूरज वापिस चाहिए।”
इतना सब सुनने के बाद सूरज अपने आपे में नहीं रहा। सूरज ने मीरा को जोरदार थप्पड़ मारा और बाहर की तरफ जाने लगा। सूरज गुस्से में मीरा से बोला:
“मुझे रहना ही नहीं है तुझ जैसी मनहूस के साथ।”
“मुझे तलाक चाहिए।”
“या तो सीधी तरह। नहीं तो फिर मेरे तरीके से।”
मीरा तलाक का नाम सुनते ही टूट गई। मीरा की आँखों से बेतहाशा आँसू बहने लगे। मानो मीरा ने आंसुओं का समंदर अपने अंदर रोक क रखा था और वो समंदर अब फूट गया था। मीरा ने सूरज का हाथ पकड़ा और उसे रोकने लगी। सूरज ने उसे धक्का दिया और कमरे से बाहर हॉल की तरफ आ गया। मीरा ने भाग कर सूरज के पैर पकड़े और बोली:
“ऐसा मत बोलो सूरज।”
“मैं जानती हूँ आप ऐसा नहीं कर सकते। ये सब आप गुस्से में बोल रहें हैं।”
“शांत हो जाइए। सबकुछ ठीक हो जाएगा।”
“हम नई ज़िंदगी की शुरुआत करेंगे।”
सूरज ने मीरा की एक नहीं सुनी। सूरज ने मीरा को जोरदार लात मारी, जिससे मीरा पीछे की तरफ जा गिरी…
मीरा ये सारी बाते शोर्य, शीतल और सुशांत को बता रही थी। सब लोग चुपचाप मीरा की बात सुन रहे थे।
मीरा.. सुशांत, शोर्य और शीतल से बात करने लगी:
“पता है ज्यादा बड़ा परिवार नहीं चाहिए होता खुश रहने के लिए। सिर्फ एक प्यार करने वाला ही काफ़ि होता है आपकी ज़िंदगी सँवारने के लिए। माँ, बाबा दीदी बहुत खुश थे जब मेरा दिल्ली कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंस में अड्मिशन हुआ तो। और फिर कॉलेज में मुझे मिले सूरज। सूरज ने मुझे चुना। ढेरों लड़कियां थी कॉलेज में। लेकिन उन्होंने सिर्फ मुझे ही चुना।”
मैंने अपने माँ-बाबा दोनों सूरज के लिए छोड़ दिए। सिर्फ एक दीदी ही थी जो मेरे सुख दुख का साथी थी।
मीरा बातें करते हुए कभी मुस्कुरा रही थी तो कभी उसकी आँखें नम हो जाती। मीरा को देखते देखते सुशांत मीरा से बोला:
“सही कह रही हैं आप मीरा जी। सिर्फ एक प्यार करने वाला ही काफी होता है। बशर्त वो भी आपसे उतना ही प्यार करे जितना की आप उसे करते हो।”
मीरा का ध्यान सुशांत की तरफ गया। शायद मीरा सुशांत को पहचानती थी। मीरा ने सुशांत की ओर ध्यान करते हुए सुशांत से कहा:
"शायद में तुम्हें जानती हूँ। तुम सुशांत हो ना?"
सुशांत थोड़ा घबरा गया। मीरा ने मुसकुराते हुए कहा:
“जनाब डरने की जरूरत नहीं है। भूल गए यहाँ कोई नहीं है। हैं तो बेसुद हवाएं और हम चार लोग।”
सुशांत ने मीरा से पूछा की वो उसे कैसे जानती है। मीरा ने सुशांत को बताया की वो उसके बारे में सबकुछ जानती है। सुशांत के बारे में उसे उसकी बड़ी बहन पायल ने बताया था।
सभी लोग सुशांत की तरफ देखने लगे। पायल का नाम सुनते ही सुशांत की आँखों से आँसू बहने लगे। शीतल भी जानना चाहती थी की जिस स्कूल में शीतल और सुशांत पढाते थे। वहां से उसने अपनी नोकरी क्यूँ छोड़ दी थी।
सब एक तक सुशांत को देख रहे थे। तभी मीरा बोली:
“आपसे नहीं बताया जाता तो मैं कह दूँ राज की बात।”
सुशांत ने मीरा की तरफ देखा। फिर बारी बारी सबको मासूमियत से देखने लगा। सुशांत खोया खोया सबको देख रहा था। फिर अचानक सुशांत के मुह से नाम निकला
“आशीष....”
सब बेसब्री से सुशांत के आगे बोलने का इंतजार कर रहे थे। सुशांत आशीष का नाम लेकर खामोश था। मीरा सुशांत को देख मुस्कुरा रही थी। सुशांत मीरा की आँखों में देख रहा था। मीरा की आँखें बिना कुछ इशारा किया बयान कर रही थी। सुशांत मीरा के एहसास को अच्छे से समझ रहा था। शीतल और शोर्य मीरा और सुशांत को देख रहे थे। सभी सुशांत के बोलने का इंतजार कर रहे थे।....
अगला भाग जल्द ही।
~अज़ीम हमीदा ख़ान