Mamta ki Pariksha - 111 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 111

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ममता की परीक्षा - 111



दरबान की बातें सुनकर रमा ने बनावटी दुःख जाहिर किया लेकिन वकील और उसके परिवार की खबर से वास्तव में उन्हें असीम संतोष की अनुभूति हो रही थी।
कार की तरफ आते हुए उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था। दूर से ही देखकर रमा के चेहरे पर छाई संतोष की परत का साधना ने अहसास कर लिया था। क्या हुआ होगा, इसी बात का अंदाजा लगाने का वह प्रयास कर रही थी।

वीरान पड़ी कोठी देखकर जूही का सहम जाना और फिर रमा का कार से उतरकर कोठी के लोगों के बारे में पता लगाने की वजह तलाशते हुए साधना उस कोठी की हकीकत तक पहुँच गई। उसे याद आ गया वह सब कुछ जो रमा ने उसे जूही के बारे में बताया था। जरूर यह कोठी वकील कासिम की होगी तभी तो कोठी पर नजर पड़ते ही जूही सहम सी गई थी।

अब तक रमा आकर कार में बैठ चुकी थी और ड्राइवर ने कार आगे बढ़ा दी थी। साधना की खामोशी को देखते हुए रमा बोली, "क्या तुम ये अंदाजा लगा सकती हो साधना कि ये किसका बँगला हो सकता है ?"

"ये बँगला पहले तो कभी देखा नहीं, लेकिन आपकी खुशी को देखते हुए इतना दावे से कह सकती हूँ कि यह कोई आम बँगला नहीं है बल्कि यह कोई खास बँगला है जिसका आपसे कोई गहरा नाता जुड़ा हुआ है ..... "
साधना अपना कयास रमा से बताने ही वाली थी कि रमा बीच में ही टपक पड़ीं, "बिल्कुल सही कहा तुमने साधना ! ये बँगला कोई आम बँगला नहीं बल्कि बेहद खास बँगला है। खास हो भी क्यों नहीं ? यही तो है वह बँगला जहाँ शानोशौकत से रहने के सपने देखे थे कभी हमारी जूही ने .......!"
कहते कहते अचानक रमा का धैर्य जवाब दे गया। बँगले के जिक्र ने उनकी दुःखद स्मृतियों को जीवंत कर दिया था। अचानक आँसुओं की झड़ी लग गई।

जूही कुछ न समझने वाले अंदाज में कभी रमा को तो कभी साधना को देखे जा रही थी। कुछ संयत होने के बाद रमा ने रास्ते में साधना को उस बँगले के बारे में बताया।

कुछ देर बाद पैथोलॉजी लैबोरेट्री से जूही की रिपोर्ट लेकर उनकी कार शहर के बड़े अस्पताल की तरफ बढ़ रही थी जहाँ उन्हें डॉक्टर को वह रिपोर्ट दिखानी थी।

शहर के जानेमाने मशहूर डॉक्टर भल्ला जूही का इलाज कर रहे थे। अस्पताल के सामने पहुँचकर रमा और साधना डॉक्टर के कक्ष की तरफ बढ़ गईं जबकि जूही और ड्राइवर कार में ही बैठे रहे। डॉक्टर भल्ला के कक्ष में प्रवेश करते हुए रमा और साधना के दिल की धड़कनें सामान्य से अधिक बढ़ी हुई थीं। रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में था इसलिए साधना उसे पहले ही देखने का साहस नहीं कर सकी थी।

डॉक्टर भल्ला ने जूही की रिपोर्ट देखी और फिर रमा से मुखातिब होते हुए बोला, "ओह, मिसेस भंडारी ! रिपोर्ट तो उम्मीद से ज्यादा खराब है। मरीज के परिजनों को अंधेरे में रखने के मैं सख्त खिलाफ हूँ। झूठा दिलासा नहीं देना चाहता, बस इतना कह सकता हूँ कि अब कुछ नहीं किया जा सकता।... इलाज शुरू होने में बहुत देर हो गई है, सॉरी ...!" कहते हुए उनकी निगाहें लगातार रमा के चेहरे पर बदल रहे भावों का बारीकी से परीक्षण कर रही थीं।

कुछ पल की खामोशी बाद उन्होंने आगे कहना शुरू किया, "रिपोर्ट के मुताबिक कैंसर यूटेरस से होता हुआ अन्य अंदरूनी अंगों में पूरी तरह फैल गया है और अपने अंतिम चरण में है। यह सिर्फ यूटेरस तक ही सीमित होता तो आपरेशन द्वारा पूरा यूटेरस ही निकाल कर प्रयास किया जा सकता था लेकिन अब कुछ भी मुमकिन नहीं। मरीज के HIV पॉजिटिव होने की वजह से आपरेशन के बाद उसका कामयाब होना भी संदिग्ध ही है।"

रमा भरी आँखो से डॉक्टर भल्ला की तरफ देख रही थीं। होंठ कुछ कहना चाह रहे थे, लेकिन वह कुछ कह पाने में सफल नहीं हो सकीं और बेआवाज लरजते होंठों के साथ उनके दोनों हाथ स्वतः ही जुड़ते गए। डॉक्टर की बातें सुनकर वज्राघात सा हुआ था रमा के सीने पर। अच्छा हुआ उसने गर्मी का बहाना बनाकर जूही को कार में बैठे रहने के लिए ही मना लिया था। साधना ने भी बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू किया हुआ था।

रमा के जुड़े हुए हाथों में जूही की रिपोर्ट पकड़ाते हुए डॉक्टर भल्ला बोले, "सॉरी मिसेस भंडारी ! कुछ दवाइयाँ लिख देता हूँ समय समय पर बिटिया को देते रहिएगा। इससे उसे दर्द में काफी आराम मिलेगा।" कहने के बाद डॉक्टर भल्ला ने एक पर्ची पर कुछ दवाइयाँ लिख कर दे दीं।

उनकी कार ने जब आश्रम के अहाते में प्रवेश किया, दोपहर के लगभग दो बज रहे थे।

जूही को उसके कमरे में पहुँचाकर रमा साधना के साथ कमरे से बाहर आ गई। जूही को दवाई खिलानी बाकी रह गई थी जो दोपहर के भोजन के बाद खानी होती थी। सुबह नौ बजे हल्का नाश्ता करके ही तीनों अस्पताल के लिए निकल गए थे। उन्हें भूख लगनी स्वाभाविक बात थी, सो रमा को जूही के साथ बैठने के लिए कहकर साधना भोजनालय में तीनों के लिए भोजन लेने चली गई।

रमा के कमरे के बगल से ऊपर जानेवाली सीढ़ियों की दायीं तरफ के दो कमरों को मिलाकर भोजनालय बनाया गया था। आश्रम में रहनेवाले सभी लोगों के लिए नाश्ता और खाना यहीं बनता था। रमा और साधना स्वयं भी वहीं भोजन करते थ। रमा ने अपने लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं की थी। वह पूरे दिलोजान से समाजसेवा के अपने कर्म को किये जा रही थी, लेकिन इतने नेक काम के बावजूद कुदरत ने तो उसके साथ अन्याय ही किया था।

उसकी इकलौती बेटी आज मौत के सन्निकट थी और वह कुछ नहीं कर सकती थी उसे बचाने के लिए। कितनी विवश थी वह ! भोजनालय से तीनों के लिए भोजन लेकर जब साधना कमरे में पहुँची, जूही पेट पकड़कर दर्द से तड़प रही थी। हालाँकि वह मर्मान्तक पीड़ा सहन करने की भरसक पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन अब यह पीड़ा शायद उसकी सहने की क्षमता से काफी अधिक बढ़ गई थी। उसे दिलासा देते हुए अपनी गोद में खींचकर रमा ने जल्दी जल्दी उसे दो निवाले खिलाये और साधना से जूही की दवाई माँगी जो साधना ने शहर से आते हुए रास्ते में ही मेडिकल की दुकान से खरीदा था।

दवाई खिलाने के कुछ देर बाद जूही की हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ती गई। हर गुजरते पल के साथ उसकी तकलीफ बढ़ती जा रही थी। दर्द बरदाश्त करने के चक्कर में वह कई बार अपने होठों को ही काट चुकी थी। रमा को पता था कि कैंसर का दर्द असहनीय होता है लेकिन अचानक इतना अधिक दर्द होगा यह उसने कल्पना भी नहीं की थी। उसने साधना से जल्दी से कार बाहर निकालने के लिये कहा। अब तक आश्रम की कई महिलाएं कक्ष के सामने आ चुकी थीं। आनन फानन जूही को कार की पिछली सीट पर डालकर साधना व रमा कार में सवार हुईं। रमा ने ड्राइवर का इंतजार करना भी मुनासिब नहीं समझा और खुद ही चालक की सीट पर बैठ गईं।

लगभग आधे घंटे बाद कार शहर के बड़े अस्पताल में आपातकालीन विभाग के सामने खड़ी थी। दर्द से तड़पते हुए जूही पिछले पाँच मिनट से ख़ामोश थी। भावहीन चेहरा, आँखें अधखुली सी, और हाथ पाँव बेजान से हो गए थे उसके।

अस्पताल कर्मियों ने परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए जूही को अति दक्षता विभाग में भर्ती कर दिया और डॉक्टरों ने आवश्यक उपचार शुरू कर दिया।

कागजी कार्रवाई पूरी कर साधना अभी आकर रमा के पास बैठी ही थी कि अंदर से आ रही एक नर्स से साधना ने पूछा, "अब कैसी तबियत है जूही की ?"

"जूही ? ..कौन जूही ?.. अच्छा ! अभी वो जो औरत एडमिट हुई है वो ? ..उसने शायद कोई गलत दवाई खा लिया है, जिसकी वजह से उसके पूरे शरीर में रिएक्शन हो गया है। थोड़ी देर रुको, अभी डॉक्टर साहब बताएंगे !" कहकर नर्स आगे बढ़ गई।

लगभग दो घंटे बीत गए। शाम होने लगी थी। अति दक्षता विभाग कक्ष का दरवाजा खुला। डॉक्टर भल्ला के सहयोगी डॉक्टर रस्तोगी कक्ष से बाहर निकले। उन्हें देखते ही रमा और साधना अधीरता से उनके पास पहुँच गईं, "डॉक्टर ! अब कैसी है मेरी बेटी ?" रमा पूछे बिना नहीं रह सकी।

"अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। आप ये बताइये, ये तकलीफ उसे कब शुरू हुई ? पूरी बात बताइये।" डॉक्टर ने पूछा।

साधना ने विस्तार से बताया, "हम दोपहर करीब दो बजे घर पहुँचे थे। कुछ खाने का इंतजाम देख ही रहे थे कि अचानक जूही को पेट में दर्द महसूस हुआ। हमने उसे जल्दी से दो कौर खिलाकर रास्ते में ही खरीदी हुई दवाई उसे खिला दी जो उसे रोज दोपहर को खानी होती है। इसके बाद से ही उसकी तबियत और बिगड़ती गई।"
"अच्छा ! कौन सी दवाई थी वो जो आपने खिलाई थी ?" डॉक्टर ने पूछा।

साधना ने हाथ में थमे थैले में से निकालकर वह दवाई का पूरा पत्ता ही डॉक्टर के हाथ में रख दिया। दवाई के पत्ते को हाथ में लेकर उसे उलटपुलट कर देखते हुए डॉक्टर के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गईं। दवाई पर नजरें जमाये हुए ही उसने बोलना जारी रखा, "किसने खरीदी थी यह दवाई ? इसकी रसीद है आपके पास ?"

"दवाई तो मैंने ही खरीदी थी डॉक्टर साहब !.. लेकिन देर हो रही थी इसलिए दुकानदार से मैंने इसकी रसीद नहीं ली थी।" साधना ने डरते हुए जवाब दिया।

"ओह ! अनजाने में ही तुम यह बहुत बड़ी गलती कर बैठी हो। आइंदा यह ध्यान रखना और सबको बताना भी कि किसी भी हालत में किसी भी मेडिकल शॉप से बिना रसीद के कोई दवाई नहीं खरीदनी है। वैसे तो यह दवाई दर्द के लिए बेहद असरकारक है, लेकिन उस मेडिकल वाले ने आपको मियाद खत्म हो चुकी दवाई थमा दी है जो अब दवा की जगह जहर का काम कर गई है। ध्यान रखिये, तय समय सीमा के अंदर ही दवाइयों का उपयोग करना होता है। समय सीमा के बाद दवाइयाँ खतरनाक हो जाती हैं। रसीद देनेवाले दुकानदार कभी भी ऐसी खराब हो चुकी दवाई नहीं बेच सकते, उनकी जिम्मेदारी जो बनती है। जिम्मेदारी से तो खैर बिना रसीद के आपको दवाई देने वाला भी नहीं बचेगा लेकिन ऐसे अपराधी दुकानदार तक पहुँचने की प्रक्रिया बहुत लंबी हो जाती है। ठीक है ! अपनी तरफ से हम पूरा प्रयास कर रहे हैं मरीज को बचाने की ... आगे हरि इच्छा ! ईश्वर पर यकीन रखिये, जो होगा अच्छा ही होगा।"
कहकर वह डॉक्टर अंदर कक्ष में वापस चला गया।

क्रमशः