Bahut karib h manzil - 6 in Hindi Moral Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | बहुत करीब मंजिल - भाग 6

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बहुत करीब मंजिल - भाग 6

अब तो ये रोज की बात हो गई थी। वो व्यक्ति रोज रात को ग्यारह बजे को फोन करता और उसे उसकी कला की सही जगह यानी मुंबई जाने के सपने दिखाने लगा।
इस बात पर वो मायूस हो जाती और कहती कि -
"इस जीवन में तो मैं कभी मुंबई नहीं जा पाऊँगी। आप ही मेरे बनाए कपड़े और कढ़ाई को फिल्मी हस्तियों तक पहुँचा दिया करें मेरे लिए तो यही काफी है।"
इन सब को चलते लगभग डेढ़ महीना हो गया। वो व्यक्ति जिसका नाम कैलाश था वो इस समय मुंबई में था और तारा से रोज यहीं से बात करता था ।उसने तारा के मन में इस भ्रम को पक्का कर दिया था कि उसके जैसी कढ़ाई कोई कर ही नहीं सकता और बॉलीबुड में तुम्हारे जैसे हुनरमंदों की जरूरत रहती है। एक बार इन लोगों से मिल लोगी तो तुम्हारी लाइफ सैट हो जाएगी।
तारा पर उस व्यक्ति की बातों का बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ चुका था । वो दिन-रात कढ़ाई करती और डिज़ाइनर ड्रेस बनाने की कोशिश करती। वो रोज अपने किए काम का हिसाब उस व्यक्ति को दिया करती। एक दिन उस आदमी ने उसे कहा - एक रास्ता है तुम्हें मुंबई लाने का अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो...
‘तारा बोली मुझे क्यों बुरा लगेगा।’’
इस पर कैलाश बोला - " उम्र में मैं तुमसे काफी बड़ा हूँ पर मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूँ।"
कैलाश की ये बात सुनकर तारा के ह्रदय की गति बढ़ गई वो कुछ नहीं बोल पाई। उधर कैलाश कहे जा रहा था - "तारा मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। सच कहूँ तो आजतक तुम्हारे जैसी गुणवान लड़की मिली ही नहीं इसलिए अभी तक कुँवारा हूँ।"
कैलाश के रचाये प्रेम के मायाजाल में तारा इस कदर फँस चुकी थी कि उसे उसकी बात कोई खास बुरी नहीं लगी बल्कि वो तो अपने आपको खुश नसीब मान रही थी कि कैलाश ने उसे अपने लायक समझा। तारा सोचती थी अब मेरे सपने भी जरूर पूरे होंगे।
तारा तो मुंबई जाकर फिल्म इंडस्ट्री में अपना हुनर दिखाने को बेताब थी इसलिए उसने बात की सच्चाई को जानने की भी जरूरत नहीं समझी। उसे तो जैसा कैलाश बताया करता उसके लिए तो वही सही होता। वो तो ये सोचकर खुश थी कि कैलाश कितना बड़ा आदमी और उसकी कितनी आसान पहुँच है फिल्मी हस्तियों तक।
एक दिन कैलाश ने तारा से कहा कि वो अपने माता-पिता से हमारी शादी की बात कर ले । रेशमी जाल में फँसी मकड़ी की तरह अपने आप को खुशनसीब मानती हुई तारा ने सोचा कल ही माँ- पापा को बता दूंगी। पर सुबह उठी तो देखा माँ-पापा चंदा को दही चीनी खिला रहे है क्योंकि आज उसका पी॰एम॰टी॰ का पेपर है वेैसे चंदा का यह तीसरा चांस है पी॰एम॰टी॰ का।
तारा ने सोचा चलो परीक्षा का आखिरी मौका है जीजी का इस बार। जीजी के घर आने पर ही माँ-पापा से बात करूँगी।
कैलाश की बातें तारा के सिर चढ़कर बोल रही थी अब उसे ना समाज का डर था ना माता-पिता का। ना ही वो दोनों के बीच उम्र के अंतर को ही कुछ समझ रही थी...
क्रमशः...
सुनीता बिश्नोलिया