आज आजादी की 75 साल बीत गए हैं और हम लोग आज भी यह नारा लगाते हैं कि हम आजाद हैं जो कभी कभी अरे नहीं नहीं कई बार कई औरतों को देखकर मुझे लगता है कि क्या सही में हम आजाद है आज गुजरात में इलेक्शन था 01/12/22 विधानसभा के लिए हम सभी सरकारी कर्मचारियों को उसके लिए नियुक्त कर दिया गया था और आज के दिन मैंने जो देखा है उसी एक टॉपिक पर मुझे कुछ यहां आप सभी को कुछ कहना है और मैं यह लिखना उचित समझ रही हूं कि हम क्या देखते हैं कि कई औरतें आती है और पूछती है साइन कैसे करनी है मुझे साइन करना नहीं आता है क्या साइन के ऑप्शन में मैं यह अंगूठा लगा सकती हूं क्या में साइन के बदले में मैं अपने पति का नाम लिख सकतीं हु? अपने पति का नाम लिखूं ? साइन कैसे करनी है? और पति के साथ आती है और अपने पति के बाद जब वह वोट डालने जाती है तो वहां से भी पूछती है कि मुझे यहां क्या करना है मुझे नहीं पता है
मैं यहां सभी के लिए नहीं कह रही हूं सभी औरतों के लिए नहीं है मैं उन औरतों के लिए यह मुझे शायद कभी घर से बाहर निकल ही नहीं या तो उनका बाहरी दुनिया से कोई नाता ही नहीं उनके लिए यह सब दोहराती हु इसीलिए कृपया पढ़कर कोई लोग अपना प्रस्ताव रखे तो उसे मेरा यह निवेदन है कि मैं खुद ऐसी स्त्रियों के लिए सहानुभूति महसूस करती हूं और मैं अपने आप को खुशनसीब समझती हूं कि मेरा परिवार बहुत ही अच्छा है कि मैं अपनी जिंदगी अपने तौर-तरीकों से जी सकती हूं लेकिन आज जो भी मैंने अपनी नजरों से देखा उन बातों को मेरा दिलों दिमाग पर कुछ ऐसा असर हुआ इसीलिए शायद मेरे हाथ से ✒️ फिसल रही है कि एक औरत जो वोट देने जा रही है उसे कुछ सामान्य ज्ञान भी नहीं और मुझे यह खयाल आया और मैं यहां यह लिख रही हूं कि वोट कहां पर करना है कौन सा बटन प्रेस करना है इनके लिए वोट देने आई है वह तो बात की बात है वह भी उसे पता नहीं यह साइन कैसे करना है
या फिर गंभीर बात में यह भी बताना चाहती हूं कि सिर्फ 18 वर्ष की बच्ची जब वोट डालने आती है या तो उसकी कोख में बच्चा होता है या उसके पेट में बच्चा पल रहा है सही में हैं और मांग में सिंदूर बस यही है उसकी जिंदगी अगर वह पढ़ी-लिखी नहीं है तो उसका जीवन क्या है इस दुनिया में उसका अवतार का क्या मूल्य रह जाएगा यह मेरा सभी से प्रश्न है मैंने कई साल पहले एक किताब में पढ़ा था कि पश्चिमी राष्ट्रों में अगर कोई पढ़ा लिखा ना हो तो सरकार उन्हें पढ़ाने के लिए कई खर्च कर देती है लेकिन उनके नागरिक को पढ़ाया लिखाया जाता है और हमारे देश में कितनी सरकारें बनी फिर भी हमारी साक्षरता दर अभी भी कम है और हमारा लिंग प्रमाण पुरुषों की बराबरी में स्त्रियों की संख्या का दौर कम बताया जा रहा है अभी भी हम पछात और गंवार ही हैं और जहां लोगों को अपना नाम लिखना भी नहीं आता वहां क्या विकास की बात कर रहे हैं देश में बुलेट ट्रेन तो आ गई उसका तो आविष्कार हो गया लेकिन बाल विवाह को तो कोई रोको तो विकास हुआ ही नहीं इसीलिए शायद अभी भी हमारे समाज में बेटी 18 की होती है और कोख में या पेट में बच्चा लिए खुद बच्ची होकर भी मां बनी बनाई जाती है ऐसी स्थिति हम देखते हैं और जब खुद एक बच्ची है तो उसके साथ ही अन्याय नहीं है क्या हम इस विषय पर कुछ नहीं कर सकते क्यों नहीं लोग समझते कि एक औरत अगर पढ़ी लिखी होगी तो उसका पूरा परिवार आगे बढ़ पाएगा और अगर हम सभी पढ़े लिखे होंगे तो हमारा देश कितना आगे जाएगा अभी भी हम कैसे गंवार सोच लिए बैठे हैं और कहते हैं कि हमारा देश बदल रहा है कहां बदल रहा है हमारा देश अरे पहले भी बाल विवाह होते थे और अभी भी यह प्रथा परंपरा बनी बैठी है पहले भी लोग अनपढ़ थे आज भी गंवार है शिष्यों की संख्या घटने से कई सरकारी स्कूल बंद कर दी जाती है ध्यान देना होगा तभी आगे बढ़ पाएगा और तो हमारी प्राथमिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है....
सच में क्या हमारा देश बदल रहा है यह सवाल अक्सर मेरी आत्मा मुझसे पूछ रही है
जय द्वारकाधीश 🙏🏻
०१/१२/२२