पश्चिमी झील और सफ़ेद नाग की कहानी🙏🙏
पूर्वी चीन के हानचाओ शहर में स्थित पश्चिमी झील अपने असाधारण प्राकृतिक सौंदर्य के कारण विश्वविख्यात है। 14वीं शताब्दी में इटली के मशहूर यात्री मार्कोपोलो जब हानचाओ आया, उसने पश्चिमी झील की खूबसूरती देख कर उस की इन शब्दों में सराहना की कि "जब मैं यहां पहुंचा, तो लगा जैसे मैं स्वर्ग में आ गया हूँ।"
पश्चिमी झील पूर्वी चीन के चेच्यांग प्रांत की राजधानी हानचाओ शहर का एक मोती मानी जाती है । वह तीनों तरफ पहाड़ों से घिरी है, झील के पानी स्वच्छ और दृश्य मनमोहक है। चीन के प्राचीन महाकवि पाई च्युई और सु तुंगपो के नाम से नामंकित दो तटबंध पाई बांध और सु बांध झील के स्वच्छ जल राशि के भीतर दो हरित फीतों की तरह लेटे मालूम पड़ते हैं। तटबंधों पर कतारों में हरे-भरे पेड़ खड़े झील के सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं। सदियों से बड़ी संख्या में कवियों और चित्रकारों ने पश्चिमी झील के सुन्दर दृश्यों का कविता और चित्रों में वर्णन किया है।
पश्चिमी झील के दस खूबसूरत दृष्य चीन में हर व्यक्ति की जुबान पर रहते है जिन में सु बांध का वासंती सौंदर्य, अनूठे प्रांगण में कमल का तालाब , झील की जल राशि पर शरद कालीन चांद की परछाई, टूटे पुल पर बर्फ की खूबसूरती, विलो पेड़ों के झुंड में कोयल की मदिर कूक, कमल-तालाब में सुनहरी मछलियों का दर्शन,त्रिपगोडों के बीच पानी पर चांदनी , लेफङ पगोडे पर सुर्यास्त का अनोखा दृश्य, नानपिन मठ में संध्या वेला की घंटी तथा दूरपर्वतशिखर पर मेघों का मनोहर आच्छादन शामिल हैं।
पश्चिमी झील के बारे में अनेक मनमोहक लोक कथाएं प्रचलित हैं , जिन में से टूटे पुल पर बर्फ नामक सौंदर्य में चर्चिक टूटे पुल से जुड़ी एक लोक कथा आज तक चीनियों में असाधारण रूप से लोकप्रिय है । इस कथा में सफेद नाग से मानव सुन्दरी में परिवर्तित एक युवती और श्युस्यान नाम के युवक के सच्चे प्रेम का वर्णन किया गया है । दोनों की पहली मुलाकात इस टूटे पुल पर ही हुई थी ।
लोककथा का कथानक इस प्रकार हैः
एक सफेद नाग ने हजार साल तक कड़ी तपस्या कर अंत में मानव का रूप धारण किया, वह एक सुन्दर व शीलवती युवती में परिणत हुई, एक नीले नाग ने भी पांच सौ साल तक तपस्या की तथा वह एक छोटी लड़की के रूप में बदल गई , नाम पड़ा श्योछिंग । पाईल्यांगची नाम की सफेद नाग वाली युवती और श्योछिंग दोनों सखी के रूप मं पश्चिमी झील की सैर पर आयी. जब दोनों टूटे पुल के पास पहुंची तो भीड़ के बीच एक सुधड़ बड़ा सुन्दर युवा दिखाई पड़ा। पाईल्यांगची को उस युवा से प्यार हो गया। श्योछिंग ने अलोकिक शक्ति से वर्षा बुलाई, वर्षा में श्युस्यान नाम का वह सुन्दर युवा छाता उठाए झील के किनारे पर आया ।
वर्षा के समय पाईल्यांगची और श्योछिंग के पास छाता नहीं था अतः वे बुरी तरह पानी से भीग गयीं, उन की मदद के लिए श्युस्यान ने अपनी छाता उन दोनों को थमा दिया, खुद वह पानी में भीगता रहा। ऐसे सच्चरित्र युवा से पाईल्यांगची बहुत प्रभावित हुइ और उसे दिल दे बैठी और श्युस्यान के दिल में भी उस खूबसूरत युवती पाईल्यांगची के लिये प्यार का अंकुर फूटा। श्योछिंग की मदद से दोनों की शादी हुई और उन्हों ने झील के किनारे दवा की एक दुकान खोली, श्युस्यान बीमारियों की चिकित्सा जानता था, दोनों पति-पत्नी निस्वार्थ रूप से मरीजों का इलाज करते थे और स्थानीय लोगों में वे बहुत लोकप्रिय हो गये।
लेकिन शहर के पास स्थित चिनशान मठ के धर्माचार्य फाहाई पाईल्यांगची को निशिचर समझता था। उस ने गुप्त रूप से श्य़ुस्यान को उस की पत्नी का रहस्य बताया कि वह सफेद नाग से बदली हुई थी। उस ने श्युस्यान को पाईल्यांगची का असली रूप देखने की एक तरकीब भी बताई। श्युस्यान को फाहाई की बातों से आशंका हुई। चीन का त्वानवू पर्व प्राचीन काल से ही खूब हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। इस उत्सव पर लोग चावल से बनाई मदिरा पीते थे, वे मानते थे कि इससे किसी भी प्रकार के अमंगल से बचा जा सकता है। इस उत्सव को मनाने के दिन श्युस्यान ने फाहाई द्वारा बताए तरीके से अपनी पत्नी पाईल्यांगची को मदिरा पिलाई। इन दिनों पाईल्यांगची गर्भवर्ती थी, मदिरा उस के लिए हानिकर थी, लेकिन पति के बारंबार कहने पर उसे मदिरा का सेवन करना पड़ा। मदिरा पीने के बाद वह सफेद नाग के रूप में बदल गयी, जिस से भय खा कर श्योस्यान की मौत हो गयी। अपने पति की जान बचाने के लिए गर्भवती पाईल्यांगची हजारों मील दूर तीर्थ खुनलुन पर्वत में रामबाण औषधि गलोदर्म की चोरी करने गयी। गलोदर्म की चोरी के समय उस ने जान हथली पर रख कर वहां के रक्षकों से घमासान युद्ध लड़ा , पाईल्यांगची के सच्चे प्रेम भाव से प्रभावित हो कर रक्षकों ने उसे रामबाण औषधि भेंट की। पाईल्य़ांगची ने अपने पति की जान बचायी, श्युस्यान भी अपनी पत्नी के सच्चे प्यार के वशभूत हो गया, दोनों के बीच का प्रेम पहले से भी अधिक प्रगाढ़ हो गया।
किन्तु धर्माचार्य फाहाई को यह सहन न हुआ कि पाईल्यांगची अभी तक जीवित है। उस ने श्युस्यान को धोखा दे कर चिनशान मठ में बंद कर दिया और उसे भिक्षु बनने पर मजबूर किया। इस पर पाईल्यांगची और श्योछिंग को अत्यन्त क्रोध आया , दोनों ने जल जगत के सिपाहियों को ले कर चिनशान मठ पर हमला बोला और श्युस्यान को बचाना चाहा । उन्हों ने बाढ़ बुला कर मठ पर धावा करने की कोशिश की , लेकिन धर्माचार्य फाहाई ने भी दिव्य शक्ति दिखा कर हमले का मुकाबला किया। क्योंकि पाईल्यांगची गर्भवती हुई थी और बच्चे का जन्म देने वाली थी , इसलिए वह फाहाई से हार गयी और श्योछिंग की सहायता से पीछे हट कर चली गई। वो दोनों फिर पश्चिमी झील के टूटे पुल के पास आयी , इसी वक्त मठ में नजरबंद हुए श्युश्यान मठ के बाहर चली युद्ध की गड़बड़ी से मौका पाकर भाग निकला , वह भी टूटे पुल के पास आ पहुंचा। संकट से बच कर पति-पत्नी दोनों को बड़ी ख़ुशी हुई। इसी बीच पाईल्यांगची ने अपने पुत्र का जन्म दिया । लेकिन बेरहम फाहाई ने पीछा करके पाईल्यांगची को पकड़ा और उसे पश्चिमी झील के किनारे पर खड़े लेफङ पगोडे के तले दबा दिया और यह शाप दिया कि जब तक पश्चिमी झील का पानी नहीं सूख जाता और लेफङ पगोड़ा नहीं गिरता, तब तक पाईल्यांगची बाहर निकल कर जग में नहीं लौट सकती।
वर्षों की कड़ी तपस्या के बाद श्योछिंग को भी सिद्धि प्राप्त हुई, उस की शक्ति असाधारण बढ़ी, उस ने पश्चिमी झील लौट कर धर्माचार्य फाहाई को परास्त कर दिया, पश्चिमी झील का पानी सोख लिया और लेफङ पगोडा गिरा दिया एवं सफेद नाग वाली पाईल्यांगची को बचाया।
यह लोककथा पश्चिमी झील के कारण सदियों से चीनियों में अमर रही और पश्चिमी झील का सौंदर्य इस सुन्दर कहानी के कारण और प्रसिद्ध हो गया ।.