Married or Unmarried - last part in Hindi Love Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | मैरीड या अनमैरिड (अंतिम भाग)

Featured Books
Categories
Share

मैरीड या अनमैरिड (अंतिम भाग)

अरसे बाद मैं आनंद के घर के दरवाज़े पर खड़ी थीं। मैं पहले भी कई बार आनंद के घर आ चूँकि थीं। पर आज लग रहा था जैसे पहली बार किसी अजनबी के घर आई हूँ औऱ ताला खोलते समय मेरे हाथ कुछ इस तरह से कांप रहें थे जैसे मैं कोई चौर हुँ। मैंने दरवाजा खोला तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रहीं । आनंद ने अपने घर का पूरा इंटीरियर बदल दिया था। उसके घर का कोना - कोना इस तरह से सजा हुआ था जैसा मैं उसे बताया करती थीं। मैं अक्सर आनंद से अपनी चाहतों के घर के बारे में बात किया करतीं थीं। आँखों में अंसख्य सपने लिए सुनहरे भविष्य का निर्माण करतें हुए मैंने बीसियों बार अपने सपनों का घर बनाया था - मेरा घर ऐसा होगा जिसमें आकर यह न लगें की किसी लग्ज़री होटल में आ गए हैं। मेरे घर के कोनो में ब्रॉन्ज के स्टेच्यू खड़े नहीं होंगे बल्कि हर कोना भारतीय संस्कृति से सराबोर कलाकृतियों से सजा हुआ होगा जो टेराकोटा की बनीं होंगी। मेरे घर के लिविंग रूम के फ़र्श पर कश्मीरी फ़ारसी सिल्क कार्पेट बिछा होगा। किसी कोने में एक फूलदान होगा जिसमें जरबेरा के रंग-बिरंगे ताज़े फूल होंगे। एक कोना संगीत लहरियों को सुबह - शाम छेड़ा करेगा।
दिल के आकार का डोरमैट जिस पर पैर रखकर आंगतुक यह महसूस करेंगा कि वह मेरे घर नहीं बल्कि मेरे दिल में ही प्रवेश कर रहा हैं।

अपने सपनों के घर को साकार रूप में देखकर मैं हैरान थीं। हूबहू मेरे सपनों जैसा मकान बना देना आनंद के लिए शायद कोई बड़ी बात न होंगी । वह पेशे से आर्किटेक्ट जो ठहरा। पर मेरे लिए यह किसी अजूबे की तरह था। मैंने घर के किचन से लेकर हर कमरे को कौतूहल से देखा। एक कमरे में अंधेरा था। मैं बत्ती जलाने के लिए जैसे ही आगें बढ़ी मेरे पैर से कोई भारी चीज़ टकराई। मैंने मोबाईल टार्च ऑन किया तो देखा एक लकड़ी का बना खूबसूरत सन्दूक था। मैंने बत्ती जलाई औऱ सन्दूक के पास बैठ गईं। सन्दूक पर लिखा था - यादों का कारवाँ ।

मैंने उत्सुकता से सन्दूक खोल लिया। सन्दूक में बिखरी यादों को देखकर मैं चौक गई । उसमें मेरे हेयर क्लिप , एक झुमकी जो कॉलेज फेयरवेल पार्टी में गुम हो गई थीं , मेरा पेन , रिबन ,नोटबुक औऱ भी छोटी - मोटी चीजें थीं। कुछ सुखें गुलाब के फूल थे औऱ एक कार्ड जो हूबहू वैसा ही था जो मैंने आनंद के मुहँ पर गुस्से में दे मारा था। सुनहरे पेपर से कवर की हुई एक डायरी थीं। मैंने डायरी उठाई औऱ उसे पढ़ने लगीं। डायरी के पहले पेज पर आनंद ने स्कूल के पहले दिन के बारे में लिखा था , जिसमें मेरा जिक्र एक नकचढ़ी लड़की के तौर पर किया गया था। फिर हमारी दोस्ती का किस्सा मिला। औऱ फिर दोस्ती तोड़ देने वाला वो 14 फरवरी का दिन। इस दिन के बारे में आनंद ने जो लिखा था उसे पढ़कर मुझें लगा जैसे मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। बाहर बिजली भी यूँ कड़की जैसे बादल नहीं मेरा दिल फटा जा रहा हैं।

आनंद ने लिखा था - मालिनी...मेरी सबसे अच्छी दोस्त ! उसके साथ वक़्त बिताते हुए कब जिंदगी बीता देने की ख्वाहिश जग उठी मुझें पता ही नहीं चला। उसके लिए ये वक़्त , ये साथ सिर्फ़ दोस्ती के दायरे में सिमटा रहा। इन दायरों के दरमियाँ मेरे मन में कुछ औऱ भी पनप रहा था , शायद इसी को पहला प्यार कहते हैं । मैं अपने रिश्ते को दोस्ती के पायदान से ऊपर ले जाना चाहता था। इसीलिए मैंने फैसला किया कि मालिनी से अपने दिल की बात आज यानि 14 फ़रवरी को कह दूँगा।

" मेरे मन के किसी कोने से उठता हुआ दर्द मेरी आँखों से छलक उठा। डबडबाई आँखों से मैं अगला पेज पढ़ने लगीं । "

आनंद ने सेड इमोजी बनाकर लिखा था - आज का दिन मेरी ज़िंदगी का सबसे बुरा दिन था। मैंने आज अपनी ज़िंदगी को खो दिया..काश मैं मालिनी से सच कह पाता कि किसी औऱ लड़के का मैसेंजर बनकर नहीं आया हूँ , बल्कि अपने ही दिल का हाल सुनाना चाहता हुँ। तुम्हें बताना चाहता हुँ कि तुम मेरे जीवन का सूरज हो जिसके आने से मेरे जीवन की बगिया खिल उठती हैं,,,मेरा जीवन रोशन हो जाता हैं। जैसे पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करतीं हैं वैसे ही मैं भी हर प्रहर तुम्हारे इर्दगिर्द रहना चाहता हूँ। तुम्हारे साथ अपनी सुबह गुलाबी , शाम सिंदूरी औऱ रात आसमानी करना चाहता हूँ । पर अकेलापन ही मेरे मुक़्क़द्दर में लिखा था...

तुमसे बिछड़ने के बाद सीख लिया हैं मैंने ख़ुद को संभालना , मुश्किल वक़्त में सब्र रखना , दूर रहकर भी फिक्र करना। कभी जब यादों के गलियारों से तुम भी गुज़रो तो मेरे लिए वो पुराने दिन चुरा लाना जब तुम मेरे साथ हुआ करती थीं ।

मैं औऱ अधिक नहीं पढ़ पाई। डायरी को बंद करके उसे कसकर अपने सीने से लगाकर मैं रो पड़ी। मेरी आँखों से आँसुओं की झड़ी बहने लगीं ! प्रेम , गुस्से औऱ भावनाओं से भरा बादल मेरी आँखों से बरस रहा था ! अब मैं आँसुओ की बरसात में भीग रहीं थीं !

पीछे से चिरपरिचित आवाज़ आई - " अपने कीमती आँसू यूँ जाया न करों "

मैंने मुड़कर देखा तो दरवाज़े पर आनंद खड़ा था।
मैं उठी औऱ आनंद से लिपट गई। उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया। इतने वक्त की दूरी इस एक पल की नज़दीकियों में मिट गयी थी।

मेरे सपनों का राजकुमार मेरे साथ ही था , मैं ही उसे पहचान नहीं पाई थीं । अरसे बाद अकेलेपन की धूप में तपती मैं अब आनंद का साथ पाकर शीतल चाँदनी को महसूस कर रहीं थीं । पहली बार मैं अपना होना महसूस कर रही थी। मिल गयी थी मुझे मेरी छोटी-सी दुनिया जिसमें सिर्फ़ प्रेम होगा , जहाँ मैं जैसी हुँ वैसी ही रहूँगी ।

मैंने मम्मी को कॉल किया । मम्मी ने तुरंत कॉल रिसीव कर लिया। गम्भीर औऱ चिंतित स्वर में वो बोली - बेटा कहाँ हो तुम ? कितनी तेज़ बारिश हो रहीं हैं..अकेले कैसे आओगी ? पापा को भेजतीं हुँ तुम जगह बताओं । एक साँस में ही मम्मी ने सारे प्रश्न एक साथ पूछ डाले थे।

मैंने इत्मीनान से कहा - घबराओं नहीं मम्मी मैं आनंद के घर पर हुँ । अकेले नहीं आनंद के साथ आऊँगी । अपने सपनों के राजकुमार के साथ....

मम्मी ने ख़ुशी से कहा - सच ! तुम आनंद से अब नाराज़ नहीं हो ? लगता हैं भगवान ने आज मेरी सुन ही लीं। इस सप्ताह ही होंगी मेरी राजकुमारी की शादी ।

------------ समाप्त --------------

लेखिका - वैदेही वैष्णव " वाटिका "