Alif Laila - 4 in Hindi Adventure Stories by Rajveer Kotadiya । रावण । books and stories PDF | अलिफ लैला - 4

Featured Books
Categories
Share

अलिफ लैला - 4


किस्सा बूढ़े और उसकी हिरनी का🙏🙏
वृद्ध बोला, 'हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें। यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश का पालन करती थी। किंतु जब विवाह को तीस वर्ष हो गए और इससे कोई संतान नहीं हुई तो मैंने एक दासी मोल ले ली क्योंकि मुझे संतान की अति तीव्र अभिलाषा थी। कुछ समय बाद दासी से एक पुत्र का जन्म हुआ। बच्चा पैदा होने पर मेरी पत्नी उस बच्चे और उसकी माता से अत्यंत द्वेष रखने लगी। मुझे इस बात का अति खेद है कि मुझे अपनी पत्नी के विद्वेष का हाल बहुत दिन बाद मालूम हुआ।
'संयोगवश मुझे एक अन्य देश को जाना पड़ा। मैंने अपनी पत्नी से जोर देकर कहा कि मेरे पीछे इन दोनों की अच्छी तरह देखभाल करना और इनके आराम-तकलीफ का खयाल करना। भगवान चाहेगा तो मैं एक वर्ष में लौट आऊँगा।
'मेरी स्त्री ने मेरे जाने के बाद उन दोनों से दुश्मनी रखना शुरू कर दिया। वह जादू-टोना भी सीखने लगी थी। मेरे जाने के बाद उस दुष्ट ने अपने जादू से मेरे बच्चे को बछड़ा बना दिया और उसे मेरे नौकर ग्वाले के सुपुर्द कर दिया कि अपने घर ले जाकर इसे खिला-पिला कर मोटा-ताजा कर दे। इसी प्रकार उसने मेरी दासी को जादू के जोर से गाय बना दिया और उसे भी ग्वाले के घर भेज दिया।
'विदेश से वापस आकर मैंने अपनी पत्नी से अपने पुत्र और उसकी माँ के बारे में पूछा। उसने कहा कि तुम्हारी दासी तो मर गई है और तुम्हारे पुत्र को मैंने दो महीने से नहीं देखा, मालूम नहीं वह कहाँ चला गया। मुझे अपनी दासी के मरने का बड़ा दुख हुआ किंतु सब्र कर के बैठ गया। किंतु मुझे आशा थी कि कभी न कभी पुत्र से मेरी भेंट हो जाएगी।
'आठ महीने बाद ईद का त्योहार आया। मेरी इच्छा हुई कि इस त्योहार पर मैं किसी पशु का बलिदान करूँ। मैंने अपने ग्वाले को बुला कर कहा कि कुरबानी के लिए एक स्वस्थ गाय ले आ। संयोग से वह मेरी दासी ही को ले आया जो जादू के जोर से गाय बन गई थी। मैंने उसे बलिदान करने के लिए उसके पैरों को बाँधा तो वह बड़े करुणापूर्ण स्वर में डकारने लगी और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। उसका यह हाल देखकर मुझे उस पर दया आ गई और मुझसे उसके गले पर छुरी न चल सकी। मैंने ग्वाले से कहा कि इसे ले जा और कुरबानी के लिए दूसरी गाय ले आ। यह सुनकर मेरी पत्नी बहुत क्रुद्ध हुई और कहने लगी कि इसी गाय की बलि दी जाएगी, ग्वाले के पास इससे अधिक हृष्ट-पुष्ट और कोई गौ नहीं है।
'उसके भला-बुरा करने से मैंने फिर छुरी हाथ में ली और गाय को मारने के लिए उद्यत हुआ। इस पर गाय और भी चीख-पुकार करने लगी। मैं अजीब दुविधा में पड़ा। अंत में मैंने छुरी ग्वाले को दे दी और कहा, मुझ से इस गाय पर छुरी नहीं चलती, तू ही इसका बलिदान कर दे। ग्वाले को गाय के रोने-चिल्लाने पर दया न आई और उसने छुरी फेर दी।
'जब गाय की खाल उतारी गई तो सब ने देखा कि उसके अंदर अस्थिपंजर मात्र है, मांस का कहीं पता नहीं। कारण यह था कि गाय की हृष्टतापुष्टता तो केवल मायाजाल के कारण थी। मैं उस ग्वाले पर नाराज हुआ कि गाय को ऐसी दशा में क्यों रखा कि वह ऐसी दुबली-पतली हो गई। मैंने गाय ग्वाले ही को दे दी और कहा, तू इसे अपने ही काम में ला, मेरे कुरबानी करने के लिए कोई बछड़ा ही ले आ, किंतु वह मोटा-ताजा होना चाहिए, इस गाय की तरह नहीं।
'ग्वाला शीघ्र ही एक मोटा-ताजा बछड़ा ले आया। बछड़ा देखने में भी बड़ा सुंदर था। यद्यपि उस बछड़े के बारे में मुझे मालूम न था कि यह मेरा ही पुत्र है तथापि उसे देखकर मेरे हृदय में प्रेम उमड़ने लगा और वह बछड़ा भी मुझे देखते ही रस्सी तुड़ाकर मेरे पैरों पर गिर पड़ा। इस बात से मेरे हृदय में प्रेम का स्रोत और जोर से उबलने लगा और मैं सोचने लगा कि ऐसे प्यारे बछड़े को कैसे मारूँ। इन भावनाओं ने मुझे अत्यंत विह्वल कर दिया। उस बछड़े की आँखों से आँसू बहने लगे। इससे उसके प्रति मेरा प्यार और उमड़ा और मैंने ग्वाले से कहा कि इस बछड़े को वापस ले जा और इसकी जगह कोई दूसरा बछड़ा ले आ।
'इस पर मेरी पत्नी ने कहा कि तुम इतने मोटे-ताजे बछड़े की कुर्बानी क्यों नहीं करते। मैंने कहा कि यह बछड़ा मुझे बड़ा प्यारा लगता है और मेरा जी नहीं करता है कि इसका वध करूँ, तुम इसके लिए कुछ जोर मत दो। लेकिन उस निष्ठुर दुष्ट ने तकरार जारी रखी और विद्वेषवश उसके वध पर जोर देती रही। मैं उसकी बहस से तंग आकर छुरी लेकर पुत्र की गर्दन काटने चला। उसने फिर मेरी ओर देखकर आँसू बहाए। मेरे हृदय में ऐसी दया और प्रीति उमड़ी कि छुरी हाथ से गिर गई।
'फिर मैंने अपनी पत्नी से कहा कि मेरे पास एक और बछड़ा है, मैं उसे कुरबान कर दूँगा। वह दुष्टमना फिर भी उसी बछड़े को मारने पर जोर देती रही। किंतु इस बार मैंने उसके बकने-झकने की परवाह नहीं की और बछड़े को वापस कर दिया। हाँ, पत्नी के हृदय को सांत्वना देने के लिए कह दिया कि बकरीद के दिन इसी बछड़े की बलि दूँगा।
'ग्वाला बछड़े को अपने घर ले गया। लेकिन दूसरे दिन तड़के ही मुझ से एकांत में कहा कि मैं आप से कुछ कहना चाहता हूँ और मुझे आशा है कि आप मेरी बात सुन कर प्रसन्न होंगे। मेरी बेटी जादू-टोने में प्रवीण है। कल जब मैं उस बछड़े को वापस लेकर गया तो वह उसे देख कर हँसी भी और रोई भी। मैंने इस विचित्र बात का कारण पूछा तो बोली कि अब्बा, जिस बछड़े को तुम लौटा कर जिंदा लाए हो वह हमारे मालिक का बेटा है, इसलिए मैं इसे जीता-जागता देखकर प्रसन्न हुई। रोई इसलिए कि इसके पहले इसकी माँ की कुरबानी दे दी गई थी। हमारे स्वामी की पत्नी ने सौतिया डाह के कारण इन माता-पुत्र को जादू के जोर से गाय और बछड़ा बना दिया था। मैंने जो अपनी बेटी के मुँह से सुना, जैसा का तैसा आपको बता दिया।
'हे दैत्यराज, अब आप सोचिए कि यह वृत्तांत सुनकर मेरे हृदय में कितना शोक और संताप उठा होगा। मैं कुछ देर मर्माहत होकर चुप रहा फिर ग्वाले के साथ उसके घर पर चला गया ताकि इस वृत्तांत को उसकी बेटी के मुँह से सुनूँ। सबसे पहले मैं उसकी पशुशाला में गया ताकि अपने बछड़ा बने हुए पुत्र को देखूँ। मैं उस पर हाथ फेरूँ इसके पहले ही वह मेरे पास आकर इतना लाड़ करने लगा कि मुझे विश्वास हो गया कि यह मेरा पुत्र ही है।
'मैंने लड़की के पास जाकर ग्वाले के मुँह से सुना हुआ हाल दुबारा सुना और लड़की से कहा कि क्या तुम इस बछड़े को फिर से मनुष्य का रूप दे सकती हो। उसने कहा, निश्चय ही मैं उसे दुबारा मनुष्य बना सकती हूँ। मैंने कहा, अगर तुम ऐसा कर दो तो मैं तुम्हें अपनी सारी धन-संपदा दे दूँगा। लड़की ने मुस्करा कर कहा कि हम लोग आप के सेवक हैं, आप हमारे मालिक हैं, आपकी आज्ञा शिरोधार्य है; किंतु बछड़े को मनुष्य रूप मैं दो शर्तों पर दूँगी - एक तो यह कि उसके मनुष्य बन जाने पर आप उसका विवाह मेरे साथ कर दें और दूसरा यह कि जिसने इसे मनुष्य से पशु बनाया है उसे भी थोड़ा दंड दिया जाए।
'मैंने उत्तर दिया, मुझे तुम्हारी पहली शर्त बिल्कुल मंजूर है, मैं तुम्हारा विवाह उसके साथ कर दूँगा और तुम दोनों को इतना धन-धान्य दूँगा कि जीवन पर्यंत तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। दूसरी शर्त में निर्णय मैं तुम्हारे ही हाथ छोड़ता हूँ, तुम जो भी दंड उसके लिए उचित समझोगी वही दंड मेरी पत्नी को दिया जाएगा, हाँ यह जरूर कहूँगा कि यद्यपि वह दुष्ट दंडनीय है किंतु उसे प्राणदंड न दे देना।
'लड़की ने कहा कि जैसा उस ने आप के पुत्र के साथ किया है वैसा ही मैं उस के साथ करूँगी। यह कहकर उसने एक प्याले में पानी लिया और उसे अभिमंत्रित कर के बछड़े को सामने लाकर कहा कि ऐ खुदा के बंदे, अगर तू आदमी है और केवल जादू के कारण बछड़ा बना है तो भगवान की दया से अपना पूर्व रूप प्राप्त कर ले। यह कहकर उसने अभिमंत्रित जल उस पर छिड़का और वह तुरंत ही मनुष्य रूप में आ गया। मैंने प्रीतिपूर्वक उसे छाती से लगाया और गदगद स्वर में उससे कहा कि इस लड़की के कारण ही तुमने फिर से मानव देह पाई है, तुम इसका एहसान चुकाओ और इसके साथ विवाह कर लो। पुत्र ने सहर्ष मेरी बात मानी। लड़की ने इसी प्रकार जल को अभिमंत्रित कर के मेरी पत्नी को हिरनी का रूप दे दिया।
'मेरे पुत्र ने उस कन्या के साथ विवाह किया किंतु दुर्भाग्यवश वह थोड़े ही समय के बाद मर गई। मेरे पुत्र को इतना दुख हुआ कि वह देश छोड़कर कहीं चला गया। बहुत दिनों तक मुझे उसका कोई समाचार नहीं मिला। अतएव मैं उसे ढूँढ़ने निकला हूँ। मुझे किसी पर इतना भरोसा नहीं था कि अपनी हिरनी बनी हुई पत्नी को उसके पास छोड़ता, इसलिए मैं उसे अपने साथ लिए हुए देश-देश अपने पुत्र की खोज में घूमता हूँ। यही मेरी और इस हिरनी की कहानी है। अब आप स्वयं निर्णय कर लें कि यह घटना विचित्र है या नहीं।' दैत्य ने कहा, 'निःसंदेह विचित्र है। मैंने व्यापारी के अपराध का एक तिहाई हिस्सा माफ कर दिया।'
फिर शहरजाद ने शहरयार से निवेदन किया कि जब पहला वृद्ध मनुष्य अपनी कहानी कह चुका तो दूसरे बूढ़े ने, जो अपने साथ दो काले कुत्ते लिए था, दैत्य से कहा कि मैं भी अपना और इन दोनों कुत्तों का इतिहास आपके सम्मुख रखता हूँ। यदि यह पहली कहानी से भी अच्छा हो तो आशा करता हूँ कि उसे सुनने के बाद व्यापारी के अपराध का एक तिहाई भाग और क्षमा कर दिया जाएगा। दैत्य ने कहा कि अगर तुम्हारी कहानी पहली कहानी से अधिक विचित्र हुई तो मैं तुम्हारी बात जरूर मानूँगा।.