"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" अभिमन्यु ने पूछा, वोह चल कर अपनी टेबल की तरफ आ गया था जहाँ अनाहिता बैठी थी। उसने तुरंत अपना लैपटॉप अपनी तरफ घुमा लिया इससे पहले की अनाहिता झट से उसे बंद कर दे ताकी वोह देख ना पाए की वोह क्या कर रही थी।
"कुछ नही," अनाहिता अपने दोनो हाथ बांधे चेयर पर पीछे हो कर बैठ गई थी। "क्या मुझे इंटरनेट यूज करने की परमिशन नही है?" अनाहिता ने अपनी घबराहट छुपाते हुए कहा।
अभिमन्यु ने एक नज़र उसे देखा और फिर लैपटॉप को हाथ में लिए डेस्कटॉप पर देखने लगा। अनाहिता ने अपना ईमेल लॉगिन किया हुआ था। उसके ईमेल में बस न्यूजलेटर, और एडवरटाइजमेंट के ही मेल्स थे, उसमे कुछ भी इंपोर्टेंट ईमेल नही था। उसे डाउट तो हुआ की यह उसका ओरिजनल ईमेल आईडी नही है। शायद वोह कुछ छुपा रही है।
लैपटॉप बंद कर के अभिमन्यु ने वोह टेबल पर साइड में रखा और अपना एक हाथ टेबल पर टिका कर अनाहिता की ओर देखने लगा। आखिर उसे पता तो करना ही था की अनाहिता यहाँ क्या कर रही थी।
"तुम्हारे कमरे में पहले से ही इंटरनेट कनेक्शन है," अभिमन्यु ने उसे याद दिलाया और उसकी चेयर पकड़ कर अपनी तरफ खींची ताकी वोह उसकी तरफ देखे क्योंकि अनाहिता नज़रे चुरा रही थी।
"मुझे लगा की मैं यहाँ आ सकती हूं। तुमने कहा था की यह मेरा भी घर है और मैं इस घर में कहीं पर भी जा सकती हूं। मुझे नही लगा था की इस कमरे में इंटरनेट यूज करने में कोई प्राब्लम है।" अनाहिता ने अपने इरादे मजबूत करते हुए अपने चहरे को थोड़ा तिरछा कर कहा। "या फिर क्या मुझे यहाँ आने की परमिशन नही है?"
उसकी आँखों में अभिमन्यु को चुनौती साफ नज़र आ रही थी। वोह कुछ तो ऐसा कर रही थी जिसे छुपाने की जरूरत थी और पकड़े जाने पर वोह अभिमन्यु के सामने अकड़ कर खड़ी भी थी।
"तुमने दरवाज़ा अंदर से बंद किया हुआ था। माया तुम्हारे लिए परेशान हो रही थी।" अभिमन्यु ने अपने दोनो हाथ चेयर की बांह पर रख दिए और अनाहिता उसकी कैद में आ गई।
"क्यों? मैं तो घर में ही थी। उसी तरह बंद थी जिस तरह तुम मुझे कैद कर रखना चाहते थे।" अनाहिता ने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा। बहुत हिम्मत थी उसमे, पकड़े जाने पर भी वोह डर कर पीछे हटना नही चाहती थी, बल्कि डट कर सामना करना चाहती थी।
"तुम क्या कर रही थी यहाँ पर?" अभिमन्यु ने फिर पूछा। उसे उसके जवाब पर यकीन नही था।
"मैने बताया ना की मैं मेल्स चैक कर रही थी।"
"तो तुम्हारा जवाब अभी भी यही है?" अभिमन्यु ने फिर उसे एक और मौका दिया बचने का।
इतना सुनते ही अनाहिता अंदर ही अंदर घबराने लगी। उसने अपना निचला होंठ दबा लिया और अभिमन्यु को अपनी खाली आँखों से देखने लगी। अभिमन्यु ने अपने अंगूठे से उसका होंठ आज़ाद किया और उसके होंठो पर अपना अंगूठा फेरने लगा।
"मैं कुछ भी गलत नहीं कर रही थी," अनाहिता ने हिम्मत कर बोलने की कोशिश की। उसको अपने इस जवाब पर यकीन था क्योंकि उसके हिसाब से वोह सही कर रही थी, था गलत तो अभिमन्यु, उसकी नजर में।
हो सकता है अनाहिता जो कर रही थी उसकी नज़र में वोह सही हो पर इस बात से अभिमन्यु एग्री नही करता था। उसके लाल होते गालों ने अभिमन्यु को एक नज़र में ही बता दिया था की अनाहिता गिल्टी महसूस कर रही है और वोह कुछ तो गलत कर रही है जिसे छुपाने के लिए वोह झूठ बोल रही है, और खुद को भी बहला रही है।
"रूल नंबर थ्री, अनाहिता। कभी मुझसे झूठ मत बोलना, कभी भी नही।"
अनाहिता के जबड़े कस गए। उसे अभिमन्यु के रूल्स बिलकुल भी पसंद नही थे। उसे अभिमन्यु के सामने अच्छे बच्चे की तरह बिहेव करने के लिए धमकाना बिलकुल भी पसंद नही था। अभिमन्यु को इससे कोई प्राब्लम नही थी की अनाहिता इसके लिए उस से नफरत करे, वोह बस उस से यही उम्मीद कर रहा था की अनाहिता उसके सामने आज्ञाकारी बन कर रहे, उसकी बात माने, उसकी रिस्पेक्ट करे, बस उसके रूल्स फॉलो करती रहे।
"मैं झूठ नही बोल रही हूं," अनाहिता ने कुछ हिचकिचाते हुए कहा, वोह एक बार और टेस्ट करना चाह रही थी की अभिमन्यु ने जो कहा वो वाकई अपने शब्दों पर खरा रहता है या बस उसे डराने के लिए बोल रहा था।
"अंदर आने से पहले मैने कुछ गिरने की आवाज़ सुनी थी। वोह क्या थी?" अभिमन्यु ने उसकी आँखों में ही देखते हुए पूछा।
अनाहिता को समझना अभिमन्यु के तेज़ दिमाग के लिए बहुत आसान बात थी। अभिमन्यु के सवाल पर अनाहिता ने पल भर के लिए एक नज़र टेबल पर रखी एक लेजर बुक की तरफ देखा था, जिसे अभिमन्यु ने तुरंत भाप लिया था। वोह एक बेकार की लेजर बुक थी, जिसमे बस कुछ नंबर्स और कॉन्टैक्ट लिस्ट थी। अगर वाकई में अनाहिता कुछ ढूंढ रही थी तो उसे कुछ नही मिलने का था क्योंकि इस घर में कुछ था ही नही जो उसके काम का हो। जो भी वोह ढूंढ रही थी, वोह उसे यहाँ तो बिलकुल भी मिलने वाला नही था।
अभिमन्यु ने चेयर को हल्का सा पीछे किया और लेजर बुक उठा ली। "यह?"
"यह बस गिर गई थी। मैने इसे उठाया और ऊपर रख दिया," अनाहिता ने तुरंत सफाई दी।
एक करप्ट पिता की बेटी होने के बावजूद अनाहिता में धोखा देने की और झूठ बोलने की कला नही थी।
उसकी मासूमियत और अंदर ही अंदर पनप रहा डर जो उसकी आँखों से साफ झलक रहा था, अभिमन्यु के शरीर में कपकापी सी छोड़ गया था। उसकी आँखें वासना से भरने लगी थी।
आज अनाहिता ने एक कॉटन की ड्रेस पहनी हुई थी। उसकी ड्रेस लाइट पिंक कलर की थी। उसके लंबे बाल की गुथ बनी हुई थी जो पीछे लटक रही थी और कुछ आगे के बाल जो चोटी से निकले हुए आगे की ओर लटक रहे थे उस से उसका चेहरा और भी आकर्षक लग रहा था। कुछ ही दिनों की बात थी, फिर वोह उसकी पत्नी बनने वाली थी, उसके प्रति आकर्षण अभिमन्यु के लिए सामान्य बात थी।
"यह बस गिर गई, यूहीं, खुद ही?" अभिमन्यु ने अपनी एक आई ब्रो ऊपर की ओर कर पूछा। "यह बड़ी ही अजीब बात है की इतनी भारी किताब अपने आप ही नीचे गिर पड़ी, तुम्हे नही लगता?"
अनाहिता अभी भी अपनी बात पर ही कायम थी। इस से कोई फर्क नही पड़ता था की वोह पकड़ी गई थी, पर वोह इस से बाहर निकलने की कोशिश तो कर रही थी ना। क्योंकि यहाँ ऐसा कुछ नही था जो अनाहिता चुरा सके, इसलिए अभिमन्यु उसे जाने दे सकता था। उसे उसके कमरे में भेज सकता था ताकी वोह जो असहजता महसूस कर रही थी इस वक्त उस से बच सके। पर वोह अभिमन्यु था और वोह कोई अच्छा इंसान नही था। उसने कभी नही कहा की वोह एक गुड मैन है, नाही उसने कभी बनने की कोशिश की। शायद वोह बन ही नही सकता।
"खड़ी हो जाओ, अनाहिता।" अभिमन्यु ने लेजर बुक बंद करते हुए कहा और उसे टेबल पर रख दिया।
"मैं तुम्हारे इस फालतू के ऑफिस से दूर ही रहूंगी।" अनाहिता कुर्सी को लात मरते हुए उठ खड़ी हुई। "यही चाहते हो न?" वोह दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी।
अभिमन्यु ने बड़ी ही आसानी से उसकी कमर पर हाथ डाल कर उसे तुरंत रोक लिया।
"कहां जा रही हो, स्वीट हार्ट?" अभिमन्यु ने उसके करीब हो कर उसके गाल के पास अपने होंठ ले जा कर पूछा। "हम बस अभी बात कर रहें हैं।" उसने उसे और करीब कर लिया। अनाहिता अपनी पीठ उसके सीने से टिकाए खड़ी थी।
"अभिमन्यु, मुझे जाने दो।" अनाहिता ने अभिमन्यु का हाथ हटाने को कोशिश की।
"नही।"
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अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा