अनाहिता के पिता अक्सर अपने काम के सिल सिले में बाहर जाते रहते थे। पर कभी वोह उसे फोन नही करते थे। हाँ अक्षरा से जरूर रोज़ बात किया करते थे पर उस से नही। अक्षरा और उसकी माँं के जाने के बाद तो उसके पिता विजयराज शेट्टी का फोन घर पर बजना ही बंद हो गया था। काम हमेशा उन्हे उलझाए रखता था ऐसा अनाहिता अपने मन को बहला लेती थी।
वोह एकदम सरप्राइज़ हो गई जब उसका फोन बजा और नाम में पापा लिखा था। उन्होंने उसे फोन किया था।
"अनाहिता, मेरे पास बस एक मिनट है। मेरी बात ध्यान से सुनना," जैसे ही अनाहिता ने फोन उठा कर कान पर लगाया दूसरी तरफ से उसके पिता को आवाज़ आई।
"हैलो पापा। कैसे हो आप? मैं ठीक हूं, थैंक यू आपने पूछा। ऐसा नही ह...."
"मेरे पास तुम्हारी शिकायतों के लिए समय नहीं है, अनाहिता। मेरी बात सुनो ध्यान से।" विजयराज शेट्टी ने उसे बीच में टोक दिया। उनकी आवाज़ में कुछ अलग सा आभास हो रहा था अनाहिता को। या तो वो परेशान थे या घबराए हुए। "मैंने उस रात उसे तुम्हे ले जाने दिया था क्योंकि मैं चाहता था की तुम उस पर नज़र रखो। मैं चाहता हूं की तुम उसकी बातें सुनो, वोह किस किस से क्या क्या बातें करता है। उसके और उसके पिता के बीच की बातें सुनो और जितनी जानकारी निकाल सकती हो, निकालो और मुझे बताओ। वोह किस्से मिलता है, किसके साथ काम करता है? उसका उसके भाई के साथ क्या नया डील चल रहा है? मुझे अभिमन्यु ओबेरॉय के बारे में पूरी डिटेल चाहिए, अनाहिता। वोह जल्द ही अपने पिता को यहाँ वापिस बुलाने की तैयारी में है और तुम पता लगाओ की वोह कब वापिस आ रहें हैं।"
"आप यह सब क्या कह रहें हैं?" अनाहिता ने खिड़की से बाहर देखते हुए पूछा। उसकी आँखों को गार्डन में सजे फूलों को देख कर कुछ सुकून महसूस होता था।
"उसके पिता, डैमिट, आनंद ओबेरॉय। अनाहिता तुम काम खोल कर सुनो।" वोह उस पर चिल्लाए। "तुम्हे सबसे पहले यह पता लगाना है की वोह कब वापिस आ रहें हैं। और जैसे ही तुम्हे यह पता चलेगा, तुम सीधे मुझे फोन करोगी। मेरे अलावा किसी और से कुछ मत कहना। समझी तुम?"
"क्या आपके पास आदमी नही है जो आपके लिए यह सब काम कर सकें?" अनाहिता ने पूछा। वोह जानती थी की अभिमन्यु उसे कभी कुछ नही बताएगा। वोह उसके सवालों का तो जवाब देता नही, तो अपने पिता के बारे में वोह क्यों बताएगा। और रही बात पता लगाने की तो वो खुद यहां नई है, उसे तो खुद कुछ पता नहीं यहाँ के बारे में।
"अंदर की बात सिर्फ तुम ही निकाल सकती हो, अनाहिता। वोह कब किस से बात करता है यह तुम ही पता लगा सकती हो। घर में कौन आता है, किसके साथ उसकी मीटिंग होती है, यह सिर्फ तुम ही पता लगा सकती हो।"
"और वोह मुझे यह सब क्यों बताएगा?"
"तो उसे मजबूर करो। उसका भरोसा जीतो और फिर जितना पता कर सकती हो पता करो।"
"लेकिन क्यों? मैं ही क्यों? आखिर यह सब हो क्यों रहा है?"
"बस मेरे लिए एक बार यह काम कर दो, अनाहिता!" विजयराज शेट्टी इतनी ज़ोर से चिल्लाए की अनाहिता को अपना फोन कान से दूर करना पड़ा। "अगर इस वक्त अक्षरा होती तो अब तक यह काम कर चुकी होती। वोह तुम्हारी तरह हर समय बार बार इतने सवाल नही पूछती।"
अक्षरा के जिक्र से अनाहिता का दिल जोरों से धड़क उठा।
"पर वोह यहाँ नही है, क्या वोह है, अनाहिता?" उनके सवाल में मानो ज़हर उगल रहा हो।
"नही। वोह नही है," अनाहिता ने धीरे से कहा। उसका गिल्ट फिर ताज़ा हो गया। विजयराज शेट्टी उस से अपनी बात मनवाने के लिए पिछले चार सालों से यही तो करते आ रहे थे उसकी बहन और उसकी माँ का जिक्र करके ताकि वोह वो उसे आत्मगलानी में मार सके।
और इस बार भी उसी का फायदा उठा कर विजयराज शेट्टी ने उस से अपनी बात मनवा ही ली।
"मैं देखती हूं मैं क्या कर सकती हूं," अनाहिता ने वादा करते हुए कहा। अनाहिता उम्मीद छोड़ चुकी थी की इसके लिए कभी उसके पिता उसे माफ कर पाएंगे पर उसे कहीं ना कहीं एक छोटी सी उम्मीद थी की अगर वोह उनकी बात माने तो शायद वोह उसे माफ करदे।
"अपनी नज़र हमेशा चौकन्नी रखना। उसे कभी पता नही चलना चाहिए की तुम यहाँ क्या करने आई हो। वोह बहुत खतरनाक इंसान है, अनाहिता।"
वोह फोन रख चुके थे और अनाहिता अभी भी अपने फोन को घूर रही थी।
जबसे वोह यहाँ आई थी तब से उसके पिता ने पहली बार उसे फोन किया था। और फोन किया भी तो जासूसी करने के लिए, उसे जासूस बनाने के लिए।
आखिर अनाहिता यह काम करेगी कैसे?
और अगर कर भी लिया तो कहीं अभिमन्यु उसे पकड़ ना ले?
और अगर पकड़ लिया तो वो उसके साथ क्या करेगा?
सोच कर ही अनाहिता के हाथ कांपने लगे।
काफी देर तक वोह अपने कमरे में टहलती रही और सोचती रही की वोह क्या करे। उसने नीचे आ कर माया से पूछा की अभिमन्यु कहां है तो उसने उसे बताया की वोह काम से बाहर गए हैं और देर से लौटेंगे।
बेचैनी के साथ साथ अनाहिता को थोड़ी राहत भी मिली। वोह घबराई हुई सी थोड़ी देर के लिए बाहर गार्डन में चली गई जहां वोह अपने मन में चल रहे उथल पुथल को शांत करने की कोशिश कर रही थी। वोह माली को गुलाब के पौंधों में पानी देते हुए देख रही थी। इस झन्नुम जैसी जगह पर यह गुलाब के फूल उस की आँखों को सुकून पहुँचा रहे थे। कुछ देर वहां यूहीं टहल कर वोह अंदर आई।
माया उसे बुलाने उसके कमरे में गई पर वोह वहां नही मिली। वोह बाहर आई तो उसका फोन बजने लगा। कॉल देखा तो अभिमन्यु का था। उसने फोन रिसीव कर लिया और बात करने लगी। अभिमन्यु ने उसे बताया की आज खाना वोह घर पर ही खायेगा क्योंकि अभिमन्यु बाहर गया हुआ था और वोह सुबह आने वाला था इसलिए उसने अपने जल्दी आने की खबर माया को दी ताकी वोह उसके लिए खाना बना सके।
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अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा