“मुझे यहाँ क्यूं लाया गया है?“ अनाहिता ने अपने पैर पीछे कर धीरे धीरे बैड से उतर गई।
अब वोह क्वीन साइज बैड दोनो के बीच में दूरी बनाए हुए था। वोह ऐसे थोड़ा सुरक्षित महसूस कर रही थी।
“मुझे लगता है की तुम्हारे पिता ने तुम्हे साफ साफ बता दिया था,” अभिमन्यु ने अनाहिता की आँखों में देखते हुए जवाब दिया।
“शादी! है ना? मैं जानती हूं। पर अभी शादी तो हुई नही है, फिर मुझे यहाँ क्यों लाया गया है? शादी से पहले तक तो मैं अपने घर में रह सकती थी ना, फिर यहाँ क्यूं?“ अनाहिता के मन में कई सवाल थे, वोह बस जवाब जानना चाहती थी।
“तुम्हारी सुरक्षा के लिए।” अभिमन्यु जनता था की बाहर की दुनिया से वोह यहाँ सुरक्षित है पर उसे डर था तो खुद से, अपने गुस्से से। अगर वोह अच्छे से यहाँ रहती है तब तक तो ठीक है अगर नही...तो वो खुद भी नही जानता की वोह कैसे रिएक्ट करेगा।
कम से कम अनाहिता दुनिया से तो सुरक्षित है। अभिमन्यु नही चाहता था की कोई भी उसका दुश्मन अनाहिता को अभिमन्यु के खिलाफ इस्तेमाल कर पाए। और साथ ही वोह यह भी चाहता था की किसी के बदले की कीमत अनाहिता को चुकानी पड़े।
अनाहिता ने सुनते ही अपने कंधे नीचे कर लिए और एक पल के लिए मानो ऐसा लगा अब वो और कोई सवाल नही पूछेगी। ना ही पूछे तो उसके लिए वैसे भी अच्छा है। कई बार ज्यादा सवाल घातक सिद्ध हो जा सकता है।
“मैं यहाँ सुरक्षित क्यूं हूं?“ अनाहिता ने क्यूं पर ज्यादा ज़ोर देते हुए पूछा।
अभिमन्यु ने देखा की अनाहिता के दोनो हाथों की मुट्ठी अपने कपड़ो पर कसी हुई थी। उसे उसके गालों पर भी हल्की लाली नज़र आने लगी मानो वो गुस्से में हो।
“बहोत हो गए तुम्हारे सवाल,” अभिमन्यु ने उसके सवाल का जवाब दिए बिना ही सवाल काट दिया। “तुम्हारे लिए यह जरूरी है की तुम कुछ बातों को अच्छे से जान लो और समझ लो।”
“सिर्फ आपके कहने भर से बहोत नही हुआ है।” अनाहिता ने अभिमन्यु को बीच में बोलते हुए रोक दिया। उसकी आँखें बड़ी हो गई थी। उसकी आँखों में गुस्सा उतर आया था जिसका अंदाज़ा उसे खुद भी नही था।
“अनाहिता—”
“नही। मुझे जानने का पूरा हक है। मैं नही जानना चाहती की मेरे पिता ने मुझे कहां भेजा है, मैं नही जानना चाहती की उन्होंने मुझे किसे बेचा है, मैं बस यह जानना चाहती हूं की मैं अपने ही घर में सुरक्षित क्यूं नही हूं? और यहाँ सुरक्षित कैसे?“ अनाहिता का दिल उसके सीने में जोरों से धड़क रहा था। उसकी तेज़ चलती सांसे उसकी गले से साफ पता चल रही थी।
वोह गलत नही थी। ना ही उसका सवाल गलत था। और ना ही उसका सवाल पूछना गलत था। गलत था तो उसका पूछने का लहज़ा जो अभिमन्यु को बर्दाश्त नहीं था।
“अनाहिता, मैं जानता हूं की तुम्हारे लिए यह सब कुछ नया और अजीब है और साथ ही तुम इन सब से घबरा भी रही हो। पर....मेरे सामने ऊंची आवाज़ में बात मत करो,” अभिमन्यु ने अपनी एक उंगली उसकी ओर दिखाते हुए शांत भाव से कहा। “तुम्हारे लिए यह अच्छा है की तुम यहाँ हो। अब से यही तुम्हारा घर है।”
“क्यूं?“ अनाहिता ने फिर पूछा। पर उसका क्यूं इसलिए नही था की वोह कहां और क्यों रहने वाली है। बल्कि उसका क्यूं पूछना तोह इसलिए था की क्यूं उसकी जिंदगी को उससे जोड़ा जा रहा है, क्यूं वोह उसे अपने पास ले कर आया है, क्यूं वोह अपने हिसाब से अपनी जिंदगी नही जी सकती।
“इसमें मेरा ही फायदा है,” अभिमन्यु उस से झूठ नही बोलना चाहता था। वोह हमेशा उसे सब कुछ तो नही बताता था जो वो जानना चाहती थी पर वोह उस से झूठ भी नही बोलता था।
“और मुझसे आपका किस तरह का फायदा होगा?“ अनाहिता ने पूछा, इस बार उसकी आवाज़ में नरमी थी। पर अगले ही पल उसकी झुंझलाहट बढ़ने लगी थी। “जो एग्रीमेंट मेरे पिता और आपके पिता के बीच हुआ था वोह तो मेरी बहन के लिए था। अब वोह वक्त निकाल चुका है जब आप उसे लेने आना चाहते थे।” अनाहिता कुछ पल के लिए रुकी, एक दर्द उभर आया उसके चेहरे पर, और अगले ही पल उसने वोह दर्द हटा लिया। “क्या आपको और कोई दूसरी दुल्हन नही मिली? या फिर आप मेरे ही परिवार के पीछे पड़े थे?“
“अनाहिता, मैं बहुत ही धैर्य से तुमसे बात कर रहा हूं क्योंकि मैं जानता हूं की तुम्हारे साथ नाइंसाफी हुई है, जबरदस्ती हो रही है। पर अगर तुम ऐसे ही बात करोगी, अपनी आवाज़ को इसी तरह ऊंचा रखोगी, तो मैं ज्यादा देर तक तुम्हारे साथ अच्छा बरताव नही कर पाऊंगा।” अभिमन्यु ने बोलते हुए अपने माथे को सहलाया और धीमे कदमों से चलते हुए अनाहिता के साइड उसके सामने खड़ा हो गया। उसकी नज़रे सीधे अनाहिता की नज़रों से ही टकरा रही थी।
अभिमन्यु को थोड़ा आश्चर्य हुआ और थोड़ा इंप्रेस भी गया जब उसने देखा की उसके सामने आने के बावजूद भी अनाहिता घबराई नही और अपनी नज़रे उस पर से हटाई नही। नो डाउट की वोह काफी बहादुर थी। उसे लगा था की अनाहिता उसके सामने आने से घबरा जायेगी और अपनी नज़रे नीचे कर लेगी या अपने कदम पीछे ले लेगी, पर ऐसा कुछ भी हुआ नही। बल्कि ऐसा लग रहा था मानो वो लड़ने के लिए तैयार है।
“धैर्य? आपको कोई आइडिया भी है की कितना तहस नहस हो रखी है मेरी जिंदगी?“ अनाहिता ने अपनी चिन को थोड़ा ऊपर की ओर उठाया। “मैं कोई चीज़ नही हूं जो खरीदी जा सके।” अनाहिता के मन में यह बात बार बार घूम रही थी कल से, पर उसने इसे आवाज़ अब दी।
“पहली बात,” अभिमन्यु ने अपनी एक उंगली हवा में उठाई और उसकी चिन की तरफ करते हुए कहा, “मैं तुम्हे खरीद कर नही लाया हूं। शायद यह काम तुम्हारे पिता करते होंगे, लड़कियों को बेचना और खरीदना, मैं नही। तो, मैं दुबारा अपने बारे में तुमसे यह शब्द सुनना नही चाहता।” अभिमन्यु ने कहा तो अनाहिता के चेहरे के भाव और सख्त हो गए।
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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा