Mere Ghar aana Jindagi - 39 - Last Part in Hindi Fiction Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | मेरे घर आना ज़िंदगी - 39 (अंतिम भाग)

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मेरे घर आना ज़िंदगी - 39 (अंतिम भाग)



(39)

अन्नप्राशन की पार्टी बहुत अच्छी तरह से निपट गई थी। सुबह पूजा के बाद तय हुआ था कि आज रात सारा परिवार फ्लैट में ही रहेगा। इसलिए पार्टी के वेन्यू से सब लोग फ्लैट में ही आ गए थे। फर्नीचर नहीं था। इसलिए फर्श पर गद्दे और चादर बिछाकर सोने का इंतज़ाम किया गया था।
जब सब लोग फ्लैट में पहुँचे तो रात के बारह बज रहे थे। काशवी सो रही थी। सब लोग बातें कर रहे थे। पापा बहुत खुश थे। उन्होंने कहा,
"तुमने पार्टी का इंतज़ाम बहुत अच्छा किया था मकरंद। सब लोग तारीफ कर रहे थे।"
मम्मी ने कहा,
"जगह भी बहुत अच्छी थी और खाना भी सबको बहुत पसंद आया।"
नंदिता ने कहा,
"मम्मी सबसे अच्छी बात यह है कि काशवी एकदम गुड़िया जैसी सुंदर लग रही थी। आपने उसके लिए बहुत अच्छी ड्रेस मंगाई थी।"
पापा ने कहा,
"काशवी तो वैसे भी बहुत प्यारी लगती है। बचपन में तुम भी बिल्कुल ऐसी ही थी।"
मम्मी पापा नंदिता के बचपन की बातें करने लगे। नंदिता ने ध्यान दिया कि मकरंद अलग ही खयालों में खोया हुआ है। वह समझ गई कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है। कुछ देर बातें करने के बाद मम्मी पापा अपने कमरे में जाकर सो गए। नंदिता और मकरंद हॉल में बिछे गद्दों पर लेटे थे। काशवी उनके पास ही थी।
देर रात नंदिता की नींद टूटी। काशवी कुनमुना रही थी। उसने उठकर उसे गोद में लिया। कुछ देर तक उसे थपकियां देती रही। काशवी फिर से सो गई। उसे लिटाने के बाद नंदिता का ध्यान मकरंद पर गया। वह वहाँ नहीं था। नंदिता उठी और बालकनी में गई। मकरंद वहाँ खड़ा था। वह किसी गहरी सोच में था। उसे नंदिता के आने का पता नहीं चला। नंदिता उसके पास गई। उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली,
"यहाँ क्या कर रहे हो ?"
मकरंद उसके स्पर्श से चौंक गया। उसने कहा,
"तुम सोई नहीं ?"
"सो रही थी। काशवी जाग गई थी। उसे सुलाने के लिए उठी थी। तुम बताओ यहाँ क्या कर रहे हो ?"
"बस ऐसे ही कुछ देर यहाँ रहने का मन किया।"
मकरंद अपनी बात कहकर चुप हो गया। नंदिता समझ गई कि वह टाल रहा है। वह समझती थी कि मकरंद के मन में क्या चल रहा है। उसने कहा,
"मैं तुम्हारे दिल की बात जानती हूँ। अब तो फ्लैट का सारा काम भी खत्म हो गया है। तुम चाहते हो कि हम लोग यहाँ आकर रहें।"
मकरंद ने नंदिता की तरफ देखा पर बोला कुछ नहीं। नंदिता ने कहा,
"मम्मी पापा से बात करूँ ?"
मकरंद ने कुछ सोचकर कहा,
"नंदिता जब मैं दसवीं क्लास में था तब मौसा जी की बहन के घर किसी फंक्शन में गया था। वहाँ मेरी मौसेरी बहन ने सबके सामने कहा था कि यह हमारे घर में रहता है। इसका कोई घर नहीं है। उस दिन बहुत बुरा लगा था। तब मैंने सोचा था कि जीवन में अपना घर ज़रूर बनवाऊँगा। मैंने यह फ्लैट बुक कराया। तमाम अड़चनों के बाद आखिरकार फ्लैट हमें मिल गया। अब इच्छा तो बहुत होती है यहाँ आने की पर....."
कहते हुए मकरंद रुक गया। नंदिता समझ गई कि वह उसके मम्मी पापा के बारे में सोच रहा है। उसने कहा,
"मकरंद मैं तुम्हारे दिल को समझती हूँ। पर पापा मम्मी से बात तो करनी ही पड़ेगी।"
"नंदिता मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या करूँ ? यहाँ आकर रहना भी चाहता हूँ। फिर लगता है कि मम्मी पापा को दुख होगा। उन्हें मैं दुखी नहीं करना चाहता हूँ। खुद भी खुश नहीं रह पा रहा हूँ।"
"मैं कई दिनों से तुम्हारे दिल की हालत को समझ रही हूँ। इसलिए कह रही हूँ कि मम्मी पापा को बताना पड़ेगा। ऐसा कब तक चलेगा।"
मकरंद ने बालकनी के बाहर देखा। फिर नंदिता की तरफ देखकर बोला,
"एक दिन मैं सोती हुई काशवी को देख रहा था तो मन में खयाल आया कि वह बड़ी हो जाएगी तो अपने जीवनसाथी का हाथ पकड़ कर चली जाएगी। इस विचार से मन में एक दर्द सा उठा। तब मुझे मम्मी पापा की भावनाओं का एहसास हुआ। उसके बाद से मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि मैं उनसे इस बारे में बात करूँ।"
"तो क्या ऐसे ही अपनी इच्छा को मन में दबाए रहोगे ?"
"सोचता हूँ कि कुछ समय और रुक जाऊँ। शायद कोई रास्ता मिल जाए।"
उसकी बात सुनकर नंदिता भी सोच में पड़ गई। दोनों कुछ देर तक वहीं खड़े रहे‌।

छुट्टी का दिन था। नाश्ते के बाद सब लोग एकसाथ बैठे थे। काशवी मकरंद की गोद में थी। पापा ने पूछा,
"अब तो फ्लैट में गृह प्रवेश की पूजा भी हो गई है। आगे क्या करना है ?"
सवाल अप्रत्याशित था। पापा ने आजतक अपनी तरफ से फ्लैट के बारे में कोई बात नहीं की थी। मकरंद और नंदिता दोनों ने आश्चर्य से एक दूसरे को देखा। मकरंद ने जवाब दिया,
"कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या करूँ ?"
पापा ने मुस्कुरा कर कहा,
"ना समझ में आने वाली क्या बात है। तुम्हारी दिली इच्छा है कि अपने फ्लैट में जाकर रहो। तो फिर सोचना क्या है।"
उनकी बात सुनकर मकरंद को और अधिक आश्चर्य हुआ। उसने नंदिता की तरफ देखा। नंदिता भी आश्चर्य में थी। उन दोनों की मनोदशा समझ कर पापा ने कहा,
"उस दिन हम लोग फ्लैट में ठहरे थे। रात में मैं पानी पीने के लिए उठा था। कमरे में पानी था नहीं इसलिए मैं बाहर आया। मैंने देखा कि काशवी सो रही है और तुम लोग वहाँ हो नहीं। मैं बालकनी में देखने गया तब तुम लोग बातें कर रहे थे। तुम्हारी बातें सुनकर मुझे सब पता चल गया। मैंने तुम्हारी मम्मी को सबकुछ बताया।"
मम्मी ने कहा,
"हम दोनों ने इस विषय में बहुत सोचा। हमें लगा कि हम सिर्फ अपने बारे में सोचकर तुम दोनों को जाने नहीं देना चाहते हैं। जबकी तुम और नंदिता हमारे बारे में सोचकर अपनी इच्छा को दबाकर बैठे हो। बस हमने फैसला कर लिया कि हम लोग तुम्हारी इच्छा पूरी करेंगे। तुमने इतने अरमानों से फ्लैट खरीदा है तो अब उसमें जाकर रहो।"
कुछ देर तक मकरंद और नंदिता चुप बैठे रहे। जिस समस्या को लेकर दोनों इतने दिनों से परेशान थे वह इतनी आसानी से सुलझ गई थी। पर अभी भी उनके मन में संकोच था। नंदिता ने कहा,
"आप लोगों के लिए मुश्किल हो जाएगी।"
पापा ने कहा,
"कुछ दिनों तक तो खलेगा। फिर हम आदत डाल लेंगे।‌ तुम दोनों फिक्र मत करो। कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। फिर हम लोग रहेंगे तो एक ही शहर में। एक दूसरे से मिलते रहेंगे। ज़रूरत पड़ने पर मदद करेंगे।"
मकरंद बहुत खुश था। वह जो चाहता था वही हुआ। मम्मी पापा ने खुद उसे फ्लैट में रहने जाने के लिए कहा था। उसने उठकर उन दोनों के पैर छू लिए। पापा ने उसे गले से लगा लिया।

मकरंद और नंदिता की गृहस्ती उस फ्लैट में अच्छी तरह से शुरू हो गई थी। दोनों अपने घर में आकर खुश थे। अक्सर मम्मी पापा उनसे मिलने चले जाते थे। छुट्टी वाले दिन मकरंद और नंदिता काशवी को लेकर मम्मी पापा के पास चले जाते थे। इस तरह अच्छा वक्त गुज़र रहा था। काशवी का पहला जन्मदिन आने में एक हफ्ता रह गया था। मम्मी पापा आपस में उसके पहले जन्मदिन को लेकर बातें कर रहे थे। मम्मी ने कहा,
"अब तो काशवी और सुंदर दिखने लगी है। उसके पहले बर्थडे के लिए मैं बहुत सुंदर सी फ्रॉक चुनूँगी।"
पापा ने खुश होकर कहा,
"बिल्कुल चुनना। मैं कब मना कर रहा हूँ। मैं तो सोच रहा हूँ कि उसका पहला बर्थडे खूब धूमधाम से मनाऊँ।"
"जो भी करेंगे वह मकरंद और नंदिता की रज़ामंदी से करेंगे।"
"बिल्कुल हम सब लोग मिलकर तय करेंगे।"
दोनों बातचीत कर रहे थे तभी पापा के फोन पर एक वीडियो मैसेज आया। उन्होंने वीडियो देखा तो उनकी आँखों में खुशी के आंसू आ गए। उन्होंने मम्मी को दिखाया। वह भी खुशी से रोने लगीं। नंदिता ने वह वीडियो भेजा था। वीडियो में नन्हीं सी काशवी अपने पहले कदम बढ़ाती दिखाई पड़ रही थी। उसके उन बढ़ते कदमों को देखकर दोनों पति पत्नी खुशी से झूम उठे थे।

मकरंद और नंदिता के घर में काशवी ज़िंदगी का उत्साह लेकर आई थी। मकरंद अब भी भविष्य को लेकर प्लान करता था पर दिमाग में यह भी रखता था कि प्लान से हटकर कुछ हुआ तो संभाल लेगा। नंदिता अब दोबारा नौकरी शुरू करने के बारे में सोच रही थी। उसे अपने मम्मी पापा का पूरा सहयोग मिला था। वह और मकरंद भी मम्मी पापा का पूरा खयाल रखते थे। काशवी घर की खुशी और सबकी लाडली थी।

योगेश अपना फ्लैट और कुछ पैसे सुदर्शन के नाम करके गए थे। उसने उन पैसों का सदुपयोग किया था। उसने फ्लैट को किराए पर दे दिया था। जिससे होने वाली आमदनी से वह अपनी पढ़ाई के खर्चे पूरे करता था। वह अब उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने की तैयारी कर रहा था।

समीर ने तय कर लिया था कि वह फैशन डिज़ाइनर बनने का अपना सपना ज़रूर पूरा करेगा। अपने अनुसार जीवन जिएगा। अब उसने लोगों के तानों पर ध्यान देना छोड़ दिया था। समीर को देखकर अमृता का आत्मविश्वास भी बहुत बढ़ गया था। वह हर कदम पर अपने बेटे का हौसला बढ़ाने को तैयार थी।