Towards the Light - Memoirs in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेही एवं प्रिय मित्रों

नमस्कार, प्रणाम, नमन

जीवन की इस गोधूलि में कितनी ही बातें लौट-फिरकर धूल भरे पृष्ठों को झाड़ती-पोंछती सी मन के द्वार खोलकर झाँकने लगती हैं । आपके मन के द्वार की झिर्रियों से भी अवश्य झाँकती ही होंगी, यह मानव-स्वभाव है । इसमें कुछ न तो नया है और न ही असंभव ! हमारे मन में न जाने कितने कोने हैं और किसी न किसी कोने में कुछ न कुछ दबा-पड़ा रहता है, वह कभी भी किसी ज़रा सी ठसक से हमारे समक्ष आ खड़ा होता है और हमें यह सीखना पड़ता है बल्कि यह कहूँ तो अधिक उचित है कि हमें कष्टप्रद घटनाओं को अपने मन से बाहर निकालकर फेंकना पड़ता है, उनसे कुछ सीख लेकर एक नवीन दृष्टि व ऊर्जा को लेकर आगे चलना होता है ।

यदि हम यह कहें कि प्रत्येक पल हम कुछ न कुछ सीखते हैं तो कुछ अनुचित न होगा । इसमें न उम्र है, न जाति -पाँति का भेद भाव, न कोई और कठिनाई । सीखना हमारी आदतों का एक अंग है, अब वह बात भिन्न है कि हम क्या और कैसे, किससे सीखते हैं ?

मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानती हूँ कि स्वयं को हर पल एक नौसिखिया के रूप में महसूस कर सकती हूँ क्योंकि यह जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही आवश्यक भी । मैं सबसे सीख रही हूँ तथा ताउम्र सीखती रहूंगी, यह सीखने की कृपा बने रहना बहुत आवश्यक है । मेरे पिता डॉ. विष्णु शर्मा शास्त्री जिन्होंने तीन विषयों में पी. एचडी, डी.लिट् तथा वेदों पर कार्य किया था, सदा बालपन से मेले रे समक्ष यह बात दोहराते रहे थे कि 'वे हर पल कुछ सीख रहे हैं ' स्वभाविक है मेरे मन में यह विचार पुख्ता हो गया कि हम हर पल सीखते हैं, प्रत्येक से जाने-अनजाने सीखते ही रहते हैं किन्तु उसके प्रति हम जागृत नहीं हैं ।

यदि हम जागृत होते हैं तब वही बातें सीखें जो हमें कई नए मार्गों की ओर ले जाती हैं और जीवन में अग्रसर होने के, विनम्रता के, ज़िदगी के नवीन तरीके दे जाती हैं, सहर्ष जीने का मार्ग रोशन करती हैं । सहर्ष जीना अर्थात हर पल आनंद में जीना ।किसी के कष्ट भरे चेहरे पर मुस्कान का आवरण ओढ़ा सकें, किसीकी आँखों के आँसू पोंछ सकें, किसीके उदास चेहरे पर मुस्कराहट की पवन लहरा सकें ।यही तो जीवन है और जीवन का ध्येय भी ।

ईश्वर की पावन ज्योति से अपने मार्ग पर अग्रसर होते हुए अंधकार में हम रोशनी फैला सकें, मुस्कराहट ला सकें, खिलखिलाहट की गुनगुनाहट का आनंद ले सकें, इससे अधिक और क्या चाहिए ???

जीओ तो ऐसे जीओ, जैसे सब तुम्हारा है। मरो तो ऐसे कि जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं।

अत: इस नवीन ऊर्जा से मन में उमंग भरें यही कल्पना, यही प्रार्थना, यही कामना।

 

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती