COINCIDENCE in Hindi Classic Stories by SWARNIM स्वर्णिम books and stories PDF | संयोग (अन्तिम भाग)

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संयोग (अन्तिम भाग)

"क्या आप कृपया मुझे बताएंगे कि मामला क्या है?"

"मेरा मासिक धर्म फिर बंद हो गया है। 3 महीने हो गए हैं। मुझे कल अस्पताल जाना है। मुझे बहुत डर लग रहा है। अगर मुझे इस बार भी पहले की तरह करना पडेगा, तो बहन, मैं नहीं जी सकती। अगर मैं मर गयी, तो मेरी बेटियां अनाथ होंगे, उनका ख्याल रखना, बहन।"

जेठानी की आँखों से बलिन्द्र आँसु की धाराएँ बहती रहीं।

जब मुझे जेठानी के अधूरे शब्द समझ में नहीं आए, तो मैंने फिर पूछा - "पहले आप को क्यों और क्या हुआ था?"

जेठानी का शरीर उस समय भी कांप रहा था जब वह पुत्र प्राप्ति की आशा में बार-बार गर्भवती होने की अप्रिय घटना बता रही थी और पुत्री होने के बाद परिवार के दबाव में आकर गर्भपात कराना पड़ा। जब मैंने अनुमान लगाया कि वह किस तरह के दर्द से गुज़र रही है, तब मुझे भी बहुत दर्द हो रहा था।

इससे ज्यादा दुख की बात यह थी कि दो दिनों में जब मेरे पिता ने अपनी प्यारी बेटी को एक शिक्षित परिवार के रूप में मुझे ईश घरमे सौंप दिया था, यह सोचकर कि जहाँ महिलाओं का सम्मान करेगें , और वहाँ वह बेटी एक नई बहू के रूप में प्रवेश करी, तो वह स्पष्ट हो गई है कि इस घर की वास्तविकता इतने निच स्तर तक था। जेठानी का यह दर्द जानकर मुझें एसा दर्द हुआ कि यह दर्द कल दुल्हन बनने के बाद अपने जन्म घर को छोड़ने का दर्द से कई गुना ज्यादा था।

मैंने जेठानी को आश्वस्त करते हुए कहा- ''जितना हो सकेगा मैं ऐसा दोबारा नहीं होने दूंगी, चिंता मत करो।''

"नहीं, नहीं, ऐसा ही होने दो, इस घर में बहू की कौन सुनता है? जेठानी ने घबराते हुई कही।
आपको पता चलेगा कि आप जब कल अस्पताल चली जाएंगे। हो सके तो बच्चे को गर्भ में बड़ा होने दें, लेकिन भगवान का विल, जो लिखा है उससे आप कैसे बच सकते हैं?"

कुछ महिलाएं अपनी नई बहू को देखने के लिए कमरे में दाखिल हुईं। जेठानी कमरे से निकल गई। लेकिन जेठानी की कहानी मेरे दिल में बसती जा रही थी।
शादी के बाद दूसरे दिन मैंने यह सोचकर रात बिताई कि इस मामले के बारे में किसे बताऊं और कैसे बताऊं। शादी में जुटे मेहमान भी कम होने लगे थे। प्रथा के अनुसार मुझें अगले दिन मायका जाना था। मायका लौटने की खुशी से ज्यादा जेठानी के ये शब्द "अगर मुझे फिर से वही काम करना पड़ा तो मैं मर जाऊंगी।" मेरे को बहुद परिशान कर रही थी तो मैंने सोते हुए अपने पति से पूछा - "अगर इस दुनिया में बेटियां पैदा नहीं होतीं तो क्या होता?"

यह सोचकर कि ऐसा विचार मेरे मन में इसलिए आया होगा जब मैं अपनी माँ के घर से निकलकर ईश घरमे आयी हूं, मिस्टर जी ने अनिच्छा से मेरे शब्दों को एक तरफ रख दिया। उन्हों ने मेरे प्रश्न के आशय को समझने की कोशिश नहीं की या इसे समझकर भी समझना नहीं चाहा, मुझे समझ में नहीं आया। लेकिन मेरे दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि जेठानी के पेट में पल रही उस मासूम आत्मा की लिंग पहचान को कैसे रोका जाए और उसका इस धरती पर सुरक्षित स्वागत कैसे किया जाए? इसके बारे में सोचने के बाद, अंधेरी रात चमक उठी और एक और नया दिन शुरू हो गया।

जेठ जी और जेठानी अस्पताल जाने की तैयारी कर रहे थे। हमें भी मायका जाना है इसलिए हमने इसकी तैयारी शुरू कर दी। जेठ जी अस्पताल जाने के लिए टैक्सी बुलाने ही वाले थे यह सोचकर कि वह नए जोड़े को घर की कार देगें।
"भैया, हम सब इसी में जाएंगे, और हम फिर अस्पताल के रास्ते से ही तो गुजर जाएंगे, मैंने यह सोचरकर धीरे से कहा कि सब कुछ तब होगा जब हम सब इस कार में जाएंगे।" मेरे पति ने मेरी बात मानने के बाद सभी ने मेरी बात मान ली।

जेठ जी ने कार चलाई। उनके साथ अगली सिट पर जेठानी बैठ गयी, जबकि हम दो नए जोड़े पीछे बैठे। कार तेज गति से चलने लगी। कुछ समय बीतने के बाद मैंने अपने जेठ जी को कुछ बहाना बनाकर गाड़ी रोकी और अपने पति को एक निजी स्थान पर ले गयी और कही - " मैं घर पहुंच जाउ तो मेरे पापा मुझसे जरूर पूछेंगे कि तुमको नया घर कैसा लगा बेटी तो मुझे तब क्या जवाब देना चाहिए?"

मेरे पती ने सहजता से उत्तर दिया, "तुमको जेसा ही लगा वह कहदेना।"
"कल्पना कीजिए कि मेरे पिता को कैसा लगेगा जो आधुनिक और सभ्य समाज के निर्माण के लिए हमेसा लडरहे है, जिसको आधुनिक समाज निर्माण कि खातिर एक मार्गदर्शक माना जाता है, , अगर उन्हें यह पता चला कि, उन्हों ने अपनी बेटी को अन्धविश्वास और खराब संस्कृति से भरे घर में भेज दिया है?"

"अरे, क्या बात कर रहे हो? पतीले झट्से प्रतिप्रश्न किया।

"एक बार अपनी भाभी की आँखों में देखिए, उनकी शरीर की स्थिति को महसूस करिय, और आप स्वयं जान जाओगे कि मेरा क्या मतलब है।"

अभी हमको कारमे वापस जाना देर हुई तो जेठ जी भी वहाँ आ गय।

मैंने आपनी जेठ जी से यह कहने की हिम्मत की - "जब मैं आपको देखती हूं तो आप कितने बहादुर अौर समझदार दिखते हैं। आप कैसे अंधे हो सकते हैं और अपनी फूल जैसी पत्नी को दर्द दे सकते हैं। जिसको यह समाज की कुरूपता और अन्धविश्वास के खिलाफ लड़ना चाहिए। क्या आपको अभी भी एक आदमी होने पर गर्व है? औरत का शरीर निर्जीव है क्या? और कितना टूटना पडेगा, आपको कुछ दिखता भी है या नहीं? यसे कैसे चलेगा?"

जेठानी के आंसू उसके गालों से बहकर उसके सीने तक पहुंचे।
जेठ जी ने उदास होकर कहा - "क्या करें, यह समाज ऐसा है। संस्कारों का पालन नहीं किया तो समाज के खिलाफ होगी।"

"क्या आपको सिर्फ एक बेटा चाहिए? आप समाज, संस्कृति कहकर अपनी पत्नी के शरीर से समझौता कैसे कर सकते हैं?और क्षा अापने सोचम है कि एक दिन अगर उनको कुछ हो जाता और केवल वही दो बेटियां बच जाती हैं, तो आपको कोई फर्क नहीं पड़ता, भैया?"

"अगर मैं बस इसे चाहूँ तो क्या होगा? माता-पिता कहते हैं कि बेटा न होइ तो वंश परम्परा कौन चलाएगा अौर स्वर्ग कि द्वार कैसे खुलेगी"? जेठ जी ने दुख से कह लिया।

जेठ जी की इरादा समझ कर मैंने कहा- ''आज यही होटल में रुकीए, घर कल ही जाना, अौर माता पिता से यह कहिए कि दीदी का पेट में एक बेटा है। बाद में, हम शहर में जाकर काम की तलाश करेंगे, और हम सब साथ रहेंगे। बेटियों की पढ़ाई भी अच्छी होगी, और पैदा होंगे बच्चे को भी हम अच्छे से देखभाल करेगें। अब जो कुछ भी पैदा होता है उसमें खुश रहेगें। अगर हम अच्छी शिक्षा दे सकते हैं, तो हमारी बेटियां भी अच्छा कर सकती हैं। एक नाजुक शरीर को लिंग की पहचान करके बलपूर्वक मारना हमारे लिए अच्छा नहीं है। चलो बाद में जो होता है उसे हम खुशी से स्वीकार करते हैं।"

अस्पताल में कुछ देर इंतजार करने के बाद हमारी बारी थी। जेठानी चेकअप के लिए गई थी। हालांकि बच्चा सुरक्षित है, लेकिन डॉक्टर ने बताया कि मां की तबीयत नाजुक है। डॉक्टर ने कुछ दवा दी, हम दवा लेकर अस्पताल से निकल गए। हमने एक अच्छे होटल में कमरा बुक किया और जेठ जी औरजेठानी को आराम करने को कहा। फिर हम दोनो कार लेकर अपने मायका चले।

शादी के कुछ समय बाद हम दोनों के अपने-अपने काम पर लौटने का दिन आ गया। जीवन का एक नया अध्याय शुरू करते हुए, हम शहर लौट आए। जेठ जी के लिए शहर में अच्छी नौकरी खोजने की जिम्मेदारी भी हमारी थी। दिन बीत गए। शहर में अभी तक जेठ जी के लिए काम की व्यवस्था नहीं हो पाई थी।

गांव में जेठानी की डिलीवरी का समय आ गया था। गांव में पास में कोई अच्छी अस्पताल नहीं थी तो हम जेठानी को लेने गांव गए। हम अपने जेठ जी और जेठानी के साथ शहर लौट रहे थे।
अचानक जेठानी को प्रसव पीड़ा होने लगी। प्रसव पीड़ाअस्पताल पहुंचने तक लगातार बना रहा। जेठानी की हालत को समझने के बाद डॉक्टर ने कहा- ''उनके शरीर में खून की मात्रा बहुत कम हैफ वह नॉर्मल डिलीवरी करने की स्थिति में नहीं है. ऑपरेशन जरूर करवाना चाहिए।''

अस्पताल के दस्तावेजों की व्यवस्था करने के बाद जेठानी को ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। कुछ देर इंतजार करने के बाद नर्स बच्चे को गोद में लेकर आई और जेठ जी के हाथ में रख दी। एक पुत्र का जन्म हुआ था। जेठ जी की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। बाद में डॉक्टर भी आए और कहने लगे- ''माफ करना, हम बच्चे की मां को नहीं बचा सके।''

परिवार के बेटे ने जैसे ही इस धरती पर आकर अपनी आंखें खोलीं, मां ने अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर लीं।