Devil's Queen - 6 in Hindi Drama by Poonam Sharma books and stories PDF | डेविल्स क्वीन - भाग 6

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डेविल्स क्वीन - भाग 6

“वोही हो रहा है जो तै हुआ था,” विजयराज जी ने बिना किसी भाव के कहा।

“पर....कैसे? कैसे हो सकता है यह? मेरा मतलब है की वोह डील तो—” अनाहिता बोलते बोलते रुक गई। उसे सब फिर याद आने लगा था। उसकी आँखों में फिर नमी बन ने लगी थी। वोह नही दिखाना चाहती थी की उसका नाम मात्र लेने से वोह फिर अतीत में चली जाती थी। “अक्षरा तो है ही नही वो डील पूरी करने के लिए। फिर—”

इस बार उसे उसके पिता ने बोलते बोलते रोक दिया था।
“मैं अच्छी तरह से जानता हूं की अक्षरा यहाँ नही है।”

इतना रूखा व्यवहार देख कर अनाहिता के शरीर में सरसरी सी दौड़ गई।

“पर डील तो हुई थी। और वोह डील तुम पूरा करोगी।” विजयराज जी ने सीधा अनाहिता की आँखों में देखते हुए कहा। उन्हे ज़रा भी अपनी कही हुई बात का पछतावा नहीं था। और ना ही उनके मन में अनाहिता के लिए कोई दया के भाव दिख रहे थे।

“पर चार साल बीत गए है यह डील हुए। और...और अक्षरा को गए दो साल हो चुके हैं। उसके जाने के साथ ही यह डील खतम हो जानी चाहिए थी।” अनाहिता अभी भी यही समझ रही थी की अब उस डील का कोई मतलब नहीं। अगर होता तो दो साल पहले ही उसका क्लेम होना चाहिए था। अब दो साल बाद आने का क्या मतलब? उसे तो लगा था की डील अब खतम, अब अभिमन्यु कभी नही आयेगा।

“तो तुम मुझे माफ कर दो की मैं जल्दी नही आ पाया,” अभिमन्यु ओबरॉय ने यूहीं बैठे हुए कहा। उसकी आवाज़ धीमी थी, उसमे शांति थी।

अनाहिता ने अभिमन्यु की तरफ घूर कर देखा। उसे उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने जल्द ही अपनी नज़रे उस पर से हटा ली और अपने पिता की तरफ कर ली की शायद अभिमन्यु को उसका इग्नोर करना बेज़ती लगे और वोह यहाँ से चला जाए।

“मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा। मुझे आपकी इन बेतुकी बातों पर कोई इंटरेस्ट नहीं है। आपने मुझसे वादा किया था की अगर मैं आपकी सब बात मानू, आपके साथ यहाँ रुकूं, आपके मुताबिक अपनी पढ़ाई करूं, कॉलेज जाऊं, तो उसके बाद मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकती हूं। मेरी ग्रेजुएशन पूरी हो चुकी है। अब मैं आज़ाद हूं। मुझे नही रहना इस घर में। आपने कहा था की मैं जा—”

“बहुत हो गया।” विजयराज जी गुस्से से भड़कते हुए उठ खड़े हुए। उनकी आँखें गुस्से से पूरी बड़ी हो चुकी थी। उनके होंठ टाइट और अंदर की तरफ मुड़ गए। गर्दन को नसें तन गई।

अब किसी भी वक्त उनके गुस्से का प्रकोप अनाहिता को झेलना पड़ सकता था।

अनाहिता को लग रहा था की अभिमन्यु के सामने, मतलब बाहर वाले के सामने उसने काफी बहस कर ली थी अपने पिता से। तो अब क्या सज़ा देने वालें हैं इसके लिया? पर इसमें भी गलती अनाहिता की तो थी ही नहीं। वोह क्या जानती थी की घर आने के बाद उसे अभिमन्यु सर्प्राइज में मिलेगा। अगर उसके पिता ने उस से पहले ही बात कर ली होती तो किसी के सामने यह तमाशा नही होता। अगर अकेले में पहले ही बात हो गई होती तो अभिमन्यु को यहाँ आना ही नही पड़ता।

अनाहिता ने एक नज़र अभिमन्यु की तरफ देखा। ऐसा लग रहा था की वोह मानो यहाँ बैठे बैठे बोर हो गया है। वोह निशब्द सा बिना किसी भाव के यूहीं बैठा था की कब इनका फैमिली ड्रामा खतम हो और वो अपना काम करे जिसके लिए आया है।

“मैं नही समझ पा रही आप करना क्या चाहते हैं,” अनाहिता की नमी बढ़ने लगी थी।

“इसमें ना समझने वाली क्या बात है? तुम मिस्टर अभिमन्यु ओबरॉय से शादी कर रही हो। बस सिंपल।” विजयराज जी ने टेबल पर ज़ोर से हाथ मारते हुए कहा।

तेज़ आवाज़ से अनाहिता ठिठक गई। उसके पिता ने उसके सामने फैसला सुना दिया था।

तभी उसके पीछे से कुछ आवाज़ आई। उसने पलट कर देखा। मिस्टर मनोज देसाई दरवाज़ा खोल रहे थे।

अनाहिता समझ गई की मीटिंग खतम हो गई। उसके पिता ने अपना फैसला उसे सुना दिया है। और अब उसे बस उनका फैसला मानना है, चाहे कुछ भी हो जाए। उसे अब और कोई सवाल करने का हक नहीं था।

पर उसके जेहन में अभी भी बहुत से सवाल थे।

वोह बचपन से कटपुतली बनी हुई थी और अब उसे और यह खेल नही खेलना था।

“जाओ ऊपर अपने कमरे में और अपना सामान बांधो। कम से कम एक हफ्ते के लिए। बाकी का सामान तुम तक भिजवा दिया जायेगा।” विजयराज जी के यह शब्द अनाहिता के कानों में पड़ते हुए उसके माथे पर बल पड़ गए।

उसने पलट कर वापिस अपने पिता की ओर देखा।

“नज़रों से नज़रे मिलाते हुए उसने पूछा, “सामान? क्यों?“ अब उसकी चिंता और बढ़ने लगी थी। एक के बाद एक उस पर बम फट रहे थे।

“जब तक हमारी शादी नही हो जाती, तब तक तुम मेरे साथ रहोगी,” अभिमन्यु ओबरॉय ने अनाहिता से कहा। अभी भी वोह अपनी जगह से एक इंच भी नही हिला था।

अनाहिता का अब सिर ही चकराने लगा। नही नही उसकी पूरी जिंदगी ही चकराने लगी थी। दो पल में उसकी पूरी जिंदगी पलट गई थी।

“लेकिन क्यूं?“ अनाहिता ने अभिमन्यु की ओर देखते हुए पूछा।

“बहुत सवाल पूछती हो,” अभिमन्यु मुस्कुराने लगा। पर वोह मुस्कुराहट सौम्य या दयालुता की नही थी। वो मुस्कुराहट उसे चेतावनी दे रही थी की तुम बहुत सवाल पूछती हो। अब तुम गई।

“है वजह इसके पीछे भी। जो मैं अभी तुम्हे नही बता सकता।” विजयराज जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा। “जाओ और अपना सामान बांधो। तुम अभी जा रही हो अभिमन्यु के साथ। वो तुम्हारा रात भर से इंतजार कर रहें हैं। मैं नही चाहता की उन्हे तुम्हे लेने दुबारा आना पड़े।”

और बस आज के लिए विजयराज जी और अनाहिता के बीच काफी बहस हो गई थी। अब तक की सबसे लंबी बहस। और उसे फैसला सुना कर जाने को कह दिया था विजयराज जी ने।

सिर्फ इस मीटिंग से ही नही, बल्कि इस घर से, उसके अपने घर से, उनकी जिंदगी से निकल जाने को कह दिया था।















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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा