फिर से दुसरे डॉक्टर से मिले, सोचा सरकारी हॉस्पिटल मे ऑपरेशन करवा ले। पर उसके लिए जामनगर या तो अहमदाबाद ये दो हॉस्पिटल मे जाने के लिए बोला। एक पहेचान वाले ने जामनगर हॉस्पिटल मे कॉल करके साक्षी के रिपोर्ट के बारे मे बताया। वहाँ के कर्मचारी ने बोला की कोरोना के केस बहोत है। इसलिए कोई भी डॉक्टर ऑपरेशन मे ठीक से ध्यान नहीं देगा। बेवजह बार बार धक्के खाने पड़ेगे। वो रास्ता साक्षी के लिए बंध हो गया।
अब तो साक्षी का पैर dislocated (स्थान से हता हुआ) होने लगा था। जिससे उसे बहोत दर्द होता। फिर से locate (स्थान पर) होने मे कभी एक दिन तो कभी 2-3 दिन लग जाते। साक्षी को इस दर्द को सहने की आदत पड़ गई थी। इसलिए किसी को कुछ बताती नहीं थी। यह सिलसिला यू ही चलता रहेता। तीन महीने के बाद.....
साक्षी के जीजु का छोटा भाई (Mr Rathod) उसने साक्षी और उनके पापा की बहोत मदद की थी। साक्षी ने चोट लगने के बाद मेडिक्लेम करवाया था। साक्षी को पता था कोई भी मेडिक्लैम पुरानी चोट पर नहीं चलता है। अगर मेडिक्लैंम से ऑपरेशन करवाना है तो उसे झूठ बोलना पड़ेगा, पर साक्षी को झूठ पसंद नहीं है। उसका मन ये करने को तैयार नहीं था। फिर भी दुसरे डॉक्टर और सबके कहने पर उसने हामी भरी। उसके बाद मि.राठौड़ राजकोट के हॉस्पिटलो मे पता करने मे लग गए। पर साक्षी का मन झूठ बोलने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने मि.राठौड़ को मेसेज किया की 'मे झूठ नहीं बोलुगी' इस बात का मि. राठौड़ को बहोत गुस्सा आया क्युकी वो कहीं दिनों से, यहाँ से वहाँ हॉस्पिटल के चक्कर लगा रहे थे।
मि. राठौड़ जो भी कर रहे थे वो साक्षी का अच्छा सोच कर रहे थे। और साक्षी झूठ बोलने के लिए तैयार नहीं थी। अपने गुस्से को साइड मे रखकर वो फिर भी हॉस्पिटल के चक्कर लगाते थे। मि. राठौड़ ने साक्षी के पापा को राजकोट आने को बोला। पापा ने वहाँ जाने का सोच लिया था, इसलिए साक्षी कुछ बोली नहीं।
1-2-2022 को ऑपरेशन के लिए राजकोट गोकुल हॉस्पिटल मे दिखाने गए। साक्षी अपने पापा के साथ एक दिन पहले राजकोट पहोच गए थी। दूसरे दिन सुभह उसके मामा के साथ हॉस्पिटल गए। मि. राठौड़ भी अपनी जॉब से छुट्टी लेके हॉस्पिटल आ गए। नाम लिखवाया फिर.....
साक्षी के साथ डॉक्टर से मिलने कोई एक ही जा सकता था। साक्षी के पापा ने मि.राठौड़ को साक्षी के साथ भेजा। वो दोनों अंदर गए, डॉक्टर ने साक्षी के पैर को चेक किया। डॉक्टर उससे सब पूछ रहे थे और वो बार बार मि.राठौड़ के सामने देख रही थी। फिर मि.राठौड़ ने डॉक्टर को पुरानी रिपोर्ट दिखाई और मेडिक्लैंम के बारे मे बताया। डॉक्टर ने बोला ऑपरेशन हो जायेगा। मेडिक्लैंम का procedure चालु कर दीजिये। डॉक्टर के कहने पर यहाँ से वहाँ भागदोड करके शाम तक सारे रिपोर्ट करवा लिए। सिर्फ क्लेम का अप्रूवल का इंतजार था। पर उनलोगों का मैसेज आया की हॉस्पिटल मे पहले पैसे भर दो, बादमे आपको मिल जायेंगे। फिर से वही के वही आ गये।
दो- तीन दिन मि. राठौड़ ने बहोत कोशिस की उनलोगों को समजाने की पर कुछ भी नहीं हुआ। दो दिन के बाद साक्षी के पापा वापस अपने गाँव चले गए। और साक्षी वही अपनी बहन के घर रुकी। पर वो ठीक नही थी, खाना भी ठीक से खाती नहीं थी और किसी को अपने मन की बात बताती नहीं थी।
साक्षी और उसका परिवार मध्यम वर्ग का था। एक लाख उनके लिए बहोत बड़ी रकम थी। कोरोना की महामारी मे किसीसे इतने पैसे मांग भी नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने ने अहमदाबाद जाने का सोच लिया। साक्षी को कॉल करके बता दिया। दो दिन के बाद अहमदाबाद जाना है।
अचानक एक पहेचान वाले का कॉल आया उन्होंने बताया, राजकोट मे आयुस्यमान कार्ड से ऑपरेशन हो सकता है। ये कॉल किसी चमत्कार से कम नहीं था। उसी दिन हॉस्पिटल के बारे जान लिया। दुसरे दिन साक्षी के जीजु डॉक्टर से मिले और साक्षी के पापा को फिरसे राजकोट आने के लिए बोला।