मोहिनी मैडम की बातें सुनकर राहुल का गुस्सा पिघल कर अब दर्द और पश्चाताप में बदल चुका था। उसकी आँखें रो रही थीं। यह सुनकर खुशबू की आँखें ज़मीन में गड़ी जा रही थीं। उसमें हिम्मत ही नहीं थी अपनी आँखों को किसी से मिलाने की।
मोहिनी ने कहा, “राहुल जी हम इस समय आपकी कोई मदद नहीं कर सकते और हाँ हम ऐसे ही किसी को किसी के भी हवाले नहीं करते। सब जांचने परखने के बाद ही निर्णय लेते हैं। फिर यह तो आप ही सोचिए कि आपके माता-पिता इस तरह क्यों चले गए और वह भी आप को बताए बिना। हम पर गुस्सा करने के बदले स्वयं के अंदर तलाशिये। लेकिन हाँ यदि वह कभी यहाँ आए और उन्होंने कहा तो हम आपको अवश्य ही सूचित करेंगे। अब आप लोग जा सकते हैं।”
राहुल और खुशबू वहाँ से जा रहे थे, एक ऐसा दुःख अपने साथ लेकर, जिसका कोई अंत नहीं था। जो कभी भी ना तो भुलाया जा सकता था ना ही माफ़ी के लायक ही था। मुरली और राधा ने तो अब भी वही किया था, जिसमें उन्हें लग रहा था कि उनके बच्चों की भलाई है। उनकी उपस्थिति के कारण यदि उनके बच्चों के जीवन का सुख चैन छिन जाता है तो फिर उनका दूर चले जाना ही बेहतर है। फिर इतने प्यार से यदि कोई उन्हें गोद ले रहा है तो इसमें बुराई ही क्या है। वह तो थे ही केवल और केवल प्यार के भूखे।
उधर विजय और रेखा ने मुरली और राधा का जोरदार स्वागत किया। उन्हें सच में अपने माता पिता का स्थान दिया।
मुरली ने एक दिन राधा से कहा, “राधा भाग्य ऐसे भी दिन दिखाएगा कभी सोचा ना था। हमारा ही खून हमें… ख़ैर छोड़ो दुनिया में अभी भी बहुत अच्छे लोग मौजूद हैं। इसीलिए इन पराये बच्चों ने हमें अपना बना लिया। यदि इंसान का दिल बड़ा हो तो परायों से भी अपनत्व हो जाता है।”
“हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। यह तो विजय और रेखा ने साबित कर ही दिया है।”
उधर खुशबू और राहुल जब घर पहुँचे तो उन्हें आज पहली बार सच में अपने माता-पिता की कमी लग रही थी। खुशबू जिन्हें भीड़ कहती थी, आज उसी भीड़ के लिए वह रो रही थी। उसे आज उसका वही छोटा-सा घर बिल्कुल खाली लग रहा था, सुनसान लग रहा था। आज ना ही उसके स्वयं के माता-पिता उससे ख़ुश थे और ना ही सास-ससुर। आज वह अपने आपको कोस रही थी और बिल्कुल अकेलापन महसूस कर रही थी। अपनी ही नज़रों में वह दोनों ही गिर गए थे। अपनी ही नज़रों में गिरने के बाद उठना बहुत ही मुश्किल होता है। इस ग़लती की चुभन आजीवन उनके साथ रहेगी और इस ग़लती की माफ़ी वह ख़ुद को भी नहीं दे पाएंगे। अब उनके पास पछताने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं था।
खुशबू और राहुल घर आने के बाद मुरली और राधा के कमरे में गए। वह कमरा बिल्कुल खाली था। घड़ी की सुईयों ने चलना बंद कर दिया था मानो उसकी धड़कन भी उनके साथ ही चली गई थी। दीवार पर उनकी एक तस्वीर लटक रही थी। उस तस्वीर के सामने वह घुटने टेक कर बैठ गए। मन ही मन उनसे माफ़ी मांगी। उसके बाद राहुल ने बाहर निकल कर उस खाली कमरे को बंद कर दिया, इस उम्मीद में कि कभी तो वे वापस आएंगे। यह खाली कमरा हमेशा उन्हें उनकी ग़लती की याद दिलाता रहेगा।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
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