मैं राजन, आप सब ने मेरी कहानी "अंधेरा कोना - आखिरी साहस" पढ़ी होगी, मैं M. Sc Biomedical Science, 2nd year मे हू, मैं हमारी कॉलेज के बग़ल मे आयी हमारी ही कोलेज की होस्टल मे रहता था जिसका नाम "मिहिर होस्टल ब्लॉक" था इस साल के जून माह में हम सभी स्टूडेंट की बिल्डिंग चेंज हुई और हमको "भृगु होस्टल ब्लॉक " मे शिफ्ट होना था l वो एक अच्छी होस्टल थी, वहां पांच मंजिल थी और हम सबको पांचवी मंजिल पर कमरे दिए गए थे, वहाँ दो - दो लिफ्ट थी जिसके कारण हमारा आना जाना अच्छा रहता था, हमारी होस्टल के पीछे एक छोटा सा कमरा था जिसपर हमेशा से ताला लगा रहता था, हमारे रेक्टर और मेरी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. सुबोध पाटिल सर ने उस कमरे में जाने से मना किया था, उन्होंने कहा था कि उस कमरे में कभी भी मत जाना और न ही उसे खोलने की कोशिश करना l मुजे नई होस्टल मे मजा आता था लेकिन पुरानी होस्टल याद भी बहुत आती थी, हमारी होस्टल का परिसर बहुत बड़ा था, रात को मोबाइल मे गाना सुनने के लिए नीचे आता था l
एक दिन की बात है, मैं नीचे गया उस कमरे के पास होकर गुजरा तब मुजे वहां कुछ आवाज आई, मैं उधर नजदीक गया तो वहां कुछ लड़के कोरस मे गाना गा रहे थे, "दिल, सम्भल जा जरा, फिर मोहब्बत करने चला है तू" l मुजे सुनने में अच्छा लगा, उस समय मैंने देखा कि दरवाजे पर ताला नहीं था लेकिन बाहर से कुंडी लगी हुई थी, मैंने दरवाजा खटखटाया और आवाज लगाई
मैं : हैलो, कौन है आप लोग? आप अच्छा गाते हैं, मुजे भी जॉइन करना है आपको l
अंदर से आवाज आई, : भाई हम लोग यहा पास के ही होस्टल से है l
अंदर से : आप भी आ जाइए, जॉइन अस l
मैं ये सुनकर दरवाजा खोल कर अंदर गया, मुजे लगा कि किसीने बाहर से मज़ाक मे ही दरवाजा बंद कर दिया, मैंने दरवाजा खोला, दरवाजा खोल कर मैं जब अंदर गया तो मैं चौंक गया, वहां उस कमरे में कोई भी इंसान नहीं था, मैं सोच मे पड़ गया कि मेरे साथ बात कौन कर रहा था!! मैं वहाँ से भाग निकला और अपने कमरे में चला गया l उस घटना को मैं भूल गया, मुजे लगा कि कोई कमरे के पीछे वाली दीवार से बात कर के मज़ाक कर रहा होगा l एक दिन की बात है, नीलेश तावडे मेरी कॉलेज मे पढ़ता था, वो मेरा रूम मेट भी था, एक दिन दोपहर को वो उठा, उठते ही उसने मेरी बेड पर खून से सनी हुई लाश दिखी जिसका मुह बुरी तरह खराब हो चुका था, वो उठ गया और भागकर दरवाजा खोलने की कोशिश करने लगा, दरवाजा बाहर से बंध था वो जोर करने लगा, अचानक दरवाजा खुला और सामने मैं खड़ा था, वो मुझसे टकरा गया और मुजे गले लगा लिया, और रोने लगा, उसने मुजे सारी बात बताई, वहां मेरे बेड पर भी कोई लाश नहीं थी l मैंने उसे समझाया तब जाके वो शांत हुआ l
उसके 2 दिन बाद हमारा एक और रूममेट ईमरान के साथ भी ऐसा कुछ हुआ, वो नहाने के लिए गया, लेकिन आधे घंटे तक वो बाहर नहीं निकला फिर अचानक दरवाजा जोर से खुला और ईमरान भागते हुए बाहर निकला, उसकी सांसे फूल गई थी मैं और नीलेश दोनों ने उसे पकड़ लिया और बिठाया, उसने बताया कि नहाते समय नल बँध ही नहीं हो रहा था और पानी बाथरूम की छत तक चला गया और ईमरान डूबते डूबते बचा, और बाथरूम मे से दरवाजा अचानक गायब हो गया था और वहा दीवार आ गई थी, ईमरान का कहना था कि वो बाहर कैसे आया उसे भी नहीं पता l थोड़े दिन बाद कमलेश के साथ भी यही हुआ वो हमारे बाजू वाले कमरे में रहता था और वो लिफ्ट मे अकेला नीचे जा रहा था तब लिफ्ट जोर से गिर पडी और इस तरह नीचे जा रही थी कि मानो हमारी होस्टल मे 30-33 जितनी मंजिल हो और वो उपर से नीचे जा रही हो l उसे महसूस हुआ कि लिफ्ट के भूर्जे उड़ गए, लेकिन फिर एहसास हुआ कि लिफ्ट सलामत है l
एक दिन मैं हमारे रेक्टर सर के पास गया डॉ. सुबोध सर को मैंने डरते डरते सारी बात बताई, उनको मैंने ये भी बताया कि वो दरवाजा मैंने गलती से खोल दिया है, ये सुनकर सर हैरान रह गए लेकिन अजीब बात ये थी कि उन्होंने गुस्सा बिल्कुल भी नहीं किया!! उन्होंने परेशान होते हुए कहा कि " अब इस चीज का एक ही सोल्यूशन है, तुम खुद उस दरवाजे के पास जाओ और उसे बंद कर दो, बाकी कुछ करना नहीं है" मैंने बिल्कुल वैसा ही किया, उस कमरे के पास गया तो मुजे फिर से वो गाने की आवाज आने लगी, और मुजे कोई बुलाने लगा, अंदर से आवाज आई की, "कमरा बंध मत करो, हमे अच्छा नहीं लगता, तुम भी अंदर आ जाओ, मज़ा आएगा, अरे आओ न यार " मेरे पैर थर थर कांपने लगे थे मैंने दरवाजा बंध कर दिया, और फिर से कुंडी लगा दी l फिर से वो गाने की आवाज आने लगी और ऐसे ही वहां से भाग निकला l
मैंने फिर से सुबोध सर के पास जाकर वो बात कही, तब उन्होंने कहा कि, वहां दो ग्रुप हुआ करते थे वो दोनों ग्रुप हमेशा झगड़ा करते थे एक दिन वहां उस कमरे में कुछ लोग गाना गा रहे थे वहां दूसरे ग्रुप वाले आ गए उन लोगों के बीच बहस इतनी बड़ी हो गई कि दोनों ग्रुप एक दूसरे को मार डालने पर उतर आए, उसमे कुछ बच्चे ज़ख्मी हुए जब कि कुछ लोगों की मौत हो गई, जो लोग जिंदा बचे उन पर कोर्ट में मुक़दमा चला और जेल भी हुई, तब से वो कमरा बंध है, मैंने वहाँ ताला लगाया था लेकिन कोई न कोई ताला तोड़ देता है, मुजे भी पता नहीं चल पाया है कि कौन है वो, अब से कभी वो कमरा मत खोलना l मैं फिर वहां से चला गया,जब भी रात के सन्नाटे मे, जब ठंडी हवा चल रही हो और मैं मेरे मोबाइल मे गाना सुनने के लिए नीचे जाता हू तब उस कमरे में से मुजे कई बार गिटार बजाने की आवाज आती है!! लेकिन तब मुजे राहत इंदौरी जी की वो लाइंस याद आती है "बुलाती है, मगर जाने का नहीं"