"ना - ना अभी बहुत छोटी है तारा उसे कुछ समझ नहीं.. और घर पर तो मैं देख लेती हूँ, बाहर.. ना - बाबा ना।" तारा की माँ ने साफ इंकार करते हुए कहा।
" ओहो! कौन-सा मैं अभी कह रहा हूँ…!" पिताजी बात पूरी करते इससे पहले ही माँ ने उन्हें टोकते हुए कहा।
" कौन-सा इसे यहाँ रहना है, ससुराल में जाकर कर लेगी जो करना है। "
" क्यों यहाँ क्यों नहीं, मैं तो तारा की शादी तभी करूँगा जब ये अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी… अब क्या करना है ये जाने…! "
पिताजी ने तारा की माँ को अच्छी तरह समझा दिया कि तारा जो काम करना चाहेगी वो उसे शुरू करके देंगे आगे की आगे देखी जाएगी। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि ज्यादा काम लेने की जरूरत नहीं और तारा की कमाई का एक भी रुपया भी खर्च मत करना। भविष्य में बेटी के काम आएंगे। माँ ने पिताजी की बात पर पूरी तरह सहमति जताई।
तारा की मम्मी ने "हम्म" कहकर बात खत्म करनी चाही पर ना जाने पिताजी के मन में अचानक किस शंका ने जन्म ले लिया था। उन्होंने कहा - "मुझे ये आदमी कुछ ठीक नहीं लगा। "
"आपको तो खुद के अलावा कोई ठीक नहीं लगता। " कहते हुए तारा की मम्मी उठकर रसोई घर की तरफ चल दी।
इधर तारा ये सोचकर खुशी से फूली नहीं समा रही थी कि उसके कढ़ाई किए दुपट्टे फिल्मी हिरोइनें पहनेंगी।
दो-दिन बाद उस व्यक्ति ने बहुत ही अच्छे कपड़े और चटख रंग की दस चुन्नियाँ भिजवाई। दूसरे दिन माँ ने तारा को कढ़ाई के लिए जरूरी समान लाने बाजार भेजा । बाजार ज्यादा दूर नहीं है और दुकान वाला भी जाना-पहचाना है इसलिए सिलाई - कढ़ाई का सारा सामान लेने तारा अकेली ही जाया करती है।
दूसरे दिन तारा सामान लेने गई वहाँ दुकान में उसे वही सूट बूट वाला आदमी मिला जिसने चुन्नियाँ बनाने को दी थी ।
हालांकि तारा ने उसे देख लिया पर फिर भी वो उसे अनदेखा कर दुकान में समान देख रही थी कि वो आदमी उसके पास आ गया।
पहले तो तारा घबरा-सी गई कि इस तरह अनजान व्यक्ति से बात करते कोई देखेंगे तो क्या कहेंगे।
फिर उसने सोचा कि बता दूंगी कि बंबई से आए है और फिल्मी हिरोइनों के लिए ड्रेस सप्लाई का काम करते है। और अपनी फिल्मों की हिरोइनों की चुन्नियाँ स्पेशल मुझसे कढ़ाई करवाते है। वैसे भी उम्र में मुझसे बहुत बड़े हैं कोई कुछ नहीं सोचेगा।’’
उस आदमी ने तारा के काम की तारीफ करते हुए बातों ही बातों में तारा को फिल्मी दुनिया की सैर करवा दी। उसने तारा को अपनी लच्छेदार बातों में ऐसा उलझाया कि तारा तो मुंबई जाने के सपने देखने लगी। दुकान वाले के पास भीड़ ज्यादा थी इसलिए किसी का ध्यान उनकी बातों पर नहीं गया पर तारा को घर लौटने में बहुत देर हो गई।
घर आने पर माँ ने तारा से देर से आने का कारण पूछा तो तारा ने दुकान में भीड़ होने की बताई। थोड़ी देर बाद उसने ऊपर अपने कमरे में जाकर कढ़ाई का सारा सामान एक जगह जमाकर रख दिया। रेशमी धागे सामने होने के बाद तारा के सपनों में मिल जाता है रंगों का इंद्रधनुष और खिलखिला उठते हैं नरम रेशम की तरह।
क्रमशः
सुनीता बिश्नोलिया