Ek Ruh ki Aatmkatha - 9 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 9

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एक रूह की आत्मकथा - 9

नशा! नशा !!नशा!!!

जाने यह शराब का नशा था कि क्लब के रोमांटिक वातावरण का या फिर समर के प्यार का या फिर लंबे समय से पुरुष -सुख से वंचित एक युवा नारी देह का!

मैं मदहोश थी या बेहोश,पता नहीं।कोई अलग ही दुनिया थी।अब तक जी गई दुनिया से अलग।सब कुछ गोल -गोल घूम रहा था और मैं उसके साथ चक्कर खा रही थी।कब समर मुझे होटल के कमरे में ले आया।कब मेरे कपड़े बदले,मुझे कुछ पता नहीं था।मदहोशी में बस इतना पता चल रहा था कि रौनक मेरे पास लेटा है।वह मुझे चूम रहा है ।मेरे अंग -अंग सहला रहा है और मुझे अच्छा लग रहा है ।बहुत- बहुत अच्छा लग रहा है।मेरी देह जैसे शराब का बाथ -टब हो जिसमें रौनक लोट -पोट रहा है।फिर मैं पूरी तरह होश खो बैठी।

देर रात जब आँख खुली तो मेरे होश उड़ गए ।कम्बल से ढंकी मेरी देह पर एक भी कपड़ा नहीं था और मेरी बगल में समर भी आदम अवस्था में ही बेसुध सो रहा था। उसके माथे पर पसीने की बूंदें थीं ।मैं थोड़ी देर आश्चर्य से उसे देखती रही।पहले तो कुछ समझ नहीं आया ,फिर सब समझ में आ गया कि समर और मेरे बीच अब कोई परदा नहीं रहा। कितना गलत हो गया हमारे बीच। मैंने घुटनों में अपना चेहरा छुपा लिया और सिसकने लगी।

मेरी सिसकी की आवाज से समर जाग गया।उसने मुझे अपने सीने पर खींच लिया।

-क्यूँ रो रही?ये सब बहुत स्वाभाविक चीज है।एक दिन होना ही था।हमारे बीच कैसी दूरी?

'क्या ये रौनक के साथ छल नहीं ?'

-बिल्कुल नहीं,रौनक के जीवित रहते यह गलत होता।मरे के साथ मरा नहीं जाता।जिंदा आदमी की देह की अपनी जरूरतें होती हैं,उसे पूरा न करना गलत है।इतने सुंदर युवा देह को संयम की आग में जलाकर भस्म कर देना गलत है।

जानती हो सुंदर से सुंदर नाव नदी में उतरती है।तमाम कष्ट उठाती है तभी पानी ने उतरने का सुख पाती है।यदि वह तट पर बंधी रहे,पानी में उतरे ही नहीं, तब भी एक समय बाद पुरानी पड़कर नष्ट हो ही जाएगी।पानी में उतरने वाली नौका भी पुरानी पड़कर नष्ट होती है,पर उसे यह सुख -संतोष तो होता है कि उसने जीवन जिया था।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था,पर समर से शारीरिक समीपता मुझमें फिर से एक आग भर रही थी।मुझमें एक प्यास जगा रही थी।मैं अनजाने ही उससे चिमटती जा रही थी।समर भी मेरी चाहत को महसूस करते हुए मुझे सहला रहा था और बातें भी किए जा रहा था।वह स्त्री साधने की कला में माहिर था।

-कटोरा दूध से भरा हो,तो अच्छा है न कि किसी भूखे के पेट में चला जाए,वरना यूं ही रखे फटकर नष्ट हो जाएगा।कहते हुए उसने मेरे खुले सुडौल स्तनों की तरफ देखा और शरारत से मुस्कुराया।

मैंने शरमाकर अपने और उसके ऊपर कम्बल खींच लिया।अब मैं सिर्फ एक औरत थी और वह एक मर्द।बाकी सबकुछ सारहीन था ...व्यर्थ था।उस दिन क्या अगले एक सप्ताह हम कमरे से बाहर निकले ही नहीं ।गनीमत थी कि शूटिंग खत्म हो चुकी थी और यूनीट के लोग वापस जा चुके थे।हम दोनों ने ही अपने -अपने घर 'अभी और शूटिंग बाकी होने' का बहाना बनाया और एक -दूसरे को देखकर मुस्कुराए।हम एक साथ कुछ दिन रहना चाहते थे ,साथ घूमना चाहते थे और एक- दूसरे को इस नए रूप में समझना चाहते थे।

प्यार भी अजीब चीज होती है यह आदमी को कभी बच्चा बना देती है कभी किशोर तो कभी युवा।हम तीनों रूपों को जी रहे थे।कभी बच्चों की तरह लड़ते, कभी किशोरों की तरह शरारतें करते और फिर युवा की तरह प्यार करते। प्यार को लेकर मेरी जितनी भी रूमानी कल्पनाएं थी ,समर बिना बताए ही उसे पूरी कर रहा था।शायद मैं भी ऐसा ही कुछ कर रही थी ,तभी तो समर इतना खुश था।कितनी अजीब बात थी कि दोनों के जीवन में यह दूसरा प्यार था...दूसरा सम्बन्ध था पर हम उसे पहले वाले उद्दाम आवेग,समर्पण और निष्ठा से जी रहे थे।मुझे लगने लगा था कि 'जीवन में एक ही बार प्यार होता है' की बात में झोल है।प्यार जब भी होता है, पहले की तरह ही होता है। प्यार में देह के शामिल होने पर अलग -अलग विचार हो सकते हैं ,पर यह सच है कि स्त्री -पुरुष के बीच का प्रेम बिना देह के पूरा नहीं होता।जब दो प्रेमी करीब होते हैं,एकांत में होते हैं तो देह जाग ही जाती है।

'जानती हो कम्मो,मैंने जब तुम्हें पहली बार देखा था न,तभी से तुम्हें पसन्द करता हूँ।'समर ने पहली बार इस रहस्य से परदा उठाया।

-जानती थी ।

मैं शरारत से मुस्कुरा दी।

उस समय हम दोनों समुद्र के किनारे रेत में लेटे हुए लहरों को अपनी देह पर आते -जाते महसूस कर रहे थे।

मेरी बात सुनकर वह उठ बैठा।

'अच्छा! बुरा तो बहुत लगा होगा क्योंकि तब तुम रौनक के प्रेम में थी।'

-नहीं,क्योंकि तब मैं तुम्हें रौनक का दोस्त भर मान रही थी।

'मुझे रौनक के भाग्य से ईर्ष्या होती थी,पर मैं उससे प्यार भी बहुत करता था इसलिए अपनी भावनाओं पर काबू रखता था।'

-अच्छा करते थे।अगर ऐसा नहीं करते तो आज इस तरह मेरे करीब नहीं होते।

'अच्छा!'

-और क्या ,तुम्हारी शराफ़त ने ही तो तुम्हें मेरे इतने नजदीक ला दिया है।अगर तुम मुझे पाने या झपटने का प्रयास करते तो मैं बिदक जाती।

'अब बिदककर दिखाओ'-समर ने मुझे दबोचने का प्रयास किया तो मैं रेत की तरह उसकी बाहों से फिसल गई और तट पर दौड़ने लगी समर मुझे पकड़ने लिए पीछे दौड़ा।हँसते- खिलखिलाते हम समुद्र की लहरों के बीच खेलते रहे।समर मुझे कैमरे में कैद कर रहा था और मैं उसे कर रही थी।हम एक- दूसरे के साथ फोटों नहीं ले सकते थे ,न उसे किसी को दिखा सकते थे।

हमारे रिश्ते का कोई सामाजिक नाम नहीं था,पर रिश्ता तो था ।बहुत ही प्रगाढ़ बहुत ही ईमानदार और सच्चा!

हम दोनों को ही पता था कि इस रिश्ते का पता चलते ही दोनों के परिवारों में खलबली मच जाएगी।कोई भी हमारे रिश्ते को उस रूप में स्वीकार नहीं कर पाएगा,जिस रूप में है।हमारे रिश्ते को पाप,नाजायज़ और जाने किस -किस गलत नाम से पुकारा जाएगा। समर की पत्नी तो मेरी हत्या ही कर देगी ।मेरी माँ और सास भी मुझे माफ़ नहीं करेंगी।बेटी तो पहले से ही समर को पसंद नहीं करती।

इन सबके बावजूद समर से मेरा रिश्ता था ,तो था।इस रिश्ते को हम दोनों में से कोई भी झुठला नहीं सकता था और न ही इस रिश्ते से दूर जा सकता था।आपसी समझ से इस रिश्ते को आगे ले जाना हमारी जरूरत भी थी और यह जरूरी भी था।