Ek Ruh ki Aatmkatha - 8 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 8

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एक रूह की आत्मकथा - 8

गोआ के नवरंग होटल के इस कमरे पर पुलिस का पहरा है।मेरी मौत की जांच -पड़ताल चल रही है।पुलिस ने केस से जुड़ी सारी डिटेल सीबीआई को हैंडओवर कर दिया है. इसमें सारे सबूत, गवाहों के बयान, फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट का भी जिक्र है। समर पुलिस हिरासत में है।उसे शक के दायरे में गिरफ्तार किया गया है।मेरे घरवालों ,जिसमें ससुराल व मायका दोनों पक्ष शामिल है-ने समर के ख़िलाफ़ बयान दिया है ।उनके बयान के अनुसार समर ने ही मुझे बहला -फुसलाकर गुमराह किया और फिर मेरी हत्या कर दी। हत्या का मुख्य कारण मेरी वह सम्पत्ति है,जिस पर समर कब्ज़ा करना चाहता था,पर अपने प्रयास में सफ़ल न पाने की खीझ में मेरी हत्या कर दी।
मेरी बेटी अमृता से भी पूछताछ की जा रही है ।वह इस समय बारह साल की है।बड़ी ही प्यारी बच्ची है।मुझसे बहुत प्यार करती थी।मैं सिर्फ उसकी माँ नहीं थी,पिता,भाई,दोस्त सब ठीक थी।मेरे बिना वह टूट -सी गई है।वह हर हाल में क़ातिल को पकड़वाना चाहती है।उसके सामने पूरी जिंदगी है।मेरी सारी संपत्ति उसी की है।मुझे डर है कि सम्पत्ति के लालच में कोई मेरी बेटी को बहका न ले।मेरे ससुराल और मायके के लोगों में उसे अपनी ओर करने की जंग छिड़ी हुई है।फिलहाल वह अपनी दादी के घर ही रह रही है।मेरी सास राजेश्वरी देवी उसे पल भर के लिए भी खुद से अलग नहीं होने दे रहीं। बेटे और बहू को तो वो खो चुकी अब पोती को नहीं खोना चाहतीं।बचपन से ही वह हॉस्टल में रही।मेरी व्यस्तता ने उसे मुझसे दूर रहने को विवश कर दिया था।मैं रात- दिन काम कर रही थी ताकि बेटी को दुनिया के सारे सुख दे सकूं।मैं जानती थी कि उसे मेरे साथ से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए ,फिर भी उसे दूर रखने को मजबूर थी।
सबसे बड़ा कारण समर था,जो अब ज्यादातर मेरे साथ ही रहता था।वह मेरा सारा आय- व्यय संभालता था।मेरी सम्पत्ति की देखभाल से लेकर मुझे कब क्या -क्या करना है,सब वही निर्धारित करता था। मैं पूरी तरह उस पर डिपेंड थी।उस पर भरोसा करती थी।एक तरह से अंध विश्वास करती थी।
पर मेरी बेटी को उसके समर अंकल पसंद नहीं थे।न जाने क्यों ?वह जब भी किसी तीज -त्योहार या छुट्टियों में घर आती तो मुझे सारा काम -काज छोड़कर उसके साथ घूमना- फिरना पड़ता।हम खूब मज़े करतीं।एक-दूसरे के साथ वीडियो क्लिप बनातीं और उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर वाहवाही लुटतीं।देश- विदेश घूमतीं और ढेर सारी शॉपिंग करतीं ।सारा इंतजाम समर करता पर हम- दोनों से दूर -दूर ही रहता।
समर अमृता से बेटी की तरह प्यार करता था पर वह उसे अपने पिता का स्थान नहीं दे पाती थी।पता नहीं इसका कारण उसकी दादी और नानी के समर विरोधी वक्तव्य थे या फिर उसका अपना मन या फिर वह मानसिकता-जिसमें कोई भी बच्चा अपनी माँ से किसी दूसरे पुरूष की नजदीकी नहीं सह पाता।
जो भी हो पर अमृता और समर में मुझे लेकर तनाव रहता था।समर अमृता के खिलाफ कुछ नहीं कहता था पर अमृता उसके विरूद्ध जहर उगलती रहती थी ।वह कहती थी कि जब वह अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस आएगी तो माँ का सारा काम वह सम्भाल लेगी और अंकल को रिटायर कर देगी। मैं उसकी बात पर हँसती तो वह खीझ कर कहती--हंसों मत,सीरियसली कह रही।
समर को जब मैं अमृता की बात बताती तो ऊपर से तो वह हँसता था,पर उसके चेहरे के भाव कुछ और ही कहते थे।
समर ने अपना घर -परिवार,बीबी -बच्चे ,काम -काज सब कुछ मेरे लिए छोड़ दिया था।सब उसे मेरा सेक्रेटरी समझते थे ,जो मुझसे प्रति माह एक मोटी तनख्वाह लेता है। कम ही लोग जानते थे कि वह मेरा अंतरंग मित्र है।हम सहजीवन में रह रहे थे।उसने एक कमजोर क्षण में रौनक की जगह ले ली थी।
अमृता के जन्म के एक वर्ष बाद मैंने अपना काम शुरू कर दिया।अब मैं टीवी सीरियलों में अभिनय का जलवा दिखाने लगी थीं।के वेब- सीरीज भी कर रही थी।माँ बनने के बाद मैं और भी निखर आई थी।हालांकि अपने फीगर को मेंटेन करने के लिए मुझे खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी।नियमित योगा ,ध्यान के साथ जिम भी जाती थी।खान- पान पर भी नियंत्रण था।सब कुछ समर के निर्देशन में हो रहा था।
मुझे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि मैं एक बच्ची की माँ हूँ।हालाँकि मैंने समर की हिदायत के बाद भी इस बात को कभी नहीं छिपाया था।सोशल मीडिया पर बेटी के साथ मेरे वीडियो वायरल होते ही रहते थे।
एक बार एक वेब सीरीज की शूटिंग के लिए मुझे गोवा जाना पड़ा ।समर मेरे साथ था। दिन भर की शूटिंग के बाद मैं बहुत थक गई थी। देर शाम होटल लौटी तो समर ने किसी रिसोर्ट के नाइट क्लब में जाने का प्रस्ताव रखा। मैं उसे मना नहीं कर पाई। उसे इंतजार करने को कहकर
मैं नहाने चली गई।तैयार होकर बाहर निकली तो समर इंतजार करता मिला।हम दोनों उस रिसोर्ट में गए।रिसोर्ट की खूबसूरती देखने लायक थी।लिफ्ट से हम ऊपर क्लब में गए
रिसोर्ट के उस क्लब में खुलेआम नशा हो रहा था।एक तरह का हुक्का -बार था।वहाँ ज्यादातर युवा ही थे।आजादी से अपने -अपने साथी के साथ अपनी पसंद का नशा कर रहे थे।कोई शराब तो कोई हुक्का पी रहा था।और नशे के बारे ने मुझे पता ही नहीं था।डीजे इतना लाउड था कि मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।फ्लोर पर नशे में झूमते -थिरकते युवा जोड़ों को देखते मैं सोच रही थी कि कौन कहता है कि इंडिया एक गरीब देश है?नशे में झूमते इन युवाओं में ज्यादातर अमीर माँ-बाप के बिगड़ी संतानें ही थीं।वरना इस क्लब में साधारण लोग तो प्रवेश ही नहीं कर पाते।एक आदमी के प्रवेश की फीस बीस हजार थी ।ऊपर से नशे के लिए अलग खर्च। दो लोग के लिए पचास हजार ,वो भी सिर्फ मौज -मजे के लिए। मुझे यह खर्च खल रहा था।इतने पैसे से तो एक साधारण परिवार का महीने भर का खर्च चल जाता है।जब समर ने मुझे खर्च के बारे में बताया तो मैंने कहा कि इतनी महंगी जगह मुझे क्यों ले आए? वह हँस पड़ा।
--क्या यार,आदमी कमाता क्यों है?कभी- कभार तो खुलकर जी लेना चाहिए।
'क्या इसी को जीना कहते हैं ,नशा करके सुध- बुध खो देना।इससे अच्छा तो हम समुद्र के किनारे चलते।चांद को देखकर बावली होती लहरों का मधुर संगीत सुनते।
यहाँ कानफाडू संगीत,लिपटा- लिपटी और बेशर्मी का नाच!'
-तुम अभी तक अपनी मध्यवर्गीय सोच से उबर नहीं पाई हो।ग्लैमर की दुनिया में काम करते हुए भी उसी सीता- सावित्री वाली इमेज में कैद हो।अब सौ- पन्ने का भाषण देकर बोर न करना।तुम रुको ,अभी आता हूँ।
मुझे रिजर्ब सीट पर बैठाकर समर बार की तरफ चला गया।लौटा तो उसके हाथ में एक बोतल के साथ दो ग्लास थे।
'मैं नहीं पीती..….।'
-ये सॉफ्ट ड्रिंक है ...कुछ नहीं होगा।मेरी खातिर तुम्हें आज तो पीनी पड़ेगी।
'नहीं ,समर मुझे नशा हो जाएगा।'
-क्या रौनक के साथ कभी नहीं पी?
'एक बार बीयर ट्राई किया था।उल्टी हो गई थी।'
-इससे नहीं होगा।इसका स्वाद अच्छा होता है।थोड़ा- सा ले लो।प्लीज मेरी ख़ातिर...!
जाने उस क्लब के वातावरण का असर था या समर से बढ़ रही करीबी का या मेरे भीतर छिपी बैठी एक और कामिनी का या फिर किस्मत द्वारा रचे जा रहे किसी कुचक्र का,मैं समर को और ज्यादा मना नहीं कर पाई।