"एक महीने में दस चुन्नियों पर कढ़ाई...! ना ना भाई साहब माफ करें। वैसे भी तारा के पास समय नहीं और इतनी चुन्नियाँ एक साथ..!"
तारा की माँ की बात सुनकर उस व्यक्ति ने तारा की माँ को यह बताया कि हाथ की कढ़ाई वाली यह चुन्नियाँ वो फिल्मों में काम करने वाली हीरोइनों के लिए ले रहा है और वहाँ हाथ की कढ़ाई की इन चुन्नियों की बहुत कीमत है।
यह जानकर तारा की माँ बड़ी खुश हुई कि उसकी बेटी के हाथ का हुनर पसंद किया जा रहा है और बहुत आगे जा रहा है पर उन्होंने और चुन्नियाँ बनाकर देने के लिए साफ मना कर दिया।
लेकिन चुन्नियों की और कढ़ाई की बातें बना-बनाकार आखिरकार उस व्यक्ति ने बातें माँ को चुन्नियाँ पर कढ़ाई करवा कर देने की हाँ भरवा ही ली।पर माँ ने महीने भर में चुन्नियों पर कढ़ाई करवाने से साफ मना कर दिया।इस पर उस व्यक्ति ने ढ़ाई महीने बाद ख़ुद आकर चुन्नियाँ लेने की बात कही।
ये सुनकर तारा बड़ी खुश हुई कि मेरी कढ़ाई की हुई चुन्नियाँ फिल्मी हिरोइनें पहनेंगी। जब वो फिल्में सिनेमाघर में आएँगी तो मैं जरूर देखने जाऊँगी।और सबको बताऊँगी कि इन चुन्नियों पर कढ़ाई मैंने की है।
ये सोचती हुई तारा ऊपर अपने कमरे को तरफ जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ ही रही थी कि माँ ने दरवाजा बंद कर लिया।
माँ को दरवाजा बंद करते देखकर कुछ सोचती हुई तारा वापस नीचे आ गई और माँ से कहा- "माँ एक महीने में तो दस चुन्नियाँ हो जाती फिर आपने उस आदमी का मना क्यों किया।"
"बेटा इतनी जल्दी इतना सारा काम कैसे करती तुम , पहले ही तुम्हारी आँखों के नीचे काले घेरे बनने लग गए। कोई जरूरत नहीं इतना काम करने की।जा अब आराम कर ले थोड़ा। मैं खाना बनाकर बुलाती हूँ दोनों बहनों को नीचे "
" माँ आज सब्ज़ी मैं बनाऊँगी। "
" अरे वाह! ये तो और भी अच्छी बात है। अभी तो साढ़े-तीन बजे हैं छह बजे बना लेना।"
"ठीक है मम्मी अभी मैं थोड़ी देर के लिए सोने जा रही हूँ पाँच बजे आती हूँ नीचे।" कहती हुई तारा ऊपर अपने कमरे में चली गई।
पिताजी भी दोनों की बातें सुनकर खुश थे कि चलों बेटी का पढ़ाई लिखाई में तो मन नहीं लगता पर हाथों में तो हुनर है। बस इस साल ग्रेजुएट हो जाए फिर आगे रेग्युलर पढ़ना चाहेगी तो इसकी मर्जी वरना प्राइवेट पढ़ लेगी साथ ही अपना काम देखती रहेगी। काम तो काम है चाहे नौकरी हो या अपना खुद का । कम से कम अपने पैरों पर तो खड़ी है। उन्होंने कुछ सोचते हुए तारा की माँ से कहा - "देखो भई तारा का सिलाई-कढ़ाई करना मुझे बुरा नहीं लगता। पर तुम जरा उस दुकान वाले से कहो कि हर किसी को घर ना भेजे।"
ये सोचते हुए उन्होंने अपनी पत्नी से कहा -"सोचता हूँ तारा के सिलाई-कढ़ाई के शौक को ही आगे बढ़ाया जाए।"
"वो कैसे?" तारा की माँ ने पूछा।
"अरे भई! तारा ये काम घर पर करती है, ये काम करना उसका शौक भी है तो क्यों ना उसे एक अच्छी सी दुकान खुलवा दें। "
क्रमशः
सुनीता बिश्नोलिया