Prayaschit - 13 in Hindi Fiction Stories by Devika Singh books and stories PDF | प्रायश्चित- 13 - Nehele Pey Dehela

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प्रायश्चित- 13 - Nehele Pey Dehela

कुछ घंटों बाद अंकित को होश आ चुका था अंकित ऐसे ही पढ़े नहीं रह सकता था उसे राज की तलाश करनी थी वह सोच रहा था इस मुसीबत से कैसे निकले और साल्वे भी अब तक हॉस्पिटल तक पहुंच चुका था। हॉस्पिटल का मुआयना करते हुए उसे पता चला कि अंकित को ज्यादा चोटें नहीं आई थी। और अंकित के कमरे बाहर दो लोगों उस कमरे पर ध्यान लगा कर खड़े थे उन्हीं दो लोगों को देखने के बाद उसे पता चल गया था कि शायद माथुर के आदमी उसके पीछा करते हुए यहां तक पहुंच चुके थे।







उसने वहां पर चले ही जाना बेहतर समझा और वह उन लोगों से दूर जाकर खड़ा हो गया।




साल्वे सोच रहा था कि अगर यही पर वह खड़ा रहा तो किसी को शक हो सकता है वह हॉस्पिटल के गलियारों का मुआयना करने लगा ऐसे ही घूमते घूमते उसकी नजर पायल पर पड़ी पायल कुछ दवाइयों की पर्चियां लेकर एक कोने पर पड़ी कुर्सी पर बैठी थी पायल कुछ सोच रही थी।




साल्वे: कहां हो फुलवा रानी तुम्हें मैंने कहा कहा नहीं ढूंढा तुम तो ईद की चांद हो गई मैं आया तो यहां पर किसी और के पीछे था। लेकिन तुम मिल गई चलो कोई बात नहीं मेरा काम और आसान हो गया।




कुछ देर बाद अंकित कुछ सोचता हुआ अपने कमरे से बाहर आ गया था। हॉस्पिटल के गलियारों में जैसे कोई शांति ही थी।

वहां पर कोई नहीं था वहां पर कोई नहीं था डैनी के जो 2 आदमी उसके कमरे के बाहर खड़े थे वह भी अंकित के आने से वहां से चले गए थे।

कुछ देर तक वह वहीं पर खड़ा होकर कुछ सोचता रहा और अचानक से एक अधेड़ उम्र का आदमी कोट पैंट पहने उसके उसके पास आकर उस हाथ जोड़कर उससे कहा सॉरी कहने लगा।




उस आदमी का नाम अल्बर्ट राइट था वह एक सीधा साधा आदमी था असल में उसी की लड़की की कार से अंकित का एक्सीडेंट हुआ था।




अल्बर्ट: बेटा मेरी बेटी से गलती हो गई वह उस तरह से कभी गाड़ी नहीं चलाती पता नहीं किस तरह उसके गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। वह बहुत ही जिम्मेदार लड़की है। मेरे लड़की के खिलाफ कोई कंप्लेंट मत करना। मेरी तुमसे एक ही रिक्वेस्ट है प्लीज!!!

उसके माथे से पसीना निकलता देख उसकी परेशानी सुन अंकित को लगने लगा शायद यह अपनी लड़की से बहुत ज्यादा ही प्यार करता है इसलिए मुझसे इतना रिक्वेस्ट कर रहा है।

उसकी परेशानी समझते हुए ने उससे कहा

अंकित: कोई बात नहीं है अंकल मैं समझ सकता हूं गलतियां सभी से होती है। वैसे वह है कहां अब ठीक तो है ना !!! सुना है कि उसे भी चोटे लगी थी।

मैं उसे देख सकता हूं ? अंकित ने कहा

अल्बर्ट: हां जरूर बेटा हां जरूर आओ मेरे साथ चलो।

अल्बर्ट उसे एक कमरे में लेकर चला गया उसे कमरे में बैठी हुई वह लड़की काफी सुंदर लड़की थी। उसका नाम एंजेल था उसके सर पर एक पट्टी बंधी हुई थी वह बड़े ही टेंशन में लग रही थी। अंकित एक टक उसे देखते ही जा रहा था।

अचानक से उसे देखते हुए अंकित के चोटों का दर्द भी कम हो चुका था।

एंजल: डैड यह कौन है आप किसे लाए हैं। और इनकी हालत किसने की ?

एंजेल में अल्बर्ट से पूछा और यह पूछने के बाद वह अंकित को देखने लगी उसके आंखों में दर्द साफ छलक रहा था।

जब अल्बर्ट ने एंजेल को बताया कि वह यह वही आदमी है जिसको तुमने कार से ठोकर मारी थी।

तब जाकर एंजेल को बहुत गुस्सा आया और अंकित को एंजेल का असली रूप देखने को मिला दरासल हो उस तरह की लड़की बिल्कुल नहीं थी बेहद गुस्सा और घमंड उसकी नाक पर रहता था वह हर बात में उसके हर बात में उसका घमंड साफ झलकता ही था।

एंजेल: यू तुम्हारी वजह से मेरा एक्सीडेंट हो गया है अगर तुम नहीं होते तो आज मैं उस पोल पर नहीं टकराती और आज मैं हॉस्पिटल में नहीं होती।

मुझे इस हॉस्पिटल से बहुत नफरत है।

सुनकर अंकित ने पहले अल्बर्ट को देखा । वह अल्बर्ट के सिर का पसीने का मतलब बिल्कुल साफ समझ चुका था इसका मतलब यह था कि उसकी बेटी सिरफिरी थी। और उसकी गलती की माफ़ी वह खुद उससे मांगने आया था और फिर उसने एंजेल को देखा।

उसने एंजेल को कहा!!!

अंकित: मेरी वजह से तुम्हारी यह हालत नहीं हुई बल्कि तुम्हारी वजह से मेरी हालत हुई है मैंने कार लेकर तुम पर नहीं चढ़ाई थी। बल्कि तुमने मुझ पर कार लेकर चढ़ाई थी मैं चाहूं तो तुम पर केस भी कर सकता हूं लेकिन तुम्हारे पापा के वजह से चुप हूं और इस चुप्पी का तुम गलत फायदा तुम मत उठाओ।




पैसे चाहिए ना तुम्हें पैसों के लिए तुम यह सब करते हो ना मैं तुम जैसे लोगों को अच्छी तरह से जानती हूं पापा हमें इससे डरने की जरूरत नहीं है।

हम उल्टा इस पर ही केस करेंगे। आप डरिए मत।




अल्बर्ट की तरह देखते हुए सोचा और उसकी परेशानियों को वह भाप गया उसने एंजेल से मुंह लगाने से अच्छा वहां से जाना बेहतर समझा और अल्बर्ट को अपने साथ बाहर बुलाया अंकल आप जरा बाहर आइए। मुझे आप से कुछ बात करनी है।

एंजेल उसे घूरते हुए देखती रह गई।

अंकित: आपकी बेटी तो पूरी तरह से पागल है।

आप इसे समझाते क्यू नहीं आप इसे समझा सकते हैं

अल्बर्ट: मैं जानता हूं बेटा पर मैं कुछ बोलूं तो बुरा मान जाती है। इसका मां नहीं हैं इसीलिए मैं उसे कुछ नहीं कहता हूं

अंकित: आपकी इसी लापरवाही की वजह से उसे काफी जादा मिली है। छूट की वजह से आज वह इतनी आगे बढ़ चुकी है। कि आपकी बात नहीं सुनती आपने अगर उस पर लगाम लगाई होती तो वह आज एसी नहीं होती

अल्बर्ट: हां मैं जानता हूं बेटा पर अब मैं क्या करूं? में उससे बहुत प्यार करता हु।

अंकित: कोई बात नही अंकल मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूं आप की जगह पर कोई और होता तो यह वह भी यही करता।




अल्बर्ट: तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा।







और उधर दूसरी तरफ

साल्वे ने नहेले पर दहला मार दिया था। उसे इस खेल का हुकुम का इक्का मिल चुका था। दूसरी तरफ कुछ लोग शतरंज की बाजीयों में ही उलझे हुए थे।

साल्वे को देखते ही पायल के पैर जैसे जमीन से जकड़ चुके थे। वह वहीं से हिल तक नहीं पा रही थी और ना कुछ सोच पा रही थी। उसके दिमाग में कुछ चल ही नहीं रहा था उसे क्या जवाब दे

पायल ने सोचा कि अगर मैं इसे कोई भी जवाब दूंगी तो यह मेरी बातों पर भरोसा नहीं करेगा और करता भी क्यों पायल ने उसे खड़े-खड़े धोखा जो दिया था।

उसे पता था यह जरूर अपने पैसों के बारे में मुझसे पूछेगा।

उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था साल्वे उसका पीछा करते-करते यहां तक पहुंच सकता था। इसकी उम्मीद तक उसने अभी नहीं की थी। लेकिन साल्वे भी बहुत शातिर आदमी था। पायल की घबराहट साल्वे महसूस कर पा रहा था।

साल्वे जो अब तक उसके सामने खड़ा था अब उसके पास बैठ गया।

और

उसने पायल से पूछा।

साल्वे: मेरे पैसे कहां है। तुम मुझे प्यार से बता दो मैं अपने पैसे लेकर यहां से चला जाऊंगा मैं तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाना चाहता। तुम्हे मैं कोई कातिल नहीं हूं, मुझे बस मेरे पैसों से मतलब है अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम सच कहोगी या धोखा दोगी अगर इस बार मुझे तुमने धोखा तो तुम समझ सकती हो कि मुझे कातिल बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। मैंने बहुत सब्र किया है। अब इससे ज्यादा मैं सब्र नहीं कर सकता।







पायल बुरी तरफ हो फस चुकी थी उसे कोई ना कोई जवाब देना भारी राहा था और उसने ज्यादा वक्त नहीं लगाते हुए साल्वे से कहा।




अब क्या करेगी पायल क्या साल्वे उससे पैसा निकालने में कामयाब होगा जायेगा जानने के लिए पढ़ते रहिए










प्रायश्चित