एक गाँव में दामोदर नाम के एक गरीब ब्राह्मण रहा करते थे! ब्राह्मण को लोभ और लालच बिलकुल भी न था! वे दिन भर गाँव में भिक्षा व्रती करते और जो भी रुखा सुखा मिल जाता उसे भगवन का प्रशाद समझ कर ग्रहण कर लेते|
तय समय पर भ्रम्हं का विवाह संपन्न हुआ| विवाह के उपरांत ब्राह्मण ने अपनी स्त्री से कहा की देखो अब हम गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर रहें हैं, गृहस्थ जीवन का सबसे पहला नियम होता है अतिथि सत्कार करना, गुरु आगया का पालन करना और भजन कीर्तन करना|
में चाहे घर में रहूँ न रहूँ लेकिन घर में अगर कोई अतिथि आए तो उनका बड़े अच्छे से अतिथि सत्कार करना| चाहे हम भूखे रह जाएँ लेकिन हमारे घर से कोई भी भूखा जाने न पाएं!
ब्राह्मण की बात सुनकर ब्राह्मणी ने मुस्कुराकर कहा अच्छी बात है| में इस सब बातों का ध्यान रखूंगी, आप निश्चिन्त रहें और भजन कीर्तन कर प्रभु भक्ति में ध्यान लगाए!
ब्राम्हण और ब्राह्मणी सुखी सुखी अपना जीवन यापन करने लगे! ब्राम्हण रोज सुबह अपने घर से भिक्षा व्रती के लिए आसपास के गाँव में जाते और जो कुछ भी मिलता उसे प्रभु इच्छा मानकर ग्रहण करते!
ब्राम्हण के घर की स्थिथि बहुत ही सामान्य थी| कभी-कभी तो दोनों पति पत्नी को भूखा ही सोना पड़ता! लेकिन फिर भी दोनों पति पत्नी सुखी सुखी अपना जीवन यापन कर रहे थे| मन में कोई भी द्वेष और लालच न था|
भगवान् बड़े लीलाधर हैं! वे देवलोक में बेठे-बेठे सब कुछ देखते हैं| उनकी लीला बड़ी विचित्र है| वे समय-समय पर अपने भक्तों के दुःख हरने किसी न किसी भेष में आते रहते हैं| वे हमेशा अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं|
एक दिन ब्राम्हण की भक्ति और त्याग से प्रसन्न होकर भगवान् ब्राम्हण के घर साधू का वेश धारण कर ब्राम्हण की परीक्षा लेने पहुंचे| भगवान ब्राम्हण के घर के बाहर बने चबूतरे पर बैठे और भिक्षा के लिए आवाज लगाईं|
ब्राम्हण ने जब साधू महात्मा की आवाज सुनी तो वह बाहर आया| ब्राम्हण को देख साधू महात्मा मुस्कुराए और बोले, “पुत्र आज इस रास्ते पर जाते-जाते मन किया की आज तुम्हारे घर भोजन करूँ”
ब्राम्हण ने प्रसन्नता पूर्वक साधू महात्मा को नमन किया और बोला, “महाराज ! बड़ी अच्छी और प्रसन्नता की बात है की आज आप हमारे घर भोजन करने के लिए पधारे हैं| आइये भीतर चलिए…
इतना कहकर ब्राम्हण साधू महात्मा को घर के भीतर ले आया और बिछोना बिछाकर विश्राम के लिए निवेदन किया| देवयोग से उस दिन ब्राम्हण को भिक्षा में एक दाना न मिला था| उसने रसोई में जाकर देखा तो रसोई में अन्न का एक दाना न था|
ब्राम्हण ने सोचा अब क्या करें| आज तो भिक्षा में कुछ भी नहीं मिला| हम तो भूखा रह सकते थे घर आए अतिथि को भूखा कैसे जाने दें| घर में फाटे पुराने कपड़ों और बर्तन के अलावा कोई भी सामग्री न थी|
ब्राम्हण ने अपनी स्त्री से कहा की आज हमारे घर से अतिथि भूखा ही चला जाएगा| हमने आज तक भगवान की जो भी भक्ति की है उसका कोई मोल न रह जाएगा|
ब्राम्हण की पत्नी ने कहा, “आप घबराते क्यों हैं कुछ न कुछ जतन तो हो ही जाएगा”
पत्नी की बात सुनकर ब्राम्हण ने ब्राम्हणी से पुछा, “तेरे पास कोई गहना है” \
ब्राम्हणी बोली- “गहना तो नहीं है, और कपडे भी फटे-पुराने हैं”
पत्नी की बात सुनकर ब्राम्हण बोला, – “तो फिर अतिथि सत्कार कैसे करेंगे”
ब्राम्हणी बोली- “आप नाई की दुकान से कैंची ले आओ”
ब्राम्हण नाई की दुकान से कैची ले आया!
ब्राम्हणी ने अपने सर के केश अन्दर अन्दर से काट लिए और बाहर से कैश बांध लिए|
अपने केश ब्राम्हण को देकर ब्राम्हणी बोली- “आप बाज़ार में जाकर ये केश बेच आओ और इनसे जो कुछ भी रूपए मिले उनसे दाल-चावल लेते आना|
ब्राम्हण बाज़ार गया और केश बेचकर बाज़ार से दाल चावल ले आया| दोनों पति-पत्नी ने बड़े आदर से साधू महाराज को भोजन कराया|
भोजन कर साधू महात्मा बोले, “वत्स! इस भरी दोपहर में अब में कहाँ जाऊंगा इसलीये आज दिन में तुम्हारे यही विश्राम कर लेता हूँ|
साधू महाराज की बात सुनकर ब्राम्हण ने प्रसन्नता पूर्वक कहा- “बढ़ी अच्छी बात है महाराज, आपकी सेवा का इस से अच्छा अवसर नहीं मिल सकता| इतना कहकर ब्राम्हण साधू महाराज के चरों के पास बेठकर उनके पैर दबाने लगा|
अब परेशानी महाराज के शाम के भोजन की थी| ब्राम्हण फिर महाराज के भोजन की चिंता करने लगा| अपनी पति को चिंता में देख ब्राम्हणी बोली- “आप व्यर्थ चिंता न करें, में हूँ न…कुछ न कुछ जातां हो जाएगा”
शाम को ब्राम्हणी ने अपने सर के बचे हुए कैश काटकर ब्राम्हण को दिए और ब्राम्हण से दाल-चावल खरीद लेन को कहा|
ब्राम्हण बाज़ार से दाल-चावल ले आया| रात्रि भोजन में भी दोनों पति-पत्नी ने बड़ी ही प्रसन्नता और आदर के साथ साधू महाराज को भोजन कराया|
भोजन करने के बाद साधू महात्मा बड़े प्रसन्न हुए और बोला, “वत्स! तुम्हारे प्रेम से में तृप्त हो गया हूँ, लेकिन अब इस अँधेरे में कहाँ जाऊंगा| सोच रहा हूँ आज रात्रि यहीं विश्राम कर लूँ|
साधू महाराज की बात सुनकर ब्राम्हण बोला, “महाराज ये जो कुछ भी है सब प्रभु का है| आप निच्शिंत होकर यहाँ विश्राम कर सकते हैं| ये मेरा सोभाग्य है की मुझे आपकी सेवा करने का अवसर प्राप्त हो रहा है|
इतना कहकर दोनों पति-पत्नी साधू महात्मा के चरणों में बेठ गए| साधू महात्मा के सो जाने के बाद महात्मा के चरों में ही दोनों पति-पत्नी सो गए|
जब दोनों पति-पत्नी सो गए तब बाबाजी जाग बैठे और उन्होंने ब्राम्हण को आशीर्वाद दिया की तुम्हारे सरे दुःख-दर्द दूर हो जाए, तुम्हारी पत्नी के केश भी लोट आएं और धन-धान्य से घर भर जाएँ| इतना कहकर साधू महात्मा अंतर्ध्यान हो गए|
सुबह जब ब्राम्हण और उसकी पत्नी उठे तो उन्होंने देखा की उनके कपडे ठीक हो गए थे, ब्राम्हणी के केश भी वापस आ गए थे| लेकिन साधू-महात्मा कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे|
उन्होंने सोचा हो न हो वे कोई पहुंचे हुए साधू-महात्मा थे जो हमें आशीर्वाद स्वरुप ये सब दे गएँ हैं! ब्राम्हण ने जब अपने घर को देखा तो वह रोने लगे की महाराज, हमने आपको पहचाना नहीं|
कहीं हमसे महाराज की सेवा में कोई कमी तो नहीं रह गई| हम अनजान थे महाराज! हमें क्षमा करो|
ब्राह्मण की विनती सुनकर भगवान प्रकट हुए और बोले, “तुम्हारे प्रेम पूर्वक भोजन करवाने से में बहुत तृप्त हुआ! तुम सुखी रहो…. इतना कहकर भगवान् अंतर्ध्यान हो गए|
*इसीलिए कहते हैं महमान में भगवान होता है!*