'एक बात कहूँ बुरा तो नहीं मानेंगी कामिनी भाभी'-समर ने सकुचाते हुए मुझसे कहा।
-कहो न,क्या कहना है?मैंने अपनी खुशी के अतिरेक पर विराम लगाते हुए पूछा।
'ये बच्चा....ये ....ये ....आपके कैरियर में बाधा बन जाएगा।'समर यह कहते समय हकला रहा था।
-कैसे?मैंने गुस्से से समर को देखा।
'ग्लैमर की दुनिया में माँ बन चुकी महिला नहीं चल पाती।सारी सुंदरता और टैलेंट के बाद भी। उसके प्रशंसकों की नजरें बदल जाती हैं।यह एक क्रूर सच है।'
--तो मुझे क्या करना चाहिए?मैंने तीब्र दृष्टि से समर की ओर देखा।
'मैं क्या कहूँ?आप खुद समझदार हैं।'
-तो तुम चाहते हो कि मैं अपने प्यार की निशानी को मिटा दूं।
मैं लगभग चिल्ला पड़ी।
'मैं ऐसा कुछ भी नहीं चाहता ,पर प्रेक्टिकल यही है।आप सोच लीजिए।मैं सिर्फ आपका भला चाहता हूँ ।आपके सामने दो रास्ते हैं -पहला यह कि ग्लैमर की दुनिया से अलग हो जाइए ।दूसरा यह कि इस बच्चे को....।अभी ज्यादा वक्त भी नहीं हुआ है।'
समर अब सधे स्वर में बोल रहा था।
-मैं सब कुछ छोड़ सकती हूँ पर अपने रौनक की इस निशानी को नहीं खो सकती।मैं जी ही नहीं पाऊंगी इसके बिना।रौनक के बिना ही मेरी क्या हालत हो गई थी,इसके बिना तो मैं मर ही जाऊँगी।ऐसे ग्लैमर की दुनिया का करना भी क्या,जो इतनी निर्मम और निष्ठुर हो ?जिसकी स्त्री विषयक सोच इतनी घटिया और निकृष्ट हो।जो स्त्री के विवाहिता,संतानवती या उम्रदराज होते ही उसे दूध की मक्खी बना देती हो।
मैं तैश में थी।
'सोचकर निर्णय लीजिएगा।अब मैं चलता हूँ।कोई जरूरत हो तो फोन करिएगा।'
समर के जाने के बाद भी मैं देर तक गुस्से से भरी रही।आखिर क्यों ग्लैमर की दुनिया में एक स्त्री को इतनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?पुरूष से तो कोई सवाल नहीं करता कि वह क्यों विवाहित,संतानवान और अधेड़ होने पर भी इस दुनिया का हिस्सा बना रहता है?क्यों उसके साथ की अभिनेत्रियां चालीस के बाद ही माँ की रोल में आ जाती हैं?हद तो तब होती है,जब हीरोइन को उसी हीरो की माँ का रोल ऑफर किया जाता है,जो कभी उसकी हीरोइन थीं। कई बार तो हीरोइन की बेटियाँ उस अधेड़ हीरो की हीरोइन बन जाती हैं।इसके बाद भी कहा जाता है कि स्त्री पुरूष में हर स्तर की समानता स्थापित हो चुकी है।
पर सच यही था।मैंने देखा था कि नामी- गिरामी स्थापित अभिनेत्रियों के साथ भी ऐसा ही होता है।ज्यों ही उनका विवाह हो जाता है,दर्शकों की रूचि उनमें कम हो जाती है।उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पहले की तरह धमाल नहीं मचा पातीं।उन्हें 'बुढ़िया' सम्बोधित किया जाने लगता है और हीरो 'साठे पर भी पाठा' बना अपनी बेटी से भी कम उम्र की अभिनेत्री के साथ रोमांटिक रोल कर रहा होता है।
भाड़ में जाए ऐसी दुनिया।मैं अपने बच्चे को जन्म दूँगी ।उसे पालूंगी ।मैं माँ होने के खूबसूरत अहसास को जरूर जीऊँगी।समर को भी जाने क्या हो गया है,वह रौनक का कितना अच्छा मित्र था।मैं तो समझती थी कि उसके सहारे अपनी जिंदगी को आगे ले जाऊँगी।मैं उसकी आँखों में अपने लिए सहानुभूति के अलावा भी कुछ महसूस कर रही थी।सच कहूँ तो मुझे भी वह अच्छा लगने लगा था। बीमारी के दिनों में मैं उस पर कुछ ज्यादा ही डिपेंड हो गई थी।उसकी नाराज़गी से मुझे डर लगने लगा था।उसके सिवा ऐसा कोई था भी तो नहीं,जो मुझे समझता हो। उसने रौनक की कमी को लगभग पूर ही दिया था।
क्या वह मेरी कमजोरी बन गया है?फिर क्यों मैं उसके बारे में इतना सोच रही हूँ?रौनक के न रहने पर भी अगर मैं जिंदा हूं तो समर के बिना भी रह लूंगी।
पर कहते हैं न कि एक स्त्री के लिए किसी पुरुष के शारीरिक साथ से ज्यादा जरूरी मानसिक साथ होता है।एक स्त्री किसी न किसी से भावनात्मक रूप से जुड़ना चाहती है।एक ऐसे साथी से ,जिससे वह अपना मन शेयर कर सके।मन का सारा डर,सारी कमजोरी,सारा दर्द बाँट सके।समर के रूप में मुझे एक ऐसा ही साथी मिला था,फिर वह मेरे भीतर की माँ को क्यों नहीं पहचान पा रहा है?क्यों नहीं समझ पा रहा कि रौनक को फिर से पाना मेरी सबसे बड़ी खुशी है।
--समर जल्द समझ जाएगा।फिर मुझसे माफी माँगेगा।
मैंने खुद को समझाया।पूरे एक सप्ताह समर नहीं आया और मैं अनमनी -सी चिंता में डूबी रही।कहाँ तो वह लगभग रोज ही उससे मिलने आ जाता था।दिन ने कई- कई बार फोन करता था,पर इस सप्ताह उसने हद कर दी।क्या वह मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करना चाहता है?उसने धीरे -धीरे करके मुझे अपनी आदत डाल दी और अब यूं इग्नोर करके मुझे कमजोर करना चाहता है?
पर एक सप्ताह बाद अचानक ही वह आ गया और मुझसे पहले की तरह हँसते हुए मिला।ऐसा लगा जैसे कोई बात ही नहीं हो।कहाँ तो मेरी जान सूखी जा रही थी और कहाँ ये पहले की तरह ही सहज है!अभिनेता है न!भाव बदलने में एक्सपर्ट।
--'कहाँ थे इतने दिन....न कोई फ़ोन किया, न हाल- चाल ली।'
न चाहते हुए भी मैं शिकायत कर बैठी।वह ठठाकर हँसा-
'मुझे मिस किया?अहोभाग्य मेरा!आउट ऑफ स्टेशन था एक शूटिंग के सिलसिले में।साँस लेने की भी फुरसत नहीं थी।छूटते ही भागा हुआ चला आया।नाराज़ हैं?सॉरी।'
मेरे दिल- दिमाग से जैसे एक बोझ उतर गया।
उस दिन के बाद कभी भी समर ने मेरी कोख में पल रहे बच्चे के बारे में कुछ नहीं कहा।हाँ,उसने इस खुशखबरी को मेरे मायके और ससुराल दोनों जगह फैला दिया।
खबर सुनते ही मेरी सास मेरे बंगले पर आईं।उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
भर्राए गले से बोलीं--शुक्रिया बेटा कि तुमने मेरे रौनक की निशानी को दुनिया में लाने के बारे में सोचा।मैं तुम्हें कितना गलत समझती थी।कितना बुरा व्यवहार किया तुम्हारे साथ।मुझे माफ़ कर देना।
मैंने उनका चरण -स्पर्श किया और कहा--आप हमेशा मुझे प्रिय रही हैं माँ।आप मेरे रौनक की माँ हैं मेरे रौनक की..।रौनक मेरा प्यार ...मेरा पति ...मेरा परमेश्वर सब था।उसके बिना मैं कुछ नहीं थी ...न हूँ ...न बन सकती हूँ।
आपने मेरे साथ जो किया,वह आपका अपने बेटे के प्रति प्यार था।मैं भी माँ बनने जा रही ...सब समझती हूँ।अपनी आखिरी रात रौनक ने मुझसे कुछ चाहा था...उसकी एक दिली ख़्वाहिश थी।वह दुनिया में अपनी एक ऐसी निशानी छोड़ जाना चाहता था,जिसमें मेरा भी अंश हो।मैं उसकी आख़िरी इच्छा सब कुछ गंवाकर पूरी करूंगी माँ।
सास ने मुझे फिर से गले लगा लिया ।उनके साथ आई मेरी बहन ,जो मेरी जिठानी भी थी-भी खूब रोये जा रही थी।इतने दिनों उसने अपनी ही बहन को त्याग दिया था क्योंकि वह अपने ससुराल वालों के खिलाफ नहीं जा सकती थी।
मैंने बहन को भी गले से लगा लिया।देर तक हम दोनों बहनें सुबकती रहीं।हमारे मन के सारे गिले- शिकवे दूर हो गए ।