रिक्शे वाला प्रश्न पूछता रहा पर मुरली अब भी शांत था किंतु राधा बोल पड़ी, “नहीं-नहीं तुम ग़लत समझ रहे हो भैया। हमें किसी ने घर से नहीं निकाला है। घर भी हमारा ही है हम तो बस ऐसे ही वृद्धाश्रम जा रहे हैं, यह देखने कि वहाँ क्या व्यवस्था होती है।”
रिक्शे वाला समझदार था, वह राधा की बातों को नज़रअंदाज करके शांत हो गया। वह जानता था कि एक माँ का दिल कभी अपने बच्चों की बुराई नहीं सुन सकता। वृद्धाश्रम पहुँच कर मुरली और राधा रिक्शे से उतर गए।
मुरली ने जेब से अपना वॉलेट निकाला तो रिक्शे वाले ने कहा, “बाबूजी पैसे नहीं चाहिए। मैं रात भर रिक्शे में ही सोता हूँ, रात पाली कभी नहीं करता। आपने वृद्धाश्रम का नाम लिया इसीलिए मैं आपको लेकर आ गया। यह रिक्शा ही मेरा घर, मेरा बेडरूम और मेरा रसोई घर है। मुझे मेरे घर से निकाला गया है बाबूजी। मैं भी आपकी ही तरह हूँ। मैंने मेरा छोटा-सा मकान बेटे के नाम कर दिया था पर वह नालायक निकल गया। बस इसी रिक्शे के सहारे अपना जीवन गुजर बसर कर रहा हूँ लेकिन ख़ुश हूँ आज़ाद हूँ। मेरे लायक कुछ भी काम हो तो कहियेगा बाबूजी। यह मेरा फ़ोन नंबर लिख लीजिए, शायद कभी मैं आपके काम आ जाऊँ।”
उसका फ़ोन नंबर लेकर धन्यवाद कहते हुए राधा और मुरली वृद्धाश्रम के गेट की तरफ़ चले गए। अंदर जाकर देखा तो सन्नाटा था, शांति थी। रात का समय था सब सो रहे थे। मुरली और राधा ने अपनी चादर निकाली और बरामदे में उसे बिछा कर दोनों लेट गए। नींद कहाँ थी उनकी आँखों में। वह दोनों रिक्शे वाले के बारे में बातें करते रहे कि कैसे रहता होगा बेचारा एक रिक्शे के अंदर, कैसे सोता होगा रोजाना? एक दूसरे से बात करते-करते सूरज की किरणें उन्हें दिखाई देने लगीं। सुबह पाँच बजे से लोगों के कमरे की लाइट जलना शुरू हो गईं।
वृद्धाश्रम की देखरेख करने वाला बंदा श्याम भी आ गया। आते ही उसने देखा बरामदे में दो लोग बैठे हैं।
उनके पास आकर उसने पूछा, “अंकल आप यहाँ क्या …? अरे हाँ याद आया आप तो कुछ दिनों पहले ही बुकिंग करवा कर गए थे। अंकल फ़ोन कर दिया होता तो आपको इस तरह…!”
“नहीं-नहीं कोई बात नहीं बेटा।”
“आइए अंकल आपका कमरा तैयार है,” कहते हुए वह उन्हें उनके कमरे में ले गया।
कमरा बहुत ही सलीके से जमा हुआ था। एक छोटा-सा फूल दान भी था, जिसमें कुछ सुगंधित फूलों की महक कमरे को ख़ुशनुमा बना रही थी। ज़रूरत की सभी चीजें वहाँ मौजूद थीं।
उस समय राधा और मुरली काफ़ी थके हुए लग रहे थे। यह देखते हुए श्याम ने कहा, “अंकल आपके लिए चाय ले आता हूँ। उसके बाद आप लोग थोड़ा आराम कर लेना। बाक़ी बातें बाद में यहाँ की बड़ी मैडम आपको बता देंगी।”
“ठीक है,” कहते हुए मुरली ने एक ठंडी साँस ली।
सुबह आठ बजे वृद्धाश्रम की मैनेजर मोहिनी मैडम आईं। वह स्वयं मुरली के कमरे में गईं और कहा, “सबसे पहले तो आप दोनों का हमारे इस घर में स्वागत है। आप लोग यहाँ किसी भी तरह का संकोच मत करना। वैसे तो यहाँ हम सभी का ध्यान रखते हैं किंतु यदि आपको कोई भी कमी लगे तो बता दीजिएगा। आइए मैं आपका सभी से परिचय करवा देती हूँ।”
मोहिनी ने उन्हें वृद्धाश्रम के सभी वृद्धों से मिलवा दिया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः