Khaali Kamra - Part 3 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | खाली कमरा - भाग ३

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खाली कमरा - भाग ३

अपने प्यार का इज़हार करने के लिए एक दिन राहुल ने पार्टी के बाद खुशबू को घर छोड़ने के लिए जाते समय उससे कहा, “खुशबू हमारी दोस्ती, अब दोस्ती तक ही सीमित नहीं रह गई है।” 

“क्या मतलब है राहुल तुम्हारा?”

“मतलब साफ़ है खुशबू, मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ और तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूँ।”

“ये क्या कह रहे हो राहुल? तुम भी मुझे अच्छे लगते हो लेकिन जीवन साथी बन जाना… ये संभव नहीं है राहुल।” 

“क्यों संभव नहीं है खुशबू? तुम बहुत अमीर हो, मैं नहीं इसीलिए?”

“यदि सच कहूँ राहुल तो हाँ। मेरे घर वाले कभी तैयार नहीं होंगे। जब तक दोस्ती होती है, निम्न वर्ग और उच्च वर्ग का फ़ासला दोस्ती में दिखाई नहीं देता, ना ही जात-पात की दीवार बीच में आती है। लेकिन दोस्ती यदि प्यार में बदल जाए तो सबसे पहले यही फ़ासला बीच में आकर खड़ा हो जाता है।” 

शायद इसीलिए खुशबू ने अपने मन में कभी भी प्यार के दीपक को लौ नहीं लगने दी, जबकि राहुल उसे भी अच्छा लगता था। लेकिन राहुल खुशबू के प्यार की महक को अपने अंदर उतार चुका था।

उसने कहा, “खुशबू अब तो मुझे भी बढ़िया नौकरी मिल जाएगी। धीरे-धीरे ही सही मैं भी तुम्हारी बराबरी पर एक ना एक दिन आ ही जाऊंगा। बस उसके लिए थोड़ा-सा इंतज़ार करना होगा।”

“राहुल बचपन से मैंने जिस चीज पर हाथ रख दिया, पापा ने वह मुझे दिलाया है। मेरा स्वभाव अब भी वैसा ही है। मैंने समझौता कभी किया ही नहीं। आगे भी कर पाऊंगी, यह मैं ख़ुद भी नहीं जानती।” 

“कौन कह रहा है तुमसे समझौता करने के लिए? मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करूंगा।” 

“वही तो राहुल, तुम कोशिश करोगे, हो सकता है मेरी इच्छा पूरी न कर पाओ। वैसे भी फाइनल एग्जाम सर पर है, हमें इस समय पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए। फिलहाल तुम भी यह सब मत सोचो राहुल,” कहते हुए खुशबू वहाँ से चली गई।

धीरे-धीरे परीक्षा भी ख़त्म हो गई और इस तरह ग्रेजुएशन पूरा होते-होते ही खुशबू के घर बड़े-बड़े परिवार से रिश्ते आने लगे। खुशबू जिससे भी मिलती उसे वह पसंद ही नहीं आता क्योंकि चुपके-चुपके, चोरी-चोरी उसका दिल भी राहुल की तरफ़ खिंचता जा रहा था। शायद इसीलिए किसी और में उसे वह नज़र नहीं आता जो राहुल में था। वह प्यार, उसके लिए राहुल का पागलपन, उसका हद से ज़्यादा ख़्याल रखना।

राहुल भी कहाँ मानने वाला था। वो तो था ही बचपन से जिद्दी और हमेशा से अपनी हैसियत से ज़्यादा बड़ी और अच्छी चीज उसे पसंद आती थी। राहुल के सीधे-सादे माता-पिता तो इस विवाह के लिए राजी थे। आख़िर उनके बेटे की पसंद का सवाल था लेकिन खुशबू के घर सभी को मनाना लोहे के चने चबाने जैसा ही था।

उसने अपने पापा से कहा, “पापा मैं एक लड़के राहुल से प्यार करती हूँ और उससे शादी करना चाहती हूँ।”

“क्या करता है लड़का?”

“पापा कंप्यूटर इंजीनियर है मेरे साथ…”

“और उसके पिता?”

“पापा वह सेल्समैन हैं।” 

“मतलब मिडल क्लास फैमिली है। क्या तुम इतने मध्यम वर्ग के परिवार में रह पाओगी। प्यार का नशा उतरने के बाद दम घुटेगा तुम्हारा।” 

“नहीं पापा मैं एडजस्ट कर लूंगी।”

तभी उसकी मम्मी ने कहा, “खुशबू तुम्हारा यह फ़ैसला सही नहीं है। जीवन में हर फ़ैसला ऐसा करना चाहिए जो आगे चल कर हमारे और हमारे परिवार के लिए समस्या ना खड़ी कर दे। अभी तुम प्यार के तेज प्रवाह में बह रही हो। जब सच्चाई की दुनिया में जाओगी, तब यह प्यार कहीं बहुत पीछे छूट जाएगा। तुम जैसे पली-बढ़ी हो, तुम्हारे लिए यह रिश्ता सही नहीं है बेटा।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः