Khaali Kamra - Part 1 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | खाली कमरा - भाग १

Featured Books
Categories
Share

खाली कमरा - भाग १

मुरली संघर्ष की उस राह पर चल रहा था, जिस राह पर हर रोज़ उसके सामने यह चुनौती होती कि आज कितना सामान वह बेच पाया। इस राह पर मेहनत के साथ ही बहुत धैर्य की भी ज़रूरत थी क्योंकि यहाँ कभी-कभी अपमान का कड़वा घूंट भी पीना पड़ता था। कहीं हाँ तो कहीं ना थी। कोई दरवाज़ा खोल कर मुस्कुरा कर उसे मना कर देता। कोई उसे और उसके कंधे पर टंगे बैग को देखते ही मुँह बनाते हुए उसके मुँह पर बिना कुछ बोले ही दरवाज़ा बंद कर देता। पूरे दिन में दो चार जगह यदि उसे ख़ुशी मिलती तो उससे कहीं ज़्यादा उसे अपमान का सामना करना पड़ता।

मुरली एक सेल्समैन था, घर-घर जाकर, द्वार खटखटा कर अपना सामान बेचना उसका पेशा था। अपने सामान की प्रशंसा करना, ले लीजिए ना मैडम कहकर गिड़गिड़ाना, यह सब आसान नहीं होता लेकिन करना पड़ता है, जब जवाबदारियाँ सर पर आती हैं तो सब करना पड़ता है। ठंडी, गर्मी, बरसात चाहे जैसा भी मौसम हो मुरली के क़दम रुकते नहीं थे, सुबह से शाम हो जाती। शाम को घर आने के बाद वह फिर निकल पड़ता, लोगों के घर खाना डिलीवर करने। यहाँ जब भी किसी दरवाजे पर वह दस्तक देता, हमेशा ख़ुश होकर, हँस कर दरवाज़ा खोला जाता क्योंकि वह उनका मन पसंद खाना जो लेकर आया होता। लोग उसे थैंक यू कहते और वह ख़ुश हो जाता।

यूं तो मुरली स्नातक था, पर नौकरी के नाम पर जो कुछ भी था बस यही था। घर पर पत्नी राधा के अलावा बूढ़े माता-पिता भी थे। एक बेटा था राहुल, जो अभी बहुत छोटा था। उसका लालन-पालन, माता-पिता की जवाबदारियाँ अकेले मुरली पर ही आन पड़ी थीं। मुरली के पिता का एक पाँव बचपन से ही पोलियो का शिकार हो चुका था। अब मुरली उन्हें और संघर्ष नहीं करने देना चाहता था। वह अकेला ही घर की सारी जवाबदारियों का बोझा ढो रहा था। 

एक दिन राधा ने उससे कहा, “मुरली तुम अकेले आख़िर कब तक हम सब का बोझ अपने कंधे पर उठाओगे? मैं सोच रही थी कि मैं भी कुछ काम कर लूं।”

“राधा तुम घर संभालती हो, यही क्या कम है?” 

“लेकिन मुरली हमारे राहुल का भविष्य यदि हमें अपने से बेहतर बनाना है, तो हमें कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा। मैंने तुमसे बिना पूछे एक सरकारी अस्पताल में रिसेप्शन पर काम करने के लिए अर्जी लगाई है। माँ को मालूम है, वह कह रही थीं कि मुरली अकेला पड़ गया है। मैं घर संभाल सकती हूँ, तुम भी कुछ काम कर लो राधा। इसीलिए मैंने वह अर्जी…”

“राधा शायद तुम और माँ ठीक ही सोच रहे हो। इतने में तो हम क्या ही बचा पाएंगे।”

“तो तुम तैयार हो ना मुरली?” 

“हाँ राधा, यदि माँ तैयार हैं तो मैं भी तैयार हूँ। सच में हमें राहुल का भविष्य बनाना है, तो कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा। राधा मैं भी नहीं चाहता कि उसे हमारी तरह यूँ ही संघर्ष करते रहना पड़े। हम मिलकर कठिन परिश्रम करके उसे एक अच्छा जीवन दे सकते हैं और हम उसे वह ज़रुर देंगे।”

“हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो।”

कुछ ही दिन में उनके घर में एक कुरियर आया, जिसमें राधा की नौकरी की ख़बर थी, उसका अपॉइंटमेंट लेटर था। वह पत्र मिलते ही राधा ख़ुश होते हुए अपने सास-ससुर के पास गई। उनके पाँव छूते हुए उसने कहा, “माँ मेरी नौकरी लग गई। बाबूजी आशीर्वाद दीजिए।” 

बसंती ने कहा, “राधा, बधाई हो बेटा, अब तुम मुरली का हाथ बटा सकोगी। आख़िर भगवान ने हमारी विनती सुन ली। अब हमारे अच्छे दिन ज़रुर आएंगे।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः