सोई तकदीर की मलिकाएँ
26
साढे पाँच बजते बजते जयकौर की विदाई हो गई । दोनों भाभियाँ जयकौर को गले लगा कर रो पङी । पता नहीं ननद के विछोह का गम था या उसके छोङे कामों को पूरा कर पाने या न कर पाने का डर कि उनके आँसू सूख ही नहीं रहे थे । जयकौर को इस समय अपने माँ बापू बहुत याद आ रहे थे । अगर वे जिंदा होते तो इस तरह अचानक उसे घर से विदा न होना पङता । साथ ही उसे याद रहा था सुभाष जो आज जरूरत के वक्त बुआ के घर जा बैठा था । अगर वह यहाँ होता .. तो ... तो भी यह ब्याह हो ही जाना था । सुभाष क्या कर लेता । खुद उसी ने क्या कर लिया इस सारे घटनाक्रम में । जितना वह सोचती , उतनी वेग से आँखों से आँसू बह निकलते ।
गेजे ने कार संधवा के रास्ते पर डाल दी । पीछे सीट पर बैठे भोला सिंह ने पास सिमट कर लाल जोङे में घूंघट ओढे बैठी जयकौर पर एक नजर डाली । उसकी सांस ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे हो गयी । यह वह क्या कर बैठा । इस लङकी को वह घर कैसे ले जाएगा । घर जाकर बसंत कौर से नजर कैसे मिला पाएगा । उसके तीखे सवालों के क्या जवाब देगा । और वह केसर जो उससे इंतहा प्यार करती है , उसे क्या कहेगा । गाँव वालों की तीखी , मजाक उङाती नजरों का सामना कैसे करेगा । वहाँ कम्मेआना में तो चरण सिंह के घर लोगों की इतनी भीङ इकट्ठी हो गयी थी कि उसे न सोचने का समय मिला . न कुछ कहने का । दो तीन घंटे में ही सब रस्में हो गयी । शायद होनी को इसी तरह अपनी खेल दिखाना था ।
जैसे जैसे घर नजदीक आ रहा था , भोला सिंह की घबराहट बढती जा रही थी । गाँव के बाहर कुछ जूस वाले किन्नू और जूस बेच रहे थे । उसे अपनी गला सूखता हुआ लगा या वाकयी गला सूख रहा था । उसने गेजे से कहीं जूस की रेहङी पर कार रोक लेने को कहा । - भई गेजे कहीं जूस ही पिला दे । गला बुरी तरह से सूख रहा है ।
जी भाई जी । अभी लो ।
थोङी दूरी पर एक लङका किन्नूओं का जूस बेच रहा था । गेजे ने उसके सामने कार रोक दी । भोला सिंह कार से उतरा । बाहर ठंडी बयार चल रही थी । भोला सिंह को थोङी राहत मिली । उसने तीन गिलास जूस का आर्डर दिया और इधर उधर टहलने लगा । जूस वाला लङका किन्नू छीलने लगा । जूस निकाल कर छानते हुए उसने तीन गिलासों में जूस डाला और गेजे को पकङा दिया । जूस पीकर तीनों के कलेजे को थोङा राहत महसूस हुई । कार चली तो दस मिनट बाद ही हवेली के दरवाजे पर आ लगी ।
गली में कुछ बच्चे कंचे खेल रहे थे । कई बच्चे गुल्ली डंडा खेल रहे थे । जैसे ही गेजे ने कार रोकी , बच्चे खेलना रोक कर हाथ छोङ उन्हें देखने लगे । सबसे पहले गेजा उतरा । उसने उतर कर पीछे का दरवाजा खोला । पहले भोला सिंह निकला , पीछे पीछे जयकौर उतरी । गेजा लोहे का संदूक उतार कर भीतर ले गया और ले जाकर आँगन में पङी चारपाई के साथ टिका दिया और चुपचाप नौहरे में चला गया ।
बसंत कौर को उसका बर्ताव अजीब लगा . पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि गेजा बाहर से आए और बिना उसे सत श्री अकाल बुलाए उसके सामने से गुजर जाय । बल्कि बाहर पूरा दिन लगा कर आए तो हमेशा भूख भूख करता हुआ आता है – भाभी ओ भाभी बङी जोर की भूख लगी है । हैं कुछ पङा तो जल्दी से डाल कर दे दे । और आज बिना कुछ बोले ही आगे बढ गया । वह हाथ का काम छोङ कर उसके पीछे पीछे नौहरे में गयी । केसर अकेली चारा काटने की मशीन से उलझी पङी थी । गेजे ने उसके हाथ से मशीन का हत्था पकङा और जोर जोर से मशीन घुमाने लगा ।
ओए गेजे , तेरी तबीयत ठीक है ।
सत श्री अकाल सरदारनी । आप यहाँ क्यों चली आई । - गेजे ने सिर झुकाए झुकाए जवाब दिया ।
तू बाहर से आते ही बिना बोले चाले यहाँ चला आया तो मैंने सोचा , तेरी तबीयत तो ठीक है न कि आज आते ही कुछ खाने को नहीं मांगा । न राम न रहीम । क्या हुआ तुझे आज ।
वो आज सरदार साहब ने बहुत कुछ खिला दिया था तो भूख बिल्कुल नहीं लगी । ये पशु भूखे खङे हैं । इन्हें पट्ठे चारा डालने में देर हो रही थी । अभी धार भी निकालनी है । इसलिए ...।
ठीक है । तू पशुओं को चारा डाल कर हाथ मुंह धो ले । मैं तब तक चाय बनाती हूँ । - इतना बोल कर वह जैसे ही नौहरे से बाहर निकली , सामने आँगन में उसे लाल सूहे जोङे में घूँघट निकाले खङी जयकौर दिखाई दी जो हैरान परेशान घूँघट उठाए खङी इधर उधर देख रही थी । बसंत कर ने जल्दी से पैर बढाए और जयकौर के सामने आ पहुँची -
तुम कौन हो बहु और यहाँ किसके साथ आई हो ।
जयकौर ने गाँव में ब्याह कर आई नयी नवेली दुल्हनों का परछन देखा था । तरह तरह के ढोल ढम्मके के साथ गाँव भर के लङके नाच रहे होते । दरवाजे पर सास आरती की थाली के साथ हरी हरी टहनी , पानी का लोटा लिए खङी होती । पानी वार कर सौ तरह के रीति रिवाज कर सास जेठानियाँ , ननदें मिल कर बहु को घर के भीतर ले आती । सौ तरह के हँसी मजाक चलते । कई तरह के पकवान पकते । यहाँ इस तरह के सवालों से उसका स्वागत होगा , ऐसा तो उसने सोचा ही नहीं था । ये उसका हाथ पकङ कर उसे इस हवेली में लाने वाला वह आदमी इस समय कहाँ गया । ये सवाल करने वाली औरत कौन है ? माँ तो यह हो नहीं सकती तो क्या कोई भाभी है ।
कौन से गाँव से हो – बसंत कौर ने उसे चुप देख कर एक और सवाल दागा ।
कम्मेआना से ।
वहाँ से तो शरण सिंह दो भाई हैं । दो चार दिन पहले हमारा ट्रैक्टर लेने यहाँ आया था ।
जयकौर को शांति मिली । शुक्र है , ये औरत मेरे भाइयों को जानती है तो अपना परिचय देना आसान हो गया । वह बोली - मैं उनकी बहन हूँ । शरण सिंह से बङी और चरण सिंह से छोटी । इस हवेली के मालिक के साथ आज ही मेरा ब्याह हुआ है ।
सुनते ही बसंत कौर धम्म से जमीन पर ही बैठ गयी । आवाज हुई तो केसर नौहरे से दौङी दौङी आई – क्या हुआ छोटी सरदारनी । कहीं चोट तो नहीं लगी ।
सरदारनी कैसे बताती कि जो चोट आज उसे लगी है , कितनी गहरी लगी है । तब तक केसर आँगन में पहुँच चुकी थी ।
उसने बसंत कौर को हाथ से पकङ कर सहारा देते हुए चारपाई पर बैठा दिया – क्या हुआ सरदारनी ।
जवाब में बसंत कौर केसर के गले लग गयी और जोर जोर से विलाप करके रोने लगी । केसर के कुछ समझ नहीं आ रहा था । अभी चंद मिनट पहले तो सरदारनी भली चंगी थी । अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि इस तरह बिलख रही हैं ।
उसने सहारे के लिए इधर उधर देखा तो उसे जयकौर दिखाई दी ।
अब ये कौन है ?
बाकी कहानी फिर ...