Meri Aruni - 6 in Hindi Love Stories by Devika Singh books and stories PDF | मेरी अरुणी - 6

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मेरी अरुणी - 6

रानी मां के साथ हुई दुर्घटना की खबर मिलने पर जब अरुंधती हादसेवाली जगह पहुंची, तो रात हो चुकी थी। वहां मृणाल को देख कर वह चौंक पड़ी, “तुम यहाँ कैसे?”

अरुंधती पर नजर पड़ते ही मृणाल ने उसे बांहों में भर कर ढाढ़स देना चाहा, मगर आसपास पुलिसवालों की मौजूदगी ने उसे रोक दिया। बोला, “लौटते समय यहां लोगों की भीड़ देख कर टैक्सी रोकनी पड़ी। मैंने जब खाई में नीचे देखा, तो रानी मां की गाड़ी को पहचान लिया।” इतना सुनते ही अरुंधती के सब्र का बांध टूट गया और वह मृणाल के गले लग कर रो पड़ी। मृणाल ने भी उसे अपनी बांहों में भर लिया। पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कुछ अजीब देख लिया हो। पर बड़ी कुशलता से उसने अपने को संभाल लिया और बड़े रूखे स्वर में बोला, “अरुंधती जी, इन जनाब ने ही फोन किया था। लगता है आप दोनों काफी करीब हैं!” उसकी आवाज सुन कर अरुंधती को स्थिति का ज्ञान हुआ। वह तुरंत मृणाल से अलग हो गयी। मृणाल ने भी उसकी बेचैनी समझी और बात बदलते हुए पुलिसवाले से पूछा, “क्या उम्मीद है?”

“उम्मीद तो है!”

“तो फिर नानी मां अभी तक मिली क्यों नहीं?” अरुंधती एकदम से चीख पड़ी।

“देखिए मैडम, मेरे लोग लगे हुए हैं। अंधेरा भी तो कितना हो गया है। पर आप चिंता ना करें, रानी मां ठीक होंगी। जब हमें गाड़ी मिली, उसके दोनों गेट खुले हुए थे। मुझे लगता है, वे बाहर निकल गए होंगे। और फिर अभी सतलुज में पानी भी तो अधिक नहीं है। वे दोनों बह कर आसपास के किसी गांव में गए होंगे। मिल जाएंगे।”

“आप बार-बार दो क्यों कह रहे हैं? रानी मां तो हमेशा ड्राइवर और मनोहर के साथ जाती हैं।”

“मैडम!” इंस्पेक्टर गंभीर हो कर बोला, “हमें बताया गया है कि गाड़ी मनोहर चला रहा था। रानी मां ने ड्राइवर को मना कर दिया था।” इससे पहले कि अरुंधती कुछ और पूछती बारिश शुरू हो गयी। मूसलाधार बारिश शुरू हो जाने के कारण रेस्क्यू वर्क को भी बीच में ही रोकना पड़ा। यह जानते ही अरुंधती बिफर पड़ी और उस जगह को छोड़ कर जाने से इंकार कर दिया।

इस इलाके में रानी मां के होम स्टे कॉटेजों से कुछ दूरी पर घर वालों के लिए हॉलिडे मेंशन भी बना था। मृणाल ने अरुंधती को समझा-बुझा कर वहीं रुकने के लिए मना लिया।

तेज बारिश में दोनों वहां पहुंचे। सफेद मेंशन के नीले दरवाजे पर ताला लटका हुआ मिला। अरुंधती चौकीदार के लिए इधर-उधर देखने लगी। लेकिन उसे वहां कोई नहीं दिखा। अचानक हवेली के अंदर से उन्हें कोई आहट सुनायी पड़ी। मृणाल अपने गीले हाथों से बारिश की बूंदों को जैसे-तैसे पोंछते हुए उस ओर ध्यान से देखने की कोशिश करने लगा। तभी अंदर से दरवाजे को जोर-जोर से पीटने की आवाज आने लगी। छाता पकड़े अरुंधती के पीछे खड़ा ड्राइवर कांप उठा। वे कुछ सोचते, उससे पहले ही अंदर से एक औरत की आवाज आयी, “दरवाजा खोलो, जल्दी खोलो !” और फिर आती चली गयी।

मृणाल के इशारा करने पर ड्राइवर गाड़ी से टूल किट ले आया और वे दोनों ताला तोड़ने की कोशिश करने लगे। काफी देर के बाद जा कर दरवाजा खुला और सामने बदहवास सी हालत में स्वर्णा खड़ी मिली। अभी कोई उससे कुछ पूछता कि वह सामने वाले कमरे की तरफ इशारा करके रोने लगी। ड्राइवर सबसे पहले उस कमरे की तरफ बढ़ा और बाहर खड़े सभी लोगों ने उसकी चीख सुनी। सभी लोग दौड़ कर अंदर गए, तो आईने के ठीक सामने मेंशन का चौकीदार खून से लथपथ पड़ा हुआ दिखा। कमरे में चारों तरफ पुतले भी रखे हुए दिखे।

मृणाल ने पास जा कर चेक किया, तो पाया कि चौकीदार की सांसें चल रही हैं। मुंह पर पानी के छींटें डालने से वह तुरंत होश में भी आ गया। उसे ले कर सब हॉल में आ गए। पूछने पर उसने बताया कि अचानक गिरने के कारण उसका सिर फटा और वह बेहोश हो गया। मेंशन में फर्स्ट एड बॉक्स मिल गया। उसकी पट्टी करने के बाद अरुंधती ने पूछा, “काका, आप अंदर क्या कर रहे थे? और अगर आप अंदर थे, तो बाहर से ताला किसने लगाया?”

“दीदी मां वो!” इतना कह कर उसने अपनी डरी हुई आंखें स्वर्णा पर टिका दीं। अरुंधती को यह समझने में देर नहीं लगी कि स्वर्णा वहां क्यों और किसके साथ आयी होगी। उसने स्वर्णा से कुछ नहीं पूछा। लेकिन स्वर्णा को जवाब देने की जल्दी लगी। बोली, “मैं अपने एक फ्रेंड के साथ आयी थी। वह अभी कुछ सामान लेने बाहर गया है। कोई मुझे डिस्टर्ब ना करे, इसलिए वह ताला लगा कर गया। मैंने इस मूर्ख को चाय बनाने के लिए बोला था। पता नहीं गधा उस कमरे में क्यों गया और गिर पड़ा। इसे मरा जान कर मैं घबरा गयी और चिल्लाने लगी!”

“और आपका चिल्लाना सुन कर भी आपके वे सो कॉल्ड दोस्त नहीं आए!” अरुंधती ने धीमी आवाज में पूछा।

तभी चौकीदार बोल पड़ा, “पर वे तो आपके दोस्त नहीं थे। वे तो...” लेकिन इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता स्वर्णा चीखी, “चुप कर और जा यहां से!” अरुंधती को अपनी मां का यह व्यवहार समझ नहीं आया। स्वर्णा खुले विचारों की स्त्री थी। अपने अफेअर और पुरुष मित्रों की लंबी सूची उसने कभी किसी से नहीं छुपायी। इसलिए यदि आज वह किसी को छुपा रही है, तो बात जरूर गंभीर है।

स्वर्णा अब मुंह बिचका कर कोने में पड़े सोफे पर बैठ गयी और मोबाइल पर मैसेज टाइप करने लगी।

अरुंधती ने चौकीदार से पूछा, “यहां इतने सारे पुतले क्या कर रहे हैं?”

इस बात का जवाब चौकीदार की जगह ड्राइवर ने दिया ,“दीदी मां, मैं और रघु इन पुतलों को ले कर आए थे। उसने बताया कि रानी मां कोई डिस्प्ले लगाने वाली हैं। इन पुतलों को पहाड़ी कपड़े पहना कर शीशे में लगाएंगे। वह किसी लाइट शो की भी बात कर रहा था।”

“अच्छा हां!” अरुंधती ने ऐसे दिखाया जैसे उसे कुछ भूला हुआ याद आ गया और थोड़ा रुक कर ड्राइवर से बोली, “बाहर बारिश कम हो गयी है। आप काका को इनके घर छोड़ आइए।” ड्राइवर और चौकीदार के चले जाने के बाद कमरे में काफी देर तक खामोशी रही। उस खामोशी को तोड़ते हुए स्वर्णा की आवाज गूंजी, “मुझे लगता है यह आत्महत्या है!”

उसकी इस बात पर जहां मृणाल चौंका, वहीं अरुंधती तेज आवाज में बोली, “आप होश में तो हैं!”

“तुम जानती हो कि मैं ऐसा क्यों कह रही हूं!” स्वर्णा की आवाज शांत ही रही।

“लेकिन मैं नहीं जानता!” मृणाल असमंजस से दोनों को देखता रहा।

अरुंधती को चुप देख कर स्वर्णा ने ही जवाब दिया, “रानी मां को सर्विकल कैंसर था। लास्ट स्टेज। शायद उन्हें एक दर्दभरे अंत से बेहतर आराम की मौत लगी होगी!”

मृणाल को यह खबर किसी शॉक जैसी लगी, पर वह चुप ही रहा। लेकिन अरुंधती चुप नहीं रही। बोली, “नानी मां जिंदा हैं। आप उनके लिए ‘था’ का इस्तेमाल ना करें, तो बेहतर होगा। हां, उन्हें कैंसर है। लेकिन वे कायर नहीं हैं। वे हार मानने की जगह लड़ना पसंद करेंगी। और फिर उनके साथ मनोहर भी है। वे उसकी जान कभी भी खतरे में नहीं डालेंगी। वे आपकी तरह सेल्फिश नहीं हैं!”

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“तो कर लो तसल्ली। लेकिन मैं जानती हूं कि अब तुम्हारी नानी मां लौट कर नहीं आएंगी,” इतना कह कर स्वर्णा सिगरेट का कश भरती हुई सोने चली गयी। ना मृणाल ने कुछ पूछा और ना ही अरुंधती कुछ कह पायी। थोड़ी देर बाद मृणाल और अरुंधती भी अलग-अलग कमरे में चले गए। पर नींद दोनों को ही नहीं आयी।

रात के दूसरे पहर में अंधियारा गहरा चुका था। आसमान में बादलों का साया अब भी मंडरा रहा था और बीच-बीच में बादलों के गरजने से लगता कि बारिश फिर होगी। मृणाल बिस्तर पर कभी इस करवट लेटता, तो कभी उस करवट। रात की खामोशी में झींगुरों की आवाज भी तेज लगती है। तभी उसे लगा जैसे किसी ने धीमे से उसका नाम पुकारा हो, “मृणाल!” उसने सुन रखा था कि पहाड़ों की हवाओं में तरह-तरह की आवाजें घूमती रहती हैं। इसलिए उसने अधिक ध्यान नहीं दिया। लेकिन थोड़ी देर बाद आवाज फिर आयी, “मृणाल!” इस बार मृणाल ने आवाज साफ सुनी। वह उठ कर बैठ गया और सुनने की कोशिश करने लगा कि आवाज कहां से आ रही है। इस बार आवाज के साथ दरवाजे पर दस्तक भी हुई। मृणाल ने उठ कर दरवाजा खोला, तो चौंक गया। दरवाजे पर स्वर्णा खड़ी थी।

“आप यहां क्या कर रही हैं?”

“डर गए?” स्वर्णा के होंठों पर शरारत खेल गयी।

“ऐसी कोई बात नहीं है। पर आप यहां कर क्या रही हैं?”

“अंदर बैठ कर बात करते हैं!” इतना कह कर वह अंदर आ गयी। मृणाल भी उसके पीछे अंदर आ गया। वह बिस्तर पर आराम से बैठ कर बोली, “तुम खड़े क्यों हो? तुम भी बैठ जाओ!”

“नहीं, मैं ठीक हूं!”

“मुझे तुमसे एक काम है।’’

“आपको मुझसे क्या काम?”

“मैं जानती हूं कि तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो। पर मैं उतनी बुरी नहीं हूं। मैं यह भी जानती हूं कि तुम अरुंधती को पसंद करते हो।” इतना कह कर वह बिस्तर से उठ कर मृणाल के करीब आ कर उसके कंधे पर अपना दाहिना हाथ रख कर बोली, “इससे पहले कि मैं तुम्हें निगल जाऊं, तुम अरुंधती को ले कर यहां से भाग जाओ!”

“आप इस समय होश में नहीं हैं। कल सुबह बात करते हैं।”

“कल सुबह देर हो जाएगी!” इतना कह कर स्वर्णा मृणाल से लिपट गयी।

मृणाल ने एक झटके से स्वर्णा को अपने आपसे अलग किया और चिल्लाया, “स्वर्णा, आप अभी यहां से चली जाएं!”

मृणाल के गुस्से से भी स्वर्णा को कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। वह बड़ी अदा से मुस्कराती हुई बोली, “चिल बेबी, चिल! चली जाऊंगी। लेकिन मेरा हेअर क्लिप जो तुम्हारे बेड पर रह गया है, उसे तो ले लूं!” इतना कह कर वह बेशर्मी से हंसते हुए बेड की तरफ बढ़ी और अपना हेअर क्लिप उठा कर मृणाल की तरफ उछाल दिया। अगर मृणाल क्लिप को कैच नहीं करता, तो उसका नुकीला सिरा उसे चुभ जाता।

“गुड कैच!” स्वर्णा ने उसके हाथ से क्लिप लिया और आंख मार कर बाहर निकल गयी। ठीक इसी समय मृणाल को याद आया कि उस दिन ले जोसफिन कैफे में उसने जिस औरत को देखा, वह स्वर्णा ही थी। इस एंटीक हेअर क्लिप को भूलना इतना आसान नहीं है।

“क्या आज रात मैं तुम्हारे कमरे में रुक जाऊं?” अचानक पीछे से आयी अरुंधती की आवाज पर मृणाल कांप गया।

“तुम यहां कब आयीं?”

“जब तुम मां को डांट कर निकाल रहे थे!” इतना कह कर वह कमरे के अंदर आयी और दरवाजा बंद कर लिया।

“लगता है, आज मां-बेटी ने मिल कर मुझे डराने का प्रोग्राम बनाया है!” मृणाल ने अरुंधती को छेड़ा।

“जो खुद डरे हुए हों, वे तुम्हें क्या डराएंगे!” इतना कह कर वह थोड़ा रुकी और फिर बोली, “हम दोनों के डर का कारण अलग हो सकता है, लेकिन इतना तय है कि आज मां और बेटी दोनों के अंदर एक डर है।” अरुंधती की आवाज में दर्द को सुनते ही मृणाल ने अपने दोनों हाथ फैला दिए। वह खामोश सी उसकी बांहों में समा गयी। मृणाल ने उसके माथे को चूम लिया।

वह बोली, “आरुणि कहां है?” मृणाल के चेहरे पर एक मुस्कान खेल गयी। बोला, “मेरी बांहों में!”

अरुंधती तुरंत उससे अलग हो गयी। बोली, “क्या मतलब?”

“मतलब यह है कि तुम ही हो मेरी आरुणि, मेरे जीवन का सवेरा!”

इधर रानी मां का कुछ पता नहीं चल पा रहा था, उधर गेस्ट हाउस में खून से लथपथ चौकीदार और स्वर्णा को देख कर सबके होश उड़ गए थे। क्या कहना चाह रहा था गेस्ट हाउस का चौकीदार, जिसे स्वर्णा ने रोक दिया? कौन आया था स्वर्णा के साथ, जाे उसके चीखने की आवाज सुन कर भाग गया था या फिर उसके भागने की वजह कुछ और थी? क्या स्वर्णा ही असली गुनहगार थी?

इन सब सवालों जवाब अगले पार्ट में