Meri Aruni - 3 in Hindi Love Stories by Devika Singh books and stories PDF | मेरी अरुणी - 3

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मेरी अरुणी - 3

मृणाल हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसकी तेज चलती सांसें खिड़की से आती सूरज की गरमी का सहारा पा कर नॉर्मल होने लगीं। लेकिन उस डरावने सपने का कुछ असर बाकी रह गया। वह जब तक तैयार हो कर डाइनिंग हॉल में पहुंचा सभी नाश्ता करके जा चुके थे। खाना सर्व करने वाली लड़की ने उसे बताया कि अरुंधती उसका इंतजार कर रही है। मृणाल ने जल्दी-जल्दी नाश्ता निपटाया और बाहर की तरफ दौड़ पड़ा।

बाहर आते ही मृणाल ने अरुंधती को कार के पास खड़ी देखा। उनकी नजरें मिलीं और इससे पहले कि मृणाल देरी के लिए माफी मांगता, उसने मृणाल को अंदर बैठने का इशारा किया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी।

अरुंधती ने गाड़ी स्टार्ट की और बोली, “सीट बेल्ट लगा लेना!”

रास्ता सुंदर और निर्जन था, कहीं-कहीं एक-आध आदमी दिखायी दे जा रहा था। गाड़ी की तेज चाल और भी तेज होने लगी। इन घुमावदार रास्तों पर वही इतनी तेज ड्राइविंग कर सकता है, जो अपनी जान हथेली पर रख कर गाड़ी चलाए। सड़क के किनारे की सौ फीट गहरी खाई भी उसकी ड्राइविंग की रफ्तार को कम नहीं करा पायी। गाड़ी चलाती अरुंधती को मृणाल कनखियों से ताकता रहता। उसके बंधे हुए बाल में से कुछ लटें आजाद हो कर बार–बार आंखों पर आ जातीं और वह उन्हें हटाती रहती। मृणाल को यह खेल अच्छा लग रहा था।

अचानक अरुंधती ने कहा, “जरा स्टेयरिंग पकड़ना!”

“क्या?” मृणाल कुछ नहीं समझ पाया।

वह फिर बोली, “स्टेयरिंग पकड़ो ना!”

मृणाल के स्टेयरिंग पकड़ते ही उसने अपना हाथ स्टेयरिंग पर से हटा लिया और जूड़ा बनाने लगी। इस समय वह मृणाल के बेहद करीब थी। उस पल मृणाल को ऐसा लगा जैसे वह अरुंधती नामक इस चंदन के पेड़ से लिपटा हुआ नाग हो। तभी उसने मृणाल को हटने का इशारा किया और वापस अपने हाथ स्टेयरिंग पर जमा लिए। इस दौरान अरुंधती की उंगलियों ने मृणाल की उंगलियों को एक-दो बार छू लिया। मृणाल को यह स्पर्श अच्छा लगा। पर अरुंधती का चेहरा भावहीन ही रहा।

मृणाल उस घुन्नी लड़की को देखता रह गया। फिर दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला। थोड़ी देर बाद वह बोली, “जानते हो, मृणाल कई बार तो इन रास्तों पर हादसे ऐसे जगहों पर होते हैं, जहां बचाव दल भी नहीं पहुंच पाता और लाश भी नहीं मिलती।” मृणाल ने अरुंधती को देखा। पर क्या वह अरुंधती थी! या फिर उसके भीतर कोई और था! वह थोड़ा डरा, पर अपने डर को छुपाते हुए बोला, “तुम इतनी तेज गाड़ी क्यों चलाती हो? डर नहीं लगता!”

“मैं डरती नहीं, डराती हूं!”

“मतलब?”

वह हंसी और बोली, “मतलब कुछ नहीं। गाड़ी से उतरो, हम पहुंच गए।” उसके कहने पर मृणाल ने भी ध्यान दिया कि गाड़ी तो रुकी हुई है।

गाड़ी से उतर कर दोनों जंगल के बीच आ गए। मृणाल गाड़ी की डिक्की से कैनवास, टेबल, कुर्सियां और बाकी सामान निकालता रहा और अरुंधती कोने में बैठी उसे देखती रही। सब कुछ सेट कर मृणाल ने उसे सामने आने का इशारा किया, तो वह बिना कुछ बोले सामने आ कर बैठ गयी।

मृणाल अपना काम करने लगा। थोड़ी देर बाद वह बोली, “अरुणिमा का चेहरा कैसे बनाओगे?”

“मेरे मन ने उनकी फोटो को अपने अंदर उतार लिया है।”

“ऐसे कैसे! अगर उसकी तसवीर अपने पास नहीं रखोगे, तो क्या मेरे चेहरे को देख कर उसका चेहरा बनाओगे!”

इस बात पर मृणाल को थोड़ा गुस्सा आ गया। बोला, “मेरा काम आप मुझे ही करने दें।”

“तुम भड़क क्यों रहे हो?”

“सॉरी। पर मैं अपने काम में दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करता!”

“और मैं कामचोरी बर्दाश्त नहीं कर सकती!”

“तुम कहना क्या चाहती हो?”

“यही कि तुमने अरुणिमा को देखा कितना है, जो बिना उसकी तसवीर के उसके चेहरे को बना लेने का दावा कर रहे हो?”

मृणाल लंबी सांस भर कर बोला, ” मैंने शायद उन्हें सब से ज्यादा देखा है। उनके दाहिने कान के अंदर एक तिल है और आप दोनों की आंखों की बनावट में थोड़ा सा अंतर है। और भी बहुत कुछ है। बताऊं?”

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कुछ समय के लिए दोनों की आंखें मिलीं और अरुंधती ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। धीरे से बोली, “आई एम सॉरी!”

“धोखे के डर से भरोसा करना मत छोड़ो। मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा!”

मृणाल चल कर अरुंधती के पास आ गया। इससे पहले कि दोनों में से कोई कुछ कहता, देवदार के पेड़ों के बीच से झांकता आकाश काले बादलों से घिर गया। मृणाल ने तुरंत सारा सामान बटोरा और कार की तरफ दौड़ पड़ा। अरुंधती भी बचा सामान ले कर उसके पीछे दौड़ी। अभी सामान डिक्की में रखा ही था कि बारिश शुरू हो गयी। मृणाल ने अरुंधती को तुरंत गाड़ी में बैठने का इशारा किया। लेकिन गाड़ी का गेट चाबी से नहीं खुला। बारिश तेज होती जा रही थी।

परेशान अरुंधती को देख कर मृणाल बोला, “गाड़ी के बारे में बाद में भी सोचा जा सकता है, अभी बारिश से बचना जरूरी है।” मृणाल ने इधर-उधर देखा, तो उसे घने पेड़ों के बीच में झोपड़ी का पुराना ढांचा नजर आया। उसने अरुंधती का हाथ पकड़ा और उसे ढांचे के नीचे ला कर खड़ा कर दिया।

बारिश के साथ-साथ अब तेज हवा भी चलने लगी। अरुंधती ने अपनी भीगी साड़ी के आंचल को शॉल सा तान तो लिया, लेकिन फिर भी पारदर्शी साड़ी कितना और क्या ढकती। जल्दी-जल्दी में वह अपना स्वेटर और शॉल गाड़ी में ही भूल आयी थी। मृणाल से उसकी परेशानी अधिक देर तक नहीं छुपी। उसने अपना जैकेट उतारा और अरुंधती की तरफ बढ़ा दिया। अरुंधती ने ना में सिर हिलाया।

मृणाल बोला, “ओढ़ लो! यश चोपड़ा की फिल्म की हीरोइन लग रही हो।” इतना सुनते ही अरुंधती के चेहरे पर लाज की लाली फैल गयी। उसने मृणाल के हाथ से जैकेट ले लिया और पहनते हुए बोली, “और तुम?”

“मैंने स्वेटर पहना हुआ है।” कुछ समय दोनों चुप रहे। तभी तेज आवाज के साथ बिजली चमकी। मृणाल कांप गया। अरुंधती ने भी यह देखा। बोली, “क्या हुआ मृणाल?”

मृणाल ने झिझकते हुए कहा, “मुझे बिजली से डर लगता है।”

“ओह!” वह बोली और मृणाल के ठीक बगल में आ कर खड़ी हो गयी। वे दोनों झोपड़ी की एक कमजोर दीवार पर पीठ टिका कर आकाश को देखने लगे। इस बार बिजली चमकी, तो अरुंधती ने मृणाल की बाजुओं पर अपना हाथ रख दिया। इस बार मृणाल डरा नहीं, मुस्कराते हुए बोला, “बहुत डर लग रहा है।”

“अरे! अब डर क्यों लग रहा है। अब तो तुम्हारे पास मैं हूं!”

“तभी तो डर लग रहा है!” यह कह कर मृणाल अरुंधती के बेहद करीब चला गया। उसका एक हाथ अरुंधती के हाथ में था और दूसरा झोपड़ी की दीवार पर। अरुंधती बस उसकी आंखों को देखती रही। मृणाल ने अरुंधती के माथे को चूमा, तो अरुंधती की आंखें बंद हो गयी। दोनों में से कोई कुछ कहता, उससे पहले ही किसी स्त्री की तेज चीख ने उन्हें होश में ला दिया।

सामने से स्वर्णा और रवि सक्सेना आते हुए दिखे। स्वर्णा लगातार चीख रही थी। स्वर्णा और रवि को साथ देखना मृणाल ही नहीं अरुंधती के लिए भी झटका था। अंधेरा हो जाने का कारण उनका ध्यान अरुंधती और मृणाल की तरफ नहीं गया। बारिश के रुकने के बाद भी हवाओं का रुख नरम नहीं पड़ा था।

तभी स्वर्णा बोली, “यहां आने का क्या मतलब? बात तो घर में भी हो सकती थी!”

रवि ने गंभीर आवाज में जवाब दिया, “तुम जानती हो कि घर में बात नहीं हो सकती।”

“हां! तुम्हारा असली चेहरा जो सबके सामने आ जाएगा!”

“बकवास बंद करो!”

“मैं सच जानती हूं!”

अचानक रवि चीख उठा, “हां, मैंने ही अखबार में वह खबर छपवायी, क्योंकि मैं जानता हूं कि अरुणिमा का मर्डर हुआ है। बाप हूं! कुछ तो करना था। यहां तो कोई कुछ कर ही नहीं रहा। सब हाथ पर हाथ धर कर ऐसे बैठे हैं जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो। मैंने अपनी बेटी खोयी है।”

उसकी बात सुनते ही स्वर्णा के चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान खेल गयी। वह सिगरेट सुलगाते हुए बोली, “बेटी खोयी है या सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी। कम से कम मेरे सामने तो ये कन्सर्न्ड फादर होने का नाटक छोड़ो और सच बोलो!”

“तुम तो मुझे पेरेंटिंग पर लेक्चर ना ही दो, तो अच्छा है। जो औरत अपनी सगी बेटी से जलती हो, वह मुझे ज्ञान देती अच्छी नहीं लगती।”

इस बात पर स्वर्णा जोर से हंसी, “मैं जैसी भी हूं, अच्छी या बुरी, सबके सामने हूं। लेकिन तुम, मुंह पर राम और मन में रावण।”

अपनी आवाज में थोड़ी नरमी ला कर रवि बोला, “मैं गले तक कर्ज में फंसा हुआ हूं, स्वर्णा। वे लोग मुझे मारने की धमकी भी दे रहे हैं। मैंने सोचा था कि अरुणिमा के नाम पर जो रानी मां ने प्रॉपर्टी खरीदी है, उसमें से कुछ बेच कर अपनी मुसीबतों से छुटकारा पा लूंगा। पर उस मूर्ख लड़की ने सब बिगाड़ दिया। केस का भी कुछ हो नहीं रहा था। मुझे लगा अखबार में खबर देने से मेरा दोहरा फायदा हो जाएगा। एक तो इस खबर के बदले अखबार वालों से कुछ मिल जाएगा और फिर खबर दबाने के लिए रानी मां से तगड़ी रकम वसूल कर लूंगा। पर मैं भूल गया था कि वह कमीना एडिटर मेरा दोस्त होने के साथ-साथ तुम्हारा एक्स आशिक भी है। अब यह बताओ कि तुम क्या चाहती हो?”

कुछ सोचते हुए स्वर्णा ने कहा, “यह की ना तुमने मेरे काम की बात। तो सुनो, तुम रानी मां के पास जाओ और ठीक वैसा ही करो जैसा कि तुमने प्लान किया है। आज भी मेरी मां को अपनी बेटी से अधिक तुम पर भरोसा है। इस बात को दबाने के लिए तुम जितनी कीमत मांगोगे, वे दे देंगी। उन्हें अपनी झूठी शान भी तो बचानी है। लेकिन उस कीमत में मेरा भी हिस्सा होगा!”

“रानी मां की इकलौती बेटी को पैसों की कैसी समस्या?”

“ताना मारने की जरूरत नहीं है। रानी मां की वारिस तो अरुंधती मैडम हैं। मैं तो उनके वेतन पर गुजारा करने वाली मुलाजिम हूं!”

तभी सामने से आती गाड़ी की तरफ इशारा करते हुए रवि बोला, “गाड़ी आ गयी। चलो बैठो। बाकी की बातें गाड़ी में करते हैं।”

स्वर्णा गाड़ी में बैठने को हुई कि उसकी नजर सामने खड़ी गाड़ी पर गयी। बोली, “अरे, यह गाड़ी यहां क्या कर रही है?”

“हां, यह है तो अपनी ही गाड़ी। पर कोई नजर नहीं आ रहा!”

“चलो छोड़ो, आया होगा कोई। हम चलते हैं!”

“पर स्वर्णा, कोई यहां हुआ तो! किसी ने हमारी बात सुन ली हो तो!” रवि डर गया।

स्वर्णा उसका हाथ पकड़ कर अंदर बैठाते हुए बोली, “तुम डरते बहुत हो!”

गाड़ी के जाते ही अरुंधती और मृणाल भी बाहर आ गए। अरुंधती की आंखों में छाए दर्द के बादलों को मृणाल ने देखा, पर उसे समझ नहीं आया कि वह क्या बोल कर उसे ढाढ़स दे। बस इतना बोल पाया, “मैं गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश करता हूं!” अरुंधती ने कुछ जवाब नहीं दिया।

आधे घंटे तक मृणाल गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश करता रहा और जब वह हार मानने को हुआ, तो गाड़ी स्टार्ट हो गयी। पूरे रास्ते अरुंधती एक शब्द नहीं बोली। घर आते ही उसने गाड़ी का दरवाजा खोला और बिना मृणाल की तरफ देखे अंदर चली गयी। मृणाल गाड़ी को गैरेज में पार्क करके घर की तरफ मुड़ा और एक आदमी से जा टकराया। नशे में धुत वह आदमी मृणाल के कान में बड़बड़ाया, “अपनी जान की खैर चाहता है, तो भाग जा यहां से। यह डायनों का बसेरा है। तुझे भी खा जाएंगी।” मृणाल कुछ और पूछता कि अंदर से चीख-पुकार की आवाजें आने लगीं। तभी उसे रघु अपनी तरफ दौड़ता दिखायी पड़ा। रघु को उनकी ओर आता देख वह आदमी मृणाल की कान में फुसफुसाया, “चलता हूं! अगर तुम जिंदा रहे, तो फिर मिलेंगे!” और भाग खड़ा हुआ। मृणाल के पास आते ही रघु बोला, “सरकार गजब हो गया!”

“क्या हुआ रघु?”

“हमारे दामाद साहब रवि बाबू को किसी ने चाकू मार दिया है!”

शेष भाग अगले पार्ट में