सीढ़ियों से ऊपर की ओर भागती हुई एक लड़की रोती जा रही थी। ना ही उसे होश था ना ही आँसू रुक रहे थे। कॉरिडोर से होते हुए वोह एक कमरे में जा पहुँची। कमरे में दाखिल होते ही उसने अपने पीछे दरवाजे को कस कर बंध कर लिया और दरवाज़े के सहारे नीचे बैठ गई। आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।
अचानक तेज़ आवाज़ होने से उसी कमरे में बने बाथरूम से हड़बड़ी में एक लड़की निकली।
"अक्षरा..." बाथरूम से अभी बाहर निकली उस लड़की ने अब उसे पुकारा।
लेकिन अक्षरा, उसका तो रो रो के बुरा हाल था।
"अक्षरा, बताओ मुझे क्या हुआ? तुम रो क्यूं रही हो?" वोह लड़की अब उसके नज़दीक बढ़ने लगी थी।
"वोह....वोह आ गए अना...वोही..." अक्षरा ने किसी तरह बोलने की कोशिश की पर डर से वोह कांप रही थी।
"कौन आ गया है? तुम किसकी बात कर रही हो?" अनाहिता अब उसकी हालत देख कर घबराने लगी थी। पर उसने जल्दी जा कर उसे सीने से लगा लिया और माथे पर स्नेह से चूम लिया।
"वोही... जिसको पापा ने बुलाया था। वोह मुझे... कहीं नहीं जाना, मुझे कहीं नही जाना।" अक्षरा बहुत ही ज्यादा डरी हुई थी।
"रिलैक्स, तुम उठो यहां से पहले। मुझे पूरी बात बताओ। और मॉम कहाँ हैं?" अनाहिता ने उसे बैड पर बैठाते हुए पूछा।
"अना पापा जिससे मेरी...." अक्षरा बोलते बोलते रुक गई जब दरवाज़े पर दस्तक हुई।
अनाहिता ने उठ कर दरवाज़ा खोला तो सामने उसकी माँ खड़ी चिंतित नज़र आ रही थी। उसकी माँ जल्दी से अंदर आई और दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। वोह अक्षरा के पास गई और उसे अपने सीने से लगा लिया।
"क्या हुआ है? कोई बताएगा मुझे?" अनाइशा ने इस बार अपनी आवाज़ तेज़ कर पूछा।
"Shhh... नीचे तुम्हारे पापा के दोस्त आएं हुएं हैं। तुम दोनो की आवाज़ बाहर नही जानी चाहिए।"
"माँ...."
"तुम्हारे पापा ने अक्षरा का रिश्ता तै कर दिया है।" राधिका शेट्टी ने अपनी दोनो बेटियों की तरफ देखते हुए कहा।
"क्या?" अनाहिता को झटका लगा था। और अक्षरा को देख कर ऐसा लग रहा था मानो वो यह बात पहले से जानती हो। और कब से वोह यही तोह कहने की कोशिश कर रही थी।
"बेटा मुझे भी अभी थोड़ी देर पहले ही यह बात पता चली है और अक्षरा ने उसी वक्त सुन लिया जब मैं तुम्हारे पापा को मनाने की कोशिश कर रही थी की तुम दोनो अभी बहुत छोटी हो। यह उम्र नही है शादी करने की। शायद तुम्हारे पापा ने उसे यहां इतनी जल्दी इसलिए भी बुला लिया की कहीं हम में से कोई परेशानी ना खड़ी कर दे।" राधिका शेट्टी ने अपनी बेटी अनाइशा की तरफ देखा और आगे कहा। "मुझे लगता है यह कोई उनकी बिजनेस डील है। पर...."
"मुझे नही करनी शादी, माँ।" अक्षरा ने आस भरी नजरों से अपनी माँ को ओर देखा।
"मैं जानती हूं बच्चा, पर अभी हम कुछ नही कर सकते। तुम अपने पापा को जानती हो, अगर हम उनके खिलाफ गए तो वो हमारा जीना मुश्किल कर देंगे।" राधिका शेट्टी ने अपनी बेटी अक्षरा शेट्टी के कंधे पर ममता भरा हाथ रखा। "ऐसा नही है की वोह आज ही तुम्हारी शादी करा देंगे क्योंकि तुम अभी नाबालिग हो। फिलहाल जैसा वोह कहें बस वोही करो, फिर देखते हैं आगे क्या करना है। तुम्हारा पापा ने मुझसे कहा है की तुम्हे ले कर नीचे आ जाऊं।"
"मुझे नही जाना है कहीं।" अक्षरा के आँखों से फिर आंसू की धारा बहने लगी।
"तुम शांत हो जाओ पहले। तुम्हारे बदले मैं जाति हूं नीचे। वोह बस तुम्हे देखने आए होंगे। क्योंकि हम दोनो हुबहू एक जैसे हैं तो उन्हें क्या पता चलेगा की अक्षरा है या अनाहिता।" अनाहिता ने अपनी जुड़वा बहन अक्षरा को आश्वस्त करते हुए कहा और अक्षरा उसकी आँखों में देखने लगी।
"पर अना हम कोई सेकंड क्लास के बच्चे नही हैं। हम यह नही कर सकते।"
"पर तुम इस तरह से रोते हुए उनके सामने नही जा सकती। इससे उन्हे यह लगेगा की तुम कमज़ोर हो।"
"पर मैं तुमसे बड़ी हूं। मुझे तुम्हे प्रोटेक्ट करना चाहिए, ना की तुम्हे।"
"पर तुम मुझसे बस छह मिनिट ही बड़ी हो 😉। मुझे यह करने दो। मैं पापा को संभाल लूंगी और उस आदमी को भी। तुम यहीं रुको।" अनाहिता ने अक्षरा का कंधा दबाते हुए कहा।
"ठीक है, ठीक है। थैंक यू अना।" अक्षरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"आखिर हम जुड़वा किस लिए हैं? कुछ तो काम आना चाहिए ना।" अनाहिता भी मुस्कुरा गई।
"प्रोटेक्ट तो मुझे तुम दोनो को करना चाहिए, पर मैं एक अच्छी माँ नही बन सकी।" राधिका जी ने अपनी दोनो बेटियों के सिर पर हाथ रखा।
"माँ आप ऐसा क्यूं कह रहीं हैं। आप फिक्र मत कीजिए सब ठीक हो जायेगा।" अनाहिता ने अपनी माँ के आंसू पोछते हुए कहा।
अब दोनो कपड़े बदलने लगीं क्योंकि दोनो का पहनावा अलग था। जहाँ अक्षरा का स्वभाव एकदम शांत और नर्म था वहीं अनाहिता थोड़ी विद्रोही स्वभाव की थी।
विजयराज शेट्टी नासिक शहर के एक प्रसिद्ध नेता थे। उनका सिक्का चलता था पूरे नासिक शहर। अब वोह डर से हो या फिर किसी और वजह से पर हर कोई उनकी इज़्ज़त करता था। एक रुतबा था उनका वहां जिसके दम पर वोह पूरे नासिक को हिलाए रखते थे और सरकारी कर्मचारी तो उनकी जेब में रहते थे। उनकी पत्नी का नाम राधिका शेट्टी था। और उनकी दो जुड़वा बेटियाँ थी अक्षरा, और अनाहिता। अक्षरा और अनाहिता हुबहू एक जैसी थी और रंग रूप में अपनी माँ राधिका शेट्टी पर गईं थी पर दोनो के खयाल और स्वभाव एकदम एक दुसरे से विपरीत थे। जितनी सुंदर राधिका शेट्टी थी उनसे भी कहीं गुना सुंदर अक्षरा और आनाहिता थी। राधिका बेहद गुणवती और दयालु औरत थी और अक्षरा बिलकुल उन्ही की तरह सीधी साधी सी लड़की थी। वोह अपने माँ और पापा की सभी बात मान जाया करती थी। जबकि अनाहिता भी अपनी माँ की तरह ही दयालु थी पर उसे हर गलत बात पर अपनी नाक घुसाने की आदत थी जिस वजह से वोह अक्सर अपने पिता से सज़ा पाती थी। ना जाने क्यूं वोह गलत काम और गलत बात बर्दाश्त ही नही कर पाती थी। उसका यही स्वभाव अक्सर उसे परेशानी में डाल देता था।
अक्षरा के एक हरे रंग के अनारकली सूट पहने अनाहिता ने बाल संवारने के बाद अपने आप को शीशे में देखा। उसने कोई मेकअप नही किया था पर सिर्फ हल्का सा काजल लगा कर और एक छोटी सी बिंदी लगा कर वोह तैयार थी। आखिर आज विवाह थोड़ी था। सिर्फ देखने ही तो आए हैं वोह लोग। देखेंगे और चले जायेंगे बस। _यही तो होगा।_ और अगर इतना भी नही करेगी तो उसके पापा की अगर उनके मेहमानो के सामने खिल्ली उड़ी तो फिर वोह सज़ा देंगे और इस बार तो वो वोह अक्षरा बन कर आयेगी तो बाद में सज़ा भी अक्षरा को मिली तो। इसीलिए उसने अपने बाल को अच्छे से संवारा ताकी उसके पिता को एक भी शिकायत का मौका ना मिले और आईने में एक झलक देखने के बाद वोह पलटी।
"मुझे माफ करना अना, मेरी वजह से तुम...." अक्षरा दुखी मन से उसके गले लग गई।
"बेटा ध्यान रखना, तुम अनाहिता नही अक्षरा हो। अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो न जाने क्या होगा।" राधिका शेट्टी को अपनी बेटी अनाहिता शेट्टी की बहुत चिंता होने लगी थी। उन्हे अपने पति पर ज़रा भी विश्वास नहीं था।
आँखों से आश्वस्त करते हुए अनाहिता कमरे से बाहर निकल गई।
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कहानी अगले भाग में जारी रहेगी...
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©पूनम शर्मा