पत्नी और पान
क्या समानता है इनमें
पहली समानता तो यह है कि दोनों शब्दो की शुरुआत प शब्द से होती है।
पान मुख की शोभा बढ़ता है।पान खाने के बाद ताजगी और उमंग का एहसास होता है।पान पत्नी खाले तो उसके अधरों की लालिमा और मधुरता बढ़ जाती है और उनका रस्वादन में असीम सुख की प्राप्ति होती है।
पान का इतिहास पुराना है।यह अमीर और गरीब,राजा और रंक,स्त्री पुरुष और तृतीय लिंग सब मे समान रूप से प्रिय है।पान की दुकान पहले छोटे बड़े शहर,गांव कस्बो में मिल जाती थी।बहुत सी जगह जनरल मर्चरन्त वाले भी पान बेचते थे।
पान दो तरह का मिलता था।सादा यानी मसाले का या तम्बाकू का।सादा पान में चुना,कत्था और सुपारी होती।तम्बाकू वाले पान में तमाकू और बढ़ा दी जाती।लेकिन मसाले वाले पान में चुना,कत्था,सुपारी,सौंफ,इलायची,मसाला,गुलकंद आदि अनेक चीजे डाली जाती थी।बहुत से लोग घर मे पानदान रखते थे।जिसमें पान के पत्ते,चुना, कत्था, सुपारी आदि चीजे रखी रहती।
पान के पत्ते भी कई तरह के आते है--बनारसी,देशी,मद्रासी,मघई आदि।
लेकिन जबसे गुटके का चलन हुआ है पान लुप्त हो गया है और पान की दुकानों पर गुटका बिकने लगा है।यह भी दो तरह का है।एक सादा और दूसरा तमाकू मिश्रित।पान तो वो ही लोग बेंचते थे जो पान की दुकान करते थे।लेकिन गुटके में कोई खटराग नही।पाउच आते है इसलिए जनरल मर्चेंट,परचूनी वाले या अन्य लोग ही नही बहुत से सड़क किनारे ठेलया फड़ लगाकर केवल गुटका ही बेचते है।गुटका तमाकू वाला हानिकारक था।इससे मुख के कैंसर का खतरा था।इसलिए सरकार ने इस पर रोक लगा दी।गुटका बनाने वाली कम्पनियों ने इस रोक का रास्ता निकाल लिया।उन्होंने तम्बाकू वाले गुटके को दो भागों में बांट दिया।वह सादा और तम्बाकू की अलग अलग पेकिंग करने लगे।अब तमाकू के शौकीन लोगो को दो गुटके खरीदकर मिलाने पड़ते है।
बात पत्नी और पान से शुरू हुई थी।पहले मोबाइल और टी वी नही थे।मनोरंजन का साधन पिक्चर ही थी।हम महीने में दो तीन पिक्चर देखने जरूर जाते थे।
उस दिन भी पिक्चर देखने का प्रोग्राम बना।घर पर हम दोनों यानी मैं और बीबी ही थे।पत्नी ने खाना खाने के बाद जल्दी जल्दी सब काम निपटा लिए थे।हमे तीन से छह बजे का शो देखना था।
तैयार होकर हम घर से निकले।मेन रोड पर आने से पहले पान की दुकान पड़ती थी।मैं पान की दुकान पर खड़ा हो गया और पान बनवाने लगा।पत्नी कुछ दूर खड़ी हो गयी।उसने पान लगाया और मैने पान खाया और पत्नी से बोला,"चलो।"
लेकिन वह एक दम नाराज होकर घर लौट गई।मेरी समझ मे नही आया।वह पिक्चर चलने के लिए खुशी खुशी तैयार हुई थी।फिर नाराज होकर चली क्यो गयी?
मैं पीछे पीछे गया।वह घर पर जाकर गुस्से में बिस्तर पर लेट गयी।
"क्या हुआ?तुम गुस्सा क्यो हो गयी?"मैने पूछा लेकिन उसने कोई उत्तर नही दिया।मैने कई बार पूछा।मिन्नते की तब काफी देर बाद गुस्से में बोली,"क्या मैं पान नही खा सकती?"
और तब मुझे समझ मे आया।मैने अकेले पान खाकर गलती की थी।पत्नी के लिए भी मुझे पान लेना चाहिए था।मैंने अपनी गलती के लिए बार बार माफी मांगी।फिर भी बड़ी मुश्किल से तीन दिन बाद मानी और मेरे साथ पिक्चर देखने के लिए गयी थी।
और उस दिन के बाद से मैं ऐसा कोई काम नही करता कि वह रूथ जाए।
रूठे हुए रब को मनाना आसान है पर पत्नी को मुश्किल