Ye Kaisi Raah - 25 - Last Part in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | ये कैसी राह - 25 - अंतिम भाग

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ये कैसी राह - 25 - अंतिम भाग

भाग 25

अरविंद जी को अनमोल के पिता के रूप में बहुत

सम्मान मिला आश्रम में सभी से। अनमोल ने जब मां के बीमारी के बारे में बताया और खुद के जाने की इच्छा व्यक्त की तो सभी को अच्छा नहीं लगा।

अनमोल तो चाहता था पापा और परी यही आश्रम में ही रुके परसुबह ही ट्रेन थी और सामान रंजन के यहां था। इसलिए यहां नहीं रुक सकते थे। रंजन ने रिक्वेस्ट किया को अनमोल भी उसके घर ही चले और वही से सुबह सभी के साथ घर के लिए चला जाए। परअपनी तैयारी और सामान का बहाना बना अनमोल ने जाने से मना कर दिया। सुबह स्टेशन पर मिलने का वादा कर अनमोल ने सभी को विदा कर दिया।

यहां अरविंद जी और परी को साथ ले रंजन घर आ गया। शालिनी और मिनी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

अरविंद जी को देखते ही दौड़ कर मिनी उनकी गोद में आ गई। तोतली भाषा में पूछने लगी,

" दादू ..! दादू ..! आप कहा चले गए थे ? मै इंतजार कर रही थी।"

अरविंद जी बोले, " वो मै तुम्हारे चाचू से मिलने चला गया था। पर कोई बात नहीं अब मै आ गया हूं । अब मै तुम्हारे साथ खेलूंगा।" अनमोल के साथ चलने से अरविंद जी काफी हल्का महसूस कर रहे थे।

शालिनी ने रात का भोजन बना लिया था। परी ने पहले पापा और रंजन को खाना दिया । उन्ही के साथ मिनी भी थोड़ा थोड़ा खा रही थी । उसके बाद परी और शालिनी ने साथ में खाना खाया। सुबह सात बजे ही ट्रेन थी इसलिए सभी सो गए।

शालिनी पांच बजे ही उठ कर रास्ते के लिए खाना और नाश्ता पैक कर दिया। रंजन उन्हें छोड़ने स्टेशन गया।

वहां अनमोल पहले से खड़ा था। अनमोल को साथ से प्रसन्न अरविंद ट्रेन से घर के लिए रवाना हो गए।

दूसरे दिन शाम को घर पहुंच गए । दादी भी गांव से आई थी । सावित्री ज्यादा बीमार तो ना थी पर चिंता पेरशानी से उसका मुख पीला पड़ गया था। अनमोल को देख उसे नवजीवन मिल गया। भाव - विहल्ल दादी

अनमोल को गले लगा रो पड़ी बोली,

"अब मै तुझे अपने पास से कहीं दूर नहीं जाने दूंगी, सुन ले अन्नू। "

पूरे रास्ते अनमोल चिंतित था मां के स्वास्थ्य को लेकर, उन्हे ठीक देख उसे तसल्ली भी हुई साथ में गुस्सा भी आया कि पापा उसे झूठ बोल कर घर ले आए।

सभी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे कि अनमोल को कोई परेशानी ना हो हर चीज उसके मन मुताबिक करने की कोशिश हो रही थी मां और दादी ने अपनी कसम दे उसे अब कभी ना जाने के लिए

राजी कर लिया था। दादी और मां के दबाव में आकर अनमोल ने भी हां कर दिया था।

कुछ दिन तो ठीक रहा। पन्द्रह दिन बाद ही अनमोल शिकायत करने लगा "मै कब तक घर में बैठा रहूंगा ! मेरा मन नहीं लगता। मुझे कुछ करना है ।" अरविंद जी को भी उसकी बात उचित लगी । ठीक ही तो है जब यही रहना है तो कुछ करना भी चाहिए। शहर के सबसे प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान जहां प्रतियोगी परीक्षाओं को तैयारी करवाई जाती थी, वहां अरविंद जी ने बात की । वो अनमोल की क्वालिफिकेशन देख मन चाहे पेमेंट पर रखने को राजी हो गए। दूसरे दिन से ही अनमोल वहां पढ़ाने जाने लगा। सब कुछ बहुत अच्छा चलने लगा। घर में सभी बहुत खुश थे। अनमोल पहला वेतन मिलने पर मां को देता है। अरविंदजी सुकून कि सांस लेते है कि चलो अंत भला तो सब भला। परी को भी वेतन मिला। अरविंद जी निश्चिंत हो गए की अब बच्चो की मदद से सारा कर्ज जल्दी ही चुक जाएगा।

तीन महीने बाद अचानक एक दिन अनमोल के आश्रम का एक मित्र आ गया। उससे मिल अनमोल प्रसन्न हुआ । वो तीन दिन था अनमोल के साथ ही उसके कोचिंग भी जाता। फिर शाम को दोनों साथ में वापस आते।

चौथे दिन दोनों साथ में नाश्ता कर दोपहर के लिए टिफिन ले घर से गए । परी रोज साथ में भाई को टिफिन देती थी। परी अपने कॉलेज से वापसआ गई । वो शाम को भाई के आने पर ही चाय बनाती थी । फिर साथ में सब चाय पीते थे। वो प्रतीक्षा करने लगी की भाई आए तो चाय बनाऊ।

पांच बज गए, पांच से साढ़े पांच बज गया। तो वो घर में सभी को चाय बना कर दे दी। खुद प्रतीक्षा करने लगी की भाई आ जाए तो उसके साथ ही चाय पीऊं। छह बजा, फिर छह से साढ़े छह भी बज गए। जब सात बज गए तो सभी चिंतित हो उठे की आखिर अनमोल कहां रह गया। वहां ऑफिस में फोन किया परी ने तो पता चला कि वो तो समय से निकाल गए। अनहोनी से सभी घबरा उठे। हनी और मनी के परिवार में भी परी ने पता किया। जवाहर जी और रत्ना तुरंत आ गए। पूरा शहर छान मारा गया पर कहीं पता नहीं चला। उस रात चूल्हा ही नहीं जला। सब के शरीर का रक्त ही सूख गया ।

जवाहर जी ने कहा,

"रात भर प्रतीक्षा करते है सुबह पुलिस स्टेशन चल कर रिपोर्ट करते है।"

आंखो आंखो में ही रात बीती। सुबह हुई अरविंद जी और जवाहर जी परी से अनमोल की एक फोटो मांग पुलिस स्टेशन के निकलने लगे। तभी उनके मोबाइल पर घंटी बजी। जैसे ही हैलो कहा। उधर से अनमोल की आवाज आई ।

"पापा ..! मेरा मन वहां नहीं लग रहा था। मेरी सांसे घुट रही थी। अगर मै बताता तो आप सब मुझे नहीं आने देते। मै ठीक हूं। आप मुझे ढूंढने की कोशिश मत करिएगा। मुझे माफ़ कर दीजियेगा पापा..! मै आप सब का गुनहगार हूं। पापा सॉरी।"

कह फोन दूसरी तरफ से काट दिया गया । अरविंद जी "हैलो.... हैलो...... अनमोल बेटा सुनो .... तो बेटा ......."

कहते रह गए फोन डिस्कनेक्ट हो गया। निढाल से अरविंद जी वहीं फर्श पर बैठ गए।

जवाहर जी पूछने लगे,"क्या हुआ ? अरविंद .... क्या हुआ....? किसका फोन था।"

परी ने जवाहर जी की सहायता से पापा को अंदर लेकर सोफे पर बिठाया। फिर किचेन से पानी का ग्लास लेकर आई और पापा को पिलाया।

खुद को संयत कर अरविंद जी बोले,

"अनमोल का फोन था। वो ठीक है। पर अब वो यहां नहीं आएगा।"

साथ ही बिलखते हुए कहने लगे,

" मां..! जिसे हमने इतने नाजो से पाला था अब उसका यहां दाम घुटता है ! सावित्री अब उसका मन हमारे साथ नहीं लगता है। उसने मना किया है कि हम उसे तलाश ना करें।"

इन्हीं बातों को दोहराते हुए अरविंद जी रोने लगे।

किसी के पास तसल्ली के लिए शब्द नहीं थे। कोई क्या कह कर एक दूसरे को दिलासा दे।

जवाहर जी और रत्ना ने वहीं रुक कर उस परिवार को संभालना उचित समझा।

मां पापा को उदास देख परी बार बार यही कहती,

"मै हूं ना आप लोगों के साथ देखना मै जरूर एक दिन अनमोल को वापस ले आऊंगी।"

अब तलाश का कोई मतलब नहीं था। अगर ढूंढ भी लेते तो वो वापस घर नहीं आता।

हर दूसरे तीसरे दिन फोन अनमोल फोन करता कि वो ठीक है। परंतु जब यहां से कॉल लगाई जाती तो फोन स्विच ऑफ आता। अपनी हाल खबरदेता पर आने को तैयार नहीं होता। I

इस तरह धीरे धीरे समय बीतने लगा। परी अपने वेतन को पूरा का पूरा अरविंद जी के हांथ पर रखती की "पापा आप पहले भी तो मेरा खर्च उठाते थे। मै समझूंगी मुझे वेतन नहीं मिलता । आप पहले कर्ज चुकाओ।"

पहले तो अरविंद जी ने मना किया, पर परी के हठ के आगे अरविंद जी को झुकना पड़ा।

अनमोल का फोन आने का अंतराल धीरे धीरे बढ़ता गया। अब बिल्कुल ही बंद हो गया। हार कर अरविंद जी ने फिर रंजन को फोन किया और अनुरोध किया कि ,"रंजन बेटा थोड़ा कष्ट करो ; एक बार आश्रम जाकर अनमोल के बारे में पता करो।"

रंजन बोला,

"इसमें कष्ट की क्या बात है ? अंकल आज शाम को जा कर पता करता हूं।"

रंजन शाम को ऑफिस के बाद गया आरती में भी शामिल हुए पर अनमोल नहीं दिखा। आरती के बाद कुछ लोगो से अनमोल के बारे में पूछा भी पर सभी ने अनभिज्ञ होने का दिखावा किया। हार कर रंजन लौट आया। पूरी बात अरविंद जी को बताई ।

अरविंद जी ने, " ठीक है बेटा" कह कर लंबी सांस ली " जब मेरा भाग्य ही खोटा है तो तुम क्या कर सकते हो!"

रंजन ने दिलासा दिया,

"अंकल ..! आप परेशान ना हो मै बीच बीच में जाकर पता लगाने की कोशिश करूंगा।"

दो दिन बाद फिर रंजन आश्रम गया पर इस बार भी कुछ पता नहीं चला। कुछ कुछ समय के अंतराल पर रंजन पता लगाने की कोशिश करता रहा पर सफलता नहीं मिली।

आज तीन वर्ष हो गए ना तो फोन ही आया ना ही अनमोल आया। परी ने धीरे धीरे करके सारा कर्ज चुका दिया। अपने कॉलेज की नौकरी के साथ मां पापा की देख भाल का सारा दारोमदार अपने ऊपर ले लिया।

अपने विवाह की चर्चा होने पर नाराज़ हो जाती परी कहती , "पापा शादी तो मै कर लूं पर उसे यही रहना होगा अगर ऐसा हो तो मुझे कोई एतराज़ नहीं । जिससे भी मेरी शादी हो अगर वो मेरे माता पिता की देख भाल में मेरा सहयोग करे तो मुझे शादी से एतराज नहीं होगा।"

बूढ़ी आंखे हर पल अपने घर के चिराग का इंजतार करती है कि कब उसे हमारी याद आएगी , और कब वो घर आएगा ! परी पिता का सहारा तो बन गई पर उन आंखों की उदासी ना दूर कर सकी।

ये एक सच्ची घटना है। मैंने इस उम्मीद में लिखा कि शायद कभी अनमोल इसे पढ़े। उसे अपने मां पापा की पीड़ा का एहसास हो और शायद वो घर आ जाए ।

समाप्त