Ye Kaisi Raah - 24 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | ये कैसी राह - 24

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ये कैसी राह - 24

भाग 24

अनमोल पापा को रोता सुन झल्ला उठा और बोला, "ओह ! पापा इसी सब वजह से मै फोन नहीं करता हूं। जब देखो तब आपका रोना धोना शुरू हो जाता है। सच पूछो तो इसी वजह से मै फोन स्विच ऑफ रखता हूं। अब क्या प्रॉब्लम है मै ठीक तो हूं ना। अगर मुझे कुछ होगा तो सबसे पहले आपको ही खबर किया जाएगा।"

अरविंद जी का दिमाग सुन्न हो गया ये सब सुनकर । उनका संस्कारी बेटा ये कैसी भाषा बोल रहा है । उन्हे अपने कानो पर यकीन नहीं हो रहा था कि जो बोल रहा है वो उनका अपना बेटा अन्नू ही है।

फिर अनमोल अपने पापा को अचंभित करता हुए बोला,

"और हांvपापा..! आप ऐसे मेरा ऑफिस में काम करने वालो के सामने मेरी इंसल्ट मत किया करें। क्या जरूरत थी रंजन से पता लगाने के लिए कहने की। प्लीज अब आप किसी से मत कहिएगा। मै ठीक हूं और मुझे कुछ नहीं हुआ। आप भी अपना और मां का खयाल रखियेगा।"

इतना कह कर अनमोल ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। "थैंक्स रंजन जी।"

कह के रंजन के हाथों में उसका फोन थमा दिया।

ठीक है मै अब चलता हूं।" कह कर रंजन अंदर आश्रम में चला गया।

ठगा सा रंजन अनमोल को जाता देखता रहा। वो सोच रहा था कोई अपने पिता से कैसे इतनी बेरुखी से बात कर सकता है।

इधर अरविंद जी अनमोल को लेकर इतने चिंतित थे कि उनका ब्लड - प्रेशर काफी बढ़ गया और वो अचेत हो गए। उन्हे हॉस्पिटल में एडमिटvकरना पड़ा । परी एक पल भी पापा को अकेला ना छोड़ती। रात में पापा

के साथ हॉस्पिटल में रहती सुबह घर आती जल्दी - जल्दी सारे काम निपटाती स्कूल के लिए तैयार होती मां को हॉस्पिटल में पापा के पासbछोड़ती । स्कूल चली जाती । एग्जाम हो रहे थे इस लिए छुट्टी नहीं मिल

पा रही थी। हनी और मनी को इन सब बातो की कोई जानकारी परी नेbनहीं दी थी । ये सोच कर की वो अपने घर - गृहस्ती में खुश है तो उन्हे क्यों परेशान किया जाए..?

परी की मेहनत सफल हुई। चौथे दिन अरविंद जी घर आ गए। इन सारी परेशानियों के बीच एक अच्छी बात हुई की परी ने गवर्मेंट इंटर कॉलेज में टीचर के लिए एग्जाम दिया था उसका रिजल्ट आ गया था वो पास हो

गई थी। जब वो पापा को घर लेकर आई तभी उसकी सहेली का फोन आया ।

पापा ने पूछा,

"किसका फोन है?" तो , परी ने उदास स्वर में बताया तो अरविंद जी ने डांट दिया और बोले,

"क्या बेटा परी..! इतनी बड़ी खुश खबरी इतने उदास स्वर में क्यों? भाई आज मेरी बेटी की मेहनत सफल हो गई। सुनो सावित्री आज अच्छा खाना बनाना और वो भी परी बिटिया के पसंद का बनाओ।"

अरविंद जी ने इत्मीनान की सांस ली।

सावित्री ने भी पति की हां में हां मिलाई।

इस खबर से घर में फैला तनाव थोड़ा कम हुआ।

जब अरविंद जी कुछ ठीक हो गए तब परी और सावित्री के साथ बैठ करbविचार विमर्श किया कि अनमोल को ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता। वो परिवार से कटता जा रहा था। अरविंद जी को चिंता थी लिए गए कर्ज को चुकाने की भी। वो बोले,

"परी बेटा..! तुम चलो मेरे साथ और भाई को समझा बुझा कर अपने साथ ले आओ वो तुम्हारी बात बहुत मानता है।"

"जी पापा..! मै कोशिश करती हूं।"

परी ने पापा से कहा।

इसके बाद परी व्यस्त हो गई उसका डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन हो गया था। कॉलेज भी अलॉट हो गया। अब परी ने सोचा ज्वाइनिंग के बाद जल्दी छुट्टी नहीं मिलेगी इसलिए बैंगलुरू जाने का कार्यक्रम बना लिया ।

कन्फर्म टिकट होने के बाद पापा को भी छुट्टी लेने को बोल दिया। दो दिन बाद दोनों पिता पुत्री बैंगलुरू के लिए रवाना हो गए।

लंबे सफर के बाद अरविंद जी और परी बैंगलुरू पहुचे । रंजन को अरविंद जी ने फोन कर बताया था कि वो आ रहे है। रंजन ने पहले तो अनमोल की बातों को याद कर उनसे मिलना टालने चाहा, पर फिर उसने सोचा इसमें अरविंद जी की क्या गलती है? वो अकेलेbपरी के साथ इस इतने बड़े अनजान शहर में कहां धक्के खाते फिरेंगे।

यही सब सोच कर रंजन ने उनसे कह दिया कि होटल में आपके रहने का प्रबंध कर दिया है, पर उसने उन्हे अपने घर ले जाने की सोच रखा था।

ट्रेन सुबह सात बजे ही बैंगलुरू पहुंच गई । रंजन स्टेशन पर मौजूदbथा। अरविंद जी के चरन स्पर्श कर उनका सामान लेकर ऑटो पर रख दिया। फिर ऑटो वाले से अपने घर की ओर चलने को कहा।

रंजन ने अरविंद जी से कहा,

"अंकल .! आपको परेशानी तो होगी;पर मै आपको अपने घर ले चल रहा हूं। आप मेरे पिता समान है

और परी मेरी बहन जैसी है, तो मै आपको होटल में कैसे रुकने दे सकता हूं! मेरा घर छोटा सा है पर अपने बेटे का समझ कर एडजेस्ट कर लीजिएगा। "

अरविंद जी इतना प्यार और सम्मान पा कर गदगद है गए। वो बोले

"अरे! नहीं बेटा..! मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मै तो तुम्हे;और तुम्हारे घर में किसी को पेरशानी ना हो इसलिए होटल में रुकने को बोल रहा था।"

थोड़ी ही देर में रंजन का घर आ गया। रंजन अरविंद जी और परी को लेकर अंदर आया । घर में उसकी पत्नी शालिनी और बेटी मिनी थी। सबका परिचय एक दूसरे से करवाया और शालिनी से बोला,

"शालिनी ..! तुम अंकल और परी का ध्यान रखना,इन्हे कोई परेशानी ना हो। मै अभी ऑफिस जा रहा हूं । जल्दी ही आ जाऊंगा फिर अनमोल से मिलने का प्रबंध करूगा। ये कह कर रंजन ऑफिस चला गया।

शालिनी ने पहले सब को चाय पिलाई फिर फ्रेश होने को बाथरूम दिखा दिया। जब तक परी और अरविंद जी नहाते तब तक शालिनी ने गरमा गरम पोहे बना दिए। नाश्ता खत्म कर परी को अंदर वाले कमरे में लेकर शालिनी चली गई।

अरविंद जी से बोला

"अंकल आप लेट कर आराम कर लीजिए।"

नन्ही मिनी जल्दी ही अरविंद जी से घुल मिल गई।

मिनी के ये पूछने पर कि "ये कौन है?" , रंजन ने बताया था कि,

"ये तुम्हारे दादू है और ये तुम्हारी बुआ है।"

मिनी अपनी तोतली जुबान से दादू , दादू कर बात करने

लगी जैसे पता नहीं कब का परिचय हो।

परी भी शालिनी से जल्दी ही घुल मिल गई। शालिनी का स्वभाव बेहद मिलनसार था। वो परी को बिल्कुल घर जैसाvमाहौल देने की कोशिश कर रही थी । साथ ही अरविंद जी को कोई परेशानी ना हो इसकी कोशिश कर रही थी। दोपहर को खाने का समय होने पर शालिनी ने परी और अरविंद जी को लंच कर दिया ।

शाम को रंजन आया। चाय पीने के बाद अरविंद जी और परीvको लेकर आश्रम के लिए निकाल गया। आश्रम पहुच कर फिर पहले की जगह पहुंच गया। पर अभी आरती होने में समय था ,

इस कारण रंजन ने वहां मौजूद व्यक्ति से अनमोल के बारे में पूछा उसने कहा हां अनमोल अंदर है पर अभी नहीं आ सकता। जब आरती शुरू होगी तभी बाहर आएगा। सिवाय प्रतीक्षा करने के उनके पास कोई विकल्प नहीं था।

समय का चक्र चलता ही जाता है वो किसी के लिए नहीं रुकता सब उसकी प्रतीक्षा करते है ,वो किसी के लिए नहीं रुकता। आरती का समय भी हो गया। सभी आश्रम के सदस्य बाहर आने लगे। उन्ही के बीच अरविंद जी को अनमोल भी दिखा। अपने आप में गुम अनमोल पीले वस्त्र पहने गले में माला की थैली लटकाए आता दिखा। व्याकुल अरविंद जी खुद पर काबू नहीं रख सके । पुत्र को देखते ही तेज कदमों से आगे बढ़ आए

और अनमोल को गले लगा लिया ।

पिता को अचानक सामने देख अनमोल हतप्रभ रह गया। साथ ही आस पास मौजूद लोग भी देखने लगे कि ये क्या हो रहा?

अपने से पिता को अलग कर अनमोल ने उनके पांव छुए । उनका हाथ पकड़ कर सब से अलग थोड़ी दूर ले गया । और पूछा,

"पापा ..! आप अचानक यहां कैसे आ गए। "

फिर रंजन पर निगाह गई तो सब समझ में आ गया। रूष्ट सा अनमोल तीखी नजरो से रंजन की ओर देखा। रंजन कुछ सकपका गया। उसकी तो कोई गलती थी नहीं वो सिर्फ एक चिंतित पिता की मदद कर रहा था ।

"पापा..! ये क्या है ? ना कोई खबर आप यहाअचानक कैसे और क्यों आ गए।"

अनमोल ने कहा।

बेटा ..! कैसे खबर करता तू तो फोन हीं स्विच ऑफ कर के बैठा है। इतने महीने हो गए तेरी हाल खबर नहीं मिली। तेरी मां का रो रो कर हाल बुरा है। वो बहुत बीमार है। बस हर पल तेरा नाम लेकर तुझे पुकारती रहती है। इसी कारण मुझे आना पड़ा।"

मां बीमार है ये सुनकर अनमोल परेशान हो गया। उसे विचलित देख परी पास आई और अनमोल के कंधे पर हाथ रख कर बोली,

"भाई..! मां बहुत बीमार है उन्हे तेरी जरूरत है तू चल हमारे साथ।"

आसमंजस में पड़ा अनमोल बोला,

चलो..! पहले आरती में शामिल होते है। फिर सोचेगें। " इतना कह परी और पापा को साथ ले सबके साथ

आरती में शामिल होने सा गया।

आरती के पश्चात अनमोल ने सभी से अरविंद जी और परी का परिचय करवाया।

पढ़िए अगले भाग में क्या अनमोल अपने पापा के साथ घर जाने को

राजी हुआ? क्या हुआ जब वो घर गया?