अनुक्रमाणिका
1 चंपक चूहा
2 अटकन पटकन, दही चटकन
3 कलंदर
4 चूं चूं की सगाई
5 सबको मिलाकर चलना होगा
6 जंगल ही हम सबकी काशी
7 सुन्दर खेल
8 तितली रानी
9 एक थी गुड़िया
10 किसने देखा काला चोर !
11 चूहे की शादी
12 चुन्नू का घोड़ा
13 टुन्ना भाई
14 चिड़िया ने खाए गोलगप्पे
15 चूहे की पैंट
16 गप्पूराम
17 टिंकू बन्दर की नाव
18 प्यारे बच्चे
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चंपक चूहा
चंपक चूहा चला मदरसे
खटपट करता निकला घर से
माँ ने दिया था खाना
वह कहता था ‘न—न’
बोला;”मैं न खाऊँगा
वापिस घर ले आऊँगा,
क्यों देती हो मुझको खाना
जब मुझको भाता ही ना
अम्मा तो हारी बेचारी
बच्चा उसकी ज़िम्मेदारी
एक दिन चलता था पगडंडी
उस दिन बहुत पवन थी ठंडी
पेड़ के नीचे जा बैठा
भूख लगी थी पर था ऐंठा
मौसी पहुंची ‘म्याऊँ, म्याऊँ’
कहने लगी ‘तुझीको खाऊँ’
चम्पक भूल गया सामान
भागा जैसे हो बेभान
चिपटा वो अम्मा से जाकर
अम्मा ने पूछा घबराकर
‘बोलो बेटा क्या है बात ?”
“कुछ न पूछो बात-वात
मुझे बनाकर देदो भात
अब मैं खाना खाऊँगा
ताकतवर बन जाऊँगा
फिर सबसे बच पाऊँगा|”|
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अटकन पटकन, दही चटकन
अटकन पटकन, दही चट्ट्कन
हो गई ऎसी बात
कोई नज़र न आया हमको
न धोबी न घाट
एक गधे की शामत आई
धोबी ने की खूब पिटाई
अगले दिन था गधा उदास
धोबी के न आया पास
धोबी पहुंचा डॉक्टर पास
ज़रूर बात है कुछ तो ख़ास
गधा मेरा बीमार बहुत
न खाता न पीता कुछ
डॉक्टर साब घर चलें ज़रा
ज़रा बताएं हुआ है क्या ?
डॉक्टर पहुंचा गधे के पास
बोलो बेटा क्या है बात ?
कैसी है अब तबियत तुम्हारी
क्या कुछ है बीमारी-हारी ?
गधे के आँसू बहने लगे
शायद वो कुछ कहने लगे
डॉक्टर समझे सारी बात
घोबी से मुखातिब ख़ास
तुमने की है मुक्के, लात
वो तो गधा है बेचारा
पर तुम बिलकुल आवारा
अगर अब इसको मारोगे
हथकड़ियाँ लगवाओगे
न—न डॉक्टर बाबू न
ऐसा कुछ तुम करना न
अधिक काम न करवाऊँगा
रूखी-सूखी खाऊँगा
लेकिन अपने घोलू को
खाना खूब खिलाऊँगा
बंद कर दिया उसने घाट
घोलू के तो बन गए ठाठ |
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कलंदर
एक था बंदर, नाम कलंदर
कलाबाजियाँ खाता था वो
गीत सुनाकर मीठे-मीठे
सबका मन बहलाता था वो
रहता आम के पेड़ पर
आम खाता पेट भर
प्यारी बातें करता था
सबको कहता था वो ‘सर’
बूढ़े–बच्चे प्यार करें उसे
तोड़े कभी न आम कच्चे
तोड़-तोड़ देता सबको
मीठे आमों के गुच्छे
एक दिवस आँधी आई
टूटी डाल, पेड़ भाई
कलंदर का घर था टूटा
कहाँ रहे? था प्रश्न बड़ा
बूढ़े बच्चे सब आए
उसे उठा घर ले आए
घर में डॉक्टर को लाए
सही इलाज़ करवाए
मस्त कलंदर ठीक हुआ
कह शुक्रिया चला गया
फिर ढूँढा सेब का पेड़
उस पर रहने चला गया
सबको सेब खिलाता था
बांटकर खाओ,बताता था
इसीलिए तो वह बंदर
सबके मन को भाता था |
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चूं चूं की सगाई
चूं चूं चिड़िया के घर उस दिन
जब आए मेहमान
सुंदर सुंदर कपड़े पहने
कैसी उनकी शान !
मम्मी बोलीं ;
चूं चूं आओ—चाय पकौड़ी, कुछ तो लाओ
वो जो तुमने बहुत जतन से
कितनी मेहनत, कितने श्रम से
सुबह नाश्ता बहुत बनाया
देखो, अवसर है अब आया
खूब सजाकर लाओ उसको
और फिर खूब खिलाओ सबको ----
चूं चूं बोली; ‘अम्मा,अम्मा
सदा मानती हूँ मैं कहना
अभी मिठाई ले आती हूँ
मीठे सुर में मैं गाती हूँ ---
पर एक बात बताओ अम्मा
मैंने तो कुछ नहीं बनाया
सब तो हलवाई से आया ----!!’
अम्मा बेचारी खिसियाई
आँखें नीची कर लीं भाई-----
हँसने लगे सभी मेहमान
चूं चूं पर था सबका ध्यान
भोली कितनी प्यारी है
अब ये बहू हमारी है
चूं चूं की फिर हुई सगाई
बुलवाया वो ही हलवाई
जिसकी उस दिन खाई मिठाई
सच्ची बात सभी को भाए
सब सच्चे को ही अपनाएं ||
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सबको मिलाकर चलना होगा
सबको मिलकर चलना होगा
क्या खरगोश क्या भालू
सब कुछ तुमको खाना होगा
क्या बैंगन, क्या आलू
रस्ते अलग-अलग हैं तो क्या
पर सपना तो एक है
हम सब ही तो हैं भगवन के
बनना हमको नेक है
बैंगन, आलू को रस्ते में,
देखो मिला कचालू -----
सबको मिलकर चलना होगा
क्या खरगोश क्या भालू -------|
आलू कुछ ऐंठा ऐंठा सा रहता था हर दिन
कोई भी न सब्जी बन पाती है मेरे बिन
प्यार से खाते बच्चे-बूढ़े, चटकारे ले-ले
बिन मेरे तो कोई भी खाना न खाए रे
सदा सोचता रहता था ऐसे ही वह सब दिन ----|
नहीं, नहीं ये बात गलत है बोला वो खरगोश
तुझको पता नहीं क्या बोले, नहीं है तुझको होश
बैंगन का भर्ता बनता है वो भी तेरे बिन
पूछो छुटकी गिलहरी से जो भर्ता खाए हर दिन
ऐसे ही मत उड़ा करो तुम हर पल, हर छिन-छिन ----
और ठुमकती भिंडी बोली
मेरी कैसी चाल निराली
मेरे बिन तो बच्चों को
कुछ भी न भाए रे
कभी काटकर छोटी-छोटी
कभी भरवाँ बना बनाकर
चटकारे ले खाएं रे --------
तभी ग्वार भी धीरे आई
मैं भी तो बिन आलू
पिंकू,चिंटू सब ही खाते
संता हो या कालू
और पालक की बात निराली
शान है उसकी कहने वाली
पत्ता-पत्ता चमके उसका
रक्त सभी का साफ़ करे वो
आँखों की ज्योति भी बढ़ती
जो उसका सेवन है करता
माना आलू राजा हो तुम
बिना बीन का बाजा हो तुम
पर केवल तुमसे ही न
चलता है ये संसार
सब ही तो हैं महत्वपूर्ण
तब चलता कारोबार -----
सबकी इज्ज़त करना सीखें
कोई भी हो चाहे
स्नेह, प्रेम के बिना नहीं है
कोई दूजा द्वार ---------||
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जंगल ही हम सबकी काशी
बड़े प्यार से हाथी दादा
सैर कराने आए थे
मिट्ठू तोते, चुनकी चिड़िया
को भी संग में लाए थे
चूहा जिसका नाम था छुटकू
छुपकर घर में बैठ गया
बिल्ली मौसी के डर से वो
कोने में जा लेट गया
हाथी दादा ने सारे
बच्चों को ही बुलवाया था
किन्तु छुटकू चूहा बच्चा
डरता था, न आया था
दादा ने फिर मौसी को
पकड़ा था, समझाया था
दुश्मन नहीं हो एक-दूजे के
प्यार करो, सिखलाया था
तुम खा लेतीं दूध-मलाई
इस नन्ही सी जान से कैसी
दुश्मनी तुमको भाई ?
राजा शेर भी पहुँच गए थे
हाँ में हाँ मिलाई थी
देख शेर सब थर-थर काँपे
कोई न आगे जाके झाँके
मौसी ने पकड़े थे कान
थर थर काँप काँपकर बोली
मैं तो जी ठहरी नादान
हाथी दादा थे मुस्काए
तुम तो बहुत नादाँ बेचारी
हम सब इसको माने हैं
किन्तु तुम्ही छुटकू को डरातीं
हम सब ये भी जाने हैं
राजा शेर दहाड़े बोले
‘हम सब जंगल के वासी
सब मिलकर ही साथ रहेंगे
जंगल हम सबकी काशी
आओ, मिलकर भजन करेंगे
कभी न एक–दूजे से डरेंगे’
राजा की सुनकरके बात
सबको बंध गई सुन्दर आस---
सभी प्यार से रहने लगे
मिलकर सभी चहकने लगे ---||
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सुन्दर खेल
लुक छुप लुक छुप
लुक छुप लुक छुप
आओ खेलें सुन्दर खेल
न तुम रूठो,न हम रूठें
बना रहे बस मेल ----
अलग-अलग बगिया के फूल
कभी कभी करते हैं भूल
कभी-कभी होती है लड़ाई
कर जाते हैं हाथापाई
पर केवल कुछ ही मिनटों में
मित्र बनें हम यूँ चुटकी में
एक-दूसरे के बिन हमको
कभी न भाएँ खेल-खिलौने
हम सब ही हैं सजल- सलौने
चॉकलेट और टॉफ़ी के
हम सब दीवाने होते हैं
एक-अकेले पड़ जाएँ तो
सुबक-सुबककर रोते हैं
हम सब ही तो प्यारे हैं
सबकी आँख के तारे हैं
काम करेंगे हम ऐसा
दुनिया हम पर गर्व करे
रहें यदि हम सब मिलकर
हम दुनिया को स्वर्ग करें ---||
********
तितली रानी
सुबह उठे तो देखा कितना
सुन्दर मुस्काता बागीचा
रंग-बिरंगे फूल खिले थे
माली ने जी भरकर सींचा
नन्ही नन्ही तितली उड़तीं
बैठ कभी फूलों पर जातीं
एक फूल से फिर दूजे पर
बैठ-बैठ मुस्काती रहतीं
बच्चे पीछे भाग रहे थे
तितली रानी आई पास
बोली ‘देखो, नन्हा चुप है
क्यों बैठा है यहाँ उदास ?’
नन्हे की आँखों में आँसू
बहुत गलत है यह तो बात
सभी प्यार से रहना सीखो
कोई न हो कभी उदास
उस दिन से बच्चे सारे ही
साथ में मिलकर रहते हैं
तितली रानी के सब साथी
सभी थिरकते रहते हैं-------||
********
एक थी गुड़िया
एक थी गुड़िया खूब ही प्यारी
सबकी थी वो बहुत दुलारी
ऐसा उसका रंग सलोना
प्यारा सा था एक खिलोना
रंग-बिरँगा फ्रॉक पहनती
फूल समान सदा वह खिलती
सबका मन बहलाती थी वो
सबके ही मन भाती थी वो
छूई-मुई सी लगती थी वो
मान सभी का करती थी वो
सबका कहना वो तो माने
सबकी तकलीफें पहचाने
दादा जी का पकड़े हाथ
सबका देती थी वो साथ
कितने आशीषों से झोली
उसकी भरती जाती थी
सुंदर, प्यारी सुगढ़ सलौनी
सबके मन को भाती थी -----||
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किसने देखा काला चोर !
जंगल में नाचा है मोर,
कैसा मचा रहा है शोर
चंचल हिरनी कूद कूदकर
मंगलगान करे हर भोर
किसने देखा काला चोर !
बिल्ली बोली 'म्याऊँ, म्याऊं'
मैं तो सीधी-सादी गाय,
दोस्त बनो तुम मेरे प्यारे
नाचें-कूदें शाम और भोर...|
किसने देखा काला चोर !
टप -टप करता घोड़ा आया
उसकी शान बड़ी भारी
मुस्काता खरगोश ये भागा
उसकी चाल बड़ी प्यारी
डम-डम डम-डम डमरू बाजे
बन्दर भागें चारों ओर.......|
जंगल में नाचा है मोर.........
किसने देखा काला चोर........! ! !
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चूहे की शादी
उस दिन चूहे की शादी थी
कितनी सजे-धजे बाराती !
चूहे ने आमन्त्रण भेजा
आए सब जंगल के साथी
‘हम तो जंगल में न रहते
फिर क्यों बुलवाया है सबको?”
अम्मा ने पूछा बेटे से
तब उसने कुछ यूँ समझाया
राज़ खोल अम्मा को बताया;
“अम्मा ! कुछ बनो समझदार
और कुछ बनो होशियार,
जब कोई मुसीबत आएगी
ये ही तो जंगल की टोली
हमें बचाने आएगी”
अम्मा का खिल आया चेहरा
होशियार है बेटा मेरा !
कितनी ले डालीं बलाएँ
सबको उसकी होशियारी से
जा-जाकर परिचित करवाएँ
सबने की हौसला-अफज़ाई
दुल्हनिया मन में मुस्काई !!
********
चुन्नू का घोड़ा
टप टप टप टप
टप टप टप टप
चुन्नू का घोड़ा है भागा
सुन आवाज़ छछूंदर जागा
उसने ऎसी ली अंगडाई
आँख मलीं और ली जमुहाई
पत्नी उसकी मचाए शोर
आधी रात को इसकी भोर
वो गुस्से से बिफरी बोली
खाकर सोई थी वो गोली
रात के बारह बजे हुए हैं
क्यों घोड़े पर डटे हुए हैं ?
आज न छोडूंगी चुन्नू को
पूछुंगी हर एक किसी को
रात में घोड़ा लेकर जाता
हम सबकी ही नींद उड़ाता
थाने में सब रपट करेंगे
तब ही चुन्नू जी सुधरेंगे ||
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टुन्ना भाई
नन्हा सा तो टुन्ना भाई
हरदम सबसे करे लड़ाई
कौन न जाने कब किसकी
देखो जी शामत है आई
कब किसकी बातें कर डाले
किसकी झूठी बात बना ले
कभी किसी को पता न चलता
मस्ती में वह खिल-खिल करता
सबमें करवाए वो लड़ाई
पीद्दी सा तो टुन्ना भाई
एक दिन माँ ने पकड़े कान
तू इतना कैसे बेईमान
सबमें झगड़ा करवाता है
फिर मीठे सुर में गाता है
माँ शारदे का आशीष
मीठा कंठ दिया जगदीश
फिर क्यों गलत काम करता तू
सबको परेशान करता तू
समझा टुन्ना माँ की बात
शुरू करी संगीत की क्लास
धीरे-धीरे हो गया नाम
टुन्ना भूला गंदे काम ||
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चिड़िया ने खाए गोलगप्पे
एक दिन बैठी चिड़िया रानी
और गिलहरी भी मनमानी
सुंदर, प्यारी बातें करती
बनीं सखी थीं एक-दूजे की
पानी पूरी की लारी थी
पास नहीं थी,दूरी पर थी
चिड़िया बोली मैं जाती हूँ
जाकर उससे बनवाती हूँ
फुदक फुदककर तुम भी आओ
मैं बनवाती पानी-पूरी
आओ चटकारे ले खाओ
कोयल भी तो सखी हमारी
उसको भी तो ज़रा पुकारो
गिलहरी कुछ ठिठक रही थी
कोयलिया को ‘मिस’करती थी
नहीं, नहीं वो न आयेगी
न खाए खुद न हमको भी
जी भरकर खाने ही देगी
चिड़िया फुर्र से उड़ी डाल से
पहुँच गई लारी के पास
गिलहरी भी धीमे से आई
मगर लगती थी बहुत उदास
चिड़िया ने तीखे बनवाये
गोलगप्पे जी भरकर खाए
गिलहरी ने भी दिया था साथ
मुखड़ा उसका रहा उदास
खा-पीकर जब आईं वापिस
चिड़िया से बोला न जाता
जाने क्यों जी था घबराता
गला पकड़कर बैठ गई थी
गले की नस ऐंठ गईं थीं
आँसू निकले फिर आँखों से
बोल नहीं निकले थे मुख से
गिलहरी ने आवाज़ लगाई
कोयल प्यारी दौड़ी आई
भागी वो तो डॉक्टर पास
और दवाई लाई ख़ास
कितनी बार तुम्हें समझाया
किन्तु तुमको समझ न आया
अगर बहुत ही शौक लगा हो
गोलगप्पों का रोग लगा हो
घर में भी बन सकते हैं
हम सब भी खाकर खुश होते
स्वस्थ सभी रह सकते हैं
चिड़िया ने फिर मांगी माफ़ी
सज़ा मिली थी उसको काफ़ी ||
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चूहे की पैंट
चूहे की जब हुई सगाई
चुहिया रानी सजकर आई
सखी-सहेली मंगल-गाएँ
चूहे राजा पर शर्माएं
अम्मा बोली आओ पास
बैठो दुल्हनिया के पास
चूहे राम न आते थे
जाने क्यों शर्माते थे
पैंट संभालें बारंबार
आखिरकार हुए लाचार
भैया की पहनी थी पैंट
लगती थी जैसे हो टेंट
अभी निकल ये जाएगी
हंसी मेरी उड़वाएगी
अपनी ही मैं पहनूँगा
तभी सामने आऊँगा
रोको दुल्हनिया को अम्मा
आके सगाई करवाऊँगा ||
*********
गप्पूराम
गप्पूराम बड़े चालाक
आएँ न किसी के हाथ
हर चौराहे पर जा बैठें
कर बैठें फिर मुक्के-लात
पान बहुत खाते हैं वो
स्कूल में पढ़ने जाते वो
एक क्लास में दो या तीन
बरस बजाते रहते बीन
अम्मा–पापा हार गए
शिकायतें सुन बीमार भए
जब इस बार आया परिणाम
पापा ने लिया डंडा तान
अब भागो तुम घर से बाहर
दो पैसे दो घर में लाकर
फाँकों में ही मर जाओगे
जाने क्या तुम कर पाओगे
गप्पू ने फिर पकडे कान
अब न बनूंगा मैं बेईमान
करके श्रम मैं आऊँगा
धन कुछ अधिक कमाऊँगा
पापा ने फिर दी आवाज़
कोई न करना उल्टा काज
अच्छे बेटे बन जाओगे
सबकी आशीषें पाओगे ||
********
टिंकू बन्दर की नाव
नाव बनाई काठ की
कैसी सांठ गाँठ की
मेंढक, झींगुर चढकर बैठे
टिंकू ने फिर बाँट की----
मेंढक बोला टर्र टर्र
मुझे तो काशी जाना है
झींगुर बोला कर्र कर्र
मुझे तो लन्दन जाना है
बुलवाया महारानी ने
उनसे मिलकर आना है
मैं तो भैया सबकी मंजिल
तक पहुंचा ही देता हूँ
पैसे हों जो जेब में
तब ही बैठा लेता हूँ
पहुंचाता हूँ सबको मंजिल
नाव है मेरी ठाठ की -----
कुछ ही दूर चली थी नैया
बंदर कैसा कुशल खिवैया
बोला देखो मेंढक भैया
वो है काशी सामने
पैसे दो फिर उतर पड़ो जी
जाना अब आराम से -----
अब फिर उसकी नाव चली
थोड़ी दूर लन्दन की गली
मेरे पैसे दो मुझको
झिगुर भैया सुनो ज़रा
कहना राम-राम मेरा
महारानी खुश हो जाएं
तो मुझको भी बुलवाएँ
झींगुर उतरा नाव से
पैसे उसको पकड़ाए
समझ नहीं कुछ भी आया
जल्दी कैसे हम आए ?
कोई समझ न कुछ पाया
सब थी टिंकू की माया
नाव घुमाकर चल दिया वो
पीछे मुड़ न देखे वो
कैसा उल्लू बन गए सब
काशी, लन्दन की गलियाँ
ढूंढेंगे अब वे सदियाँ -----||
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प्यारे बच्चे
जैसे चमकें नील-गगन में सुंदर सुंदर तारे,
वैसे ही तुम सब लगते हो हम सबको ही प्यारे ||
झूठ, अहं से वंचित रहकर सदा प्यार से रहना,
ईश्वर का आशीष है सिर पर, फिर तो क्या है कहना !
प्यार सदा सबमें बाँटोगे, तुम हो राजदुलारे,
वैसे ही तुम सब लगते हो प्यारे और दुलारे ||
सदा प्यार से रहना है, सबसे हिलमिलकर रहना,
बंधी हुई मुठी हो तो फिर उसका क्या है कहना |
सूरज दादा करते हैं सदा दूर अंधियारे,
वैसे ही तुम सब लगते हो प्यारे और दुलारे ||
डॉ प्रणव भारती