सब इंस्पेक्टर लवलीना,आठनेर पहुँची। यहां,मृतक अनिल सालगांवकर का घर,डीसेंट कालोनी में स्थित था। घर के मुख्य द्वार पर इस समय ताला लटक रहा था। घर की हालत देख कर लग रहा था,कई सालों से यह बन्द था। लवलीना ने बगल वाले घर मे झांका। सामने लगे हुए नेम प्लेट पर देव लाल सिन्हा लिखा हुआ था। उसने काल बेल दबाया। कुछ देर बाद एक लगभग 50 साल की महिला ने दरवाजा खोला। सामने,अपरिचित चेहरे को देख कर महिला ने कहा - जी कहिए?
लवलीना ने कहा - जी मेरा नाम लवलीना है। मैं मुंबई से अपनी सहेली मालिनी सालगांवकर से मिलने आई हूं। लेकिन,घर मे ताला लगा हुआ है। क्या,आप बता सकती है,वो कहाँ गई है?
महिला ने चहकते हुए कहा - आ....आप मुंबई से आई हैं।और आप मालिनी की सहेली हैं। आप बाहर क्यो खड़ी हैं,अंदर आइए ना। कहते हुए वह एक ओर हट गई। लवलीना ने अंदर प्रवेश किया। अंदर एक छोटा सा बैठक कमरा नजर आया। एक सोफा और कुछ कुर्सियों के साथ एक टेबल रखा हुआ था। कुर्सी में बैठते हुए लवलीना ने कहा - मुझे तो मालिनी की चिंता होने लगी है। काफी समय से कोई सम्पर्क नही हो पा रहा है। फोन भी नही लग रहा है और चिट्ठी का भी कोई जवाब नहीं दे रही है। उसका,हालचाल जानने के लिए यहां आई तो यहां भी ताला लगा हुआ है। न जाने कहाँ चली गई है? मुझे तो बहुत फिक्र हो रही है। लवलीना की बातों को अनसुना करते हुए मिसेज सिन्हा ने कहा -आप,मालिनी की वही सहेली हैं ना,जो फिल्मों की कहानियां लिखती हैं। आपका तो बड़े बड़े एक्टर और डायरेक्टर से परिचय होगा।
लवलीना ने बड़ी चतुराई से कहा - हाँ,वह तो रखना ही पड़ता है ना। नही तो रोजी रोटी कैसे चलेगी? लवलीना की बात सुनकर उत्साहित होते हुए मिसेज सिन्हा ने कहा - वही तो,मालिनी भी तो यही कहती थी। आपकी कितनी तारीफ किया करती थी। उसने तो आपके पास मुंबई जाने का प्लान भी बना लिया था। लेकिन,अचानक ही एक दिन वह गायब हो गई। उस दिन से हमारी मीना,कितनी बुझी बुझी सी रहती है। मीना? लवलीना ने कहा
हाँ,मेरी लाडली मीना। मालिनी के साथ मुंबई जाना चाहती थी। दोनों में अच्छी पटती भी थी। लेकिन,अब तो सब कुछ गड़बड़ हो गया।
मीना अभी है क्या? मैं उससे मिलना चाहती हूं। लवलीना ने कहा।
मिसेज सिन्हा ने खुश होते हुए कहा - घर मे ही है मीना,मैं अभी बुलाती हूँ। आपसे मिलकर बहुत खुश होगी। कुछ मिनट में एक 15-16 साल की लड़की को लेकर वह लौटी। आते ही कहा - ये है मेरी लाडो मीना। देखिए न कितनी परी सी सुंदर है। इसे तो कोई भी फ़िल्म में ले लेगा।
लवलीना ने कहा - हां हां,क्यों नहीं। ये तो भाग्यश्री से भी अधिक सुंदर और मासूम है।
मिसेज सिन्हा ने कहा - आप बात कीजिए,मैं चाय लेकर आती हूँ। कहते हुए अंदर चली गई। लवलीना ने राहत की सांस ली। लेकिन,मुंबई और फिल्मी चमक की जितनी दीवानी मां थी,उससे बढ़ कर बेटी। बहरहाल,मीना से बातचीत में लवलीना को पता चला कि मालिनी एक बेहद आधुनिक विचार वाली औरत थी। मुंबई जाकर,एक्टिंग करना उसका लक्ष्य था। अनिल सालगांवकर,पेशे से एमबीबीएस डॉक्टर था। उसकी आय अच्छी खासी थी। लेकिन,मालिनी के फैशन और फिल्मों के शौक ने जीवन को तोड़ कर रख दिया था। सालगांवकर दम्पप्ति का एक बेटा भी था,जिसका नाम बिट्टू था। अभी वह कहां है,ये न मीना बता सकी और न मिसेज सिन्हा। मां और बेटी से किसी तरह पीछा छुड़ा कर लवलीना बाहर निकल रही थी। इसी समय उसकी मुलाकात देवलाल सिन्हा से हो गई। उसने लवलीना को देखते ही कहा - तो एक और फिल्मी मरीज से इन मां बेटी की दोस्ती हो ही गई। अब न जाने इस घर का क्या होगा? लवलीना,उनसे बात करने के इरादे से आगे बढ़ ही रही थी कि पीछे से आवाज आई - अरे! इनसे बात करके क्यो अपना समय बेकार कर रहीं है आप। ये तो सठिया गए हैं। हर काम की बात,इन्हें बेकार लगती है। आगे बढ़ रही लवलीना ठिठक गई और कुछ सोच कर गेट से बाहर निकल गई।
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लवलीना,इस समय डीएसपी घोष को मोबाइल पर रिपोर्ट दे रही थी। पूरी बात सुनने के बाद,घोष ने लवलीना को अनिल सालगांवकर के घर की तलाशी लेने को कहा। पीछे की ओर से एक खिड़की का दरवाजा तोड़,लवलीना,अंदर घुसी। अंदर उसे दो बेडरूम,किचन और एक हाल मिला। सबसे चौका देने वाला समान उसके हाथ लगा एक कुर्सी में बंधे हुए रस्सी। देख कर कोई भी कह सकता था,यहां किसी को बांध कर रखा गया था। लेकिन,सवाल ये था कि किसे? फिलहाल,इसका जवाब नहीं था। एक बेड रूम की तलाशी में कई प्रकार के दवाइयां,मेडिकल साइंस से जुड़ी किताबे मिली। इन सबको लेकर लवलीना बाहर निकलने के लिए आगे बढ़ी,इसी समय उसकी नजर दीवार में टँगी एक बड़े सी पेंटिंग पर पड़ी। पेंटिंग का बेक ग्राउंड लाल रंग का था,साथ मे काले रंग से कुछ डरावनी स्केच बने हुए थे। लवलीना,न चाहते हुए उस पेंटिंग की ओर आकर्षित हुई और पास खड़े हो कर उसे ध्यान से देखने लगी। एकटक,बिना पलक झपकाए,लवलीना उस पेंटिंग में काले रंग से बने हुए आंखों के स्केच को घूरे जा रही थी। अचानक,पेंटिंग के मुंह हल्की से हिली,इससे पहले लवलीना कुछ समझ पाती,एक पतली सी सुई निकली और उसके बाह में घुस गई। दर्द से लवलीना की हल्की सी चीख निकल गई। बाँह को पकड़े हुए लवलीना को कुछ गीलापन महसूस हुआ। उसने हथेली सीधा करके देखा,हाथ मे खून की बूंदे चमकने लगी। इससे पहले की वह कुछ समझ पाती,उसका सिर चकराने लगा। लड़खड़ाते हुए,चंद सेकेंड में वह फर्श में धराशाई हो गई। उसके नीचे गिरते ही,कमरे में अट्टहास गूंजने लगी। जूते की ठक ठक की आवाज गूंजने लगी। फर्श में बेहोश पड़ी हुई लवलीना के पास खड़े हो कर कहा - उफ ! ये औरतें, कहीं भी शांत नहीं रहने देतीं। उसने,बेहोश लवलीना को कंधे पर उठाया और धीरे धीरे चलते हुए,अंधेरे में गुम हो गया। फिर,सब शांत हो गया। चारो ओर सन्नाटा छा गया।